RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
उसको दुहरा स्वाद मिल रहा था। एक बार सुनीता की मांसल, स्पंजी, लण्ड को जकड़ने वाली बुर का और दूसरी बार पतली, लंबी, गरम सुरंग का जिसमें लण्ड गहराई तक घुस जाता था। जब वह रजनी पर चोट करता तो रजनी झेलते हुये अपनी चूत सुनीता की चूत पर रगड़ देती। जब वह सुनीता पर जोर लगाता तो सुनीता टांगों की जकड़ और बढ़ा देती कि उसकी चूत रजनी की बुर पर रगड़ मार देती। शिशिर की रफ्तार बहुत बढ़ गई थी। धखाधक-धकाधक वह लगाये जा रहा था- सुनीता में, रजनी में, फिर सुनीता में। सुनीता रजनी एक दूसरे की चूचियों को कस के जकड़े हुये थीं। उनका सिसकना बढ़ गया था।
जैसे ही चोट लगती सुनीता बुदबुदाती- “ओओह्ह शिशिर मैं क्या करूं हुहूँ…”
सुनीता जब ज्यादा आनंद में आ जाती थी तो शिशिर का नाम लेकर पुकारने लगती थी।
रजनी का चुनौती वाला रुख अब भी बना हुआ था, हालांकि उसमें रहम जैसा भाव आ गया था। उसके अंदर धक्क से जाता तो रजनी कराह उठती- “ओ मेरे राम्म्म… हाँ हाँ काट डालो इसको आज… इसे छोड़ना नहीं…”
शिशिर ने सुनीता की जांघें को दोनों हाथों से थाम रखा था जो रजनी की कमर पर कसी हुईं थीं। खड़े-खड़े वह एक के बाद एक दोनों को पेले जा रहा था जैसे पिस्टन शंट कर रहा हो।
सुनीता मैं घुसता तो सुनीता तड़पती- “ओओ… ओओओ… आआआ… ओ मेरी मम्मीई… ओ माईई गोड… उईईई म्माँ मैं मरीई…”
रजनी झेलती तो दांतों के ऊपर दांत जकड़े हुये अंदर लंबी सांस खींचती- “ऊऊऊऊऊऊ…” जब चोट पड़ चुकती तो जोर से सांस बाहर करती- “ओफ्फ्फ्फ…”
सुनीता की बुर बुरी तरह से रिस रही थी। जांघों तक पानी फैल गया था। रजनी की बुर भी पूरी गीली हो रही थी। दोनों की चूत गुत्थम-गुत्था थीं और एक दूसरे के पानी से लथफथ हो रही थीं।
शिशिर का लण्ड उनकी चूत से फच्च-फच्च की आवाज निकाल रहा था।
सुनीता और रजनी की कराह बढ़ती जा रही थी- “ओओ… ओओओ… आआआ… ओ मेरी मम्मीई… ओ माईई गोड… उईईई म्माँ मैं मरीई…” “ऊऊऊऊऊऊ… ओफ्फ्फ्फ”
शिशिर ने और गति बढ़ाई तो रजनी ने सुनीता की चूची को छोड़कर अपने होंठ उसके होंठों पर गड़ा दिये। शिशिर ने हाथ बढ़ाकर सुनीता की दोनों चूचियां हथेलियों में थाम लीं और शंटिंग चालू रखी। दोनों होंठ चूसती जातीं थीं और “ऊंऊं” की आवाज करती जाती थीं। जैसे ही शिशिर ने चूचियों की घुंडियों को ऊँगलियों में मसला तो सुनीता चिल्ला उठी- “ओ शिशिर मैं तो गईईई… मत निकालो बाहर…”
इसके साथ ही अपनी कमर उठाकर उसने रजनी की चूत से इतने कस के सटा ली कि रजनी हिल न सकी। उसकी रगड़ से रजनी का पानी भी छूट गया- “आआआ… मैं क्या करूं? माँ मेरी मैं झड़ीईई…”
शिशिर ने जल्दी से पूछा- “रजनी भाभी, आपने बर्थ कंट्रोल की गोली ली है?”
रजनी के हाँ कहते ही शिशिर ने रजनी की बुर में अपना पूरा लण्ड अंदर किये हुये ही सारा वीर्य उगलना चालू कर दिया। करीब-करीब एक साथ तीनों लोग सिहरते रहे। जब शिशिर ने लण्ड बाहर किया तो रजनी की मसली चूत के अंदर से गाढ़ा-गाढ़ा सफेद द्रव बाहर निकलकर सुनीता की चूत पर गिर रहा था।
रजनी ने उठकर अपनी चूत को पोंछा।
सुनीता ने हाथ से खींचकर शिशिर को अपनी बगल में लिटा लिया।
शिशिर ने हाथ बढ़ा के रजनी को अपनी दूसरी तरफ लिटा लिया। दोनों ने शिशिर के एक-एक कंधे पर सिर रख लिया।
रजनी बोली- “थैंक यू शिशिर, मैं पूरी तरह संतुष्ट हो गई हूँ, खासतौर पर तुमने मेरी सहेली से मेरी जान पहचान करवा दी…”
सुनीता लाजाती हुई बोली- “धत्त… ऐसा भी कोई करता है?”
शिशिर बोला- “रजनी भाभी, अभी कहां? अभी आपसे अकेले की मुलाकात तो करनी है…”
रजनी- “न बाबा… और मैं न ले सकूंगी…”
सुनीता- “शिशिर इसको मत छोड़ना। इतनी इठलाती थी, हैकड़ी तो बंद हो इसकी…”
शिशिर ने सुनीता को भिंचकर चूम लिया फिर रजनी को भींचकर उसको चूम लिया।
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