RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
मिसेज़ अग्रवाल ने चालू रखा- “एक बार एक ग्राहक का मन मिसेज़ मलहोत्रा की ‘खास चीज़’ पर ही आ गया। उसकी चाह पूरी करने के लिये वह उसे अंदर के कमरे में ले गईं। उसको खुश करने में या खुद खुश होने में उन्हें समय का ध्यान ही न रहा। देखा तो मिस्टर मलहोत्रा के आने का समय हो गया था। जल्दबाजी में भागीं तो पैंटी पहनना ही भूल गईं। एक टैक्सी रोकी और निढाल होकर पड़ रही। होश संभाला तो देखा कि बगैर पैंटी के अंदर का सारा नजारा रियरब्यू मिरर में दिख रहा था और टैक्सी ड्राइवर घूरे जा रहा था।
बात बनाने के लिये ड्राइवर बोला- “मैडम पेमेंट कैसे करेंगीं?”
मिसेज़ मलहोत्रा अभी भी मस्ती में थीं, शरारत से अंदर की चीज़ और दिखाते हुये कहा- “इससे कैसा रहेगा?”
ड्राइवर ने जवाब दिया- “और छोटी साइज़ का नोट नहीं है?”
मिसेज़ अग्रवाल ने ट्रम्प कार्ड छोड़ दिया था। वह इसी तरह उलझती रहती थीं। कभी मेरा और कुमुद का नाम ले आतीं थीं।
अब शिशिर की बारी थी।
शिशिर ने कहा- राजू राजी पति पत्नी थे। राजी की बहन की शादी थी। काफी पहले से दोनों को वहां जाना पड़ा। राजी का भरा पूरा परिवार था। नजदीक के मेहमान भी आ गये थे। घर में अच्छी खासी रौनक हो गई थी। ऐसे में सब औरतों को एक कमरे में और मर्दों को दूसरे कमरों में सोना पड़ता था। राजू राजी मजा नहीं ले पा रहे थे। उन्होंने एक तरीका निकाला।
राजी ने कहा- “मैं हीरे की अंगूठी पहनकर सोया करूंगी। अंगूठी रात के अंधेरे में चमकेगी। जब तुम्हारी तबीयत हो तब देर रात में आ जाया करो और बगैर आवाज किये मेरी खोलकर अपनी प्यास बुझा लिया करो। लेकिन ध्यान रहे चुपचाप करना क्योंकी अगल बगल में और औरतें सोई होंगी…”
राजू ने कहा- “काम बन गया…” आये दिन जाता और तबीयत से मज़े उड़ाता।
राजी उसकी बेजा हरकत पर आवाज भी नहीं उठा सकती थी। उन्होंने अपने इस प्लान का कोडनाम रखा था ‘परांठे खाना’, राजी या राजू एक दूसरे से शरारत करने के लिये कहते ‘रात को दो परांठे खाये’।
एक सुबह राजू खुश था। राजी को देखा तो बोला- “पहले तो तुमने कल रात बड़ी आना-कानी की फिर बड़े मज़े लेकर दो परांठे खाये…”
राजी बोली- “नहीं तो… मेरी तो कल से अंगूठी ही नहीं मिल रही है…”
सामने से इठलाती हुई मोहिनी भाभी आकर बोलीं- “बीवी जी अपनी यह अंगूठी लो, कल बाथरूम में रखी छोड़ आईं थीं…” फिर बोलीं- “मेरी अंगीठी गरम थी तो सोचा कि दो परांठे मैं भी सेंक लूं…”
फिर मक्कारी से राजू की तरफ देखती हुईं- “क्यों लाला जी परांठे ठीक सिके थे?”
शिशिर का जोक सुनकर सब की नजरें बचाकर मदभरी आँखों से मुँह बिचकाकर मैंने अपनी आशक्ति जता दी। शिशिर से सेक्स की बातें सुनती थी तो ‘तमाशे’ याद आ जाते थे और मेरी चूत में खुजली होने लगती थी, और उसकी मेरी तरफ वह आत्मियता। उसे मैं अपना समझने लगी थी। मैं पके आम की तरह उसकी झोली में गिरने को तैयार थी। लेकिन शिशिर था कि दूरी ही बनाये हुये था। आज तो मौका देखकर हँसी के बहाने दो बार मैं उसके ऊपर गिर चुकी थी।
इस बार मेरी हरकत का उसके ऊपर असर हुआ।
उसी दिन अकेला पाकर जोक का माध्यम इश्तेमाल करता हुआ शिशिर बोला- “ओ भाभी अपनी अंगीठी पर मुझे भी परांठे खिलाओ न…”
मनचाही बात सुनकर मैं शोख अदा से बोली- “मैंने कब मना किया है जब चाहे खालो…”
शिशिर- “लेकिन मैं जूठा नहीं खाता…”
मैं- “जूठी तो हो ही गई हूँ देवर जी…”
शिशिर- “मेरा मतलब वह नहीं है भाभी… 24 घंटे तक कम से कम जुठराई नहीं होनी चाहिये…”
मैं- “आजकल यह मुश्किल है। होली का समय है राकेश छोड़ते ही नहीं। अच्छा देखती हूँ…”
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