RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
मैं चाह रही थी कि काश वक्त रुक जाए और इसी तरह मुझे चोदता रहे. पर मेरे चाहने से क्या होता आखिर शरीर की भी कुछ सीमा होती है. गजेन्द्र की सीत्कारें निकलने लगी थी और वो आँखें बंद किये गूं..गूं... या... करने लगा था. मुझे लगा अब वो जाने वाला है. मैंने अपनी चूत का संकोचन किया तो उसके लण्ड ने भी अंदर एक ठुमका सा लगा दिया. अब उसने मेरी कमर कस कर पकड़ ली और जोर जोर से धक्के लगाने लगा।
'मेरी प्यारी भौजी... आह... मेरी जान'
मुझे भी कहाँ होश था कि वो क्या बड़बड़ा रहा है. मेरी आँखों में भी सतरंगी सितारे झिलमिलाने लगे थी. मेरी चूत संकोचन पर संकोचन करने लगी और गांड का छेद खुलने बंद होने लगा था। मुझे लगा मेरा एक बार फिर निकलने वाला है.
इसके साथ ही गजेन्द्र ने एक हुंकार सी भरी और मेरी कमर को कस कर पकड़ते हुए अपना पूरा लण्ड अंदर तक ठोक दिया और मेरे चूतडो को कस कर अपने जाँघों से सटा लिया.शायद उसे डर था कि इन अंतिम क्षणों में मैं उसकी गिरफ्त से निकल कर उसका काम खराब ना कर दूँ.
'ग....इस्सस्सस्सस....... मेरी जान!!'
और फिर गर्म गाढ़े काम-रस की फुहारें निकलने लगी और मेरी चूत लबालब उस अनमोल रस से भरती चली गई. जगन हांफने लगा था. मेरी भी कमोबेश यही हालत थी. मैंने अपनी चूत को एक बार फिर से अंदर से भींच लिया ताकि उसकी अंतिम बूँदें भी निचोड़ लूँ. एक कतरा भी बाहर न गिरे.। मैं भला उस अमृत को बाहर कैसे जाने दे सकती थी।
अब गजेन्द्र शांत हो गया। मैं अपने पैर थोड़े से सीधे करते हुए अपने पेट के बल लेटने लगी पर मैंने अपने चूतड़ थोड़े ऊपर ही किये रखे. मैंने अपने दोनों हाथ पीछे करके उसकी कमर पकड़े रखी ताकि उसका लण्ड फिसल कर बाहर ना निकल जाए.अब वो इतना अनाड़ी तो नहीं था ना. उसने मेरे दोनों उरोजों को पकड़ लिया और हौले से मेरे ऊपर लेट गया. उसका लण्ड अभी भी मेरी चूत में फंसा था। अब वो कभी मेरे गालों को चूमता कभी मेरे सर के बालों को कभी पीठ को. रोमांच के क्षण भोग कर हम दोनों ही निढाल हो गए पर मन अभी नहीं भरा था..’
थोड़ी देर बाद हम दोनों उठ खड़े हुए. मैं कपड़े पहन कर बाहर धन्नी को देखने जाना चाहती थी, पर गजेन्द्र ने मुझे फिर से पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लिया. मैंने भी बड़ी अदा से अपनी बाहें उसके गले में डाल कर उसके होंठों पर एक जोर का चुम्मा ले लिया.
उसके बाद हमने एक बार फिर से वही चुदाई का खेल खेला. और उसके बाद 4 दिनों तक यही क्रम चलता रहा. धन्नी हमारे लिए स्वादिस्ट खाना बनाती पर हमें तो दूसरा ही खाना पसंद आता था. धन्नी मेरे गालों और उरोजों के पास हल्के नीले निशानों को देख कर मन्द-मन्द मुस्कुराती तो मैं मारे शर्म के कुछ बताने या कहने के बजाय यही कहती' धन्नी तुम्हारे हाथ का यह खाना मुझे जिंदगी भर याद रहेगा.'
अब वो इतनी भोली भी नहीं थी कि यह ना जानती हो कि मैं किस मजेदार खाने की बात कर रही हूँ.
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