RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
अचानक उसने एक झटका लगाया और फिर उसका मूसल मेरी चूत की दीवारों को चौड़ा करते हुए अंदर चला गया.मेरी तो मारे दर्द के चीख ही निकल गई. धक्का इतना जबरदस्त था कि मुझे दिन में तारे नज़र आने लगे थे. मुझे लगा उसका मूसल मेरी बच्चेदानी के मुँह तक चला गया है और गले तक आ जाएगा. मैं दर्द के मारे कसमसाने लगी. उसने मुझे कस कर अपनी अपनी बाहों में जकड़े रखा. उसने अपने घुटने मोड़ कर अपनी जांघें मेरी कमर और कूल्हों के दोनों ओर ज्यादा कस ली. मेरे आंसू निकल गए और चूत में तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसे तीखी छुरी से चीर दिया है. मुझे तो डर लग रहा था कहीं वो फट ना गई हो और खून ना निकलने लगा हो.
कुछ देर वो मेरे ऊपर शांत होकर पड़ा रहा. उसने अपनी फ़तेह का झंडा तो गाड़ ही दिया था. उसने मेरे गालों पर लुढ़क आये आंसू चाट लिए और फिर मेरे अधरों को चूसने लगा. थोड़ी देर में उसका लण्ड पूरी तरह मेरी चूत में समायोजित हो गया. मुझे थोड़ा सा दर्द तो अभी भी हो रहा था पर इतना नहीं कि सहन ना किया जा सके. साथ ही मेरी चूत की चुनमुनाहट तो अब मुझे रोमांचित भी करने लगी थी. अब मैंने भी सारी शर्म और दर्द भुला कर आनंद के इन क्षणों को भोगने का मन बना ही लिया था. मैंने उसकी जीभ अपने मुँह में भर ली और उसे ऐसे चूसने लगी जैसे उसने मेरी चूत को चूसा था. कभी कभी मैं भी अपनी जीभ उसके मुँह में डालने लगी थी जिसे वो रसीली कुल्फी की तरह चूस रहा था.
उसने हालांकि मेरी चूत की फांकों और कलिकाओं को बहुत कम चूसा था पर जब वो कलिकाओं को पूरा मुँह में भर कर होले होले उनको खींचता हुआ मुँह से बाहर निकालता था तो मेरा रोमांच सातवें आसमान पर होता था. जिस अंदाज़ में अब वो मेरी जीभ चूस रहा था मुझे बार बार अपनी चूत के कलिकाओं की चुसाई याद आ रही थी.
मेरी मीठी सीत्कार अपने आप निकलने लगी थी. मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब गजेन्द्र ने होले होले धक्के भी लगाने शुरू कर दिए थे. मुझे कुछ फंसा फंसा सा तो अनुभव हो रहा था पर लण्ड के अंदर बाहर होने में कोई दिक्कत नहीं आ रही थी. वो एक जोर का धक्का लगता और फिर कभी मेरे गालों को चूम लेता और कभी मेरे होंठों को। कभी मेरे उरोजों को चूमता मसलता और कभी उनकी घुंडियों को दांतों से दबा देता तो मेरी किलकारी ही गूँज जाती.अब तो मैं भी नीचे से अपने चूतडो को उछल कर उसका साथ देने लगी थी.
हम दोनों एक दूसरे की बाहों में किसी अखाड़े के पहलवानों की तरह गुत्थम गुत्था हो रहे थे, साथ साथ वो मुझे गालियाँ भी निकाल रहा था. मैं भला पीछे क्यों रहती। हम दोनों ने ही चूत भोसड़ी लण्ड चुदाई जैसे शब्दों का भरपूर प्रयोग किया. जितना एक दूसरे को चूम चाट और काट सकते थे काट खाया. इतनी कसी हुई चूत उसे बहुत दिनों बाद नसीब हुई थी. मैंने अपनी जांघें जितनी चौड़ी की जा सकती थी कर ली ताकि वो ज्यादा से ज्यादा अंदर डाल सके. मुझे तो लगा मैं पूर्ण सुहागन तो आज ही बनी हूँ.सच कहूं तो इस चुदाई जैसे आनंद को शब्दों में तो वर्णित किया ही नहीं जा सकता.
वो लयबद्ध ढंग से धक्के लगाता रहा और मैं आँखें बंद किये सतरंगी सपनों में खोई रही. वो मेरा एक चूचक अपने मुँह में भर कर चूसे जा रहा था और दूसरे को मसलता जा रहा था. मैं उसके सर और पीठ को सहला रही थी. और उसके धक्कों के साथ अपने चूतड़ भी ऊपर उठाने लगी थी. इस बार जब मैंने अपने चूतड़ उछाले तो उसने अपना एक हाथ मेरे नितंबों के नीचे किया और मेरी गांड का छेद टटोलने लगा।
पहले तो मैंने सोचा कि चूत से निकला कामरज वहाँ तक आ गया होगा पर बाद में मुझे पता चला कि उसने अपनी तर्जनी अंगुली पर थूक लगा रखा था. तभी मुझे अपनी गांड पर कुछ गीला गीला सा लगा. इससे पहले कि मैं कुछ समझती उसने अपनी थूक लगी अंगुली मेरी गांड में डाल दी. उसके साथ ही मेरी हर्ष मिश्रित चीख सी निकल गई। मुझे लगा मैं झड़ गई हूँ.
'अबे...ओ...बहन के ..भोसड़ी के...ओह..'
'अरे मेरी रानी ... तेरी चूत की तरह तेरी गांड भी कुंवारी ही लगती है ?'
'अबे साले..... मुफ्त की चूत मिल गई तो लालच आ गया क्या ?' मैंने अपनी गांड से उसकी उंगुली निकालने की कोशिश करते हुए कहा।
'भौजी.. एक बार गांड मार लेने दो ना ?' उसने मेरे गालों को काट लिया।
'ना...बाबा... ना... यह मूसल तो मेरी गांड को फाड़ देगा. तुमने इस चूत का तो लगता है बैंड बजा दिया है, अब गांड का बाजा नहीं बजवाऊंगी.'
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