Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
01-19-2018, 01:14 PM,
#19
RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
मिसेज़ संगीता अग्रवाल की कहानी - cond...

उसका लण्ड देखकर मैं दंग रह गई। खीरे की तरह मोटा और लंबा तना हुआ खड़ा था। अग्रवाल साहब से दोगुना। कमर में हाथ डालकर वह मुझे बेड पर ले गया। चित्त लिटाकर मेरी टांगें खोल दीं। मैंने सोचा अब वह डालेगा। मैं लेने को उत्सुक हो गई। 

लेकिन वो मेरी चूत की तरफ देखता ही रह गया। उसके मुँह से निकला- “ओ माई गाोड क्या डबलरोटी की तरह फुद्दी है और ये चूतड़ों की गोलाइयां… मैंने तुम्हारी जैसी औरत देखी ही नहीं है…” 

मैंने पूछा- “प्रदीप जी, कितनी देखी है इस तरह?”

वह हँसने लगा- “होने वाली बीवी की देखी है, दो भाभियों की देखी है और ऐसी ही एक दो और देखी हैं…” 

संगीता जान गई कि वह खेला खाया हुआ है। 

मैंने इस बीच उसका लण्ड पकड़ लिया था जो मुट्ठी में भी नहीं आ रहा रहा था। चूत की तरफ उसे खींचा तो वह बोला- “इसकी पहली जगह तो यहां है…” और उसने लण्ड उसके होठों से सटा दिया। 

मैंने मुँह एक तरफ फेर लिया, बोली- “यहां नहीं लूंगी…” 

प्रदीप बोला- “चलो तुम नहीं लेकिन मैं तो अमृतपान करूंगा…” वह बेड के नीचे ही बैठ गया। दोनों टांगें कंधों पर धर लीं और अपना मुँह मेरी चूत के छेद पर रख दिया। मुझे उसकी भी आदत नहीं थी। मैंने उसका मुँह हटाना चाहा तो उसने और जोर से चिपका लिया। 

मैं छुड़ाने के लिये टांगें उसकी पीठ पर मारने लगी और कहा- “ये मत करो…”

वह मार सहता गया। उसने मेरी क्लिटोरिस को अपने होठों में दबोच लिया और चूसने लगा। 

मैं एकदम आनंद में भर गई। टांगों का मारना बंद हो गया। मैं बुदबुदाये जा रही थी- “ओ माँ इस तरह मत करो… ओ प्रदीप इस तरह…”

मेरे शब्दों का उल्टा ही मतलब था। मैं आनंद में भरी हुई थी और चाहती थी कि वह करता ही रहे। उसने अपनी जीभ छेद में डाल दी तो मैंने चूत हवा में उठा दी। प्रदीप के सिर पर हाथ रख के कसके दबा लिया और अपनी चूत उसके मुँह से रगड़ने लगी। मेरे सारे शरीर में करेंट दौड़ रहा था। मैं बोले जा रही थी- “प्रदीप चाटो इसे और कस के चाटो… पूरी जीभ अंदर कर दो… करते रहो न…”

प्रदीप ने जीभ निकाल के एक उंगली अंदर पूरी डाल दी और अंदर बाहर करने लगा। 

मैं एकदम से झड़ गई, चिल्ला उठी- “ओओह्ह… माँआं… क्या कर दियाआ?” बड़ी देर तक झड़ती रही। यह मेरा पहला अनुभव था। मैं खलास हो चुकी थी। प्रदीप का अभी भी तना हुआ था। 

प्रदीप मेरी बगल में आकर लेट गया। उसने मेरी चूची पर हाथ रखा तो मैंने हटा दिया। अब मेरी तबीयत नहीं थी। मैं एक रात में एक बार ही चुदाई कराती थी। प्रदीप ने धीरे-धीरे बाताना चालू किया कि किस तरह उसने अपनी बड़ी भाभी की ली थी। जब कहानी चरम पर पहुँची तो मैंने महसूस किया कि मेरी चूत में सुरसुरी होने लगी है और मैं प्रदीप के लण्ड से खेल रही हूँ। 

प्रदीप चाहता था कि मैं उसके लण्ड से खेलती रहूँ। लेकिन मैं उसके उस बड़े हथियार को अपनी चूत में लगवाना चाहती थी जो बड़ा गरम हो रहा था। आखिर वह मान गया। मैंने घुटने मोड़कर टांगें इतनी फैला लीं जितनी फैल सकती थीं। हाथ से पकड़कर सुपाड़ा चूत के अंदर किया तो बड़ी मुश्किल से घुसा। उसने जोर लगाया तो थोड़ा और अंदर घुसा। मैं मना कर रही की कि प्रदीप ने और धकेल दिया। लेकिन लण्ड पूरा न जाकर बीच में फँस गया। यह चूत कितनी बार चुद चुकी थी लेकिन उस लण्ड को नहीं ले पा रही थी। उसका लण्ड खूब गरम हो रहा था। मुझे तकलीफ हो रही थी लेकिन मैं झेलने को तैयार थी। 

मैंने कहा- “क्या देखते हो राजा कर दो पूरा अंदर एक बार में…” 

और कहने की जरूरत नहीं थी। प्रदीप ने मेरे घुटने थामे और एक झटके में जड़ तक घुसेड़ दिया। मैं चाहती थी कि वह थोड़ा ठहरे लेकिन उसने मौका ही नहीं दिया। उसने निकाला और फिर अंदर कर दिया। चूत की दीवालों को रगड़ता हुआ उसका लण्ड घुसता था तो मैं आनंद से भर जाती थी। निकलता था तो फिर लेने के लिये चूत उठा देती थी। वह धकाधक पेल रहा था। मैं उसे उत्साहित कर रही थी। 

हर चोट पर मेरी सीत्कार निकल जाती थी- “ऊंऊंह्ह ऊंह्ह… माँ… इतने जोर से क्यों मारते हो?”

वह भी कहता- “ले ऐऐऐ बहुत गरमी लग रही थी न तुझको ओओ…”

फिर चोट पर मैं सिसकी- “ओओ मइया… मैं तो मर जाऊँगीईई…” 

और प्रदीप कस के धपाक- “ले इसको ले… तेरी रिस रही चूत की गरमीइ निकल जायेगी…”

मेरी चूत ने न जाने कितनी चोटें खाईं। अचानक एक चोट ऐसी पड़ी कि चूत हवा में उठ गई। मैंने कस के उसको जकड़ लिया- “ओओह्ह… मैं क्या करूं… मैं तो गईई…”

प्रदीप- “लेऐऐ मैं भी आया…” उसने आखिरी धक्का दिया और अपना गाढ़ा-गाढ़ा रस छोड़ दिया। 

इसके बाद मैं नहाने चली गई। प्रदीप भी साथ ही नहाया। नहाते समय फिर हम लोग चुदाई किये। उस रात कई बार मैं चुदी यहां तक की पीछे वाले छेद में भी उसने डाला। 
सुबह उठे तो मैंने प्रदीप को चिढ़ाया- “हाय राम… तुमने मुझे खराब कर दिया…” 

दूसरे दिन बगैर रिजर्बेशन के बड़ी मुश्किल से हम लोगों को ट्रेन में घुसने भर की जगह मिली लेकिन मुझे कोई शिकायत नहीं थी। 

जब मौका मिलता मैं उससे कहती- “हाय राम… तुमने मुझे खराब कर दिया…” 

आने के पहले मैं एक बार और उसके सुपर-डुपर लण्ड का आनंद लेना चाहती थी। उसको भी कोई ऐतराज नहीं था। अपनी नवेली से तो वह सुहागरात मना ही चुका था और प्रदीप के ही शब्दों में उसकी बीवी के मुकाबाले मैं सुपर थी। लेकिन शादी की भीड़ में कोई सुनसान जगह नहीं मिल पा रही थी। 

एक दिन उसने बताया कि साथ वाले उसके घर में भूसा भरा रहता है। अगर मैं चाहूँ तो वहां हो सकता है। भूसा क्या मैं तो उससे लगवाने के लिये कहीं भी तैयार थी। आने के एक दिन पहले भूसे पर लिटाकर उसने मेरी मस्त चुदाई की।

.
***** ***** to be contd...
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RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस - by sexstories - 01-19-2018, 01:14 PM

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