RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
उसकी बात सुनकर मेरा मन बुरी तरह उस मोटे लंड के लिए कुनमुनाने लगा . काश एक ही झटके में गजेन्द्र अपना पूरा लंड मेरी चूत में उतार दे तो यहां आना धन्य हो जाए. मेरी चूत ने तो उस मोटे लंड की सोंच कर ही अपना पानी छोड़ दिया.
धन्नी ने खाना बहुत अच्छा बनाया था, चने की दाल, मटर गोभी की सब्जी और देसी घी से चिपटी गयी चुलेह की मोटी रोटी. धन्नी ने कहा कि कल वो दाल बाटी और चोखा बना कर खिलाएगी.
शाम के 4 बज रहे थे. हम लोग वापस आने के लिए जीप में बैठ गए तो गजेन्द्र उस झोपड़े की ओर चला गया जहां धन्नी बर्तन समेट रही थी. वो कोई 20-25 मिनट के बाद आया. उसके चेहरे की रंगत से लग रहा था कि वो जरूर धन्नी को चोद कर आया है.यह जानकर की वो धन्नी की चोद के आया है मेरे तन बदन में आग लग गयी.
मेरा मन चुदाई के लिए इतना बेचैन हो रहा था कि मैं चाह रही थी कि घर पहुँचते ही कमरा बंद करके घोड़ी बन जाऊं और राजेश्वर मेरी बहती चूत में अपना लंड डाल कर मुझे आधे घंटे तक तसल्ली से चोदे. पर मेरी किस्मत खराब थी, एक तो राजेश्वर देर से आया और फिर रात में भी उसने कुछ नहीं किया. उसका लंड खड़ा तो हुआ लेकिन कड़ा नही हुआ. मैंने चूसा भी पर वो मेरे मुँह में ही झड़ गया. फिर वो तो पीठ मोड़ कर सो गया पर मैं तड़फती रह गई. अब मेरे पास बाथरूम में जाकर चूत में अंगुली करने के सिवा और कोई रास्ता ही नही बचा था.
जिस कमरे में हम ठहरे थे उसका बाथरूम साथ लगे कमरे के बीच साझा था और उसका दरवाज़ा दोनों तरफ खुलता था. मैंने अपनी पनियाई चूत में कोई 15-20 मिनट अंगुली तो जरूर की होगी तब जाकर उसका थोड़ा सा रस निकला. जब मै शांत हुयी तो मुझे साथ वाले कमरे से कुछ सीत्कारें सुनाई दी. मैंने बत्ती बंद करके की-होल से उस कमरे में झाँका.अंदर का नज़ारा देख कर मेरा रोम रोम झनझना उठा.
मुनिया मादरजात नंगी हुई अपनी दोनों टांगें चौड़ी किये बेड पर चित्त लेटी थी और उसने अपने चूतड़ो के नीचे एक मोटा तकिया लगा रखा था. गजेन्द्र उसकी जाँघों के बीच पेट के बल लेटा हुआ मुनिया की झांटों वाली चूत को जोर जोर से चाट रहा था जैसे वो भैसा उस भैंस की चूत को चाट रहा था. जैसे ही वो अपनी जीभ को नीचे से ऊपर लाता तो उसकी फांकें चौड़ी हो जाती और अंदर का गुलाबी रंग झलकने लगता. मुनिया ने गजेन्द्र का सर अपने हाथों में पकड़ रखा था और वो आँखें बंद किये जोर जोर से आह्ह.... उह्हह.... कर रही थी. मुझे गजेन्द्र का लंड अभी दिखाई नहीं दिया था. अचानक गजेन्द्र ने उसे कुछ इशारा किया, तो मुनिया झट से अपने घुटनों के बाल चौपाया हो गई और उसने अपने चूतड़ ऊपर कर दिए.
उसके चूतड़ तो मेरे चूतडो से भी भारी और गोल थे. अब गजेन्द्र भी उठ कर उसके पीछे आ गया अब मैंने उसके लंड को पहली बार देखा. लगभग 8 इंच का काले रंग का लंड मेरी कलाई जितना मोटा लग रहा था और उसका सुपारा मशरूम की तरह गोल था!
अब मुनिया ने कंधे झुका कर अपना सर तकिये पर रख लिया और अपने दोनों हाथ पीछे करके अपनी चूत की फांकों को चौड़ा कर दिया और अपनी जांघें थोड़ी और चौड़ी कर ली. उसकी फांकें तो काली थी पर अंदर का रंग लाल तरबूज की गिरी जैसा था जो पूरा काम-रस से भरा था. गजेन्द्र ने पहले तो उसके चूतडो पर 2-3 बार थपकी लगाई और फिर अपने एक हाथ पर थूक लगा कर अपने सुपारे पर चुपड़ दिया. फिर उसने अपना लंड मुनिया की चूत के छेद पर रख दिया. अब गजेन्द्र ने उसकी कमर पकड़ ली और उस भैंसे की तरह एक हुंकार भरी और एक जोर का झटका लगाया.पूरा का पूरा लंड एक ही झटके में घप्प से चूत के अंदर समां गया. मेरी तो आँखें फटी की फटी रह गई. मैं तो सोचती थी कि मुनिया जोर से चिल्लाएगी पर वो तो मस्त हुई आह...याह्ह...करती रही.
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