RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--95
गतान्क से आगे......
"सब तुम्हारी ग़लती थी,दयाल.",रंभा की आँखे हैरत से फॅट गयी..दयाल!..उसकी मा की ज़िंदगी बेनूर करने वाला,देवेन को जैल भिजवाने वाला दयाल,"..तुमने मुझे भेजा था ना वो पता चेक करने के लिए.उस पते को चेक कर मैं किसी काम से ट्रस्ट फिल्म्स के दफ़्तर जा रही थी.वाहा के बेसमेंट मे मैने तुम्हारी कार देखी.पहले तो मैने सोचा कि तुम्हे रोकू पर फिर ना जाने क्यू सोचा कि देखु तुम यहा क्या कर रहे हो.उसके बाद तुम्हारा पीछा किया & उस दिन से पीछा ही कर रही हू." "..और ये सोच रहे हो ना कि मेरी कार तुम कैसे नही पहचान पाए तो मेरे धोखेबाज़ आशिक़ मेरी कार मे कुच्छ गड़बड़ थी और मैं अपनी बेटी की कार लेके आई थी.",रंभा टेप के पीछे से चिल्लाना चाह रही थी.उसकी आँखो मे आँसू छलक आए थे.वो इस वक़्त बहुत असहाय महसूस कर रही थी.इतने दिन वो अपने दुश्मन के साथ हमबिस्तर होती रही और उसका भरपूर मज़ा उठाती रही..उसे खुद से घिन हो गयी..क्यू है वो ऐसी?..अपने जिस्म की गुलाम! प्रणव शाह को झरने के किनारे तक ले गया था & धक्का देने ही वाला था की सारा इलाक़ा रोशनी से नहा गया और 1 कड़कदार आवाज़ गूँजी,"रुक जाओ!" रंभा,रीता,प्रणव & शिप्रा सभी उस आवाज़ के मालिक से अच्छी तरह वाकिफ़ थे.रंभा के कानो मे जैसे ही वो आवाज़ पड़ी उसका दिल खुशी से भर गया & राहत महसूस करते ही उसकी रुलाई छूट गयी.रीता & उसके बेटी-दामाद उस आवाज़ को सुन जहा के तहा जम गये थे.उन्हे यकीन नही हो रहा था.उन्होने देखा तो 4 पोर्टबल फ्लडलाइट्स की रोशनी से उनकी आँखे चुन्धिया गयी & रोशनी के पीछे से 1 लंबा-चौड़ा शख्स सामने आया जिसे देख हैरानी और ख़ौफ्फ ने उन्हे आ घेरा. "नही..!",रीता बस इतना ही बोल पाई कि उस शख्स के पीछे 1 और इंसान आ खड़ा हुआ..ऐसा नही हो सकता था..2 मरे इंसान ऐसे कैसे वापस आ सकते थे.विजयंत मेहरा अपने बेटे के साथ उनके सामने खड़ा था. किसी ने रीता के हाथ से पिस्टल ली तो उसने देखा 1 अंजान शख्स उसकी पिस्टल ले उसे 1 किनारे ले जा रहा था.अचानक वाहा बहुत सारे लोग आ गये थे और 1 बूढ़ा सा शख्स जिसके गाल पे निशान था शाह और प्रणव की ओर बढ़ रहा था.उस शख्स ने बॅरियर पार किया और उस घबराहट मे भी रीता ने देखा कि दयाल उसे देख बौखला गया था..दयाल..शातिर दयाल बौखला गया था! "आज मेरी तलाश ख़त्म हुई कमिने!",देवेन ने प्रणव को किनारे धकेला & शाह/दयाल का गिरेबान पकड़ लिया,"..बहुत चालाक है तू पर मेरे मामूली से जाल मे फँस गया.हैं!",देवेन मुस्कुरा रहा था.1 आदमी रंभा की हथकड़ी खोल रहा था & उसके मुँह से टेप हटा रहा था. "देवेन..",रंभा रोती हुई उसके करीब आई. "आओ,रंभा.यही है वो कमीना जिसने मेरी & सुमित्रा की ज़िंदगी उजाड़ दी थी." "देवेन,मैं इसके.." "कोई बात नही.उसका ज़िम्मेदार भी मैं ही हू.मुझे पता चल गया था कि ये कौन है फिर भी मैने तुम्हे नही बताया क्यूकी मुझे इसके बच निकलने का डर था.इसके लिए तुम मुझे जो भी सज़ा दोगि,मुझे मंज़ूर है.",रंभा बिलखती उसके सीने से लग गयी & उसके सीने पे मुक्के मारने लगी.1 आदमी दयाल को वाहा से ले जा रहा था तो देवेन ने उसे रोका,"..बस थोड़ी के लिए देर इसके हाथ खोल इसे मेरे हवाले कर दो.",उस आदमी ने दयाल की हथकड़ी खोल दी. देवेन ने दयाल का गिरेबान पकड़ा और उसे पीटने लगा.उस आदमी ने देवेन को रोकने की कोशिश की पर तभी दूर खड़े 1 शख्स ने अपना हाथ उठा उसे ऐसा करने से रोका.देवेन दयाल को बुरी तरह मार रहा था. "देवेन..इतनी नफ़रत है तो मुझे धकेल दे ना इस झरने मे.",दयाल मुस्कुराया तो देवेन ने उसके पेट मे 1 घूँसा जडा. "साले!तू खुद को बहुत शातिर समझता है ना!",उसने उसके जबड़े पे करारा वार किया,"..मैं तुझे यहा से धकेल दू ताकि तू फ़ौरन मर जाए.नही,दयाल..जैसे मैं जैल मे सड़ा हू वैसे तू भी उन सलाखो के पीछे सड़ेगा..हर वक़्त खुद को कॉसेगा & 1 रोज़ सलाखो से सर पीट-2 के अपनी जान दे देगा.",देवेन ने उसे पकड़ के उसी शख्स की ओर धकेल दिया जो उसे पकड़ने आया था.उसने दयाल को हथकड़ी बँधी और उसे ले गया. "हो गया भाई देवेन तुम्हारा.",अमोल बपत वाहा आया तो देवेन मुस्कुरा दिया. "इसे तो क़यामत तक पीटता रहू तो भी मेरा जी नही भरेगा,बपत साहब." "तो चलो यार,शर्मा साहब इंतेज़ार कर रहे हैं & फिर ज़रा मेहरा परिवार के लोगो के चेहरे तो देखो.सबको असल बात तो बताई जाए." "चलिए.",देवेन हंसा और रंभा के कंधे पे हाथ रख 1 कार की तरफ बढ़ गया. सवेरे के 3 बज रहे थे जब वो क्लेवर्त पोलीस के हेडक्वॉर्टर पहुँचे.रीता,प्रणव & शिप्रा अभी भी हैरत और शायद शॉक मे थे. "देवेन जी..",1 करीब 45 बरस के मून्छो वाले शख्स ने देवेन को इशारा किया,"..सारी बात बताने के लिए आपसे बेहतर कोई शख्स नही है.तो शुरू कीजिए.",सभी 1 कमरे मे बैठे थे. "थॅंक यू,शर्मा साहब,"..ये मिस्टर.एस.के.शर्मा हैं,क्बाइ के स्पेशल क्राइम्स डिविषन मे स्प हैं और ये हैं मिस्टर.अमोल बपत,गोआ के फॉरिनर्स रेजिस्ट्रेशन ऑफीस के हेड & झरने पे जो बाकी लोग थे,वो सभी CBई या लोकल पोलीस के आदमी हैं." "..मैने जब अख़बार मे इश्तेहार दिया तो दयाल ने किसी को उस पते को चेक करने के लिए भेजा तो मुझे विजयंत मेहरा की फ़िक्र हो गयी..अरे-2 मैने रीता जी को तो बताया ही नही कि उनके शौहर हमे कैसे मिले.",सभी हंस पड़े सिवाय रीता & उसके बच्चो के.देवेन ने विजयंत के मिलने का किस्सा बताया. "तो मैं यहा से हराड चला गया पर जाने से पहले मैने बपत साहब को सारी बात बताई.बपत साहब ने बहुत सोचने के बाद शर्मा साहब से कॉंटॅक्ट किया.आप दोनो की जितनी तारीफ की जाए कम है..",वो दोनो अफसरो से मुखातिब हुआ,"..कहा जाता है कि पोलीस हमेशा देर से पहुँचती है पर उस दिन आपकी वजह से पोलीस वक़्त से पहले पहुँची.." "..दयाल ने शाम को फिर किसी पैसे लेके काम करने वाले गुंडे को वाहा भेजा & वो पोलीस के हाथ लग गया.शर्मा साहब ने सूझ-बूझ दिखाते हुए उस गुंडे के ज़रिए महादेव शाह का पता लगा लिया & जब मुझे शाह की तस्वीर दिखाई गयी तो मैने अपने दुश्मन को फ़ौरन पहचान लिया.बपत साहब तो धोखा खा गये थे." "अरे यार!..बीसेसर गोबिंद का मेकप इतना ज़बरदस्त किया था इसने कि मुझे दोनो की शक्ल मे कोई समानता दिखी ही नही!",कमरे मे फिर हल्की हँसी गूँजी,"..वो तो हमने 1 फेस डिटेक्षन & आइडेंटिफिकेशन सॉफ़्टवर्रे के ज़रिए इस आदमी के नक़ली नामो वाले पासपोर्ट्स की फोटोस से शाह के फोटो मिलाए & फिर हमे इसी के दयाल होने का यकीन हो गया." "तो ये थी दयाल की कहानी.CBई ने इसकी निगरानी शुरू कर दी.ये चाहते तो पहले ही दिन दयाल को गिरफ्तार कर सकते थे पर मेरे कहने पे ना केवल इन्होने विजयंत की गुत्थी सुलझाने की गरज से इसे गिरफ्तार नही किया बल्कि उस काम मे भी हमारी मदद की." "..समीर का आक्सिडेंट हुआ पर उसे बस मामूली खरॉच आई थी.दयाल ने जिस ट्रक ड्राइवर को ये काम सौंपा था उसे हमने गिरफ्तार किया & फिर उसने हमारी देख-रेख मे आक्सिडेंट करने के बाद दयाल से वही बोला जो हमने उस से कहवाया.मॉर्चुवरी से 1 समीर के हुलिए से मिलती-जुलती लाश पहले ही तैय्यार थी.उसे समीर के कपड़े पहना के हमने कार मे डाला.चेहरा ज़ख़्मी था & किसी को शुबहा नही हुआ की लाश समीर की नही जबकि असली समीर सीबीआई के पास था.." "..समीर को हमने विजयंत के सामने किया & कमाल हो गया!" "हां..",विजयंत खड़ा हो गया,"..आगे की कहानी मैं सुनाता हू.शर्मा साहब ने 1 बहुत उम्दा डॉक्टर से मेरी जाँच करवाई थी & उसी के कहे मुताबिक समीर और मेरी मुलाकात कंधार पे करवाई गयी.उस वक़्त मैनेक्या महसूस किया ये मैं बयान नही कर सकता..लगा जैसे दिमाग़ मे 1 धमाका हुआ..अनगिनत तस्वीरे 1 साथ उभरने & गायब होने लगी & मेरा सरदर्द से फटने लगा & मैं बेहोश हो गया & जब होश आया तो मुझे सब याद आ गया था.." "..उस रात फोन आने के बाद मैं सोनिया के साथ कंधार पहुँचा.सोनिया को मैने ब्रिज कोठारी को जज़्बाती चोट पहुचाने की गरज से अपने इश्क़ के जाल मे फँसाया था.जब मैं वाहा पहुँचा तो मुझे समीर झरने के पास बँधा दिखा.मैं भागता उसके पास गया कि ब्रिज भी वाहा आ गया और मुझपे टूट पड़ा.हम गुत्थमगुत्था थे जब मैने देखा कि समीर अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ.उसके हाथ बँधे नही थे बस उसकी कलाईयो पे रस्सी लिपटी थी.मैने सोचा कि मेरा बेटा मुझे बचाएगा..",विजयंत समीर को घूर रहा था,".पर उसने मुझे ब्रिज सहित किनारे से धकेल दिया & मेरे पीछे-2 उस मासूम सोनिया को भी.",कमरे मे बिल्कुल खामोशी थी. "क्यू किया तुमने ऐसा समीर?",विजयंत ने बहुत हल्की आवाज़ मे पुछा. ""क्यूकी आपने कामया को अपनी हवस का शिकार बनाया था.",समीर की आंखो मे पानी था & साथ ही अँगारे भी. "शिप्रे ने मेरे गुजरात से लौटने पे जो पार्टी दी थी,उसमे मैने आप दोनो को कमरे से बाहर आते देख लिया था.कामया मेरा पहला प्यार थी & मैं गुस्से से बौखला उठा था.उसी ने मुझे बताया कि आप उसे बलcक्मैल करते हैं कि अगर वो आपके साथ नही सोई तो आप उसका करियर तबाह कर देंगे." "झूठ बक रही थी वो.अपनी मर्ज़ी से सोती थी वो मेरे साथ.मेरी बात पे यकीन नही होगा पर पोलीस की बात पे होगा ना!",विजयंत ने अभी तक समीर से उस से ये सारी बाते नही की थी.शर्मा के इशारे पे 1 इनस्पेक्टर कमरे से बाहर गया & जब लौटा तो कामया उसके साथ थी,"..अब बताओ आगे की कहानी." "हरपाल सिंग पैसो और कामया के जिस्म के लालच मे मेरे साथ मिल गया.उसका पार्टी मे नशे मे बकना,मेरे खिलाफ बात करना सब प्लान का हिस्सा था.रंभा से शादी और आपसे झगड़ा & फिर पंचमहल आना सब मैने सोच रखा था.मैं जानता था की गायब हुआ तो आप मेरी तलाश मे ज़रूर आएँगे." "पर मैं ही क्यू?",रंभा गुस्से मे थी. "क्यूकी तुम ही सामने थी और तुमसे इश्क़ का नाटक करना भी आसान था." "हरपाल का क्या हुआ?" "मुझे नही पता.वो पैसे लेके गायब हो गया." "अच्छा और कोई नही था तुम्हारे साथ?",विजयंत की मुस्कान मे गुस्से से भी ज़्यादा दर्द था. "मोम थी.ये बदला मैने मोम के लिए भी लिया था.आप बस अयस्शिया करते रहते & वो बेचारी अकेली बैठी रहती.मोम ने मेरा पूरा साथ दिया इस बात मे." ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------ क्रमशः
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