RE: Chudai Sex कलियुग की सीता—एक छिनार
अब्दुल जी और हम घर पहुचे और बेल बजा दी….दरवाज़ा पतिदेव ने खोला,उनके हाथ मे एक पानी भरी थाल थी.मैने पतिदेव से कहा दो थाल लेकर आइए और फिर हम सोफे पर जा कर बैठ गये.पतिदेव दो थाल लेकर आए और आकर हमारे पैरो के पास नीचे बैठ गये.मेरा एक पाँव थाली मे डालते हुए पतिदेव मेरे तलवे धोने लगे और पूछा;
पतिदेव-मेडम जी,ये साहब कौन हैं???इनको तो पहले कभी नही देखा.
मैं(सीता)-अरे,आपको बताया तो था,ट्रेन मे एक अब्दुल भाईजान मिले थे,मेरी बहूत मदद की थी.
पतिदेव -ओह्ह्ह….तब तो मेरे लिए ये भगवान हैं
कहकर पतिदेव मेरा पाँव धोना बंद कर दिए और अब्दुल ख़ान की तरफ मुड़कर हाथ जोड़कर खड़े हो गये और कहा
पतिदेव-अब्दुल जी ,किस मूह से शुक्रिया अदा करूँ,ये मेरी बीवी ही नही ,देवी हैं,मैं अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करता हूँ इनसे,पूजा करता हूँ मैं इनकी,इनको खरॉच भी आने के ख़याल से मैं कांप जाता हूँ,आपने इनकी मदद करके मुझ पर बहुत बड़ा अहसान किया है. कहकर पतिदेव मेरे पैरों पर हाथ रखकर रोने लगे.इतने मे पातिदेव ने अब्दुल ख़ान जी के भी पाँव धो दिए थे.
मैने अब्दुल जी को मुस्कुरा के आँख मारी तो अब्दुल जी ने वही खूनी लूँगी निकाल के झटका और पास मे ही फैला दिया.मैने पतिदेव के आँसू पोंछे और दिलासा देते हुए कहा;
मैं(सीता)-क्यों घबराते हो जी,मैं तुम्हे छोड़कर कही नही जाने वाली
पतिदेव-आप नही जानती मेडम जी,आपके बिना मेरा समय कैसे कटता है
मैं(सीता)–अच्छा चलिए अब अच्छे बच्चे बनिये और मेरे भाई को भेज दीजिए,मुझे राखी बांधनी है बबलू को.
उधर पतिदेव सरपट भागे और इधर अब्दुल जी मेरे पीछे आकर प्यार से ज़ोर का तमाचा मेरी चूतडो पर जड़ दिए,मेरे चूतड़ थरथरा गये…तभी बबलू,मेरे छोटे भाई ने दरवाज़े पे कदम रखा और बोला;
बबलू-सीता दीदी,ये कैसी आवाज़ थी?
मैं(सीता)-कुछ नही भाई,अब्दुल भाईजान ने मच्छर मारा था,चलो अब जल्दी से राखी बँधवा लो.
बबलू-सीता दीदी,जानता हू,इस त्योहार मे हर भाई अपनी बेहन का पहरेदार बना रहता है मैं भी तुम्हारी ख़ुसी के लिए ज़िंदगी भर आगे रहूँगा.
मैने जब तक बबलू को सोफे पर बैठके उसके हाथ मे राखी बँधी तब तक वो पास पड़ी हुई लूँगी को छू छू के देखता रहा और फिर मेरा भाई ट्यूशन के लिए चला गया…तब मैने अब्दुल जी को सोफे पर लाके बैठा दिया और पूजा की थाली लेने चली गयी…अब्दुल जी मेरे मदमस्त चूतडो की मतवाली चाल का मज़ा तब तक लेते रहे जब तक मैं ओझल ना हो गयी…पूजा की थाल लेकर मैं अब्दुल जी के पास पहुचि और हाथ पकड़ के खड़ा कर दिया उनको,फिर मैने नीचे बैठे हुए कहा
मैं(सीता)-नवाब जी…आज से आप मेरे अफीशियल भाई हैं और पहले रक्षाबन्धन मे आपकी ये हिंदू बेहन इस रेशम की डोर को बाँधने के अलावा और कुछ नही कर सकती…चलिए अपने पाजामे का ज़ारबंद खोलिए
अब्दुल-लेकिन क्यों??????
मैं(सीता)–आप खोलिए तो भाईजान
अब्दुल-मैं नही खोलता,काम तुम्हारा है,तुम ही खोलो
मैंने हाथ बढ़ाकर उनके पाजामे के ज़ारबंद को तोड़ दिया और नीचे गिरा दिया,हाफ कट अंडरवेर मे अब्दुल जी का 9 इंच लंबा लंड चिंघाड़ रहा था.मैने आगे बढ़कर जैसे ही उनकी अंडरवेर नीचे की,अब्दुल जी का फौलादी लंड मेरे होठों पर दस्तक देने लगा …एकबारगी तो मेरी चूत ही सिहर उठी अब्दुल जी का लंबा और मोटा लंड देख कर..उस रात मैने इसको हाथ और चूत मे तो लिया था लेकिन देखने का सौभाग्य नही मिला था…जल्दी से मैने पूजा की थाल उठाई और उसमे से चंदन निकाल कर अब्दुल जी के खड़े लंड पर टीका लगा दिया,,अब्दुल जी का लंड घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा…मैने एक दिया जला कर पूजा की थाली मे रखा और मन्त्र पढ़ते हुए अब्दुल जी के लंड को आरती दिखाने लगी…फिर फूलों की एक छोटी सी माला लेकर अब्दुल जी के लंड को पहना दी और खड़ी हो गई.अब्दुल जी ठगे से देखते रहे फिर बोले
अब्दुल-लेकिन सीता बेहन,मेरा प्रसाद कहाँ है
मैं(सीता)-अब्दुल भाईजान,आपने तो दिखा दिया कि आप मुस्लिम भाई अपनी हिंदू बहनो की रक्षा के लिए कैसे कैसे मिज़ाइल रखते हैं,अब मैं बताती हूँ कि हम हिंदू बहनें अपने मुस्लिम भाइयों के लिए कौन सा प्रसाद मक्खन मार के रखती हैं
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