RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
सुनीता और शिशिर की कहानी
होली के दूसरे दिन शिशिर जब लंच से लौटा तो सुनीता भाभी का फोन पर मेसेज था- “जितनी जल्दी हो सके घर आ जाओ…” शिशिर सब सुभ हो की कामना करते हुये सुनीता के घर जल्दी से जा पहुँचा। सुनीता भाभी ने दरवाजा खोला तो वह खूबसूरत साड़ी में सजी धजी खड़ी थीं।
शिशिर ने पूछा- “क्या बात है भाभी?”
तो बड़ी अदा से मैं बोली- “देवरजी तुम कह रहे थे कि भाभी होली नहीं मनाओगी तो मैंने सोचा चलो तुम होली मना लो। तुम्हारी शर्त पूरी करने के लिये बड़ी मुश्किल से कल अपने को तुम्हारे भइया से बचा के रक्खा है। आज तो वह छोड़ेंगे नहीं इसलिये अभी मना लो…” और एक प्लेट में से मुट्ठी में गुलाल लेकर मैं आगे बढ़ी।
शिशिर बोला- “भाभी इतनी मंहगी साड़ी खराब करोगी?”
लेकिन इसके पहले ही मैंने शिशिर के चेहरे पर गुलाल मला दिया। शिशिर ने मुझको पकड़ लिया और अपना गुलाल लगा गाल मेरे गुलाबी गालों पर रगड़ने लगा। फिर उसने मुझे बाहों में लेकर मेरे रसीले होंठों पर चूमा और अपने होंठ गड़ा दिये। फिर मुझे प्यार से चूसने लगा। सुनीता भाभी उससे चिमत गईं और चुंबन का जवाब पूरे जोर से देने लगीं। कुछ देर वह ऐसे ही चिपके रहे फिर भाभी ने उसकी पीठ के ऊपर हाथ ले जाकर शिशिर का सिर पकड़कर उसे नीचे को खींचा।
शिशिर का मुँह उनके कंधों को चूमता हुआ सीने पर जा पहुँचा। वह अपने गालों का गुलाल सुनीता भाभी के उभारों के ऊपर रगड़कर ब्लाउज़ पर लगाने लगा। सुनीता को करेंट सा लगा, वह उत्तेजित हो उठी, चूचुक सख्त हो गये। शिशिर को एकदम पता लग गया। उसने दायां हाथ सुनीता की कमर में डालकर सामने से चिपका लिया और बांयें हाथ से उनके ब्लाउज़ के बटन खोल दिये। सुनीता ने पीछे हाथ करके ब्रा की हुक खोलकर के उसको अलग कर दिया। उसके सुडौल गदराये उरोज सामने थे जिनके ऊपर गहरे गुलाबी रंग के फूले हुये चूचुक तने खड़े हुये थे। शिशिर उनको देखता ही रह गया।
सुनीता भाभी ने टोका- “क्या देख रहे हो?”
शिशिर सच बोला- “भाभी इतनी खूबसूरत गोलाइयां नहीं देखी…”
सुनीता ने चोट की- “कितनों की देखी है?”
शिशिर का खड़ा हुआ लण्ड सुनीता की चूत को चुभ रहा था। उसने हाथ बढ़ाकर उसको पकड़ लिया। प्रतिक्रिया के रूप में शिशिर ने सुनीता भाभी की दाईं चूची मुँह में ले ली। सुनीता के मुँह से सीत्कार निकल गई। उन्होंने सारा भार शिशिर के ऊपर डाल दिया।
शिशिर ने उन्हें बाहों में संभाल न लिया होता तो गिर जातीं। सहारे से बेडरूम में ले जाकर शिशिर ने पलंग पर लिटा दिया। सुनीता ने गले में बाहें डालकर अपने ऊपर खींचा।
शिशिर ने कहा- “पहले अपने नीचे का खजाना तो दिखाओ…”
शोख अदा से सुनीता बोलीं- “पहले हम खजाने की चाभी देखेंगे…” इसके साथ ही सुनीता ने पैंट के बटन और जिपर खोल डाले और अंडरवेर समेत पैंट पैरों के नीचे गिरा दिया।
कमीज उतार कर वह एकदम नंगा हो गया। उसका लण्ड फनफनाकर कर खड़ा था।
“उईईई माँ… इतना बड़ा और मोटा है? कैसे समायेगा?” उत्तेजना में सुनीता भाभी की जबान लड़खड़ा रही थी।
शिशिर ने साड़ी की ओर हाथ बढ़ाया और एक झटके में साड़ी खींच दी और सिलिकन पेटीकोट का नाड़ा खोल लिया। सुनीता ने कुछ कहे बगैर अपने चूतड़ उठा दिये और आसानी से खींच करके पेटीकोट नीचे गिर दिया। उसने कीमती पैंटी पहन रखी थी। एक बड़ा सा धब्बा चूत के पानी से फैल गया था।
शिशिर पैंटी उतारने लगा तो सुनीता बोली- “इसे पहने रहने दो…” लेकिन उतरवाने में विरोध नहीं किया।
क्या नजारा था। संगमरमरी बदन सामने था। भाभी की पतली कमर, मांसल चूतड़, फूली हुई चूत, बड़ी-बड़ी गोल-गोल ऊंचाइयां और मदहोश मुश्कान आमंत्रित कर रही थीं। शिशिर मतवाला सा सुनीता भाभी की ओर बढ़ा और उन्होंने हाथ फैलाकर उसको समेट लिया। उसने उनकीे दांयें चूचुक को मुँह में ले लिया और बायीं चूची को हाथ से मसलने लगा।
भाभी “सी सी” कर उठीं। उन्होंने मुट्ठी में लण्ड थाम लिया और चूत के ऊपर फेरने लगीं। शिशिर ने पोजीशन बदल दी और बांयें चूचुक को मुँह में ले लिया तो भाभी ने एक लंबी आवाज की- “आआआह” और कानों में फुसफुसाईं- “देवरजी अब क्यों तड़पा रहे हो?”
साथ ही दोनों हाथों से उसका सिर पकड़कर नीचे को खींचने लगी। शिशिर नीचे खिसकता गया। भाभी ने लण्ड की उत्सुकता में अपनी टांगें चौड़ी कर ली। लेकिन शिशिर खिसकता ही गया। वह जांघों तक खिसक आया। भाभी की टांगें दोनों कंधों पर आ गईं। उसने भाभी की चूत पर मुँह रख दिया।
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