RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
उसने धीरे से मुझे बेड पर लेटा दिया और फिर कमरे का दरवाजे की सांकल लगा ली. मैं आँखें बंद किये बेड पर लेटी रही. अब गजेन्द्र ने झटपट अपने सारे कपड़े उतार दिए.अब उसके बदन पर मात्र एक पत्तों वाला कच्छा बचा था। कच्छा तो पूरा टेंट बना था. वो मेरे बगल में आकर लेट गया और अपना एक हाथ मेरी साड़ी के ऊपर से ही मेरी चूत पर लगा कर उसका छेद टटोलने लगा और दूसरे हाथ से वो मेरे उरोजों को मसलने लगा.
फिर उसने मेरी साड़ी को ऊपर खिसकाना शुरू कर दिया. मैंने अपनी जांघें कस लीं. मेरी काली पेंटी में मुश्किल से फंसी मेरी चूत की मोटी फांकों को देख कर तो उसकी आँखें ही जैसे चुंधिया सी गई.उसने पहले तो उस गीली पेंटी के ऊपर से सूंघा फिर उस पर एक चुम्मा लेते हुए बोला,'भौजी, ऐसे मज़ा नहीं आएगा! कपड़े उतार देते हैं'
मैं क्या बोलती. उसने खींच कर पहले तो मेरी साड़ी और फिर पेटीकोट उतार दिया. मेरे विरोध करने का तो प्रश्न ही नहीं था. फिर उसने मेरा ब्लाउज भी उतार फेंका.मैं तो खुद जल्दी से जल्दी चुदने को बेकरार थी. मेरे ऊपर नशा सा छाने लगा था और मेरी आँखें उन्माद में डूबने लगी थी. मेरा अंदाज़ा था वो पहले मेरी चूत को जम कर चूसेगा पर वो तो मुझे पागल करने पर उतारू था जैसे. अब उसने मेरी ब्रा भी उतार दी तो मेरे रस भरे गुलाबी संतरे उछल कर जैसे बाहर आ गए. मेरे उरोजों की घुन्डियाँ ज्यादा बड़ी नहीं हैं बस मूंगफली के दाने जितनी गहरे गुलाबी रंग की हैं. उसने पहले तो मेरे उरोज जो अपने हाथ से सहलाया फिर उसकी घुंडी अपने मुँह में लेकर चूसने लगा. मेरी सीत्कार निकलने लगी। मेरा मन कर रहा था वो इस चूसा-चुसाई को छोड़ कर जल्दी से एक बार अपना खूंटा मेरी चूत में गाड़ दे तो मैं निहाल हो जाऊं.
बारी-बारी उसने दोनों उरोजों को चूसा और फिर मेरे पेट, नाभि और पेडू को चूमता चला गया. अब उसने मेरी पेंटी के अंदर बने उभार के ऊपर मुँह लगा कर सूंघा और फिर उस उभार वाली जगह को अपने मुँह में भर लिया. मेरे सारे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई और मुझे लगा मेरी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया.
फिर उसने काली पेंटी को नीचे खिसकाना शुरू कर दिया. मैंने दो दिन पहले ही अपनी झांटे साफ़ की थी इसलिए वो तो अभी भी चकाचक लग रही थी. मेरी ज्यादा चुदाई नहीं हुई थी तो मेरी फांकों का रंग अभी काला नहीं पड़ा था. मोटी मोटी फांकों के बीच चीरे का रंग हल्का भूरा गुलाबी था. मेरी चूत की दोनों फांकें इतनी मोटी थी कि पेंटी उनके अंदर धंस जाया करती थी और उसकी रेखा बाहर से भी साफ़ दिखती थी उसने केले के छिलके की तरह मेरी पेंटी को निकाल बाहर किया. मैंने अपने चूतड़ उठा कर पेंटी को उतारने में पूरा सहयोग किया. पर पेंटी उतार देने के बाद ना जाने क्यों मेरी जांघें अपने आप कस गई.
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