Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:54 PM,
#92
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--91

गतान्क से आगे......

होटेल वाय्लेट की 25वी मंज़िल के अपने बाप के सूयीट के बिस्तर पे समीर कामया को अपनी बाहो मे कसे लेटा चूम रहा था.कहने की ज़रूरत नही के दोनो नंगे थे & उनके हाथ 1 दूसरे के नाज़ुक अंगो से खिलवाड़ कर रहे थे.समीर दाए हाथ की उंगली से उसकी चूत कुरेदता हुआ उसके उपर झुका बाए से उसकी दाई चूची दबाता उसके चेहरे को चूम रहा था & दोनो जिस्मो के बीच अपना बाया हाथ घुसा कामया उसके लंड को हिला रही थी.

"समीर,रंभा तलाक़ देने मे कोई आना कानी तो नही करेगी ना?",समीर ने उसे अभी-2 मानपुर वाले टेंडर के 4 दिनो के बाद खुलने की बात बताई थी & साथ ही ये भी बाते था कि उसके बाद वो अपने वकील के ज़रिए रंभा को तलाक़ देने की करवाई शुरू करवा देगा.

"नही,कामया.",समीर ने अपना हाथ हटा के उसकी जगह अपना मुँह उसकी छाती से लगा दिया.

"उउम्म्म्म....तो फिर हमारे इंतेज़ार के दिन ख़त्म हुए?"

"हां,मेरी जान."

"ओह,समीर!",कामया ने हाथ उसके लंड से हटा उसे बाहो मे भरा & उसे पलट के उसके उपर आ गयी.उसका हाथ दोबारा दोनो जिस्मो के बीच गया & समीर के सख़्त लंड को पकड़ चूत के मुँह पे रखा,"..आख़िरकार हम 1 हो ही जाएँगे!..कितनी जद्ड़ोजेहाद की हमने इस सब के लिए!"

"हां,मेरी जान.अब तुम मेरी रानी बनोगी & हम दोनो मिलके इस सारी मिल्कियत पे राज करेंगे.",समीर ने उसकी कमर जाकड़ नीचे से अपनी कमर उचकाई & लंड उसकी चूत मे घुसा उसकी चुदाई शुरू कर दी.

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रंभा के लिए महादेव शाह और उसका रिश्ता बस जिस्मानी था.उसे उसके साथ सोने मे जो मज़ा आता था वो अनूठा था पर शाह उसके लिए शक़ के घेरे मे खड़ा वो शख्स था जोकि शायद उसके ससुर विजयंत मेहरा की मौजूदा हालत का ज़िम्मेदार था & अब उसके पति समीर की ज़िंदगी लेने की भी सोच रहा था.पर उसने महसूस किया था कि शाह के जज़्बात अब केवल जिस्मानी नही रह गये थे बल्कि उसके दिल मे भी रंभा के लिए जगह बन गयी थी.

रंभा ने सोच लिया था कि अब वो इस पहलू को मद्देनज़र रख के आगे की चाले चलेगी & इसी सोच को ध्यान मे रख वो देवेन से बात करने के बाद वो अंदर बंगल की रसोई मे आ गयी थी & अपने सोते हुए आशिक़ के लिए खाना बनाने मे लग गयी थी.खाना लगभग तैय्यार ही था जब उसका मोबाइल बजा.उसने देखा उसकी सहेली सोनम का फोन था.

"हाई!सोनम,बोल कैसी है?",रंभा ने मुस्कुराते हुए फोन कान से लगाया & दूसरे हाथ से खाने को प्लेट मे निकालने लगी.समीर अपनी माशुका से मिलने लंच के वक़्त गया था & ये खबर किसी तरह सोनम को पता चल गयी & उसने उसे ये बात फ़ौरन बताना ठीक समझा तो फोन कर दिया.रंभा को अभी अपने पति & उसकी प्रेमिका की रंगरलियो मे खलल डाला नही था तो उसके लिए ये खबर अभी किसी काम की नही थी पर तभी उसे 1 ख़याल आया.

"अच्छा सुन,छ्चोड़ उन दोनो को.आज शाम तो मिल रही है ना?",दोनो ने शाम मिलने की बात पहले ही तय की थी.सोनम ने हां बोला तो रंभा ने उस से समीर के अगले 10-15 दिनो की अपायंट्मेंट्स की कॉपी साथ लाने को कहा.वो उसके ब्लॅकबेरी से ये जानकारी निकाल चुकी थी मगर सोनम से दोबारा उसका शेड्यूल मंगवाने मे कोई हर्ज नही था.कुच्छ देर सहेली से बाते करने के बाद उसने फोन साइलेंट मोड पे किया & अपने बॅग मे डाला,फिर खाना ट्रे मे सज़ा अपने आशिक़ को जगाने चल दी.

टेंडर खुलने वाला था & मानपुर प्रॉजेक्ट मिलने की उमीद मे समीर ने कुच्छ प्रॉजेक्ट्स को जल्द से जल्द निपटाने की बात सोची थी.इसके चलते इधर काम बढ़ गया था & प्रणव भी बहुत मसरूफ़ हो गया था पर उस मसरूफ़ियत मे भी उसने अपने असली मक़सद & उसमे उसका साथ दे रहे महादेव शाह के बारे मे सोचना नही छ्चोड़ा था.

शाह उसे शुरू से ही थोड़ा अजीब इंसान लगा था.वो अपने घर से बहुत कम निकलता था & उसके यहा बहुत लोग आते-जाते भी नही थे पर समीर के लिए उसके घर के दरवाज़े हुमेशा खुले रहते थे.उसे शायद प्रणव पे पूरा भरोसा था पर प्रणव के उसके बारे मे ख़यालात ऐसे नही थे & इसीलिए उसने सोच रखा था कि समीर को शाह के ज़रिए रास्ते से हटवाने के बाद वो उसी बात का इस्तेमाल कर शाह को अपने रास्ते से हटा देगा.

पर इधर चंद दिनो से शाह उसे बदला-2 नज़र आ रहा था.1-2 बार उसने उस से मिलने का वक़्त बदल दिया था & जब मिला तो ना जाने किस जल्दी मे दिखा.जब उसने समीर को मारने के प्लान के बारे मे पुछा तो उसने बात टाल दी & कहा की वो फ़िक्र ना करे,काम हो जाएगा.प्रणव को उसका रुख़ कुच्छ ठीक नही लगा पर अब वो क्या कर सकता था!वो बहुत आगे आ चुका था & अब मुड़ना नामुमकिन था.उसने तय किया की चाहे जो भी हो वो अगली मुलाकात मे शाह से इस बारे पे ज़रूर बात करेगा.

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शाह इस वक़्त अपने बिस्तर मे बैठा खुद को दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान समझ रहा था.कुच्छ ही देर पहले उसकी महबूबा ने उसे जगाके अपने हाथो से लज़ीज़ खाना खिलाया था & उसके बाद शाह ने उसे बाहो मे भर उसके जिस्म पे लिपटे अपने ड्रेसिंग गाउन की बेल्ट खोल दी थी.दोनो पलंग के हेडबोर्ड से टेक लगा के बैठे थे & शाह ने अपनी माशुका को बाई बाँह मे घेरा हुआ था.रंभा उसकी ओर चेहरा किए घूम के बैठी थी & अपनी चूचियो पे घूमते उसके दाए हाथ से मस्त हो रही थी.

"तुमने इतनी तकलीफ़ क्यू उठाई?बस इस इंटरकम से फोन करना था & कोई नौकर आ जाता..",शाह ने साइड-टेबल पे रखे फोन की ओर इशारा किया,"..और खाना बना देता.",शाह ने उसकी चूचियाँ मसली तो रंभा ने गाउन से बाई टांग निकालते हुए शाह की टाँगो पे चढ़ा दी.

"उउंम्म....",उसने अपना बाया हाथ शाह की छाती दबाते हाथ के उपर रख दिया & उसे दबाने लगी,"..लगता है आपको मेरा बनाया खाना पसंद नही आया?"

"नही,मेरी जान.तुम तो मुझे ग़लत समझ गयी.",शाह उसके गालो को चूमने लगा,"..इतना लज़ीज़ खाना तो मैने ज़िंदगी मे पहले कभी खाया ही नही!मैं तो बस ये कह रहा था कि मुझे तुम्हे तकलीफ़ उठाते देख अच्छा नही लगता.",शाह नंगा था & उसने रंभा के सीने से हाथ हटा उसकी जाँघ को पकड़ जब अपनी टांग पे और चढ़ाया तो उसका लंड रंभा की चूत से जा लगा.

"आपके लिए खाना बनाने मे तकलीफ़ कैसी!",रंभा थोड़ा आगे हुई & खुले गाउन से झँकति अपनी चूचियो शाह के बालो भरे सीने से सटा दी & उसके कंधो पे अपने हाथ रख दिए,"..1 बात कान खोल के सुन लीजिए..",उसने उसके बाए गाल पे जीभ की नोक फिराते हुए उसे बाए कान मे उतरा & फिर उसे छेड़ने के बाद दन्तो से कान को काटा,"..शादी के बाद हर रोज़ कम से कम 1 बार आपको मेरे हाथ का खाना खाना ही पड़ेगा."

"ठीक है.",शाह का हाथ गाउन मे घुस उसकी गंद को सहला रहा था,"..अब तो हम आपके गुलाम हैं & आप हमारी मल्लिका!",शाह की बात रंभा हंस दी.शाह ने उसकी गंद सहलाते हुए उसपे चिकोटी काट ली.

"आउच!",रंभा ने बाए हाथ से उसका दाया हाथ पकड़ लिया,"..ऐसे पेश आते हैं अपनी मल्लिका से?",उसने बनावटी गुस्सा दिखाया.

"ये तो प्यार है जानेमन.",शाह ने मुस्कुराते हुए उसकी गंद मे 1 उंगली घुसा दी तो रंभा चिहुनक के उस से & सात गयी.शाह उसके गले को चूमते हुए उंगली से उसकी गंद मारने लगा.रंभा उसकी टाँगो पे टांग चढ़ाए उसके लंड पे चूत को दबाने लगी.

"ओह..महादेव....डार्लिंग..अब जल्दी से मुझे अपनी दुल्हन बनाइए!",रंभा की मस्ती बिल्कुल सच्ची थी पर उसके मुँह से निकलते बोल बिल्कुल झूठे.कमरे मे लगे शीशे मे वो खुद को शाह की बाहो मे देखा & जोश मे आ गयी थी & यही हाल शाह का भी था,"..अब मुझसे & इंतेज़ार नही होता.बताइए ना..हाईईईईईईईईईई..",उंगली गंद मे कुच्छ ज़्यादा अंदर घुस गयी & उसी वक़्त उसका बाया निपल शाह के दन्तो के बीच आ गया,"..कब उस गलिज़ इंसान को मेरी ज़िंदगी से निकालेंगे ताकि मैं हर पल आपकी बाहो मेसुकून से गुज़ार साकु..?..आननह..!",चूत पे दब्ता लंड & गंद मे चलती उंगली ने रंभा को फ़ौरन झाड़वा दिया.

"ये तो तुम्हारे उपर है,जानेमन.तुम समीर की अपायंट्मेंट्स के बारे मे बताओ तभी तो मैं उसकी मौत का वक़्त मुक़र्रर करू.",शाह ने उंगली गंद से बाहर खींची तो मस्ती मे डूबी रंभा खुद ही उसकी गोद मे बैठ गयी.दोनो घुटने शाह के दोनो ओर बिस्तर पे जमा के उसने खुद को शीशे मे देखा तो शाह ने उसके कंधो से गाउन नीचे सरका उसे नंगी कर दिया.वो आगे झुका & उसकी चूचियो को हाथो मे भर खींचते हुए उन्हे चूसने लगा.

"उउन्न्ञणन्..वो तो बता दूँगी पर 1 बात बताइए उसे मारेंगे कैसे & फिर क्या हम फँसेगे नही उसके क़त्ल के जुर्म मे?",शाह ने उसकी चूचिया छ्चोड़ी & अपने लंड को उसकी चूत पे टीका के उसे नीचे बिठाया.रंभा आँखे बंद कर उसके लंड को अंदर लेने लगी.

"उसका क़त्ल नही होगा,1 हादसा होगा & हादसे के ज़िम्मेदार हम नही होंगे.",शाह की आवाज़ मे खून जमाने वाला ठण्दपन था.रंभा बेइंतहा मस्ती मे डूबी थी पर उस वक़्त शाह की आवाज़ की ठंडक से डर उसकी आँखे खुल गयी,"..सड़क पे 1 ट्रक उसकी कार से टकराएगा जिसमे उसकी मौत होगी.उसके बाद ट्रक ड्राइवर गिरफ्तार होगा.पता चलेगा कि वो नशे मे धुत था और उसे सज़ा होगी."

"पर कोई हमारे लिए क्यू फाँसी चढ़ेगा?",दोनो 1 दूसरे से जुड़े बैठे थे.चुदाई अभी शुरू नही हुई थी.

"फाँसी नही जैल होगी उसे.उसने जान बुझ के धक्का नही मारा था & मेरी जान,इस काम के लिए उसके परिवार को वो दौलत मिलेगी जो उसने सपने मे भी नही सोची होगी & फिर भी अगर किसी को इसके बारे मे पता चलेगा तो भी वो उस ड्राइवर से हमारे तक के सिरे को ढूंड नही पाएगा,ये मेरी गॅरेंटी है."

"& अगर समीर आक्सिडेंट मे बच गया तो?"

"ऐसा नही होगा.",शाह कुटिलता से मुस्कुराया,"..वो ड्राइवर ये पक्का करेगा कि पोलीस को समीर की बेजान लाश मिले.अगर समीर ट्रक के धक्के से नही मारा तो फिर ड्राइवर अपने हाथो से उसे मारेगा.",रंभा कुच्छ पल उसे देखती रही.उसे शाह से डर लगने लगा था पर इस वक़्त वो अपने दिल के जज़्बातो को ज़ाहिर करने की ग़लती नही कर सकती थी.वो भी शाह की तरह ही उसकी आँखो मे झँकते हुए मुस्कुराने लगी.

"आइ लव यू,महादेव!",वो आगे झुकी & शाह को इस शिद्दत से चूमा की वो सिहर उठा.रंभा ने काफ़ी देर बाद अपने लब उसके लाबो से जुदा किए & उसके चेहरे को हाथो मे भर उसकी आँखो से अपनी आँखे मिला दी.उसका चेहरा तमतमाया हुआ था,शाह को चूमते वक़्त उसका डर बहुत कम हो गया था & 1 विश्वास उसके अंदर आ गया था कि वो इस इंसान को अपनी उंगलियो पे जैसे मर्ज़ी नचा सकती है.इस ख़याल से उसे बहुत रोमांच हुआ जोकि उसके चेहरे पे सॉफ दिख रहा था.

"महादेव,1 बात का वादा कीजिए.",रंभा वैसे ही उसकी आँखो मे देख रही थी.

"किया मेरी जान."

"उस कामीने को मारने मे आप मुझे अपने साथ रखेंगे."

"क्या?!..तुम ये तकलीफ़ क्यू उठाओगी,मेरी रानी.तुम बेफ़िक्र रहो,मैं हू ना तुम्हारे साथ."

"बात वो नही है.आप जब भी अपने प्लान पे अमल करें तो मुझे अपने साथ रखें.मेरी दिली तमन्ना थी की अपने बेवफा पति को अपने हाथो से मारू.वो करना तो बेवकूफी होगी तो उसे मारने के प्लान को अंजाम देने मे मैं आपके साथ रह अपनी ये हसरत इस तरह पूरी करना चाहती हू.",शाह उसे गौर से देख रहा था..इतनी मोहब्बत थी इसे समीर से तभी तो इतनी नफ़रत भी है!..ये शिद्दत..ये जुनून उसकी मोहब्बत मे भी दिखता था & इसी ने उसके हुस्न के साथ मिलके उसपे जादू कर दिया था!..अब ये हुसनपरी मेरी है..सिर्फ़ मेरी..इसकी हर ख्वाहिश पूरी करूँगा मैं..चाहे कुच्छ भी हो जाए!

"ठीक है,रंभा.मैं तुम्हारी ख्वाहिश ज़रूर पूरी करूँगा.",रंभा आगे झुकी & अपने आशिक़ को चूमने लगी.शाह ने उसे बाहो मे भरा & उसकी किस का जवाब देते हुए कमर उचकते हुए चुदाई शुरू कर दी.

देवेन 1 झटके से उठ बैठा.वो दोपहर का खाना खा के सोने चला गया था.कुच्छ देर पहले हुई बातो को सोचते हुए वो बस सोने ही वाला था कि 1 ख़याल उसके दिमाग़ मे बिजली की तरह कौंधा..दयाल जितना शातिर था उतना ही ख़तरनाक भी..ड्रग्स के धंधे के आकाओं को भी झांसा दिया था उसने & इंटररपोल जैसी एजेन्सी को भी..वो काली कार कही बस इलाक़े का मुआयना करने तो नही आई थी..हमले के पहले का मुआयना!

देवेन बिस्तर से उतरा & फटाफट समान पॅक करने लगा.अपना समान बाँधने के बाद उसने विजयंत मेहरा को जगाया & उसे सारी बात बताई,"पर अब हम जाएँगे कहा?",विजयंत जल्दी-2 अपना समान अपने बॅग मे डाल रहा था.

"पता नही.पर इस शहर से बाहर जाना पड़ेगा.",देवेन रंभा का फोन लगा रहा था पर वो फिर से फोन नही उठा रही थी.उसने कुच्छ सोच के इस बार अमोल बपत को फोन लगाया.

"क्या यार!तू तो गायब ही हो गया."

"बात ही कुच्छ ऐसी थी,बपत साहब."

"अच्छा & यार..तुम भी कमाल हो.",बपत हँसने लगा,"..अख़बार मे इशतहार देने से वो साला आ जाएगा क्या?!",बपत ने इशतहार देख लिया था.

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क्रमशः.......
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