RE: Hindi Chudai Kahani हमारा छोटा सा परिवार
मेरे दर्द भरी सिस्कारियों में एक नया आनंद था ज मैंने कभी भी नहीं महसूस किया था।
'अक्कू, हाय अक्कू और ज़ोर से मसलों अक्कू," मैं बिना सोचे बोल उठी।
अक्कू ने मेरी दोनों घुन्डियाँ और छाती के उभारों को मसलते हुए अपना मुंह मेरी जांघों के बीच में दबा दिया। जैसे ही मेरे छोटे
भाई का मुंह मेरे गुलाबी संकरी दरार पर लगा मैं चिहुंक गयी और मैंने ज़ोर से फुसफुसाया , "अक्कू मेरा अक्कू। "
अक्कू ने अपने जीभ से मेरे चूत की पूरी दरार को चूम कर चाटने लगा। पता नहीं कैसे प्राकर्तिक रूप से मेरी चूत की दरार के
दोनों छोटे से होंठ अलग हो गए और अक्कू की जीभ ने मेरे चूत के अंदर के द्वार को चाटते हुए मेरे पेशाब के छेड़ को ले कर
मेरे चूत के ठेक ऊपर एक और मेरे छाती की घुंडी से भी छोटी घुंडी को अपने जीभ से संवेदन शील कर दिया।
मेरे चूतड़ पलंग से ऊपर उठ गए ," अक्कू यह तो बहुत अच्छा था। एक बार फिर से करो अक्कू। "
अक्कू ने अब बिना रुके मेरे छातियों को मसलते हुए मेरी चूत चटनी शुरू की तो तभी रुका जब मैं अचानक झड़ने लगी।
मेरी सांस मनो मेरे गले में अटक गयी। मेरा गोल मटोल शरीर तन कर कमान हो गया। अक्कू ने मेरे चूतड़ों को बिस्तर में
दबा लिया पर फिर भी मैं हवा में थी।
फिर मेरे नीचे के पेट में तेज़ दर्द उठा जो जल्दी से मेरी चूत में पहुँच गया। उसके बाद तो मानों मेरा पूरा शरीर बुखार से जलने
लगा।
मैं घबरा के चीखी , "अक्कू, मुझे कुछ हो रहा है। अक्कू……. अक्कू…. मेरा अक्कू ऊ.. ऊ… ऊ…. हाआआय….. ," और मैं
पलंग पर वापस शिथिल हो कर ढलक गयी।
अक्कू एक क्षण के लिए भी बिना रुके मेरी चूत चाटता रहा। मेरी चूत में उसके चाटने से एक अजीब सा दर्द हो रहा था।
अक्कू ने मेरी उसे रुक जाने की विनतियां को उनसुना कर दिया। अक्कू ने डैडी से एक रात में बहुत कुछ सीख लिया था।
और वातव में मैं भी मम्मी की तरह कुछ देर में मैं अक्कू को उकसा रही थी ,"अक्कू और ज़ोर से मेरी चूत चूसो। अक्कू अपने
जीभ अंदर डाल दो। "
अक्कू तो मेरी निर्देशों से भी आगे बढ़ गया। अक्कू अब मेरी गांड के छेद से ले कर मेरी पूरी चूत चाट रहा था। अब तक
मैं समझ गयी थी कि अक्कू ने मुझे झाड़ दिया था। मैं खुशी से दूसरी बार झड़ने की प्रतीक्षा करने लगी।
अक्कू की जीभ अब मेरे पूरे शरीर में आग सी लगा रही थी। मैं कुछ मिनटों में ज़ोर से चीख कर फिर से झड़ गयी। अक्कू ने
मेरे हाँफते हुए शरीर को बाँहों में भर लिया।
मैंने अक्कू के होंठों पर अनगिनत प्यार से भरी पुच्चियाँ जमां दीं।
हम दोनों दस पंद्रह मिनट तक अपनी साँसे ठीक होने का इंतज़ार करते एक दुसरे को हलके हलके चूम रहे थे। मैंने अक्कू के उन्नत
खम्बे जैसे खड़े लंड को सहला कर और भे सख्त कर दिया। मुझे अक्कू की रेशम जैसी चिकनी त्वचा का स्पर्श बहुत अच्छा लग रहा
था।
फिर मैंने अक्कू से पूछा ,"अक्कू तुम अब मेरी गांड मारने के लिए तैयार हो ? तुम्हे याद है न कैसे डैडी ने मम्मी की गांड मारी थी ?"
अक्कू ने थोडा डरते हुए कहा ," मम्मी को तो बहुत दर्द हुआ था , सुशी दीदी। " अक्कू मुझे बहुत प्यार करता है और तब वो और मैं
भी प्यार भरे दर्द और दर्द भरे दर्द के बीच के अंतर से अनभिज्ञ थे।
"अक्कू यदि मम्मी डैडी को गांड मारने से मज़ा आता है तो शायद दर्द भी उसके लिए ज़रूरी है। " मैंने छद्म-विज्ञान से उपजी
परिकल्पना का सहारा लिया।
अक्कू ने फिर मुझे कायल कर दिया ,"पर दीदी हमारे पास डैडी वाली ट्यूब कहाँ है ?"
मैंने माथा सिकोड़ कर सोचा। डैडी ने उस ट्यूब को अपना लंड और मम्मी की गांड को गीला करने के लिए इस्तेमाल किया था।
मुझे याद आया कि कितनी बार मम्मी जब अपनी अंगूठी आसानी से उतार नहीं पाती थीं तो वो अपनी उंगली को मुंह में ले कर गीला
कर लेती थीं और फिर उनकी अंगूठी आसानी से निकल आती थी।
मैंने खुश खुश इस समस्या का हल अक्कू को बता दिया।
"अक्कू मैं तेरे लंड को मुंह से गीला कर दूंगी और तू मेरी गांड गीली कर देना बस उस से काम बन चाहिए ," मैं अपने प्यारे भैया के
साथ आज की इकट्ठी की सारी शिक्षा का अभ्यास करने के लिए उतावली थी।
अक्कू ने मुझे मम्मी की तरह घोड़ी की तरह कोहनियों और घुटनों पर पलट दिया। उसने मेरे मुंह में अपना लंड घुसा दिया ,"दीदी,
थूक लगा दीजिये। मैं आपको कम से कम दर्द करना चाहता हूँ। "
मुझे तो मेरा अक्कू ,उसके पैदा होने के बाद से ही, अपनी जान से भी प्यारा है और तब मैं कहाँ से और प्यार लेके आती उसके लिए?
मैंने अक्कू के लंड को अपने थूक से लिसलिसा कर पूरा गीला कर दिया।
अक्कू ने मेरी गांड के छेद को खूब अच्छे से चूसा और अपना थूक मेरी गांड के ऊपर उलेढ़ दिया।
अब मेरी गांड की चुदाई का समय आ गया था। मेरी तीव्र इच्छा के बावज़ूद भी मेरा दिल और भी तेज़ धड़कने लगा और मेरा गला
सूख गया। अक्कू का लंड बहुत ही मोटा है , मेरे दिमाग में से यह ख्याल निकल ही नहीं पाया।
मेरी गांड के नन्हे छेद के ऊपर अक्कू के गरम और गीले मुंह के प्रभाव ने मेरी अविकसित चूत में हलचल मचा दी। मुझे बिना किसी
पहले अनुभव के बिना भी अब अपनी गांड में कुछ अंदर लेने की इच्छा जागृत हो चली थी।
"अक्कू ,अब अपना लंड मेरी गांड में घुसा दो, प्लीज़। वह मुझे बहुत है अब ," मैं अब जल रही थी पर मुझे बाद में पता चलेगा कि वो
कामवासना का ज्वर था।
अक्कू ने हमेश के तरह अपनी दीदी की इच्छा का पालन किया। अक्कू ने अपने मोटे लंड के सुपाड़े को मेरी थूक से सनी गांड के छिद्र
पर कस कर दबाया। मुझे ऐसा लगा कि अक्कू ने अपनी मुट्ठी मेरी गांड पर लगा दी हो। अक्कू ने और भी ज़ोर लगाया। पर मुझे सिर्फ
दर्द होने के अलावा, कुछ और नहीं हुआ।
|