Porn Kahani सीता --एक गाँव की लड़की
01-23-2018, 01:06 PM,
#33
RE: Porn Kahani सीता --एक गाँव की लड़की
सीता --एक गाँव की लड़की--33

"सबकी नजरों में तो बॉय फ्रेंड पर मेरी नजरों में नहीं.."मैं लम्बी साँसों को छोड़ती हुई बोली.. जिसे सुन वे मेरी तरफ देखते निगाहों से ही पूछ बैठे कि वो क्यों?

मैं कुछ रूक गई और फिर उनकी नजरों से नजरें मिलाती हुई बोली,"मैं प्यार सिर्फ अपने पति से करती हूँ..वे मेरी जिंदगी के पहले और आखिरी प्यार हैं..."

वो मेरे इस जवाब को सुन चेहरे पर सिकन लाते हुए बोले,"तो फिर ये सब..." मैं उन्हें भी एक दोस्त...नहीं, अच्छे दोस्त की तरह सारी बात कहने लगी...

"बस शरीर की भूख की वजह से...खुद को रोक नहीं पा रही...ऐसा नहीं है कि मेरे पति सेक्स में कमजोर हैं...पर मेरे अंदर पता नहीं क्या है..हर वक्त नए व्यक्ति,नई जगह,नई तरीके खोजती रहती..." मैं एकदम साफ लहजों में ये सब कह डाली...

जिसे सुन वे थोड़े चौंके और मुझे हैरानी भरी निगाहों से देखते हुए नेक्सट सवाल कर दिए,"..तो तुम्हारे पति को कोई प्रॉब्लम नहीं है तुम्हारी इस बेहूदा शौक से..."

"जिन्हें खुद लत लगी हो उन्हें भला क्या प्रॉब्लम..."मैं हंसती हुई एक ही वाक्य में पति के बारे में भी कह डाली...जिसे सुन वे अपने सर पर हाथ रख सोचने लग गए...

रूम मालिक: "राम मिलाए जोड़ी,एक काना एक कोढ़ी...धन्य हो साहिबा....एक शेर सुनिएगा...पानी से प्यास न बुझी, तो मैखाने की तरफ चल निकला,
सोचा शिकायत करूँ तेरी खुदा से, पर खुदा भी तेरा आशिक़ निकला।.... तो अब कुछ कहने से क्या फायदा..." वो कुछ देर बाद अपने चेहरे पर हल्की खुशी और आश्चर्य लाते हुए बोले...जिससे मैं हंस दी...

"अच्छा आपको कभी जरूरत नहीं पड़ती कि कुछ नई होनी चाहिए..नए पार्टनर होने चाहिए..आई मीन..." मैं उनके चेहरे पर हल्की हंसी देख कुछ और मूड बदलने उनसे पूछी..

वो मेरे सवाल से मेरी तरफ घूरने लगे, फिर मेरी तरफ खिसकते हुए बिल्कुल सट गए और बोले,"होती है..और करता भी हूँ पर जितना मजा तुमलोग लेते हो वो तो मेरी किस्मत में नहीं..काश मेरी बीवी भी तुम्हारी तरह होती..."

"..तो बना दो उन्हें भी मेरी तरह..."मैं थोड़ी मजाकिया बनती हुई हंसते हुए बोल दी जिसे सुन वे अपनी हंसी नहीं रोक पाए..क्योंकि उन्हें पता था ये बात इस जनम में तो संभव नहीं है...

"चलो जाने दो उसे...रात में काफी मस्ती की तो पार्टी बनती है..."वो अब थोड़े रिलेक्स होते हुए बोले जिसे सुन मैं काफी खुश हो गई..

"हम्म्म...गुस्सा शांत हो गया...?"मैं रिस्क लेती हुई पूछी कि देखूं इनका क्या कहते हैं..तब से तो घर से बाहर निकालने की कह रहे थे...वो मेरी सवाल सुन चुप हो गए और एकटक निहारने लगे मुझे...

मैं भी बिना पलक झपकाए उनसे नजरें मिलाए जवाब का इंतजार कर रही थी...अब हम दोनों की साँसे थम चुकी थी जो वाक् के दरम्यान उखड़ गई थी...नजदीक होने के कारण सांसे सीधे एक दूसरे के सीने से टकरा रही थी...

तभी उसने अपना हाथ आगे बढ़ा सीधे मेरी गर्दन पर रख दवाब बना दिए, जिससे मैं अगले ही पल औंधें मुँह उनके गोद में गिर पड़ी..जहाँ पहले से तैनात सिपाही से मैं टकरा गई...

मैं चूं भी नहीं कर पाई..शायद करना भी नहीं चाहती थी...क्यों करती जब एक और लंड मेरी खातिरदारी को मिल रही थी...तभी उनके हाथ मेरे बाल को कस के पकड़ लिए और मुझे सीधी करने एक तरफ खींचने लगे...

बालों खिंचे जाने से हल्की दर्द हुई जिससे मेरी आहहह निकल गई...और मैं अनमने ढ़ंग से किसी तरह उनके गोद में उनकी तरफ मुँह किए पड़ी थी...दर्द भरी नजरों से उनके आँखों में झाँकी तो वहाँ वासना की लाल डोरे साफ नजर आई जिससे मैं दर्द में भी मुस्कुरा पड़ी...

तभी वो नीचे झुके और अपने होंठ मेरी खामोश लबों पर रख दिए...और लगे चूसने...मैं पल भर भी नहीं रूक पाई और बिना किस तोड़े खुद को ठीक से बेंच पर व्यवस्थित करती आराम से लेट गई...

तभी उन्होंने अपना एक हाथ सीधे मेरी चुची पर रख दिए...मैं उनके हाथ को टी-शर्ट पर से ही चुची पर महसूस कर सिहर गई...तभी उन्होंने मसलना शुरू कर दिया...

मेरी हल्की चीख अंदर ही अंदर घुट कर रह गई...कुछ ही पलों में मैं मस्ती में सरोबार हो गई और किसी भूखी कुतिया की तरह उनके होंठो पर वार करने लगी...

पार्क में चिड़ियां जोरों से चहचहा रही थी...कोयल अपनी सुरें वातावरण में फैलाए जा रही थी...रंग बिरंगे फूल अपनी सुगंधे फैलाए जा रही थी..मैं इन प्राकृत्क वातावरण में किस करने में मग्न थी...

उन्होंने किस करते हुए मेरे दोनों अपने गर्दन पर रख दिए..मैं तुरंत ही उनके गर्दन को अपने बांहों से जकड़ ली...फिर वो हल्के ऊपर उठ गए...पर मैं किस टूटने की डर से कस के जकड़ ली तो मैं भी उनके साथ ऊपर उठ गई...

कुछ देर बाद वो फिर वापस नीचे हो गए जिससे मैं उनके गोद में फिर से सर रख ली...पर अब मुझे कुछ भीनी-2 सी सुगंध आने लगी...पर इस सुगंध से अच्छी तरह वाकिफ थी...

मैं इस सुगंध से किस पर पकड़ थोड़ी कम कर दी और उस सुगंध का आनंद लेती किस कर रही थी...तभी उन्होंने अपने होंठ को ऊपर की तरफ हटाने लगे और वे सफल भी हो गए...

वे ऊपर हटने के साथ ही अपने हाथ से मेरे चेहरे को उस सुगंध की तरफ मोड़ दिए...मैं भी चुंबक की माफिक मुड़ती चली गई और मेरे मुँह स्वतः खुल गए...अगले ही पल मेरे मुंह में उनका मोटा और नाटा लंड गप्प से समा गया...

मेरी आँखें बंद हो गई मदहोशी में और चभर-2 चूसने लग गई...वे एक मीठी आहहह भरते हुए उत्तेजना में सर को कभी पीछे तो कभी नीचे करते और अपने हाथ से मेरू टीशर्ट ऊपर कर नंगी चुची को मसलने लगे...

जैसे-2 सुबह की लाली छंटती जाती मैं और जोर से चूसती जाती...और वो मेरी नंगी को लाल किए जा रहे थे...साथ ही अपना दूसरा हाथ नीचे कर मेरी केप्री में घुसा दिए...

उनके हाथ तुरंत ही अपनी मंजिल हासिल कर ली..जैसे ही उनकी उंगलिया मेरी बूर पर पहुँची, मैं तड़प उठी और पूरे लंड को जड़ तक मुंह में घुसेड़ ली...वो सीत्कार मारते हुए बिलबिला उठे और मेरी बूर में दो अंगुली घुसा कस के जकड़ लिए...

अब हम दोनों कंट्रोल से बाहर हुए जा रहे थे...मैं चुदने के लिए तड़पने लगी और अपने एक हाथ नीचे कर उनके हाथ को और अंदर बूर में धकेलने लगी...उनके लिए बस इतनी ही काफी थी...

वो मेरे बालों को पकड़ झटके दे अपने लंड को आजाद किए और मुझे उठाते हुए खुद निकल गए..उनके निकलते ही मैंने बेंच पर ठीक से एडजस्ट हुई और अपनी कैप्री नीचे सरका दी...

कैप्री हटते ही मेरी पनियाई बूर उनके नजरों के सामने आ गई...वे मेरी रसीली पर नजर गड़ाए नीचे की तरफ गए और मेरी एक टांग पकड़ नीचे जमीन पर कर दिए जिससे मेरी बुर खुल के सामने आ गई और उन्हें मुझे बजाने सी जगह भी....

मेरे हाथ खुद की चुची पर हरकत करने लगी और नशीली नजरें उनके लंड पर...कब ये नाटा पहलवान मेरी बूर में दस्तक देगा...कद में छोटा था पर हेल्दी में नॉर्मल लंड की दुगूनी...

वे अपने बंदूक ताने ठीक मेरी बूर के सामने ला मुझ पर लेट से गए...मैं उनके वजन से एक बार दब सी गई पर तुरंत ही एडजस्ट हो गई...लेटने से उनका लंड मेरी बूर में घुसने के व्याकुल होने लगा पर घुसा नहीं...

उन्होने अपने हाथ से लंड को सही दिशा देते हुए टमाटर की भांति सुपाड़े को मेरी बूर में फंसा दिए...सुपाड़े के फंसते ही मैं चिहुंक उठी...और अगली वार की प्रतीक्षा करने लगी...

"पांडे नाम है मेरा...C.P. पांडे... मैं बूर चोदने का दिवाना हूँ, बूर का नहीं...तू सोचती होगी कि अपनी जवानी से मुझे अपने फैसले बदलने पर विवश कर देगी,ऐसा नहीं हूँ मैं...ऐसी सोच ले कर आने वाली हर औरत को मैं सिर्फ एक ही चीज देता हूँ...और वो है....लण्डडडडडड..." वे मेरे कानों में मेरे सवालों का जवाब देते हुए अपना लंड मेरी बूर में धकेल दिए....

मैं इतने मोटे लंड खाकर तड़प कर अपने सर को पीछे धकेल कर बचने की कोशिश की कि लंड कम घुसे और दर्द कम हो...पर नाकाम रही...उन्होने अपने शरीर का पूरा वजन रख दिया जिससे मैं गर्दन से नीचे हिल भी नहीं पाई...

"तू औरों से अलग है इसलिए पहली बार ही सब कुछ दिया..अब अगर तेरी मर्जी हुई मेरे से दोस्ती रखने की तो रखना वर्ना नहीं रखना पर मैं घर अवश्य खाली करवाऊंगा...तेरी गरम जवानी पत नहीं कहाँ-2 गुल खिलाएगी तो मैं ये किसी के मुँह से सुनना नहीं चाहता कि ये तो फलाने बाबू की रेन्टर है..."वो अपने लंड को पीछे कर एक और धक्का मारते हुए बोले...

मैं इस वक्त सिर्फ उनकी बात सुन रही थी और कुछ कहने के बजाय उनके मोटे लंड को एडजस्ट करने में जुटी थी...आउच्च्च्च्चऽ आहहहह...अचानक उन्होंने अपने नुकीले दांत मेरी चुची पर गड़ा दिए...

मैं दर्द से चीख पड़ी जो कि मेरी चीख पूरे पार्क में गूँजने लगी...पर वो इन सब से बेखबर लगातार धक्के मारने लगे...मैं हर धक्के पर हिचकोले खा रही थी...

अभी 10 धक्के ही खाई थी कि तभी मेरे कानों में किसी की हलचल गूँजी...मेरे कान खड़े हो गए और अपनी गर्दन उस आवाज की तरफ कर देखने की कोशिश करने लगी...

"डर मत, इस पार्क में सिर्फ दो ही तरह के लोग आते हैं..." मुझे ऐसे डर से उधर देखते वे बोले जिससे मैं आश्चर्य से मुड़ कर उनकी तरफ हिचकोले खाती देखने लगी...

"एक वो जिसे चूत मरवानी होती है और दूसरा इस कॉलोनी के बुड्ढे-बुढ़िया जो आधे पार्क से उधर ही रहते हैं...इस कॉलनी की हर घर में एक ना एक रंडी है...सब अपने यार संग मॉरनिंग वॉक के बहाने आती है और चुद के जाती है...मैं भी यहाँ से रोज कोई ना कोई बूर पेल के ही जाता हूँ...और खास बात ये कि ये बातें सिर्फ पार्क तक ही रहती है, बाहल सब अनजाने..."मेरी डर को दूर करने के लिए उन्होंने इस पार्क के अंदर की असलियत बता दी...

मैं सुन के दंग रह गई..अब तक मेरी बूर उनके लंड को पूरी तरह एडजस्ट कर ली थी और अब आराम में अंदर बाहर हो रही थी...पर मेरी आवाजें निकलनी नहीं बंद हो पाई थी...हर धक्के पर आहहह कर बैठती...

मैं यूँ ही धक्के खाती ऊपर की ओर देखी तो खुला आसमान पर पार्क के बाउंड्री समीप काफी ऊंचे और घने वृक्ष लगे थे...और यहाँ से मोहल्ले की एक भी इमारत नजर नहीं आ रही थी....

तभी से अचानक वो काफी तेज धक्के मारने लगे..वे चरमसीमा की ओर बढ़ने लगे..मैं भी अपनी आवाजें तेज करती हुई उन्हें सपोर्ट करने लगी...तभी मेरे कानों में हल्की सुरीली हंसी पड़ी...

मैं यूँ ही कस के जकड़ी नजर घुमाई तो मेरी ही उम्र की एक गोरी चिट्टी लेडिज एक अधेड़ मर्द के साथ बगल से क्रॉस करती हम दोनों को देख हंस रही थी...मैं उन दोनों को देख बिना किसी हिचक डर के वापस पांडे संग लग गई...

तभी वो चीखते हुए चिल्ला पड़े,"आई...एएएएम...कमिंईंईईंईंईंगगगगगग..."और अपना ढ़ेर सारा लावा मेरी बूर में बहा दिए...मैं भी इस गरमी को सह नहीं पाई और उसी पल मैं भी अपनी नदी बहा दी...

पूरा झड़ने के बाद वे धम्म से मुझ पर लद गए और झड़ने के पश्चात मैं भी सुकून से आँखें बंद कर उन्हें बाँहों मे, भर ली...
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