RE: Incest Sex Stories मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका
मैं ऑफ़िस छूटने के पहले ही ही आ गया. करीब पांच बजे थे. लैच की से दरवाजा खोला. ड्राइंग रूम में कोई नहीं था. अंदर आकर देखा तो ललित अपने बेड पर सोया हुआ था. विग पहना था और लीना की एक नाइटी भी पहन ली थी. नायलान की नाइटी में से उसकी ब्रा और पैंटी दिख रही थी. याने मैंने जो बेट लगायी थी उसकी शर्त बचारा बिलकुल सही सही पूरा कर रहा था.
और उसका एक हाथ अपनी नाइटी के अंदर और फ़िर पैंटी के अंदर था. अपना लंड पकड़कर सोया था. मुझे लगा कि मुठ्ठ मार ली होगी पर पास से देखा तो ऐसा कुछ नहीं था. हां नींद में भी उसका लंड आधा खड़ा था, एकदम रसिक मिजाज का साला था मेरा.
उसका वह रूप बड़ा रसीला था. क्षण भरको उसकी पैंटी के उभार को नजरंदाज करें तो एकदम मस्त चुदाई के लिये तैयार लड़की जैसा लग रहा था. स्किन का काम्प्लेक्शन किसी कोमल कन्या से कम नहीं था, होंठ भी मुलायम और गुलाबी थे. मेरा लंड खड़ा होने लगा. मैंने सोचा कि सच में लीना की बहन, मेरी साली होती तो कब का चख चुका होता. अब यह जानकर भी वह एक लड़का है, उसकी खूबसूरती मुझे कोई कम नहीं लग रही थी बल्कि अब उसकी वजह से मेरी चाहत में एक अजीब तरह की तीख आने लगी थी, शायद टाबू करम का अपना अलग स्वाद होता है. मुझे खुद की इस चाहत पर भी थोड़ा अचरज हुआ. अब तक काफ़ी तरह की मस्ती कर चुका था, अधिकतर लीना के साथ और कुछ उसे बिना बताये. पर अब तक उसमें दूसरे पुरुष के साथ रति का समावेश नहीं था. शायद ललित की बात ही निराली थी, लीना का छोटा लाड़ला भाई होना, मेरी कोई साली ना होना, ललित का चिकना रूप और लीना से मिलता जुलता चेहरा, ये सब बातें मिल जुलकर गरम मसाला बन गयी थीं.
किसी तरह मैंने अपने आप पर काबू किया और अपने कमरे में आकर लेट गया. ट्रेन में ठीक से सोया नहीं था इसलिये नींद आ गयी. दो घंटे बाद खुली. फ़िर मैंने भी थोड़ा सामान जमाया, घर को ठीक ठाक किया. ललित और देर से उठा. किशोरावस्था की जवानी में खूब नींद आती है. किसी का बाहर जाने का मूड नहीं था इसलिये मैंने घर पर पिज़्ज़ा मंगवा लिया.
डिनर खतम होते होते साढ़े नौ बज गये. आधे घंटे बाद लैपटॉप पर ईमेल वगैरह देखहर मैं सब कपड़े निकाल कर सिर्फ़ शॉर्ट्स में ड्राइंग रूम में बैठ गया. ये मेरी रोज की आदत है. ललित वहीं था, टी वी लगाकर प्रोग्राम सर्फ़ कर रहा था. बेचारा थोड़ा बोर हुआ सा लग रहा था. मुझे देखकर थोड़ा संभल कर बैठ गया. शायद मेरे ब्रीफ़ में आधे उठे लंड का उभार देखकर थोड़ा कतरा गया होगा. अब रात को मेरी ये हालत होती ही है. और सामने वो सुंदर सी छोकरी - छोकरा भी था. टी वी देखते देखते एक दो बार उसकी नजर अपने आप मेरे ब्रीफ़्स पर गयी.
"ललित डार्लिंग, चलेगा ना अगर मैं ऐसे बैठूं? वो क्या है कि लीना और मैं रहते हैं और ऐसे ही फ़्री स्टाइल रहते हैं ... बल्कि इससे भी ज्यादा" वैसे कहने की जरूरत नहीं थी, उसने मेरा लंड कई बार देखा था, वो भी अपनी मां और भाभी की चूत में चलते हुए.
ललित बस थोड़े शर्मीले अंदाज से मुस्करा दिया. मैंने कहा "तू भी चाहे तो फ़्री हो जा. वो नाइटी पहनने की जरूरत नहीं है. हां विग लगाये रखो मेरे राजा, क्या करूं, बड़ी प्यारी छोकरी जैसा लगता है तू विग पहन कर"
"ब्रा और पैंटी रहने दूं जीजाजी?" उसने नाइटी निकालते हुए पूछा.
"तेरी मर्जी. जैसे में मजा आता है वैसा कर. वैसे ब्रा और पैंटी पहनकर तू बिलकुल लीना जैसा लगता है. वो तो रात को हमेशा ऐसे ही बैठती है. और शादी के बाद पहली बार मैं ऐसा अकेला हूं घर में, तू है तो लीना ही यहां है ऐसा लगता है"
ललित ने नाइटी निकाली और जाकर अंदर रख आया. फ़िर मेरे सामने वाले सोफ़े पर बैठ गया. मैंने उससे कहा "ललित, कुछ भी कहो, तुम्हारे यहां सब एक से एक हैं. याने इतनी सारी सुंदर और सेक्सी औरतें एक ही फ़ैमिली में होना ये कितने लक की बात है. और ऊपर से उन सब से ये सुख मिलना याने इससे बड़ा सुख और क्या होगा. बड़ा तगड़ा भाग्य लेकर पैदा हुआ है तू. और राधाबाई भी हैं, उनके बारे में जो कहा जाये वो कम है"
ललित अब थोड़ा फ़्री हो गया था "हां जीजाजी. पर राधाबाई बड़ी मतवाली भले ही हों, मुझे तो उनसे डर लगता था पहले"
"मैं अक्सर अकेला पकड़ा जाता था घर में. मेरा स्कूल सुबह का था. लीना दीदी कॉलेज जाती थी और हेमन्त भैया और मीनल भाभी सर्विस पर. मां रहती थी पर अक्सर दोपहर को महिला मंडल चली जाती थी. बस राधाबाई मेरे को पकड़कर ... "
"क्यों? तेरे को मजा नहीं आता था? जवानी की दहलीज पर तो और मजा आता होगा."
"हां जीजाजी पर मुझे जिसमें मजा आता था उसके बजाय उनको जिसमें मजा आता था, वही मुझसे जबरदस्ती करवाती थीं"
"तुमने शिकायत की क्या उनकी कभी?"
ललित मुस्करा दिया "अब किससे शिकायत करूं, राधाबाई तो सबकी प्यारी थीं. घर की मालकिन जैसी ही थीं करीब करीब, जो वे कहतीं, उसे कोई टालता नहीं था. आपने उनकी वो स्पेशल गुझिया खाई ना?"
मैंने हां कहा "मानना पड़ेगा, दाद देनी पड़ेगी उनकी इस तरह की सोच की"
"मुझे तो हमेशा देती हैं. आजकल कॉलेज से आता हूं तो अक्सर तैयार रखती हैं. पर खिलाने के बाद आधा घंटा वसूली करती हैं."
"एक बात बताओ ललित" मैंने बड़े इंटरेस्ट से पूछा "इस सब का तुम्हाई पढ़ाई पर असर नहीं पड़ा? याने ऐसा मेरे साथ होता मेरी टीन एज में तो मैं शायद फ़ेल हो जाता हर साल."
"वो जीजाजी असल में ... याने मां बहुत स्ट्रिक्ट है इस मामले में, वैसे इतनी प्यारी और सीधी साधी है पर अगर मार्क्स कम हो जायें तो बिथर जाती है. एक बार बारहवीं में प्रीलिम में फ़ेल हो गया था तो एक हफ़्ते तक मेरा उपवास करा दिया"
"उपवास याने ...?"
"मुझे कट ऑफ़ कर दिया, न खुद पास आती थी न किसी को आने देती थी. मीनल भाभी को भी नहीं, राधाबाई को भी नहीं. एक रात को तो हाथ पैर भी बांध दिये थे मेरे. बड़ी बुरी हालत हुई मेरी, पागल होते होते बचा. तब से पढ़ाई को निग्लेक्ट करना ही भूल गया मैं"
ललित अब सोफ़े पर अपने पैर ऊपर करके घुटने मोड़ कर बड़ी नजाकत से बैठा था, लड़कियों के फ़ेवरेट पोज़ में. उसकी चिकनी गोरी छरहरी जांघें कमाल कर रही थीं. अब वह जान बूझकर कर रहा था तो बड़ी स्टडी की थी उसने लड़कियों के हाव भाव की. यदि अनजाने में कर रहा था तो शायद अब तक वह लड़की के रूप से काफ़ी घुल मिल गया था. एक क्षण को मुझे भ्रम हुआ कि यह सच में बड़ी तीखी छुरी मेरे सामने बैठी है. लंड कस के खड़ा हो गया और ब्रीफ़ के सामने का फ़ोल्ड हटा कर बाहर आ गया.
ललित का ध्यान उसपर गया तो उसके गाल लाल हो गये. पर उसने नजर नहीं हटाई. मैंने नीचे अपने तन्नाये लंड को देखा और बोला "देखो ललिता डार्लिंग, देखो, अपने रूप का कमाल देखो, एकदम बेचैन हो गया ये साला तुमको देख कर"
ललित अब लड़की के रूप में और भिनता जा रहा था. उसकी नजर नहीं हट रही थी मेरे लंड से, अगर सच में कोई गरम कन्या बैठी होती तो उसकी नजर जैसी भूखी होती वैसी ही भूख ललित की नजर में थी. मैंने अपने पास सोफ़े को थपथपा कर कहा "अब ललिता डार्लिंग, जरा यहां आ जाओ ना, ऐसे दूर कब तक बैठोगी. जरा तुमसे जान पहचान बढ़ाने का मौका तो दो"
ललित मेरे पास आ कर बैठ गया. उसकी पैंटी में अब अच्छा खासा तंबू सा बन गया था. मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और पास खींच लिया. क्षण भर को उसका बदन कड़ा हो गया जैसे प्रतिकार करना चाहता हो, पर फ़िर उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया. मैंने उसके गाल चूम कर कहा "ललिता डार्लिंग ... अब मैं तुमको ललिता ही कहा करूंगा ... मेरे लिये तू अब एक बहुत खूबसूरत लड़की है ... मेरी प्यारी साली है ... बीवी से बढ़कर मीठी है ... ठीक है ना?"
उसने गर्दन डुला कर हां कहा. मैंने उसे पूछा "ललिता ... तुम्हारे हेमन्त भैया ने तुम्हारा ये रूप नहीं देखा अब तक? कभी किस किया तेरे को ... याने ऐसे?" उसकी ठुड्डी पकड़कर मैंने उसका चेहरा अपनी ओर किया और उसके मुलायम होंठों का चुंबन लिया. ललित एकदम शांत बैठा रहा. न मेरा विरोध किया न मुझे साथ दिया. किस खतम होने पर बोला "मैं सिर्फ़ भाभी या दीदी के सामने ही ब्रा पैंटी पहनता ... पहनती हूं जीजाजी"
"याने जैसे मां भाभी लीना आपस में प्यार मुहब्बत कर लेते हैं , वैसे तेरे में और तेरे भैया में कभी नहीं हुई?"
"नहीं जीजाजी. भैया को मेरे इस शौक के बारे में याने ये लिंगरी पहनना वगैरह - मालूम नहीं है. वैसे हम जब सब साथ होते हैं और चुदाई ... याने आपस में कर रहे होते हैं तब हेमन्त भैया कभी मेरी कमर पकड़कर जोर से धक्के मारना सिखाता है ... खास कर जब मैं मीनल भाभी पर चढ़ा होता हूं तो कभी मेरे गाल चूम कर और कभी पीठ पर हाथ फ़िराकर मुझे उकसाता है कि कचूमर बना दे तेरी भाभी का ... पर और कुछ नहीं करता"
मैंने फ़िर से उसका चुंबन लिया "बड़ा नीरस है तेरा भैया ... इतनी मीठी मिठाई और चखी नहीं अब तक" इस बार ललित ने भी मेरे चुंबन के उत्तर में मेरे होंठ थोड़ी देर के लिये अपने होंठों में पकड़ लिये.
फ़िर मैंने उसे उठाकर गोद में ही बिठा लिया. उसने थोड़ा प्रतिकार किया तो मैं बोला "अब मत तरसाओ ललित राजा ... मेरा मतलब है ललिता रानी. इस भंवरे को इस फूल का जरा ठीक से रसपान तो करने दो"
उसके बाद मैं काफ़ी देर उससे चूमा चाटी करता रहा. मजे की बात यह कि काफ़ी देर तक मैंने उसे कहीं और हाथ नहीं लगाया. अपने आप को मानों मैंने हिप्नोटाइज़ कर लिया था कि यह एक नाजुक लड़की है जो मेरे आगोश में है. फ़िर उसकी ब्रा पर हाथ रखा. कप अच्छे भरे भरे से थे, ठोस और स्पंज जैसे गुदाज, करीब करीब असली स्तनों जैसे. लगता है लीना और मीनल ने ब्रा और अंदर की फ़ाल्सी बड़े प्यार से समय देकर चुनी थी. मैं स्तनमर्दन करने लगा. ललित ने मेरी ओर देखा जैसे सच में उसके मम्मे मसले जा रहे हों. बड़ी प्यास थी उसकी निगाहों में, जैसे उन नकली स्तनों को दबवाकर उसे असली मम्मे दबवाने का मजा आ रहा हो.
"एकदम मस्त ललिता रानी ... एकदम रसीले फ़ल हैं तेरे ... खा जाने का मन होता है" कहकर मैंने झुक कर ब्रा की नोकों को चूम भी लिया.
ललित ने हुमककर मेरी जीभ अपने होंठों में ले ली और चूसने लगा. अब वह लंबी लंबी सांसें ले रहा था. लगता है एकदम गरमा गया था. अब भी मैंने उसकी कमर के नीचे कहीं हाथ नहीं लगाया था. आखिर शुरुआत उसी ने की. धीरे धीरे उसका हाथ सरककर मेरे लंड पर पहुंच गया. लंड को मुठ्ठी में भरके वो बस एक मिनिट बैठा ही रहा, जैसे मनचाही मुराद मिल गयी हो, मुझे जरूर पटापट चूमता रहा.
फ़िर धीरे से बोला "क्या मस्त है आपका जीजाजी ... इतना सख्त और तना हुआ"
मैंने उसके कान के नीचे चूम कर कहा "तुझे पसंद आया मेरी जान. मैं तो परसों ही समझ गया था जब तेरी नजर उसपर जमी हुई थी"
"उस दिन मां को आप चोद रहे थे तब कितना सूज गया था, ये सुपाड़ा भी लाल लाल हो गया था. और आप चोद रहे थे तो मां की चूत से कैसी पुच पुच आवाज आ रही थी ... मुझे ... मुझे एकदम से ... याने मैं तो फिदा हो गया इसपर जीजाजी" ललित धीमी आवाज में रुक रुक कर बोला. बेचारा शरमा भी रहा था और मस्ती में भी था.
"तुम्हारी मां भी तो एकदम गरम गरम रसीली चीज है मेरे राजा ... मेरा मतलब है मेरी रानी ... वो भी इस उमर में ... और ऐसी कि जवान लड़कियों को भी मात कर दे ... इतनी गीली तपती बुर हो तो फच फच आवाज होगी ही."
"जीजाजी ... मुझे तो मां पर बहुत जलन हो रही थी कि आप का लंड उसको मिल रहा है ... जीजाजी मैं इसे ठीक से देखूं?" अचानक मेरी गोद से उतरकर मेरे बाजू में बैठते हुए ललित ने पूछा. उसकी आंखों में तीव्र चाहत उतर आई थी.
जवाब में मैं हाथ उठाकर सिर के पीछे लेकर टिक कर बैठ गया "कर ले मेरी जान जो करना है ... तुझे आज जो करना है वो कर ले, जैसे खेलना है इससे वैसे खेल ले"
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