Incest Sex Stories मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका
01-19-2018, 01:29 PM,
#6
RE: Incest Sex Stories मेरी ससुराल यानि बीवी का मायका
वे सुनने को बेताब थी हीं कि आखिर उनके दामाद को उनके बदन का रस कैसा लगा. मेरी तारीफ़ से वे गदगदा गईं "मुझे लग ही रहा था दामादजी कि अपनी सास बहुत भा गई है आपको. कितने प्यार से जीभ डाल डाल कर चाट रहे थे बेटे, लीना वैसे हमेशा तुम्हारी इस कला के बारे में फोन पर बताती थी, याने तुम जैसे स्वाद ले लेकर रस पीने वाले कम ही होते हैं. आज खुद जान लिया मैंने अपने दामाद का कौशल. कितने दिनों बाद इतना आनंद मिला है, थोड़ा हल्का लग रहा है" फिर घुटने टेक कर वे मेरे ऊपर से उठने लगीं.

मैंने कहा "ममीजी .... ऐसा जुल्म मत कीजिये ... अभी तो बस स्वाद लगा है मुंह में ... मन कहां भरा! जरा मुझे खोल देतीं तो आपकी कमर पकड़कर ठीक से चूसता"

"बस वही कर रही हूं दामादजी. याने आपका मन भर जाये इसकी व्यवस्था कर रही हूं. ऐसे मुंह पर बैठना ठीक है क्या? मेरा इतना वजन है, अपने बेटे जैसे दामाद को तकलीफ़ दी मैंने. पर क्या करूं, उमर के साथ मेरे घुटने दुखते हैं, ज्यादा देर ऐसे घुटनों पर नहीं बैठा जाता मुझसे"

"मांजी, आप दिन भर बैठें तो भी मुझे तकलीफ़ नहीं होगी, बस मुंह में ये अमरित रिसता रहे, और मुझे कुछ नहीं चाहिये. पेट भरके पीने का दिल करता है"

ताईजी मेरे ऊपर से उतर कर बाजू में बैठ गयीं. "ये लीना नहीं आयी अभी, आ जाती तो तुम्हें उसके सुपुर्द कर देती, तुमको ऐसे तड़पाना अच्छा नहीं लग रहा बेटे."

मैंने उनको समझाया "मुझे चलेगा ताईजी, बस आप ऐसे ही मेरे लाड़ करती रहें तो ये सब तकलीफ़ बर्दाश्त कर लूंगा मैं."

सासूमां बोलीं "तुम्हारे लाड़ नहीं करूंगी तो किसके करूंगी बेटा. खैर वो शैतान लड़की अभी आयेगी भी नहीं, जब ललित क्लास चला जायेगा तभी आयेगी. तब तक मैं ऐसे करवट पर सोती हूं. और तुम भी करवट पर आ जाओ अनिल. फिर आराम से चखते रहना तुम्हें जो पसंद आये"

पलंग के रॉड से बंधे मेरे हाथ उन्होंने खोले और बोलीं "अब हाथ पीछे करो बेटा"

मैं चाहता तो अब कुछ भी कर सकता था. उनको पकड़कर दबोच लेता और उनके उस गुदाज बदन को भींच कर उनको नीचे पटक कर चोद डालता तो वे कुछ कर नहीं पातीं. पर मैंने किया नहीं. अपनी सास के आगे बंधकर उनका गुलाम बनकर उनके मन जैसा करने में जो आनंद मिल रहा था वो खोना नहीं चाहता था. मैंने हाथ चुपचाप पीछे किये और ताईजी ने वे मेरी पीठ पीछे वेल्क्रो स्ट्रैप से बांध दिये. फिर पलंग के नीचे वाले रॉड से बंधे मेरे पैर खोले और उनको आपस में बांध दिया. अब मैं बंधा हुआ तो था पर पलंग पर इधर उधर लुढ़क सकता था.

"अब ठीक है. अब मैं और तुम दोनों आराम से लेट सकते हैं, और मैं तुमको जितना तुम चाहो, जितने समय तक चाहो, पिला सकती हूं." ताईजी अपनी करवट पर लेटते हुए बोलीं. करवट पर लेट कर उन्होंने साड़ी कमर के ऊपर की और एक टांग उठा दी. उनकी रसीली बुर पूरी तरह खुल कर मेरे सामने आ गयी. "मेरे प्यारे दामादजी, अब मेरी जांघ को तकिया बना कर सो जाइये. अरे ऐसे नहीं, उलटी तरफ़ से आइये, मुझे भी तो मन बहलाने के लिये कोई खिलौना चाहिये या नहीं?"

मैं उनके पैरों की ओर सिर करके लेट गया और उनकी मोटी गुदाज जांघ पर सिर रख दिया. उन्होंने मेरे सिर को पकड़कर मेरा मुंह अपनी चूत पर दबा लिया और एक सुकून की सांस ली. "अब चूसो अनिल जितना जी चाहे चूसो, ये कहने का मौका नहीं दूंगी अब कि मन भरके रस नहीं चखाया मेरी सास ने. तुम थक जाओगे पर ये रस नहीं खतम होगा." उनकी आवाज में एक बड़ा प्यारा सा गर्व था जैसा सुंदर स्त्रियों को अक्सर होता है जब वे जानती हैं कि लोग कैसे उनको देखकर मरते हैं.

मैंने मस्त भोग लगाया, बहुत देर तक ताईजी के गुप्तांग के चिपचिपे पानी का स्वाद चखा. बूंद बूंद जीभ से सोख ली, बीच बीच में मैं उनकी पूरी बुर को ही मुंह में लेकर आम जैसा चूसता. बिलकुल ऐसा लगता जैसे आम चूस रहा होऊं, उनकी झांटें मुंह में जातीं तो ऐसा लगता जैसे आम की गुठली के रेशे हों. ताईजी ने अब अपनी उठाई हुई टांग नीचे कर ली थी, आखिर वे भी कितनी देर उठा कर हवा में रखतीं. मेरे सिर को उन्होंने अपनी दोनों जांघों की कैंची में पकड़ रखा था और अपनी कमर हिला हिला कर मेरे मुंह पर स्वमैथुन कर रही थीं. मुझे लगता है कि दो तीन बार तो वे झड़ी होंगी क्योंकि कुछ देर बाद अचानक उनका बदन कड़ा हो जाता और वे ’अं’ ’अं’ करने लगतीं. मेरे मुंह में रिसने वाला पानी भी अचानक बढ़ जाता.

उधर ताईजी मेरे लंड से लगातार खेल रही थीं. उसको मुठ्ठी में भरके दबातीं, रगड़तीं, कभी सुपाड़े की तनी चमड़ी पर उंगली से डिज़ाइन बनातीं. वो तो चूस भी लेतीं या कम कम से मुंह में ले लेतीं पर मेरा बदन उनसे काफ़ी दूर था, उनकी बुर चूसने को जो आसन मैंने बनाया था, उसमें मेरी कमर उनके पास ले जाने की गुंजाइश नहीं थी, हम दोनों के बदन एक दूसरे से समकोण बना रहे थे. कभी लंड में होती मिठास जब ज्यादा हो जाती तो मैं अपनी कमर हिला कर उनकी मुठ्ठी में अपना लंड जोर से पेलने की कोशिश करने लगता. पर मेरी सासूजी होशियार थीं, पहचान लेतीं कि मैं झड़ना चाहता हूं तो लंड पर से अपना हाथ ही हटा लेतीं.

ये जुगलबंदी कितनी देर चलती क्या पता, हम दोनों इस खेल में मग्न थे. पर अचानक लीना कमरे में आयी. उसने बस अपनी एक पारदर्शक एकदम छोटी वाली स्लिप पहन रखी थी. स्लिप उसके घुटनों के भी फ़ुट भर ऊपर थी और उसकी मतवाली जांघें नंगी थीं. ऊपर स्लिप के पारदर्शक कपड़े में से उसके भरे हुए गर्व से खड़े उरोज और मूंगफलीके दाने जैसे निपलों का आकार दिख रहा था. तुनक कर वो अपनी मां से बोली "क्या मां, अभी भी लगी हुई है, मुझे लगा ही था कि एक बार शुरू होगी तो बस बंद नहीं होगा तुझसे. मीनल भाभी को जाकर भी एक घंटे से ज्यादा हो गया और तू यहीं पड़ी है. चल अब खतम कर अपने जमाई के लाड़ प्यार. वो राधाबाई आकर बैठी है, आते ही मुझे पकड़ लिया लीना बिटिया बिटिया करके, मुझे छोड़ ही नहीं रही थी, गोद में लेकर क्या क्या कर रही थी, नहीं तो मैं जल्दी आ जाती"

ताईजी ने अपनी टांगें खोलीं और मेरा सिर अपनी जांघ पर से हटाकर नीचे बिस्तर पर रखा. उठकर साड़ी ठीक करके बोलीं "अरे बेटी, तेरा ये पति ही हठ करके बैठा था, उसे के इस हठ को पूरा कर रही थी. भूखा प्यासा है वो, आखिर कब तक उसे ऐसा रखती, तुम दोनों तो गायब हो गयीं. तब तक मेरे जमाई का खयाल तो मुझे ही रखना था ना! तू जा और राधाबाईकी मदद कर, उनको कहना कि अपने लाड़ प्यार को जरा लगाम दें, पहले अनिल के लिये नाश्ता बनायें. मैं बस आती ही हूं. बेटी, अब तक तो बस अनिल की इच्छा पूरी कर रही थी, अब मेरे मन में जो आस है, उसे भी तो थोड़ा पूरा कर लूं, अनिल के साथ फिर कब टाइम मिलेगा क्या पता"

"क्यों मां? तुम सास हो उसकी, जैसा तुम कहोगी वैसा वो करेगा." कहकर लीना मेरे बाजू में बैठ गयी और मेरा चुंबन ले कर बोली "क्यों डार्लिंग? हमारी माताजी - अपनी सासूजी अच्छी लगीं? और हमारी मीनल भाभी - उनके बारे में क्या खयाल है आपना?"

मैंने कुछ नहीं कहा, बस अपनी रानी का जोर से चुम्मा लिया, उसके होंठों का स्वाद आज ज्यादा ही मीठा लग रहा था. उसने आंखों आंखों में मेरा हाल जान लिया और कस कस के मेरे चुंबन लेने लगी. उसके चुम्मों का जवाब देते देते मैंने अपनी कमर सरकाकर ताईजी के बदन से अपना पेट सटा दिया और फिर कमर हिला हिला कर अपना लंड उनकी जांघों पर रगड़ने की कोशिश करने लगा. लीना ने अपनी मां की ओर देखा और मुस्करा दी, शायद आंखों आंखों में कुछ इशारा भी किया. ताईजी फिर से बिस्तर पर मेरे बाजू में लेट गयीं और मेरा लंड अपने मुंह में ले लिया.

"चलो, अब कुछ रिलीफ़ मिलेगा मेरे सैंया को. मां को भी जल्दी हो रही है अब तुम्हारी जवानी का स्वाद लेने की. अब ये बताओ कि तुमको मजा आया कि नहीं? ऐसे खुद को बंधवा कर प्यार कराने में ज्यादा लुत्फ़ आया कि नहीं ये बोलो"

मैं धक्के मार मार के ताईजी के मुंह में लंड पेलने की कोशिश कर रहा था. वे आधा लंड मुंह में लेकर चूस रही थीं. "मेरी हालत पर से ही तुम समझ जाओ रानी कि ममीजी ने मुझे किस स्वर्ग में ले जाकर पटक दिया है. बस अब न तो सहन होता है न ये सुख झेला जाता है. पर तुम बताओ मेरी मां कि मुझे इस रेशमी जाल में फंसाकर तुम कहां गायब हो गयीं सुबह सुबह? मैं तो पागल हुआ जा रहा था यहां"

"गुस्सा मत करो मेरे राजा, मैं ललित के साथ थी. इतने दिन बाद मिली अपने लाड़ले छोटे भैया से. वो भी बस चिपक गया दीदी दीदी करके, छोड़ ही नहीं रहा था. मैंने भी उसे अच्छा कस के रगड़ा घंटे भर, तब जरा जान में जान आयी. ललित को भी क्लास में जाना था इसलिये छोड़ना पड़ा. बीच में बीस मिनिट मीनल भाभी की मदद कर रही थी ऑफ़िस जाने के लिये तैयार होने में"

"अब ये कुछ समझ में नहीं आया...याने जरा समझाओ मेरे को ... मीनल भाभी क्या नर्सरी जाती छोटी बच्ची है कि तैयार होने में, कपड़े पहनाने में, मदद करनी पड़ती है?

"कुछ भी जो मन आये वो मत बको, तुमको मालूम है कि मैं कैसी मदद कर रही थी. शादी के पहले रोज उसको कौनसी ब्रा पहननी है वो मैं ही चुन कर देती थी. उसकी सब ब्रा अधिकतर टाइट हैं, उनका बकल उससे अकेले से नहीं लगता, वो भी मैं लगाती थी, आज बड़े दिनों के बाद फिर से मैंने लगा कर दिया उसको. और उसके पहले मीनल भाभी मुझे ब्रा और पैंटी पहन पहन कर दिखा रही थी, तुमको नहीं मालूम, मैं लाई थी साथ में ब्रा पैंटी के तीन चार जोड़, उसे बहुत शौक है नयी नयी लिंगरी का, अब ब्रा पहनाते पहनाते वो मुझे बता भी रही थी कि आज कल उसके स्तनों में कितनी तकलीफ़ होती है उसको, सूजे सूजे रहते हैं हमेशा"

मैं समझ गया. अनजाने में जरा जोर से लंड फिर पेला ताईजी के मुंह में. इस बार उन्होंने मुंह खोल कर मेरा लंड पूरा ले लिया और फिर अपने होंठ मेरे लंड की जड़ पर बंद करके चूसने लगीं. मैंने हौले हौले धक्के मारना जारी रखा और लीना से बोला "वो मीनल भी कुछ कह रही थी, दूध के बारे में, सोनू को बोतल से पिला देना, फिर ये कि आज सुबह तू आई थी सबसे पहले लाइन लगाने. याने ये सब क्या चल रहा है रानी?"

"अब भोंदू मस्त बनो, सब समझते हो. मैंने भाभी की दोनों चूंचियां खाली कर दीं पेट भर के पिया, इतने दिन बाद फिर वो मीठा दूध मिला, मैं तो तरस गयी थी. वो सोनू अब एक साल की हो गयी है ना, उसको अब ऊपर का दूध चलता है, बोतल से पिला देते हैं. पर भाभी का लैक्टेशन मस्त जोरों पर है. डॉक्टर बोले कि एकाध साल और चलेगा. तब तक हम सब मिल बांट कर चख लेते हैं ये अमृत. सब ललचाते रहते हैं और सब को बस दो दो घूंट मिलता है. मैंने सोचा अब मेरी शादी हो गयी है, मायके आई हूं तो अपना हक जता लूं पहले"

ये सब सुन कर मेरा लंड ऐसा सनसनाया कि मैं कस के धक्के लगाने लगा. उधर ताईजी भी शायद अब जल्दी में थीं ऐसा मस्त जीभ रगड़ रगड़कर चूसा कि मैं एकदम से उनके मुंह में झड़ गया. इतनी देर खड़ा रहने के बाद झड़ने से वो सुख मिला कि चक्कर सा आ गया. उधर ताईजी ने मेरी कमर पकड़कर मन लगाकर मेरा लंड और उससे निकलती मलाई चूस डाली.
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