RE: Porn Kahani सीता --एक गाँव की लड़की
सीता --एक गाँव की लड़की--18
कुछ देर तक यूँ ही बैठी रहने के बाद भी समझ नहीं आई कि क्या करूँ इस चूत की? फिर उठी और कपड़े पहने...
कपड़े पहनने के बाद हल्की मेकअप जल्दी वाली की..बालों को केवल झाड़ी ताकि सीधी रहे बाल..फिर चेहरे पर क्रीम लगाने के बाद होंठो पर गहरी लाल रंग की लिपिस्टिक लगाई..आँखों में हल्की काजल तो थी ही..
फिर घर से निकल गेट लॉक की और चल पड़ी सड़को पर..मंजिल तो अभी तक सोची नहीं थी..बस चली जा रही थी..
इधर मेरी चूत भी घंटी बजानी शुरू कर चुकी थी कि जल्द से जल्द कोई लंड दिखाओ..मैं अब मेन रोड तक आ साइड में खड़ी सोचने लगी..काश ऑटो वाला आ जाए या सन्नी..
ऑटो वाले का नं0 तो जानती भी नहीं तो कैसे बुलाऊं..फिर सन्नी को फोन करने की सोची..ओह गॉड..मोबाइल तो ली ही नहीं..इस चूत ने तो सब कुछ गड़बड़ किए जा रही है..
इस दौरान कई ऑटो आई और चलने की बात पूछी, पर मैं सबको ना कह दी..कहीं जाने की तो थी नहीं, बस लंड को ढ़ूँढ़ने आई हूँ..जो एक बार ऊपर से ही सही पर स्पर्श करा दे..
अब मैं वापस घर फोन के लिए लौटने के सिवाए कोई रास्ता नहीं सूझ रही थी..मैं वापसी के कदम बढ़ाने ही वाली थी कि सामने से आदमी से कचाकच भरी नगर बस आती दिखाई दी..बस के गेट पर करीब 5-7 आदमी थे तो अंदर कितने होंगे..
फिर जितने आदमी, उतने लण्ड...मेरी शरीर में झरझुर्री दौड़ गई..मैं वहीं खड़ी बस को आती देख रही थी, और उस बस में मुझे सिर्फ लंड ही नजर आ रही थी..तभी बस ठीक मेरे सामने आ रूकी..
"स्टेशनऽ...गाँधी मैदानऽ..." और ढ़ेर सारे जगह के नाम बोलता बस का उपचालक चिल्लाने लगा..मैं सरसरी नजर से बस के अंदर झांकी, जिसमें एक-दो लेडिज आगे केबिन में बैठी थी और एक-दो पीछे बैठी थी...बाकी सब मर्द भरे थे..
बस के रूकते हीदो आदमी उतरे..तभी वो खलासी मेरी तरफ देख बोला,"आइए मैडम, आगे सीट खाली होगी तो बैठ जाना..ऽ"मैं उसकी बात सुन जैसे ही पहली कदम बढ़ाई कि उसने मेरी बाँह पकड़ अपनी तरफ खींच लिया...
शुक्र थी कि मेरे पांव तेजी से बस पर चढ़ गए वर्ना गिर ही जाती..फिर वो मुझे अंदर की तरफ करते हुए मेरी बगलों से हाथ घुसा आगे वाले को जगह देने कहने लगा..जिससे उसके हाथ पूरी तरह मेरी चुची को दबा रही थी..
चंद घड़ी में ही थोड़ी सी जगह बन गई तो वो उसने हाथ पीछे खींचने लगा और अंत तक आते-2 अपनी चुटकी से मेरी निप्पल को मसल तेजी से हाथ खींच लिया...मैं चीख को किसी तरह अंदर दबा दी पर आह नहीं रोक पाई..
मेरी आहह कुछ तेज थी जिसे वहां पर खड़े सभी पैसेंजर सुन के मुस्कुराने लगे..और सभी की नजर मेरी तरफ दौड़ गई..मैं झेंपती हुई सिर नीचे की और आगे बढ़ने के लिए पैर आगे की..उफ्फ..अभी तो इतनी जगह थी और अभी मेरे पैर रखने की भी जगह नहीं है..मैं थोड़ी सी बेशर्म बनने की सोच ली कि अब जब लंड खोजने निकली तो शर्म क्यों..
मैं एक नजर सामने खड़े लोगों पर डाली तो दो साँवले एक-दूसरे की तरफ मुँह किए घूरे जा रहा था , फिर उनके आगे भी दो काले लोग इसी मुद्रा में थे..उनका लंड आपस में टच कर रहा था..मुझे इसी होकर आगे बढ़नी थी..
मैं सीधी तो किसी कीमत पर नहीं जा सकती थी इस बीच से..तभी बस हल्की धीमी हुई और एक जवान लड़का तेजी से घुसा और उसने मेरी गांड़ पर जोरदार धक्का दे दिया..ओहहह गॉड..मैं आगे दोनों मर्दों के बीच झुक गई..
इसी मौके का फायदा उठा दोनों मर्द अपने हाथ से मेरी चुची पकड़ मुझे उठाने के बहाने रगड़ने लगे..पीछे वो लड़का अभी भी लंड मेरी गांड़ पर जमाए ही था..मैं सीधी होती हुई पीछे मुड़ी तो वो लड़का एक शब्द "सॉरी" बोला और फिर अपने फोन कान में लगा लिया..भीड़ ज्यादा थी तो मैं उसे हटने भी नहीं बोल सकती थी..
"ओऽ मैडम..आगे बढ़िए ना..आगे कितनी जगह है और आप यहां जाम कर रखे हैं.." पीछे से उस खलासी की आवाज पूरे बस में गूँज उठी..तत्पश्चात सभी लंडों की नजर एक बार फिर मेरी तरफ गड़ गई..
मैं नजरे नीची की और तिरछी होती उन दोनों मर्दों के बीच घुस गई..ओहहहह...मैं जैसे ही उन दोनों के ठीक बीच पहुँची कि दोनों और जोर से चिपका गए..मैं कसमसा सी गई..नीचे उनका लण्ड फनफनाता हुआ खड़ा हुआ और मेरी चूत-गांड़ पर ठोकरें मारने लगा...
मेरी चूत पलक झपकते ही रोनी शुरू कर दी, आखिर उसे अपना यार जो काफी देर बाद मिला था..मैं कुछ ही पलों में पसीने से भींग गई..तभी पीछे वाला लड़का आया और अपना लंड सीधा मेरी कमर चिपकाते हुए बोला,"भाभीजी, और आगे बढ़िए.."
उसकी बात सुनते ही दोनों उस लड़के की तरफ ऐसे घूरने लगे मानों उसने बम फोड़ दिया हो..मैं आगे की तरफ की तरफ देखी तो आगे दो मर्द दोनों बगल से, जबकि एक थोड़ी तिरछी मेरी तरफ खड़ा था..और जगह भी इतनी सी ही थी..
सोची थोड़ी इसके भी लंड को अनुभव कर लूँ..मैं इस जकड़न से छूट अगली लंड
की कैद की तरफ बढ़ी..मगर दोनों मर्द तो चुम्बक की तरह चिपके थे..उनका लंड पूरी तरह मेरी साड़ी के ऊपर से ही पर धंसी हुई थी...मैंने पूरी ताकत लगा दी निकलने में तब जाकर निकल पाई..
और निकलते ही मैं अगली कैद में फंस गई...ये तो और बेशर्मी से पेश आ रहा था..मैंने आस पास नजर दौड़ाई तो सब अपनेआप में मशगूल था...जिसके सामने थाली मिली वो खाना शुरू., दूसरे से मतलब नहीं...पर हाँ कुछ अपनी नजरों से जरूर मजे ले रहे थे...
इसी बात का फायदा उठा सामने वाला अपना मुँह ठीक मेरे माथे के पास ले आया, जबकि पीछे वाला मेरी गर्दन पर झुक गया और दोनों तेज-2 साँसे छोड़ने लगा...तभी तिरछा वाला आदमी सीधा हुआ और अपना लंड मेरी कमर पर ठोकता हुआ बोला,"आगे और जगह नहीं है, आप यहीं पर रहो.."जिसे सुन बाकी दोनों मर्द मुस्कुरा दिया..
तभी मेरी छाती पर जोर से फूँक पड़ी..मैं चौंकती हुई नीची देखी तो ओह गॉडडडड..मेरी पल्लू तो थी ही नहीं...और ब्लॉउज में कैद बड़ी सी चुची पसीने से लथपथ उसके सीने से दबी जा रही थी...मैंने तुरंत ही पल्लू का पीछा की...
पर तब तक वो लड़का आ धमका और मेरी खाली दूसरी कमर पर भी अपना कठोर लिंग गाड़ दिया..और पल्लू उसकी बगल से गुजरती हुई दिख रही थी..मैंने एक हाथ से खींचने की कोशिश की पर नहीं आई...
"मैडम, अब वो तभी आपके पास आएगा जब आप नीचे उतरिएगा..कोई कमीना पैर से दबाए होगा..आप निश्चिंत हो सफर का मजा लीजिए." पीछे वाला आदमी मेरे कानों में बोला और अंत में अपनी जीभ मेरी कानों के नीचे फेर दिया..
मैं कांप सी गई इस छोटी सी चुसाई से और मेरे कांपते होंठो से इसससस निकल पड़ी..जिसे मेरे तरफ के चारों मर्द सुने और मुस्कुराते हुए और जोरों से कस दिए मुझे...मेरी हड्डियां तो लग रही थी मानों अब टूट जाएगी..
अचानक से दो हाथ नीचे से मेरी चुची पर जम गए..मेरी आँखें मदहोशी में बंद की कगार पर थी पर किसी तरह देखी तो ये हाथ उस लड़के और तिरछे वाले मर्द के थे...मैं कुछ बोलनी चाही कि तभी वो मेरी चुची मसलनी शुरू कर दी..
मैं जो भी कहना चाहती थी वो अगले ही पल मेरी आहहह में तब्दील हो बाहर निकल गई.. और मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गई...मैं आँखें बंद किए इस चतुर्मुखी लंड और द्विमुखी चुची-मर्दन के मजे लेने लगी...
पीछे वाला तो बीच बीच में अपनी जीभ भी फेर रहा था...तभी खट्ट की आवाज आई..मैं तुरंत आँखें खोली तो देखी आगे वाला आदमी अपना हाथ नीचे कर रहा था...मेरी नजर उसके हाथ से हटी तो ये क्या? मेरी चार बटन की ब्लाउज अब दो बटन की हो गई थी..और मेरी आधी चुची बाहर छलक गई...
आज ब्रॉ भी नहीं पहनी थी...आगे वाले मर्द की तरफ देखी तो वो बड़े ही बेशर्मी से अपने होंठ पर जीभ फिरा रहा था..तभी मेरी निप्पल को उस लड़के ने जोर से उमेठ दिया..मेरी चीख निकलते-2 बची पर चूत को नहीं बचा पाई...
मेरी चूत से झरने गिरने लगी..शुक्र है पेन्टी रानी की वरना पूरी बस में पानी फैल जाती...और मैं हल्की सिसकारी लेती आगे वाले के सीने पर लद गई...पीछे वाला मेरी हालत पर बोला,"लगता है शाली का सिग्नल गिर गया.." जिसे सुन चारों हँस पड़े..
झड़ने के बाद जब थोड़ी होश आई तो मैं सीधी हुई और अपनी दोनों चुची पर से हाथ हटाते हुए निकलने की कोशिश की..अब जब काम पूरी हो गई तो भला रूकने से क्या फायदा...मैं जोर लगाई निकलने की पर नहीं निकल पाई...
"चलो ना रूम पर, 2000 दूँगा.."आगे वाला आदमी मेरे होंठो के पास अपना होंठ लगभग सटाते हुए बोला...अब मेरी हालत सच में खराब होने लगी थी..खुद पर काफी गुस्सा भी कर रही थी और पछता भी रही थी कि काश घर पर ही थोड़ी सब्र कर लेती..
ये सब तो मुझे रंडी समझ बैठे..वैसे गलती इनमें नहीं, मुझमें थी..कैसे इनके लंड के मजे ले रही थी तब से...अब झड़ गई तो सोचने लगी कि गलत हो रही है मेरे साथ...पर अब खुद को शरीफ कहती तो और इज्जत जाती मेरी इन पब्लिक बस में...क्योंकि इस मैं लग भी रही थी रंडी की तरह...
मैं सोच में पड़ गई कि क्या करूँ? तभी एक युक्ति सूझी...मैंने जोर की साँसें ली और चिल्लाते हुए बोली,"कंडक्टर साब, बस रोकिए" मेरी तेज आवाज बस से बाहर तक गूँज पड़ी..जिसे सुनते ही चारों मर्द पीछे की तरफ हो गए...
बस इतनी वक्त काफी थी मेरे लिए..अगले ही पल बस रूक गई थी...मैं फुर्ती दिखाती हुई अपने पल्लू समेटते गेट की तरफ लपकी...और फिर मैं बस से बाहर खड़ी थी...मेरे उतरते ही बस चल पड़ी आगे की ओर..
मैं सोचने लगी कि पैसे क्यों नहीं मांगे इसने...तभी बस से वो कंडक्टर फ्लाइंग किस मेरी ओर उछाल रहा था..मैं उसे देख अपनी हँसी रोक नहीं पाई..
अब मैं नजर घुमा देखी कि इस वक्त कहाँ हूँ..सामने बड़ी सी हरी भरी मैदान दिखी जिसके बीच में एक स्टैचू थी और वो मैदान चारों तरफ से लम्बे वृक्षों से घिरी थी..साथ में लोहे की छोटी चारदीवारी भी थी सभी ओर...
मतलब मैं गाँधी मैदान आ गई थी...आज पहली बार यहाँ आई हूँ तो थोड़ी घूमने की सोची अंदर जा कर...करीब 12 - 12:30 बज रहे होंगे अभी तभी तो पूरा मैदान खाली पड़ा था..पर उससे हमें क्या? पूजा भी 2 बजे के बाद ही आएगी..अगर पहले आ गई तो रहेगी अकेली बोर होती...
तभी मुझे अपनी भींगी चूत की तरफ ध्यान गई जिससे मुझे फ्रेश होने की जरूरत और बढ़ गई..सामने कहीं शौचालय नजर नहीं आ रही थी..सोची आगे बढ़ के देखती हूँ और मेरे पांव चल दिए...
|