RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
अचानक मुनिया की एक जोर की कामुक सीत्कार निकली और वो जोर जोर से चिल्लाने लगी,'ओह... जगन... अबे साले...जोर जोर से कर ना.. ओ....आह मेरी माँ उईई...माँ..... और जोर से मेरे राजा....या.....उईईईईई....'
अब गजेन्द्र ने जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए. मुनिया ने अपने पैरों की कैंची सी बना कर उसकी कमर पर लपेट ली. जैसे ही गजेन्द्र धक्के लगाने के लिए ऊपर उठता,मुनिया के चूतड़ भी उसके साथ ही ऊपर उठ जाते और फिर एक धक्के के साथ उसके चूतड़ नीचे तकिये से टकराते और धच्च के आवाज निकलती और साथ ही उसके पैरों में पहनी पायल के रुनझुन बज उठती।
'गज्जू मेरे सांड...मेरे...राज़ा......अब निकाल दो....आह्ह्ह........'
लगता था मुनिया फिर झड़ गई है।
'ले मेरी रानी.... आह्ह.... अब मैं भी जाने वाला हूँ.... आह...यह्ह्ह्ह.'
'ओ म्हारी माँ .... मैं … मर गई री ईईईइ.'
और उसके साथ ही उसने 5-6 धक्के जोर जोर से लगा दिए. मुनिया के पैर धड़ाम से नीचे गिर गए और वह जोर जोर से हांफने लगी गजेन्द्र का भी यही हाल था. दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में जकड़ लिया और दोनों की किलकारी एक साथ गूँज गई और फिर दोनों के होंठ एक दूसरे से चिपक गए.
कोई 10 मिनट तक वो दोनों इसी अवस्था में पड़े रहे फिर धीरे धीरे एक दूसरे को चूमते हुए उठ कर कपड़े पहनने लगे. मुझे लगा वो जरुर अब बाथरूम की ओर आयेंगे. मेरा मन तो नहीं कर रहा था पर बाथरूम से बाहर आकर कमरे में जाने की मजबूरी थी. मैं मन मसोस कर कमरे में आ गई.
कमरे में राजेश्वर के खर्राटे सुन कर तो मेरी झांटे ही सुलग गई. मेरी आँखों में नींद कहाँ थी मेरी आँखों में तो बसगजेन्द्र का मूसल लण्ड ही बसा था। मैं तो रात के दो बजे तक करवटें ही बदलती रही और जब आँख लगी तो फिर सारी रात वो काला मोटा लण्ड ही सपने में घूमता रहा.
अगले दिन मुझे सुबह उठने में देरी हो गई .। राजेश्वर नहा धो कर फिर किसी काम से जा चूका था. जब मैं उठी तो मुनिया ने बताया कि धन्नी ने संदेश भिजवाया है कि वो मेरे लिए आज विशेष रूप से दाल बाटी और चोखा बनाएगी सो मैं आज फिर फ़ार्म हाउस के उस हिस्से में जाऊं.मैं भी तो इसी ताक में थी.
जब हम पहुंचे तो झोपड़ी से धन्नी निकल आई और मुस्कराते हुए 'पाये लागी' कहा.
मुझे धन्नी के पास चोद कर गजेन्द्र खेत में बने ट्यूब वेल की ओर चला गया और मैं धन्नी के साथ कमरे में आ गई.आज दुलारे और बच्चे नहीं दिखाई दे रहे थे. मैंने जब इस बाबत पूछा तो धन्नी ने बताया कि बच्चे तो स्कूल गये हैं और दुलारे किसी काम से फिर शहर चला गया है शाम तक लौटेगा.
फिर वो बोली, 'बहूजी, आप बइठल जाये , खनवा बनाये कर आवत हाई.'
मुझे बड़ी जोर से सु सु आ रहा था,साथ ही मेरी चूत भी कुलबुला रही थी, मैंने पूछा'.बाथरूम किधर है?'
मेरी बात सुन कर धन्नी हँसते हुए बोली,"पूरा खेतवा ही बाथरूम बा!'
"ओह.'
'सरसों और चना के खेतवा मा हुयी ले कौनो न लौकयी.'
मजबूरी थी मैं सरसों के खेत में आ गई, मेरे कन्धों तक सरसों के बूटे खड़े थे. आस पास कोई नहीं था. मैंने अपनी साड़ी ऊपर की और फिर काले रंग की पेंटी को जल्दी से नीचे करते हुए मैं मूतने बैठ गई.
फिच्च सीईईई.... के मधुर संगीत के साथ पतली धार दूर तक चली गई. जैसे ही मैं उठने को हुई तो सुबह की ठंडी हवा का झोंका मेरी चूत पर लगी तो मैं रोमांच से भर उठी और मैंने उसकी फांकों को मसलना चालू कर दिया. मेरे ख्यालों में तो बस कल रात वाली चुदाई का दृश्य ही घूम रहा था. मेरी आँखें अपने आप बंद हो गई और मैंने अपनी चूत में अंगुली करनी शुरू कर दी. मेरे मुँह से अब सीत्कार भी निकलने लगी थी।
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