RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
होली के रंग
फाग का दिन… सेक्स भरा माहौल, पूरी मस्ती वाला दिन। सुबह से दोपहर तक रंग गुलाल से होली चहेतियों के साथ। मौका मिलते ही चहेती पर जितना हाथ साफ कर सके किया। फिर नहा-धो कर घर-घर जाकर गुझिया पपड़ियां। शाम को एक जगह जमावड़ा जहां भांग की तरंग में खुलकर तानाकसी, छेड़-छाड़, खुले आम सेक्स की बातें। रात तक पति पत्नी दोनों ही आनंद में होते और जम कर मस्त-मस्त चुदाई करते। यह है होली का मदभरा त्योहार।
कालोनी में औरतें अपना ग्रुप बना लेतीं थीं और आदमी लोग अलग इकट्ठे हो जाते थे। फिर बेझिझक दोनों अलग से होली खेलते रहते थे, फागें और अश्लील गाने गाते रहते थे और मनमानी हरकतें करते रहते थे। मालूम पड़ा था कि औरतें ऐसे गाने गातीं थीं और ऐसी-ऐसी हरकतें करतीं थीं कि आदमी भी दांतों तले उंगली दबा लें। औरतों की लीडर एक मिसेज़ वर्मा थीं, बिहार की। मिस्टर वर्मा थुलथुल थे और अपनी इंजीनियरी के रोबदाब में रहते थे। मिसेज़ वर्मा चुस्त थीं, बिहार का सांवला रंग और प्रौढ़ अवस्था में भी छरहरी देह, आगे को उभरे हुये जोबन और पीछे को उभरे हुये कूल्हे। सब मिला के बड़ी सेक्सी फीगर और उतनी ही सेक्सी उनकी बातें। उनको देखे बिना अंदाजा भी नहीं हो सकता कि औरत में कितना सेक्स भरा हो सकता है और उसको वह कितने खुलेआम प्रदर्शित कर सकती है।
औरतों और आदमियों के अलग इकट्ठे होने के पहले मिसेज़ मलहोत्रा ने अपने पिछवाड़े आपस में होली खेलने का प्रोग्राम बनाया। उनके यहां एक पूरानी नाद थी जिसमें उन लोगों ने पानी भरकर रंग मिला दिया। जैसे-जैसे लोग आते गये उनको रंग से सराबोर कर दिया गया और गुलाल से चेहरा मला दिया गया। लिहाज़ का पर्दा उठ गया था। आदमी लोग भाभियों को यानि कि दूसरों की बीवियों को पकड़-पकड़कर रंग मल रहे थे।
कुमुद अपने को बचाये हुये दूर खड़ी थी। उसने नई धानी साड़ी पहन रखी थी जो शिशिर के कहने पर नहीं बदली थी। काफी खूबसूरत लग रही थी। राकेश का मन उसके ऊपर था। वह गुलाल लेकर उसकी ओर बढ़ा। कुमुद भागी, राकेश उसके पीछे भागा।
दीवाल के पास राकेश ने उसे पकड़ लिया। गुलाल से बचने के लिये कुमुद मुँह यहां वहां कर रही थी। राकेश ने कस के उसको चिपका लिया, यहां तक कि उसकी चूचियों का दबाव वह महसूस कर रहा था। रानों से रानें चिपक गई थीं। उसने तबीयत से कुमुद के गालों पर मुँह से मुँह रगड़कर अपना गुलाल छुड़ाया। मुट्ठी का गुलाल उसके दोनों उभारों पर मला और नीचे हाथ डालकर टांगों के बीच गुलाल का हाथ रगड़ दिया। गुलाल की लाली में उसकी शर्म की लाली छुप गई। दूर से लोगों ने सब कुछ नहीं देखा। न जाने क्यों कुमुद को राकेश पर गुस्सा नहीं आ रहा था बल्की इस सब से उसके मन में मिठास भर गई थी।
सुनीता ने बहैसियत भाभी के शिशिर को खूब गुलाल मला लेकिन सबसे घाटे में वही रही। क्योंकी उसके और शिशिर के मन में जो था, सबके देखते कुछ न कर पाये। मिसेज़ अग्रवाल वापिस जाने लगीं क्योंकी गाँव से उनकी भौजी आई हुई थीं, जिनको वह घर में छोड़कर आई थीं।
सबने कहा कि भौजी को यहीं ले आओ। मिसेज़ मलहोत्रा मिसेज़ अग्रवाल को पकड़कर ले गईं और वह लपक कर भौजी को खींच लाये। भौजी अच्छी जवान थीं, गदराया शरीर था, चेहरे पर लुनाई थी, मांसल थीं लेकिन मोटापा नहीं था, मेहनती देह थी, हाथों पैरों में बल था, सीने पर भी अच्छा मांस था। भौजी ने अग्रवाल जी को देखा तो घूँघट खींच लिया और उनकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गईं।
मलहोत्रा ने अग्रवाल को उकसाया- “पलट दो घूँघट… अपनी सलहज के संग होली नहीं खेलोगे?”
भौजी सिर हिलाती रही पर अग्रवाल ने उनका घूँघट उघाड़ दिया और यह कहते हुये- “भौजी हमसे होली नहीं खेलोगी?” और उनके दोनों गालों पर ढेर सा गुलाल मल दिया। मलहोत्रा ने उन्हें रंग से भिगो दिया।
भौजी बोलीं- “बस हो गई होली?”
वह उस क्षेत्र की थीं जहां औरतें कोड़ामार होली खेलतीं हैं। पानी में भिगो-भिगोकर आदमियों पर कोड़े मारती है। भौजी ने अग्रवाल को उठा लिया और सीधा ले जाकर नांद में गिराती हुई बोलीं- “लाला जी होली का मजा तो लो…”
सब लोगों में खुशी भर गई।
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