RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
खेल में मैं और शेखर पार्टनर रहते थे। खूब घुलमिल गये थे, खुलकर हँसी मजाक करते थे। लेकिन मैं शरारत से बाज नहीं आती थी। जितना मैं शेखर को निसहाय पाती उतना ही मैं बोल्ड होती जा रही थी। खेल में उसके सामने बैठती। जब मौका पाती सबकी निगाह बाचाके अनजानी बनकर पल भर के लिये अपनी टांगें इस तरह खोल देती कि उसे मेरी कच्छी तक दिख जाये। कभी-कभी तो मैं कच्छी भी न डालती और फट्ट से टांगें चौड़ा देती कि उसे अंदर का नजारा दिख जाये, लेकिन सेंटर पीस न दिखे।
उसके चेहरे पर तनाव उभर आता, आँखें जलने लगती और वह ताव खाकर रह जाता। अजीब बात थी कि पति बगल में बैठा होता था और मैं चूत किसी और को दिखाती थी। लेकिन देर सबेर जब पति से चुदवाने को मिलता था तो ज्यादा आनंद आता था।
इन दिनों शेखर के लिये मुझे तरह-तरह का खाना बनाना बहुत अच्छा लगता था। कभी-कभी जो कम चीज़ हो तो खुद न खाती थी उसको दे देती थी। मैं खाना लेकर कम जाती थी क्योंकी जब मैं उसके सामने अकेली होती थि तो इतनी उत्तेजित हो उठती थी कि मेरी चूत गीली हो जाती थी। ज्यादातर मैं अमित से खाना भिजवा देती थी। चूत की जब प्यास मिटी होती थी तब ही जाती थी और जल्दी से वापिस आ जाती थी। उसका ख्याल रखने में मुझे कुछ-कुछ सेक्स का शुख मिलता था।
ताश के समय बड़ा ही हलका-फुलका माहौल रहता था। किसका बर्थ-डे है, किसकी हालगिरह है सब बातें होती रहती थीं, साथ में वधाइयां भी और पार्टी का इसरार भी। ऐसे ही एक बार मेरी बर्थ-डे पर सबने खूब वधाइयां दी, शेखर ने जिद की कि मैं तो पार्टी लेकर ही रहूँगा।
शेखर की बात रखने के लिये दूसरे दिन मैंने खीर पकवान बनाये। सबसे पहले उसके लिये ही लेकर गई। शेखर के सामने खाना रखते हुये मैं बोली- “लो बर्थ-डे की पार्टी…”
वह बोला- “भाभी तुम्हारे जैसा नहीं देखा… फाइव स्टार रोस्टोरेंट में पार्टी होना चाहिये…”
जैसे उसने मेरी दुखती नश पर हाथ रख दिया हो, मेरी आँखों में आंसु आ गये- “लाला तुम जानते हो कि तुम्हारी भाभी गरीब है इसलिये मजाक उड़ाते हो…”
शेखर ने अपने दोनों कान पकड़ लिये- “भाभी, ये क्या कहती हो? इतनी खूबसूरती की मालकिन इतने गु्णों वाली कैसे गरीब हो सकती है? तुम्हारे देवर में जब शामर्थ है तो तुम कैसे गरीब हो? मुझे अपना देवर मानती हो तो आगे से अपने को गरीब मत समझना…”
आगे बढ़ कर भावना में मैंने उसे अपने से चिपका लिया। वह कुर्सी पर बैठा था। उसका सिर मेरी दोनों टांगों के बीच में फँस गया… ठीक मेरी बुर के ऊपर। मुझे ध्यान आया तो मैं वहां से भाग आई।
इसके बाद हम लोगों का रवैया बदल गया। शेखर अमित के लिये ढेर सारी चीजें लाता। अमित उसके वहुत नजदीक हो गया। उसके घर में ही एक कमरे में पढ़ने का ठिकाना बना लिया। एक चाभी उसने हमें दे दी थी। मेरे लिये भी शेखर तरह-तरह की गिफ्टे लाता। मैं भी उसका ख्याल रखने लगी थी। घर साफ कर देती, चीजें जमा देती, बिस्तर बदल देती जिसकी तरफ से वह लापरवाह था और माया ही आने पर कुछ-कुछ कर पाती थी। अब मुझमें सकुचाहट आ गई थी और उसमें खुलापन।
एक बार उसने एक पैकेट मुझे दिया और कहा- “भाभी तुम्हारे लिये…”
अपने बाथरूम में जाकर खोला क्योंकी वही एक अकेली जगह होती थी। बड़ी मंहगी और खूबसूरत ब्रेजियर और पैंटी के 6-6 आइटम थे। मन तो बहुत खुश हुआ लेकिन नीचे आकर मैंने शेखर से कहा- “भाभी को ऐसी गिफ्ट दी जाती है कहीं…”
वह बोला- “भाभी आपके पास अच्छी ब्रा और पैंटी नहीं है इसलिये सोचा दे दूं…”
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