RE: Porn Kahani सीता --एक गाँव की लड़की
सीता --एक गाँव की लड़की--32
"आहहह...शाबास मेरी रण्डियों....इसी तरह आहहह...काफी मजा आ रहा है...हम दोनों की ये सदियों की तमन्ना आज तुम दोनों ने पूरी कर दी...आहहहहह.." बंटी मेरे सर पर हाथ रख सहलाता हुआ बोला...
मैं बिना कुछ सुने बस अपने काम में लगी रही...कुछ देर तक इसी तरह चुदती रही...तब अचानक ही मेरे मुंह और बुर दोनों जगह से लंड गायब हो गई...मैं थोड़ी तड़पी पर सामने रस बहाती पूजा की बूर ने इस कमी को खलने नहीं दी...मेरे और पूजा के मुँह एक दूसरे की बूर में घुस गई...
तभी बंटी और सन्नी ने इसी अवस्था में हम दोनों को एक तरफ पलट दिया...जिससे मैं नीचे और पूजा ऊपर आ गई...पर हम दोनों के मुख अब भी नहीं हटी...बस चुदाई की जलन में बूर खाती रही...
फिर सन्नी ने मेरे दोनों पैर उठी के अपने कमर से ऊपर खुद से लपेट लिया...और आगे चेहरे के पास बंटी का लंड दिखा जो ठीक मेरे माथे के ऊपर था और उससे लार टपक के मेरे चेहरे पर पड़ रही थी...
नीचे सन्नी के हाथ एक बार मेरी बूर पर पड़ी और वही हाथ सरक के मेरी गांड़ के छेद पर रेंगने लगी...ओह...गांड़ मारने के लिए छेद गीली कर रहा है...बंटी ने तो ढ़ेर सारा थूक पूजा की गांड़ पर उड़ेल दिया जिसका कुछ अंश बह के मेरे चेहरे पर भी पड़ी...
गांड़ मरवाने की सोच मैं खुद को तैयार कर ली थी और पूजा भी...फिर दोनों के लंड हम दोनों के गांड़ पर रगड़ खाने लगी और कुछ ही देर की रगड़ के बाद एक तड़के से सीधा रांग गली में प्रवेश करा दिया...
एक काँटें की माफिक तेज दर्द हुई जिसका असर सीधा हम दोनों की बूर पर हुआ...जोरों से बूर को मुह से जकड़ती दर्द को सहने की कोशिश करने लगी...और वो दोनों इस दर्द से बेखबर दनादन शॉट मारने लगे...
10-12 शॉट में गांड़ एडजस्ट हो गई...पूजा मेरे शरीर पर लदी थी पर फूल की भांति लग रही थी..कहते हैं ना औरत चुदाई के वक्त अपने से चार गुना ज्यादा वजन सह लेती है...पहले ये बात नहीं मानती थी पर आज देख भी ली और मान ली भी ..
फिर काफी देर तक मुझे नीचे कर गांड़ का चिथड़ा उड़ाया दोनों ने, फिर पूजा को नीचे कर गरदा मचाया सुनसान सड़कों पर...अब हम दोनों थकने लगी थी तभी तो बूर चूसाई बंद हो गई हमारी...
कुछ देर तक इसी तरह बजाने के बाद दोनों की चीख हल्की-2 आने लगी...मतलब अब ये भी चरम सीमा को पहुँच रहे थे...जबकि हम दोनों तो इतनी देर में ना जाने कितनी दफा चरम सुख प्राप्त की....
तभी दोनों ने तेजी से अपना लंड बाहर किए और हम दोनों को पहले की भांति अलग कर दिया...हम थक तो गए ही थे तो तुरंत ही अलग हो गई...और फिर दोनों सटाक से अपना-2 लंड दोनों बुर में घुसेड़ दिया...
पर इस बार कोई दर्द नहीं हुई..बस मस्ती में आह निकल गई...चार-पाँच तेज शॉट दोनों ने चीखते हुए मारे और फिर अपना लंड खींचते हुए दोनों हम दोनों के चेहरे पर लंड रख दिया...
और तभी बंटी के लंड से तेज पानी की धार निकली और मेरे चेहरे को भिगोने लगी...और दूसरी तरफ सन्नी मेरी बूर से अपना लंड निकाल पूजा के गुलाबी होंठों को लंड के पानी से सिंचने लगा..
हम दोनों लंड के गरम वीर्य से तृप्त हो रही थी...फर्क थी तो चोदा एक लंड ने जबकि पानी दूसरा लंड दे रहा था...झड़ने के बाद वो दोनों ने उसी मुंह में लंड साफ करने घुसेड़ दिया,जिस पर पानी गिराया था...
कुछ ही देर में मैं बंटी के लंड को साफ कर दी और पूजा ने सन्नी की...साफ होने के बाद दोनों हट गए हँसते हुए., जबकि हम दोनों अभी भी धमाके की हुई चुदाई में पस्त पड़ी थी...
करीब पाँच मिनट बाद दोनों ने अपने कपड़े पहन हाथों में मेरे कपड़े लिए हम दोनों के पास खड़े हो गए और बांह पकड़ उठा दिया...हम दोनों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि बाइक से हट जमीन पर खड़ी होती...
फिर दोनों सहारे दे जमीन पर खड़ा कर दिए...फिर सन्नी ने मुझे आगे बढ़ा दूसरी तरफ खड़े बंटी व पूजा के पास ले गए और बोले,"बंटी, इसे भी पकड़ो मैं गाड़ी निकाल कर अलग करता हूँ..."
मैं और पूजा नंगी बेहोशी की हालत में बंटी के बांहों में पड़ी थी...तब तक सन्नी बाइक को मेन रोड की तरफ कर अलग कर दिया...फिर हम दोनों को किसी तरह बाइक पर नंगी ही बिठाया और मेरी साड़ी ले अपने पीठ से बाँध लिया...
हम दोनों उसके पीठ पर लद गए...
सन्नी: "यार ऐसे बेहोश में इसे घर कैसे ले जाएंगे...चलो अपने ही रूम पर लिए चलते हैं..सुबह पहुंचा देंगे..."
सन्नी की बात सुन बंटी हंसता हुआ बोला,"अरे कुछ नहीं हुआ इसे. .बस गरमी से बेहोश हो गई...बाइक पर हवा लगेगी तो दोनों होश में आ जाएगी..."
फिर दोनों चल पड़े...जब मेन रोड से चल बाइक मेरी गली की तरफ मुड़ी तो सच में मुझे होश आ गई...जबकि पूजा भी आँखें खोली थी पर अभी भी बंटी पर लदी थी...
रात की वजह से मैं नंगी होने के बावजूद तनिक भी शर्म नहीं आ रही थी...कुछ ही पलों में हम अपने घर के गेट के पास थी...बाइक से उतर हम दोनों वहीं पर बैठ गई...बंटी ने बाइक के डिक्की से पूजा की पर्स निकाला और गेट की चाभी सन्नी को थमा दिया..
सन्नी गेट खोला और बंटी बस हम दोनों को कंधे का सहारा दे रखा था जिससे हम दोनों चल कर अपने फ्लैट तक गए...और फिर हम दोनों धम्म से बेड पर पड़ गए...शुक्र है कि श्याम अभी तक नहीं आए थे...और फिर वो दोनों बॉय कह निकल गए........
सुबह ४ बजे मेरी नींद अचानक खुल गई..रात में इतनी थकान के बावजूद कैसे जग गई, मालूम नहीं...एक बात तो थी कि रात की दमदार चुदाई से एकदम तरोताजा महसूस कर रही थी...
बगल में श्याम पूजा से लिपटे सो रहे थे...पूजा भी सांप की तरह श्याम से लिपटी थी...अभी अगर कोई देख ले तो वो इन दोनों को मियां-बीवी कहेंगे और मुझे बहन...रात में श्याम कब आए,मुझे नहीं पता...
गेट सब तो सिर्फ सटी हुई थी क्योंकि हम दोनों तो आते ही पसर गई थी...श्याम आए तो लगाएं होंगे...खैर मैं उन दोनों को बिना डिस्टर्ब किए बेड से उतर गई और बाथरूम में चली गई...
फिर बाहर निकल सड़क पर नजर दौड़ाई तो अभी अंधेरा ही था...पर सड़कों पर लगी लाइट से काफी हद तक अँधेरापन जा रहा था...
मैं वहीं बालकनी में खड़ी हो ताकने लगी सड़कों पर और रूममालिक का इंतजार करने लगी...सच ही बोले थे कि नींद खुद-ब-खुद खुल जाएगी...
फिर मेले की बात जेहन में आते ही मैं सिहर गई...क्या जवाब दूंगी...एक बारगी तो मन हुई कि वापस जा कर सो जाऊँ..पर कब तक भागती..आज नहीं तो कल, उनके सामने तो पड़नी ही थी...
तभी दूर अँधेरे में कोई आती हुआ दिखाई दिया..मैं गौर से देखने लगी कि कौन हैं...अंदर ही अंदर रूम मालिक के डर से कांप भी रही थी...पर जैसे ही लाइट उन पर पड़ी तो स्पष्ट दिख गए...
कुछ ही देर में वे मेन गेट के पास रूक गए और मेरे फ्लैट की ओर निगाहें कर दिए...उनसे नजर मिलते ही मैं वेट करने बोल अंदर चली आई...
जल्दी से एक कॉटन टीशर्ट और कैप्री पहनी...फिर गेट खोल बाहर की तरफ निकल गई...गेट खुलते ही मेरी नजर उनके नजरें से जा टकराई...हम्म्म्म...नाराजगी साफ झलक रही थी...
मैं बाहर निकल गेट को सिर्फ सटा दी..मैंने गेट जैसे ही लगाई वो चल दिए बिना कुछ कहे..मैं तेजी से गेट को छोड़ी और उनके बगल में जाकर चलने लगी...
कुछ देर तक तो यूँ ही चुपचाप बस बढ़ती गई..उस ऑटो वाले केतन के मोहल्ले से गुजरती मेरी नजर उसके घर को ढूँढ़ने लगी.. पर इतनी सुबह कितने लोग जगते हैं समझ ही सकती हूँ...
अपनी इस नादानी हरकत पर हल्की मुस्कुरा कर रह गई...कुछ ही देर में हम इस मोहल्ले को क्रॉस कर दूसरे मोहल्ले में पहुँच गई थी...हम्म्म्म..दिखने से ही काफी रईस लगता था ये मोहल्ला...कोई भी बिल्डिंग की ऊपरी छत तो बिना सर ऊपर किए तो देख नहीं सकते थे...
खैर, अब काफी देर हो गई थी...ना मैं कुछ बोल रही थी और ना वो..बस चली जा रही थी..मैंने ही बातचीत की पहल शुरू करने की हिम्मत जुटाई और बोली,"सॉरी...." और उनकी तरफ देखने लगी ...
वो मेरे मुख से आवाज सुनते ही एकदम रूखे नजरों से मेरी तरफ घूरे...उन्हें अपनी तरफ देख मैं अपने चेहरे पर हल्की मुस्कान लाती हुई एक बार फिर सॉरी बोली पर इस बार आवाज नहीं, सिर्फ मुँह की पटपटाहट थी...
"क्यों....?" वो अपने सख्त लब्जों को अपने चेहरे पर हैरानी दिखाते हुए बोले...
मैं अब क्या जवाब दूँ इस क्यों का..उधेड़बुन में पड़ गई कि आगे की बात कहाँ से शुरू करूँ...आपत्तिजनक हालत में मैं पकड़ी गई थी तो हर बात को स्पष्ट करना काफी मुश्किल हो रही थी..किसी तरह आधी-अधूरी बात शुरू की,"वो...कल रात मेले में..."
"हाँ तो क्या मेले में...तुम्हें पसंद है वो सब करना तो करो...मुझे क्या..नेक्सट मंथ वैसे भी घर खाली करना है तुमलोगों को...आज शाम तक आपके पति को इन्फॉर्म कर दूँगा..."उसने एक ही लब्ज में अपने अंदर का गुस्सा बाहर कर दिया...तभी वे एक दूसरी सड़क की तरफ मुड़ गए..
मैं किसी गहरे चोट से आहत दर्द को सहने की कोशिश करने लगी...अपनी खोई इज्जत को पाने के बाद दुबारा खो दी...वैसे एक बात तो थी ये अलग किस्म के इंसान थे...
एक दम नेकदिल और खुले विचारों से परिपूर्ण व्यक्तित्व वाले...ना कोई डर ना कोई झिझक...और सबसे बड़ी बात उनका आदर्श...अगर कोई और रूम मालिक होता तो अब तक वो मुझे अपने लंड के नीचे सुलाए रहता...
खैर गलती मेरी थी तो क्या कह सकती थी...इतने अच्छे लोगों के साथ कितना गलत कर दी...इनके विश्वास को जख्मी कर दी...खुद को कोसने लगी...अब इस बात को ना छेड़ने की सोच ली थी...
तभी सामने एक पार्क दिखाई दी...पार्क उतनी बड़ी नहीं थी, पर काफी सुंदर और साफ सुथरी थी...हम दोनों अंदर घुसे और हरी भरी घासों पर तेज कदम,छोटे कदम की भांति टहलने लगे...
"तुम्हारे पति के साथ कौन थी...?" अचानक से वे मेरी तरफ मुड़े बिना पूछे..जिससे मैं हल्की चौंकती हुई उनकी तरफ देखने लगी..पर वो सीधी नजरें किए बस बढ़े जा रहे थे...
"..वो दोस्त थी उनकी...मेले में ही मिल गई थी..फिर हमारे दोस्त भी मिल गए तो हम सब साथ हो ली..."मैं अब सच्चाई से पेश आना चाहती थी...
"..फिर अलग-2 घूमने का आइडिया किसका था..." वो अबकी बार मेरी तरफ घूरे पर नजरें काफी भयानक थी मेरे प्रति...मैं डर से अपनी नजरें आगे की और बोली,"..उनका ही था...क्योंकि वो उनकी सिर्फ दोस्त ही नहीं, गर्लफ्रेंड भी थी..."
"...और तुम्हारी. .?"उन्होने जवाब खत्म होते ही एक और सवाल दाग दिया...मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि हाँ कहूँ या नहीं...कुछ निष्कर्ष नहीं निकाल पा रही थी...पर वो मेरे जवाब का इंतजार कर रहे थे...
कई चक्कर लगाने के बाद वे पार्क के अंतिम छोर पर पहुँचते ही वहाँ लगी बेंच पर बैठ गए और सुस्ताने लगे...थक गए थे शायद...उनसे ज्यादा तो मैं हांफ रही थी...मैं भी आगे बढ़ उनके बगल में बैठ गई....
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