RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
यह शेखर के बारे में नई बात जानी थी। मुझे भी उन नंगी फोटो और चुदाई की कहानियां पढ़ने की लत लग गई। बहुत सोचती नहीं पढ़ूँगी लेकिन जब भी बेड ठीक करने जाती तो उसी के बिस्तर पर लेकर बैठ जाती। उसके बाद चूत में जो आग लगती उसे बुझाने के लिये अग्रवाल साहब का लौड़ा लेने के लिये जतन करने पड़ते। तबीयत होती शेखर के पास जाकर प्यास बुझा आऊँ।
जब कभी नई मैगजीन न पा पाती तो बड़ी बेचैन रहती। सेाचा शेखर के अंडरवेर बनियान भी क्यों न धोकर डाल दूं पूरे हफ्ते के जमा हो जाते हैं। जब अंडरवेर साफ कर रही की तो देखा कइयों पर झड़ा हुआ वीर्य सूख गया है। उस पर साबुन लगाते समय कंपकंपी आ गई।
शाम को जब उसने देखा कि मैंने अंडरवेर बनियान भी धोये हैं तो उसे बहुत खेद हुआ। उसने बड़ा जोर लगाया कि मैं ऐसा हर्गिज न करूं, लेकिन मैं भी जिद पर अड़ गई कि इसमें कोई बुराई नहीं। जब भी मैं अंडरवेर साफ करती किसी न किसी पर झड़ने के दाग होते। बेचारा वाकई औरत के लिये भूखा था। मैं उससे बाहर-बाहर के मजाक के लिये तो तैयार थी लेकिन चुदवाना केवल अग्रवाल साहब से चाहती थी। मैं उसके लिये कुछ नहीं कर सकती थी।
संबंध दोनों परिवारों में गहरे हो गये थे। माया और मेरे परिवार के सब लोग एक दूसरे को पसंद करते थे। लेकिन मैं शेखर की तरफ रोमांटिक तौर पर महसूस करती थी और शायद वह भी। एक बार उसके दफ्तर में पार्टी थी। उसने अग्रवाल साहब के सामने ही मुझसे पूछा- क्या मैं उसके साथ पार्टी में चल सकती हूँ?
अग्रवाल साहब ने ही कहा- इसमें पूछने की क्या बात है?
शेखर के साथ पहली बार अकेली जा रही थी पार्टी के लिये के लिये तो मैं अच्छी तरह से सजी-संवरी। नीचे आई तो शेखर टकटकी बाँधकर देखता ही रह गया। उसने मेरा हाथ थाम लिया। दबाते हुये धीरे से बोला- “भाभी तुम बाकई बहुत खूबसूरत हो…”
सुनकर बड़ा प्यारा लगा। मैं उससे और सट गई।
आलीशान पार्टी थी एकदम भव्य। मेरा हाथ पकड़कर खींचता प्रेसिडेंट, वाइस-प्रेसिडेंट के पास ले गया। बड़े अधिकार से बोला- “ये संगीता है…”
मैं मुँह देखती रह गई। कहां तो भाभी-भाभी कहते जबान नहीं थकती थी अब सीधा संगीता पर उतर आया लेकिन भाया बहुत। अपने साथियों से बड़ी बेतकल्लुफी से उसी तरह मिलवाया- “संगीता से मिलो…”
जल्दी ही समझ में आ गया कि पार्टी में पति-पत्नियों को बुलाया गया था और शेखर मुझे अपनी पत्नी की तरह मिलवा रहा है हालांकि मुँह से नहीं कह रहा है। अकेला होने पर मैंने उससे कहा- “मुझसे क्यों झूठ कर रहे हो?”
वह बोला- “मैं सबको दिखाना चाहता हूँ कि मेरी बीवी भी किसी से कम खूबसूरत नहीं है…”
मैं- “लेकिन मैं तो शायद उम्र में भी तुमसे बड़ी हूँ, एक बच्चे की मां हूँ…”
शेखर- “तुम्हें देखकर कौन कह सकता है। देखो वह औरतें तुमसे ज्यादा बड़ी दिख रही हैं। तुम बिल्कुल कमसिन हो…”
मेरे बदन में रोमांचा हो आया। तबीयत हुई कि उसको जकड़ के चूम लूं। बस हाथ पकड़कर उससे सथ गई। शेखर की पोजीशन अच्छी थी। उसके जूनियर की बीवियां मेरे आगे पीछे घूम रही थीं। मैं बड़ा गौरव महसूस कर रही थी।
पार्टी तो मेरी जान है। मुझे माहौल मिल गया था और मैं बहुत ईजी महसूस कर रही थी। डांस चालू हुआ तो उसमें खूब भाग लिया। लोग तारीफ कर रहे थे। पार्टनर के संग डांस में शेखर से एकदम चिपक गई, दूसरी बीवियों से भी ज्यादा। मेरी छातियां उसके सीने में घुसी जा रही थीं। मैंने अपनी दोनों रानें उसकी जाघों से चिपका दीं। टांगों के बीच के गड्ढे को उसकी टांगों के ऊपर के उभार से सटा दिया और डांस की थिरकन के साथ रगड़ने लगी।
शेखर के लण्ड मियां रंग लाने लगे थे और मेरी बुर के दरवाजे पर दस्तक देने लगे थे। लेकिन समय की नजाकत को देखते हुये सब्र करके मैंने अपने बीच थोड़ा फासला कर लिया। पार्टी खतम होने तक मेरी हिचकिचाहट जाती रही थी। घर लाने की जगह वह कहीं और ले जाकर पति का अपना असली हक वसूला करना चाहता तो मैं तैयार थी। लेकिन उसने जरूरत से ज्यादा सराफत दिखाई और मैं रात भर तड़पती रही। पर पार्टी से मैं खुश थी, मेरा सजना-सवंरना सार्थक हो गया था।
दूसरे दिन मैंने निश्चित कर लिया कि मैं शेखर से लगवाऊँगी, आखिर वह अपना है। दूसरे दिन खाना लेकर गई तो मेरा स्वागत करता हुआ वह बोला- “आइये भाभी…”
मैंने व्यंग से कहा- “अब भाभी कहते हो, कल तो संगीता-संगीता रटे जा रहे थे…”
शेखर- “वह तो ड्रामा था…”
मैंने चिढ़कर कहा- “हाँ तुम बड़े ड्रामेबाज हो… ढोंगी पति बनते हो पर रोल भी पूरा नहीं करते…”
शेखर- “हाँ तुम्हारे जैसी एक्टिंगा जो नहीं कर सकता…”
मैं बार बार उसे हिंट दे रही की और वह आगे ही नहीं बढ़ रहा था।
कभी पूरे जोबन सामने कर देती- “आज मैंने तुम्हारी चीज़ पहनी है…” कभी- “ओहो आज तो बेहद गरमी है, मैंने तो नीचे भी कुछ नहीं डाला है…” यहां तक की अपनी पहनी हुई पैंटी भी उसके बिस्तर पर छोड़ आई जिस पर रिसती चूत का पानी लगा था।
लेकिन शेखर ने तो जैसे कशम ले ली थी। जितना वह अंजान बन रहा था उतना ही मैं बेकाबू होती जा रही थी। मैंने सीधा वार करने का सोच लिया।
एक शाम जब वह आफिस से आया तो मैं उसी के बिस्तर पर अधलेटी होकर नंगी मैगजीन पढ़ रही थी। केवल ब्लाउज़ पहन रखा था जिसके नीचे ब्रेजियर नहीं थी और पेटीकोट डाला था जिसके नीचे पैंटी नहीं थी। टांगें मोड़ रखी थीं, जिससे अंदर का काफी कुछ दिखता था। दरवाजा खोलकर शेखर अंदर आया। कुछ देर तक मैं वैसे ही लेटी रही। फिर उठकर खड़ी हो गई। गुस्से से एक फोटो दिखाते हुये बोली- “छीः कैसी गंदी किताबें पढ़ते हो…”
थोड़ी देर के लिये वह सहम गया, धीरे से बोला- “भाभी, मेरी अपनी भी तो जरूरत है…”
मैंने पोज बनाते हुये कहा- “तुम्हारी भाभी क्या इनसे कम है?”
उसकी बोली मैं तलखी आ गई- “भाभी तुम हमेशा खिझाती हो। पहले फ्लर्ट करती हो, फिर पीछे हट जाती हो। पार्टी में भी तुमने यही किया। तुम्हारी वजह से ही मैं भड़का रहता हूँ। ऊपर से कहती हो कि भाई साहब के अलावा आप किसी को भी नहीं दिखा सकतीं…”
मैंने चकित होकर कहा- “जब तुम कह सकते हो कि जब तक देवर है मैं किसी चीज़ की कमी महसूस न करूं तो मैं क्यों नहीं कह सकती कि भाभी भी तुम्हारी हर जरूरत के लिये है…”
शेखर का चेहरा चमक उठा- “तो भाभी फोटो में जो है दिखाओ…”
“मेरी बला से…” और मैं बाथरूम की तरफ भागी।
वह बोला- “अब मैं नहीं छोड़ूंगा…” और दौड़कर बाथरूम में पहुँचने के पहले ही उसने मुझे दबोचा लिया। शेखर ने मुझे पीछे से पकड़ लिया था। उसने दोनों हथेलियों में मेरे दोनों उभार कस के दवा लिये थे और कसके चिपक गया था।
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