RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
पता नहीं मेरा हाथ कब मेरी चूत पर पहुँच गया। बगल में मेरा पति लेटा था और मैं साड़ी उठाये चड्ढी एक तरफ किये अपनी चूत में उंगलियां अंदर बाहर कर रही थी। जैसे शिशिर की रफ्तार बढ़ने लगी तो मैं इस बुरी तरह से अपने को ही चोदने में लीन हो गई कि शिशिर के झड़ने के पहले ही मैं खलास हो गई। उस रात जब मैं सोई तो ऐसा लगा जैसे शिशिर के द्वारा चोदी गई हूँ।
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कल रात की बात पर मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ। ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि मैंने अपना हाथ चूत पर रखा हो… जरूरत ही नहीं पड़ी थी। लेकिन शिशिर पर नाराजी नहीं थी। उसके बाद तो तबीयत होती कि वह सब फिर देखने को मिले। रात में खिड़की बार-बार खोल-खोल के देखती लेकिन उसकी खिड़की बंद होती।
शायद उसने यह सब करते देख लिया था। एक सुबह फिर ऊँची आवाज में जैसे अपने से ही बात कर रहा हो बोला- “पहले तमाशा दिखाओ फिर देखने को मिलेगा…”
मैंने सोचा मियां बड़े ऊँचे उड़ रहे हैं। भूल जाओ कि मैं यह सब करूंगी और मैं अपने रूटीन में लग गई। शिशिर अब इतना घूर घूर के नहीं देखता था। अच्छा लगने कि जगह कुछ सूना सा लगता था। जब अपने अंदर डलवाती थी तो शिशिर की बात को सोचकर लाल हो जाती थी और बड़ी, रोमांचित भी।
उस दिन राकेश का जनमदिन था। सुबह से ही मन प्रसन्न था। शाम को सज सवंर के हम बाहर खाना खाने जाते थे और रात में राकेश तबीयत से हमें चोदता था। शिशिर को छत पर देखा तो मन ने जोर मारा और उसको देखकर मैंने खिड़की खोल दी जैसे रात का संकेत दे दिया। सोचा आज देखो हमारा मजा।
हम लोग रात को देर से लौटे। मेरी खिड़की और सामने शिशिर की खिड़की खुली हुई थी। शिशिर अपनी तरफ का लैंप जलाकर कुछ पढ़ रहा था। कुमुद शायद सो गई थी। अंदर आते ही राकेश ने मुझे बांहों में ले लिया और मेरे होंठों पर कस के अपने होंठ रख दिये।
सामने मैंने देखा तो शिशिर उठकर खिड़की पर खड़ा हो गया और उसने अपनी लाइट आफ कर दी।
मुझे जोश आ गया। मैं राकेश को साथ लिये पलंग पर आ गिरी। राकेश ने ब्लाउज़ के ऊपर ही मेरे दांयें स्तन पर अपना मुँह रख दिया और बांयें स्तन को मुट्ठी में जकड़ लिया। मैंने पैंट के ऊपर से ही उसके लण्ड पर हाथ रखा और सहलाने लगी। उसको जैसे करेंट लग गया हो। उसने जल्दी से मेरे ब्लाउज़ के बटन और ब्रा के हुक खोल डाले। मेरी भरपूर गोलाइयां बाहर निकल आईं, जिन पर मुझे बड़ा नाज़ था। इसके पहले कि वह एक चूची को मुँह में लेता मैंने कहा- “इतनी अच्छी साड़ी पहनी है इसको तो उतार दो…”
राकेश के ऊपर बहसीपन सवार था बोला- “साड़ी में इतनी खूबसूरत लग रही हो आज साड़ी में ही करूंगा…” इसके साथ ही उसने मेरी साड़ी और पेटीकोट को पूरा उलट दिया।
इसके पहले कि वो मेरी पैंटी उतारता मैंने उसके पैंट के बटन खोल डाले और एक झटके में अंडरवेर समेत पैंट उतार फेंका। उसका एकदम तना हुआ लण्ड स्प्रिंग जैसा बाहर निकल आया। कमीज फेंक कर वह मेरे ऊपर आ गया। मुँह में एक चूची ले ली और चूचुक चूसने लगा। मैं पूरी तरह पिघल चुकी थी। यह जानकर कि शिशिर यह सब कुछ देख रहा है मैं बहुत ही उत्तेजित हो गई थी। मेरी चूत बुरी तरह रिसने लग गई थी। मैंने कस के उसका सिर अपनी चूची पर और दबा लिया और नीचे हाथ डालकर लण्ड पकड़ लिया।
कस के मुट्ठी लण्ड पर फेरते हुये बोली- “अब डालो भी न…”
ऊपर उठकर राकेश ने मेरी पैंटी उतार फेंकी। मैंने टांगें चौड़ी कर ली। चिकनी सुडौल टांगों के बीच अब मेरी चूत मुँह खोले इंतेजार कर रही थी, एकदम चिकनी। मैं पूरी तरह साफ करके रखती हूँ। जब राकेश ने लण्ड का अगला सिरा चूत के मुँह पर रखा तो मेरी आँखों के सामने शिशिर का चेहरा आ गया कि कैसे मुँह बाये वह सब कुछ देख रहा होगा। चूत में फुरेरी हो आई। राकेश ने मेरी दोनों गोलाइयों को दोनों हथेलियों में कस के जकड़ लिया और लण्ड को अंदर पेला। मेरी चूत एकदम गीली थी। उसका पूरा का पूरा लण्ड एकदम घुस गया। पहले तो अंदर जाने में थोड़ा समय लगता था। मेरे मुँह से 'सी' निकल गई। मैंने उसकी छाती के दोनों ओर हाथ डालकर उसको कस के जकड़ लिया।
पूरा बाहर करके राकेश ने लण्ड फिर पेल दिया।
मैं कह उठी- “आह्ह…”
अब की बार वह लण्ड चूत के बाहर दूर तक ले गया और एकदम जोर लगा के घुसा दिया। चूत के ऊपर लण्ड की जड़ धप्प से पड़ी। मैं 'आआह्ह' कह उठी। उसने दो तीन बार ऐसा ही किया। मेरा मजा बढ़ रहा था 'आह्ह' ऊँची होती जा रही थी।
अचानक वह बोला- “मैं झड़ रहा हूँ…” और वो मेरे ऊपर ढेर हो गया, ढेर सारा गाढ़ा पदार्थ चूत मेरी में भर दिया। कभी-कभी राकेश के साथ ऐसा हो जाता था। मुझे यह सोचकर झेंप सी हो रही की कि शिशिर क्या सोचता होगा।
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