RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--88
गतान्क से आगे......
रंभा ने अपनी बाहे पीछे ले जा शाह के गले मे डाली & उसके बाए कंधे पे अदाते हुए उसे चूमने लगी.उसकी ज़ुबान का अपने मुँह मे इस्तेक्बाल करते हुए शाह ने उसकी चूचियो को पकड़ के बहुत ज़ोर से खींचा.
“आन्न्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..ज़ालिम!”,रंभा ने उसके कान को काट लिया,”..इन्हे उखाड़ना चाहते हैं क्या?!”,शाह उसकी बात सुन हंस दिया & उसकी दाई बाँह को अपनी गर्दन मे डाल झुका & उसकी दाई छाती को मुँह मे भर चूसने लगा.बाथरूम मे रंभा की मस्तानी आहो का शोर भर गया.वो कमर हिलाए जा रही थी & उसके उपरी जिस्म मे कंपकंपी हो रही थी.उसका सीना खुद बा खुद शाह के मुँह की ओर उठ रहा था.रंभा की चूत की कशमकश अब अपने चरम पे पहुँच रही थी.उसकी पलकें नशे से बोझल हो गयी थी.वो बहुत तेज़ी से कमर हिलाए जा रही थी.वो मंज़िल के बहुत करीब थी & जल्द से जल्द वाहा पहुचना चाहती थी.
“ऊऊऊ..आहह....!”,उसने अपना जिस्म कमान की तरह मोड़ दिया & च्चटपटाने लगी.उसकी बंद पलके & चेहरा देख लगता था जैसे वो बेहोश होने वाली है.बेहोश नही पर बेख़बर तो वो थी हर बात से,यहा तक की अपने आशिक़ से भी.उसे बस अपने जिस्म मे फुट रहे मज़े का होश था.वो हवा मे उड़ रही थी & बहुत खुश थी.उसे क्या खबर थी की किस तरह उसकी चूत की शिद्दती कसावट से बहाल होने के बावजूद शाह ने खुद को झड़ने से रोका हुआ था.शाह के आंडो मे मीठा दर्द हो रहा था & वो भी बस झड़ना चाहता था लेकिन उसका दिल उसे रोक रहा था..बस थोड़ी देर &..उसके बाद ये मज़ा भी दोगुना हो जाएगा!
जब रंभा ने आँखे खोली तो पाया शाह उसके जिस्म को प्यार से सहलाते हुए उसकी ज़ूलफे चूम रहा था.उसका लंड वो अभी भी चूत मे महसूस कर रही थी पर वो कोई हरकत नही कर रहा था.रंभा के दिल मे शाह को शुक्रिया कहना चाहता था & उसने अपने सुर्ख लबो को उसके लबो से सटा के ये काम किया.शाह ने उसके होंठो को चूमते हुए उसकी जंघे पकड़ के उसे उपर उठाते हुए उसके लंड को उसकी चूत से निकाल लिया.रंभा को उसकी इस हरकत से हैरानी हुई..वो तो अभी झाड़ा भी नही था.
शाह टब से निकला & रंभा की बाँह थाम उसे भी निकाला & शवर के नीचे ले आया.बहते पानी के नीचे अपनी महबूबा के जिस्म से वो साबुन के झाग को साफ करने लगा तो उसने भी उसके साथ वही हरकत की.दोनो 1 दूसरे को चूमते हुए नहला रहे थे.शाह ने रंभा के जिस्म को साफ करने के बाद उसे अपने आगोश मे भर लिया.दोनो अपने-2 हसरत भरे हाथ 1 दूसरे की पीठ से लेके गंद तक चलाने लगे.रंभा के मुलायम पेट से सटा शाह का सख़्त लंड उसके जिस्म को मस्ती को कम नही होने दे रहा था.रंभा की चूत शाह के लंड के लिए फिर से कुलबुलाने लगी थी.रंभा भी उसके विर्य के गीलेपान को अपनी चूत मे महसूस करना चाहती थी.
और शाह ने जैसे उसके दिल की आवाज़ सुन ली.उसके चेहरे को हाथो मे थाम चूमते हुए उसने उसे शवर के नीचे से घूमते हुए दूसरी तरफ किया तो रंभा की गंद वॉशबेसिन से आ लगी.शाह ने किस तोड़ी & उसकी कमर थाम उसे बेसिन के बगल मे काउंटर पे बिठा दिया.रंभा ने उसका इरादा समझते हुए अपने पाई उपर काउंटर पे चढ़ा अपनी टाँगे खोल अपनी गुलाबी,गीली चूत उसके लंड के लिए पेश कर दी.शाह आगे बढ़ा & अगले ही पल उसका लंड रंभा की चूत मे था.दोनो 1 दूसरे से चिपत गये,उनकी ज़ुबाने आपस मे गुत्थमगुत्था हो गयी & 1 बार फिर उनकी चुदाई शुरू हो गयी.
शाह रंभा की भारी-भरकम जाँघो पे हाथ फिरते हुए धक्के लगा रहा था & उसके होंठ अभी भी रंभा के होंठो से सटे थे.रंभा भी उसकी पीठ से लेके गंद तक अपने हाथ चला रही थी.वो उसकी गंद पकड़ ऐसे दबाती मानो लंड को & भी अंदर जाने को कह रही हो.
शाह ने अपने बाई तरफ लगे बेसिन के शीशे मे खुद को देखा ,रंभा का अक्स उसमे ठीक से नज़र आ नही रहा था,मगर इतना दिख रहा था की शाह उसे चोद रहा है.शाह हमेशा की ही तरह खुद को 1 हसीन लड़की के जिस्म से खेलते देख & जोश से भर गया.उसके धक्के & तेज़ & गहरे हो गये.रंभा ने बाई बाँह उसकी गर्देन मे डाल उसे गले से लगा लिया & आहे भरती हुई दाई से उसकी पीठ & गंद खरोंछने लगी.शाह ने उसे चूमते हुए उसकी चूचिया मसली & फिर उसकी दाई टांग उठा अपने बाए कंधे पे रख उसकी चूत को थोडा और खोल दिया.
“ओह..आन्न्न्णनह........औउउउउउउईईईईईईईईईईईइ........हाआआऐययईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई.....!”,बाथरूम मे रंभा की आहें,जिस्मो की टकराने की आवाज़ & शाह की जद्दोजहद भरी आवाज़ें गूंजने लगी.दोनो प्रेमी 1 बार फिर अपने पसंदीदा खेल के अंजाम तक पहुँच रहे थे.शाह रंभा की जाँघ थामे उसके चेहरे को चूमते हुए अब दीवानो की तरह धक्के लगा रहा था.रंभा बैठी उसके धक्को से मस्त हुए जा रही थी..बस कुच्छ ही पल & फिर वही शिद्दती खुशनुमा एहसास..वो अनूठा एहसास जिसके जैसा & कोई एहसास नही!..दोनो ने 1 साथ लंबी आह भरी..रंभा की हसरत पूरी हो गयी थी..अपनी चूत मे वो शाह के वीर्य की गर्माहट महसूस कर झाड़ रही थी & शाह..शाह खुद को आईने मे देख रहा था..क्या नशा था इस लड़की के जिस्म मे?..वो दीवाना हो गया था इसका..ऐसा मज़ा..ये खुशी..उसने कभी किसी के साथ महसूस नही थी ही.पिच्छली रात से लेके अब तक वो इसके जिस्म को जम के भोग चुका था,2 बार इसकी गंद मार चुक्का था पर फिर भी उसका दिल नही भरा था..,”ओह..रंभा!जादू कर दिया है तुमने मुझपे!”,उसके होंठो पे दिल की बात आ ही गयी.रंभा ने उसे बाहो मे भरा & उसके माथे को चूम मन ही मन मुस्कुराने लगी..अब उसे पक्का यकीन था कि महादेव शाह उसके जाल मे पूरा फँस चुका है.
अगली सुबह रंभा ने नाश्ते की मेज़ पे पड़ा अख़बार देखा तो उसे पिच्छले दिन की देवेन की कही बात याद आ गयी.उसने जल्दी से अख़बार उठाया & उसके पन्ने पलटने लगी.आख़िरी पन्ने पे 1 इशतहार पे उसकी नज़र पड़ी & उसके होंठो पे मुस्कान फैल गयी.
मेरे अज़ीज़ दोस्तो-रोशन पेरषद,दानिश सुलेमान,बीसेसर गोबिंद & दयाल.मैं मुल्क वापस आ गया हू पर तुम लोगो का कोई पता नही चल रहा.मुझसे जल्दी मिलो-देवेन.
नीचे डेवाले के जिस पते पे मिलने का वक़्त & तारीख लिखी थी उस पते को पढ़ रंभा को हँसी आ गयी.उसने जिस इलाक़े मे देवेन को घर दिलवाया था वो था तो शहर के बीच पर कुच्छ दिन पहले वाहा पानी की काफ़ी किल्लत थी & उस वजह से वाहा कोई रहने को तैय्यार नही था.पर ऐसी जगह देवेन & विजयंत के लिए बिल्कुल सही थी.पानी की कमी से दोनो को शुरू मे थोड़ी तकलीफ़ तो हुई पर फिर वो इसके आदि हो गये.जिस घर का पता देवेन ने लिखा था वो उसके किराए के मकान के ठीक सामने का मकान था जो खाली पड़ा था.
गोआ की ही तरह अब देवेन विजयंत के साथ अपने घर से ही उस घर पे नज़र रखेगा & अगर दयाल वाहा आया तो फिर....रंभा को अपनी मा की याद आई & वो संजीदा हो गयी..कितना कम जानती थी वो मा को..इतनी अहम बात उसने पूरी ज़िंदगी अपने सीने मे दबाए रखी..सिर्फ़ इसीलिए की वो मुझे हर परेशानी से दूर रखना चाहती थी..रंभा का दिल भर आया.आज अगर उसे किसी की कमी खलती थी तो वो सिर्फ़ अपनी मा की.आज उसके पास सारा ऐशो-आराम था पर उसकी मा नही थी.रंभा ने अख़बार मोड़ के रखा & आँखो की नमी पोंचछति अपने कमरे मे चली गयी.
देवेन ने मुल्क के 8 अख़बारो के हर बड़े शहर के एडिशन्स मे ये इश्तेहार डलवाया था.उसे उमीद थी कि दयाल अपने सभी फ़र्ज़ी नामो & देवेन का नाम पढ़ 1 बार तो उस पते पे ज़रूर आएगा.पर इस बीच उसे महादेव शाह को भी देखना था & उसपे नज़र रखने की भी कोई तरकीब सोचनी थी.उसका मोबाइल बजा तो उसने उसे उठाया & नंबर देख के मुस्कुरा दिया,”अख़बार पढ़ लिया तुमने?”
“हां.”,रंभा हंस दी,”क्या लगता है आपको?आएगा वो?”
“देखो,हम तो बस उमीद कर सकते हैं.वैसे भी उमीद पे दुनिया कायम है!”
“हूँ..अच्छा,सुनिए.शाह समीर को किसी सड़क हादसे मे ख़त्म करना चाहता है.”
“अच्छा.कोई बात नही,ये सड़क हादसा हम करवा देंगे.”
“हां,पर..”
“पर क्या?’
“मुझे थोड़ी घबराहट हो रही है.”
“जोकि लाज़मी है.रंभा,घबराहट मुझे भी होती है.हम काम ही ऐसे करने जा रहे हैं.पर तुम 1 हिम्मती लड़की हो.इस वक़्त अपना हौसला मज़बूत रखो.जिस तरह से 2 दिन की मुलाकात मे ही शाह तुमसे मिलके तुम्हारे पति की मौत प्लान कर रहा है,उस से तो यही लगता है कि यही वो शख्स है जिसके लालच & बदनीयती ने विजयंत का ये हाल किया है.”,रंभा खामोश रही.शाह इस कहानी का खलनायक सही पर उन दोनो के जिस्मो के बीच 1 ऐसा नाता जुड़ गया था जिसकी कशिश का ख़याल आते ही वो मदहोश होने लगती थी,”..तुम बस अगली मुलाकात के वक़्त मुझे उसकी शक्ल दिखा दो.”
“ठीक है,देवेन.”,उसने कुच्छ देर देवेन से उसके बारे मे बात की & फिर विजयंत को फोन पे बुला उसकी खैर भी पुछि.उसके बाद फोन रख वो गुसलखाने मे चली गयी.अब उसे तैय्यार होना था.उसे पता था कि शाह आज उसे फिर कही बुलाएगा.उसका दिल आज की मुलाकात के बारे मे सोच रोमांच से भर उठा.अपने दुश्मन के लिए ऐसे जज़्बात!..रंभा को फिर खुद पे हैरत हुई..पर जब तक शाह का असली चेहरा सामने नही आता,तब तक तो वो उसके साथ जम के लुत्फ़ उठा सकती थी.उसने कपड़े उतारे & झाग भरे बात्ट्च्ब मे बैठ गयी & पिच्छली दोपहर की रंगीन यादो मे खो गयी.
दयाल ने भी अख़बार पढ़ा और गुस्से & तनाव से बौखला उठा..इतने बरसो बाद ये देवेन कहा से आ खड़ा हुआ & उसे उसके बारे मे इतना सब कुच्छ कैसे पता चला?..उसने डेवाले के पते को पढ़ा जिसपे 15 दिन बाद मिलने की तारीख लिखी थी.वो सोच मे पड़ गया की आख़िर उस रोज़ वाहा जाए या नही?..जाना तो उसे होगा ही..पता नही देवेन क्या और कितना जानता था उसके बारे मे?..दयाल ने अख़बार किनारे रखा & देवेन से मुलाकात के पहले उस जगह को 1 बार देखने का फ़ैसला किया.
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"अब तो रंभा वापस आ गयी है..",प्रणव ने जूस ख़त्म कर ग्लास मेज़ पे रखा,"..अब समीर का काम पूरा करने मे आप झिझक क्यू रहे हैं?"
"झिझक नही रहा बल्कि इंतेज़ार कर रहा हू.",महादेव शाह मुस्कुराया.
"इंतेज़ार!",प्रणव झल्ला उठा,"..अब किस बात का इंतेज़ार?!"
"मानपुर वाले टेंडर के खुलने का.",प्रणव ने सवालिया निगाहो से देखा तो शाह ने उसे वही समझाया जो रंभा ने उसे समझाया था.
"ओह..मान गये आपके दिमाग़ को मिस्टर.शाह!"
"ठीक है.टेंडर खुलने के बाद ही हम समीर को रास्ते से हटाएँगे."
"1 बात और."
"कहिए."
"उसकी मौत के बाद रंभा को ही कंपनी की मालकिन बने रहने दो.",ओरिजिनल प्लान के मुताबिक कुच्छ दिनो बाद प्रणव को रंभा को फुसला के उस से कंपनी की बागडोर ले लेनी थी & उसे किनारे कर देना था.प्रणव ने सोचा था कि रंभा को वो अपनी रखैल बनके रखेगा.उस बेचारे को क्या पता था कि शाह & रंभा मिल चुके हैं & अब हालात मे बहुत बदलाव आया है.
"पर क्यू?"
"देखो,प्रणव.पहले विजयंत मेहरा गायब हो जाता है.उसके कुच्छ महीनो बाद उसका बेटा सड़क हादसे मे मारा जाता है.लोगो को इसमे से साज़िश की बू सूंघने मे ज़्यादा वक़्त नही लगेगा तो इसीलिए रंभा को मालकिन बने रहने दो.वैसे भी वो तो सिर्फ़ चेहरा होगी कंपनी कि असल लगाम तो तुम्हारे हाथो मे ही होगी."
"हूँ."
"देखो,जब समीर लापता हुआ & मिला & विजयंत मेहरा झरने से गिरा तब ना समीर कंपनी का हिस्सा था ना ही रंभा.पर तुम थे.अब जब समीर मरेगा तो रंभा पे शक़ तो कोई नही करेगा पर उसकी मौत से तुम्हे ही सबसे बड़ा फ़ायदा होगा.अब ऐसे मे अगर कुच्छ गड़बड़ हुई & तुम कंपनी के मालिक बन गये तो फँसेगा कौन?..तुम."
"आपकी बात थी लगती है.",प्रणव सोच मे पड़ गया था.शाह की बात उसे ठीक लग रही थी..रंभा तो 1 रब्बर स्टंप होगी,कंपनी चलाएगा तो वो ही!,"ठीक है.जैसा आप कहें.",वो शाह से हाथ मिला के वाहा से चला आया.
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क्रमशः.......
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