RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
कोई 5-7 मिनट की अंगुलबाजी के बाद अचानक मेरी आँखें खुली तो देखा सामने गजेन्द्र खड़ा अपने पजामे में बने उभार को सहलाता हुआ मेरी ओर एकटक देखे जा रहा था और मंद मंद मुस्कुरा रहा था.
मैं तो हक्की बक्की ही रह गई. मैं तो इतनी सकपका गई थी कि उठ भी नहीं पाई.
गजेन्द्र मेरे पास आ गया और मुस्कुराते हुए बोला,'भौजी आप घबराएं नहीं ! मैंने कुछ नहीं देखा.'
अब मुझे होश आया. मैं झटके से उठ खड़ी हुई. मैं तो शर्म के मारे धरती में ही गड़ी जा रही थी. पता नहीं गजेन्द्र कब से मुझे देख रहा होगा. और अब तो वो मुझे बहूजी के स्थान पर भौजी (भाभी) कह रहा था.
'वो, वो.' मै सकपकाते हुए बोली.
'अरे! कोई बात नहीं, वैसे एक बात बताऊँ?'
'क... क्या.?'
'आपकी छमिया बहुत खूबसूरत है!'
वो मेरे इतना करीब आ गया था कि उसकी गर्म साँसें मुझे अपने चेहरे पर महसूस होने लगी थी.उसकी बात सुनकर मुझे थोड़ी शर्म भी आई और फिर मैं रोमांच में भी डूब गई.। अचानक उसने अपने हाथ मेरे कन्धों पर रख दिए और फिर मुझे अपनी और खींचते हुए अपनी बाहों में भर लिया. मेरे लिए यह अप्रत्याशित था. मैं नारी सुलभ लज्जा के मारे कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी, और वो इस बात को बहुत अच्छी तरह जानता था.
सच कहूँ तो एक पराये मर्द के स्पर्श में कितना रोमांच होता है मैंने आज दूसरी बार महसूस किया था. मैं तो कब से चाह रही थी कि वो मुझे अपनी बाहों में भर कर मसल डाले. यह अनैतिक काम मुझे रोमांचित कर रही थी. उसने अपने होंठ मेरे अधरों पर रख दिए और उन्हें चूमने लगा. मैं अपने आप को छुड़ाने की नाकामयाब कोशिश कर रही थी पर अंदर से तो मैं चाह रही थी कि इस सुनहरे मौके को हाथ से ना जाने दूँ. मेरा मन कर रहा था कि गजेन्द्र मुझे कस कर अपनी बाहों में जकड़ कर ले और मेरा अंग अंग मसल कर कुचल डाले. उसकी कंटीली मूंछें मेरे गुलाबी गालों और अधरों पर फिर रही थी. उसके मुँह से आती मधुर सी सुगंध मेरे साँसों में जैसे घुल सी गई।
'न.. नहीं..गजेन्द्र यह तुम क्या कर रहे हो ? क.. कोई देख लेगा..? छोड़ो मुझे ?' मैंने अपने आप को छुड़ाने की फिर थोड़ी सी कोशिश की.
'अरे भौजी क्यों अपनी इस जालिम जवानी को तरसा रही हो ?'
'नहीं...नहीं...मुझे शर्म आती है..!'
अब वो इतना फुद्दू और अनाड़ी तो नहीं था कि मेरी इस ना और शर्म का असली मतलब भी ना समझ सके.
'अरे इसमें शर्म की क्या बात है. मैं जानता हूँ तुम भी प्यासी हो और मैं भी.' कह कर उसने मुझे जोर से अपनी बाहों में कस लिया और मेरे होंठों को जोर जोर से चूमने लगा.
मेरे सारे शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई और एक मीठा सा ज़हर जैसे मेरे सारे बदन में भर गया और आँखों में लालिमा उभर आई. मेरे दिल की धड़कने बहुत तेज हो गई और साँसें बेकाबू होने लगी. अब उसने अपना एक हाथ मेरे चूतडो पर कस कर मुझे अपनी ओर दबाया तो उसके पायजामे में खूंटे जैसे खड़े लण्ड का अहसास मुझे अपनी नाभि पर महसूस हुआ तो मेरी एक कामुक सीत्कार निकल गई.।
'भौजी,.चलो कमरे में चलते हैं !'
'वो..वो...ध..धन्नी ?' मैं तो कुछ बोल ही नहीं पा रही थी.
'ओह तुम उसकी चिंता मत करो उसे दाल बाटी ठीक से पकाने में पूरे दो घंटे लगते हैं।'
'क्या मतलब.?'
'वो' सब जानती है ! बहुत समझदार है खाना बहुत प्रेम से बनाती और खिलाती है।' जगन हौले-हौले मुस्कुरा रहा था.
अब मुझे सारी बात समझ आ रही थी. कल वापस लौटते हुए ये दोनों जो खुसर फुसर कर रहे थे और फिर रात को गजेन्द्र ने मुनिया के साथ जो तूफानी पारी खेली थी लगता था वो सब इस योजना का ही हिस्सा थी. खैर गजेन्द्र ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया तो मैंने भी अपनी बाहें उसके गले में डाल दी. मेरी तंग चोली में कसे उरोज उसके सीने से लगे थे, मैंने भी अपनी नुकीली चूचियाँ उसकी छाती से गड़ा दी.
हम दोनों एक दूसरे से लिपटे कमरे में आ गए.
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