RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
राकेश की कहानी
अब बारी राकेश की थी। उसने कहा:
मेरी शादी की तैयारियां हो रही थीं। कालेज के मेरे दोस्त जमा हो गये थे। शादी के कामों में नाइन का काफी रोल होता है, बहुत सारे नेगों में नाइन का अहम काम होता है। भाभी ने उबटन की रश्म की तो मेरे को हल्दी बेसन और चंदन से अच्छी तरह उबटन लगाने के लिये नाइन बैठी। कलावती उसका नाम था। कलावती दुबली पतली थी, सांवला रंग था, बड़ी बड़ी आँखों वाले उसके चेहरे में बेहद आकर्षण था। कामकाजी शरीर एकदम चुस्त और छरहरा था कहीं भी बेकार की चर्बी नहीं थी। उसके लंबे बदन की कशिश किसी को भी बाँध लेती थी। वह एकदम जवान थी।
उबटन लगाते हुये जब मेरे दोस्तों ने देखा तो कइयों का दिल उस पर आ गया। शाम को जब हम सब लोग बैठे तो रमेश ने जो शादीशुदा था कहा- “वह नाइन की लेना चाहता है…”
उसके बाद तो एक-एक करके सब शादीशुदा और कुँवारे दोस्तों ने अपनी मंशा जता दी कि वह कलावती को चोदना चाहते हैं। डर था कि नाइन कहीं उनकी बात सुनकर भड़क न उठे और जंजाल खड़ा कर दे।
रमेश बोला- “मैं रह नहीं सकता मैं नाइन से बात करूंगा…”
मेरे को बड़ा डर लगा कि कहीं बवंडर न उठ खड़ा हो। रमेश ने समझाया कि तुम मत घबड़ाओ मैं सीधे पूछ लूंगा, वो नहीं चाहेगी तो बात खतम।
नाइन को एक नौकरानी के जरिये यह कहकर बुलाया गया कि दूल्हे राजा बुलाते हैं। मैं और सब दोस्त अंदर के दूसरे कमरे में बैठ गये। केवल रमेश उस कमरे में रहा। कलावती आई तो मुझे पूछने लगी।
रमेश बड़ी नम्रता से बोला- “कलावती दूल्हे राजा तुमसे शर्मा रहे हैं। मुझसे कहा है कि तुमसे बात करूं। देखो कलावती मेरी बात तुम्हें अच्छी न लगे तो नाराज न होना। मैं दूल्हेराजा की तरफ से तुमसे माफी मांग लूंगा लेकिन बात आगे मत बढ़ाना…”
कलावती सहम गई- “आप क्या बात करते हैं, बाबूजी बोलिये क्या है?”
रमेश- “कलावती तुम बहुत अच्छी हो तुम्हारा घरवाला बहुत ही भाग्यवान है। बात यह है कि तुमने हम लोगों का दिल जीत लिया है। हम लोग चाहते हैं कि तुम हमें शुख दे दो कि हम हमेशा तुम्हें याद करते रहें…”
कलावती कुछ समझी कुछ नहीं, बोली- “मैं क्या सेवा कर सकती हूँ?”
रमेश को सीधा कहना पड़ा- “हम लोग तुमको भोगना चाहते हैं…”
मेरा दिल धकधक कर रहा था।
कलावती के चेहरे पर लाजभरी खुशी दौड़ गई। मस्ताकर बोली- “सबसे पहले दूल्हेराजा को करना होगा। अपनी दुल्हन से पहले मेरे साथ सुहागरात मनांयें। उनसे सोने का गहना लूंगी, फिर तुम सब लोगों की तबीयत खुश कर दूंगी…”
शर्त बड़ी टेढ़ी थी। शादी शुरू हो गई थी नेग हो रहे थे। मैं सुनीता के लिये बेकरार था। कलावती से संभोग नहीं कर सकता था। उसको बहुत समझाया ज्यादा पैसे का लालच दिया लेकिन वह टस से मस न हुई। यहां मेरे दोस्त मेरे ऊपर दबाव डाल रहे थे, वह कलावती को चोदने को उतावले थे। कहने लगे कि नाम के लिये डाल देना बस। उतने सारे दोस्तों का मन रखने के लिये मुझे उनकी बात मानना पड़ी।
तय हुआ कि बारात उठने के पहले जब मुझे तैयार होने के लिये एक कमरे में अकेला छोड़ दिया जायेगा तब कलावती चुपचाप कमरे में आ जायेगी। नाइन होने से उसका आना जाना आसान था। शादी के बाद जब मैं सुनीता के साथ रात रंगीन कर कहा हूँगा, उस समय मेरे दोस्त भी कलावती के संग आनंद मनायेंगे।
जब कलावती कमरे में आई तो मैं उसे देखता ही रह गया। लगता है उसने अपना भी उबटन कर डाला था। चेहरे पर गजब की लुनाई थी। बहुत कीमती न सही लेकिन उसने एक अच्छी साड़ी और राजस्थानी चोली पहन रखी थी जो उसके ऊपर खूब फब रही थी। आते ही उसने मेरे पैर छुये।
मैंने यह कहते हुये कि ये क्या करती हो, अपने से चिपका लिया। उसकी कमनीय देह बेला की लता सी मेरे से चिपक गई। उसका बदन मेरे वदन के उतार चढ़ाव में फिट हो गया था। मेरी रानों में उसकी जांघें समा गईं थीं। लण्ड के ऊपर चूत फिट हो गई थी। सीने पर उसके सख्त स्तनों और चूचुकों की चुभन महसूस कर रहा था। वह और भी चिपकती हुई खड़ी रही। जल्दी से निपटने के लिये मैंने चूत छूने के लिये साड़ी में हाथ डालना चाहा।
तो वह बोली- “राजाजी इत्ते बेसब्र न हो। लो इनसे खेलो…” हाथ पीछे करके उसने चोली की डोरी खींच दी। नीचे उसने कुछ भी नहीं पहन रखा था।
लपक कर मैंने दोनों गोलाइयों को मुट्ठी में दबा लिया। उसकी छातियां छोटी पर सख्त थीं। छातियों को मसलते ही कलावती ‘आह आह’ कर उठी। मैंने सिर झुका कर उसकी बाईं चूची मुँह में ले करके धीरे से दांतों से दबा ली।
कलावती जोर-जोर से ‘उइईईईई‘ कर उठी। जल्दी ही वह गरम हो गई थी। उससे अब रहा न गया तो लण्ड को पकड़ के हिलाते हुये बोली- “इसे निकालो न…”
मैंने पाजामा और अंडरवेर का नाड़ा खोलकर नीचे गिरा दिया।
उसने मेरा तना हुआ लण्ड देखा तो मुँह से निकल गया- “उई दैय्या… इत्ता बड़ा हथियार है… मेरी लिल्ली मैं कैसे घुसेगा?”
मैंने कहा- “तो फिर अपनी लिल्ली दिखाओ न…” और उसके पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया तो साड़ी समेत पेटीकोट नीचे गिर गया।
जैसे ही वह नंगी हुई भाग के बिस्तर पर लेट गई। मैं भी पूरा नंगा होकर उसके ऊपर जा गिरा। कलावती ने मेरे से पूछा- “राजाजी, तुमने पहले किसी को चोदा है?”
मैंने झूठ बोला- “नहीं तो…”
कलावती का चेहरा चमक उठा- “ओ मइया… मैं ही इसका पहला रस लूंगी। मैं ही आपकी सही औरत बनूंगी…” फिर बोली- “इसका प्रसाद चखना होगा…”
मेरे को पलटा कर वह दोनों टांगों के बीच बैठ गई। दोनों हाथों से लण्ड को छूकर हाथ माथे पर लगा लिये जैसे यह भी कोई पूजा की चीज़ हो। दांईं मुट्ठी में लण्ड को बंद करके उसके मालिश के अभ्यस्थ हाथों ने मुट्ठी पूरे लण्ड पर इस तरह आगे पीछे की कि मैं हवा में तैरने लगा। फिर अगले हिस्से की खाल हटाकर सुपाड़ा उसने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगी। मेरा लण्ड फड़फड़ाने लगा। फिर वो पूरे लण्ड को चचोरने लगी।
मैं बेकाबू हो गया। चूतड़ उठा-उठाकर लण्ड उसके मुँह में ही पेलने लगा।
मेरे से उसने कहा- “जब झड़ो तो रुकना नहीं। ज्यादा से ज्यादा आने देना…” इसके बाद उसने जो लय चालू की कि मेरे चूतड़ हवा में ही उठे रह गये और बढ़-बढ़ के धकाधक धक्के मारने लगे।
कलावती भी मुँह से पसंदगी जता रही थी- “उऊं ऊं ऊं ऊं…”
मेरे से रुका न गया। लण्ड ने एक झटका दिया और जैसे ही वीर्य उगलना चालू किया तो उसने फिर सुपाड़े को दांतों में थाम लिया और निकलते हुये रस को पीती गई।
जब लण्ड ठंडा हो गया तो आखिरी बार चाटती हुई बोली- “अपने मर्द के अलावा बस मैंने तुम्हारा प्रसाद लिया है। उनका भी बस चखा भर था। आपके किसी भी दोस्त का नहीं चखूंगी…”
मैंने खींच करके उसको अपने सीने से चिपका लिया।
कलावती ने मेरे सीने की चूचुक को मुँह में ले लिया और हाथ नीचे ले जाकर मेरे लण्ड के ऊपर ढक लिया। सीने से चिपके-चिपके ही वह धीरे-धीरे मेरी चूचुक चूसने लगी और बड़े अच्छे तरीके से लण्ड सहलाने लगी। मेरा लण्ड बढ़ता ही गया और थोड़ी ही देर में पत्थर की तरह सख्त हो गया।
कलावती- “लो अपनी सुहागरात मना लो…” कहकर पलट कर चित्त लेट गई। फिर बोली- “मैं बाताती हूँ, कल अपनी दुल्हन की सील कैसे तोड़ोगे?”
टांगें चौड़ा करके उनके बीच में मुझे घुटनों के बल बैठा लिया। फिर अपनी टांगें मेरे दोनों कंधों पर रख लिये। उसके चूतड़ हवा में उठ गये थे। मेरे सीधे सामने चूत का मुँह खुल गया था। छेद अंदर तक दिख रहा था। अंदर तक चूत गीली थी और पानी रिसकर रानों पर फैल रहा था।
कलावती ने अपनी मुट्ठी से लण्ड पकड़कर चूत के मुँह से सटा दिया और बोली- “इसे धीरे-धीरे घुसेड़ दो…”
मैंने जोर लगाया। उसकी चूत टाइट थी पर मेरा पूरा लण्ड आसानी से उसमें चला गया। चूत की पकड़ में उसको बहुत आनंद मिल रहा था।
कलावती कहने लगी- “राजाजी, हमारी इसमें तो आराम से चला गया लेकिन कल ऐसा नहीं कर पाओगे। दुल्हन की फुद्दी में घुसेगा नहीं और फिसलकर ऊपर खिसक जायेगा। और जब घुसने लगेगा तो दुल्हन अपनी फुद्दी पीछे हटाती जायेगी क्योंकी उनको दर्द होगा। इस आसान में तुम दुल्हन पर पूरा काबू रख सकते हो। अगर टांगें कस के जकड़ लोगे तो वह पीछे नहीं हट पायेगी। रुक-रुक करके डालना लेकिन वह मना करें, चीखें भी तो मत रुकना, पूरा अंदर कर ही देना…”
मैं इस बीच धीरे-धीरे अंदर बाहर कर रहा था।
कलावती कहने लगी- “मेरी इसको तो कूटो न कसके कि इसकी सारी गरमी निकल जाये…”
मैंने लण्ड को बाहर तक निकाला और झटके से पूरा अंदर कर दिया।
कलावती के मुँह से निकला- “हाय राजा क्या लौड़ा है… अंदर तक हिला दिया और लगाओ कस के…”
उसके मुँह से खुला-खुला सुनकर मैं और उत्तेजित हो गया। पिस्टन की तरह धकम-पेल करने लगा। बड़ी दूर तक बाहर निकालता और खड़ाक से अंदर कर देता।
उसने कस के बांहों से मेरी पीठ को जकड़ रखा था। हर चोट पर वो पीठ में नाखून गड़ा देती और जोर से चिल्लाती- “ओ रज्जा फाड़ दो इसको छोड़ना नहीं…” उसकी जबान गंदी से गंदी होती जा रही थी- “रज्जा इसकी भोसड़ी बना दो आज, बड़ा सताती है मुझे…”
मेरे को उसकी गंदी बातें बुरी नहीं लग रही थीं बल्की मैं आनंदित हो रहा था और अपनी चोटें बढ़ाता जा रहा था।
अचानक उसने कसके चूत चिपका दी- “ओ ओ ओ रज्ज्जा मैं… मैं तो झ्झड़ गईईई…” और अपने दांत मेरे सीने में गड़ा दिये। मैंने भी लण्ड अंदर रहते हुये ही उसकी क्लिटोरिस के ऊपर लण्ड की जड़ को कस के रगड़ा और सारा का सारा वीर्य छोड़ दिया।
काफी देर तक हम लोग वैसे ही पड़े रहे। फिर वह उठी। उकड़ू हो करके उसने अपना सिर मेरे पैरों पर रखा दिया। मैंने उठकर के एक सोने का हार उसके गाले में डाल दिया।
वह बोली- “राजाजी मेरे को भूल मत जाना। मैं भी आपकी औरत की तरह हूँ। सुहागरात आपने मेरे साथ मनाई है…” और वह कपड़े पहनकर चली गई।
कहां तो मैं जल्दी निपटना चाहता था और कहां एक घंटे से ऊपर उसके साथ हो गया।
कुमुद अपना क्षोभ न छुपा सकी, कहा- “हाउ इनसेंसिटिव… बेचारी सुनीता…”
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***** ***** To be contd... ...
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