Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:51 PM,
#85
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--84

गतान्क से आगे......

“आ..आहह..!”,महादेव शाह की आँखे खुद बा खुद बंद हो गयी & वो सर पीछे कर आहे भरने लगा.रंभा उसके लंड को हाथो मे पकड़ हिला रही थी & उसके सूपदे को चाट रही थी.सूपड़ा दोनो के मिले-जुले रस से गीला था & रंभा को उसका स्वाद मस्त कर रहा था.रंभा ने अपनी ज़ुबान लंड की लंबाई पे फिराई,वो दाए हाथ की मुट्ठी बना लंड को उसमे जाकड़ रही थी मगर उसके अंगूठे & उंगलियो के बीच थोड़ा सा फासला रह रहा था जोकि शाह के लंड की मोटाई का सबूत था.रंभा का दिल 1 बार फिर शाह के मर्दाने अंग को अपनी चूत मे महसूस करने के लिए तड़प उठा.उसी वक़्त उसे देवेन की याद आई & उसे थोड़ी ग्लानि महसूस हुई.देवेन से मिलने के बाद,उसकी माशुका बनने के बाद उसे लगा था कि उसकी तलाश ख़त्म हो गयी थी और ऐसा था भी.वो अब और किसी के साथ ज़िंदगी बिताने की सोच भी नही सकती थी..लेकिन फिर शाह के साथ उसे इतना मज़ा क्यू आ रहा था..क्या आगे भी वो किसी और मर्द के साथ इसी गर्मजोशी से हुमबईस्तर होगी?..लेकिन क्यू?..वो तो देवेन को दिलोजान से चाहती है..फिर और मर्दो की उसे क्या ज़रूरत?..पर फिर शाह के लंड को वो इतनी खुशी से क्यू चूस रही है?..रंभा को उस वक़्त खुद के बारे मे 1 सच्चाई का एहसास हुआ..मैं देवेन को चाहती हू..दुनिया मे किसी भी इंसान से ज़्यादा पर मेरे जिस्म की खुशी भी उतनी ही ज़रूरी है & मैं उसके साथ कोई समझौता नही कर सकती..ये 1 मसला था जिस पर उसे देवेन के साथ बात करनी होगी..पर अभी नही..अभी तो उसके सामने इस शातिर इंसान का ये बहुत ही मस्ताना लंड था..रंभा ने उसे मुँह मे भर इतनी ज़ोर से चूसा की शाह आह भरता उठ बैठा.

उसने रंभा को उठाके अपनी गोद मे बिठाया तो रंभा ने भी अपने दोनो घुटने उसके जिस्म के दोनो ओर जमा दिए & उसके सर को थम लिया.शाह उसकी कमर को कसते हुए खुद से चिपका चूमने लगा.दोनो के हाथ 1 दूसरे के जिस्मो पे बेचैनी से फिसल रहे थे,उनके सिले होंठो के पीछे उनकी ज़ुबाने आपस मे गुत्तगुत्था थी & उनके नाज़ुक अंग आपस मे सटे मिलने की कसक से भरे हुए थे.शाह रंभा के रेशमी जिस्म को बाहो मे भर उसके नशे मे मदहोश हो रहा था & उसकी हर्कतो से उसकी बेचैनी,उसका जोश साफ झलक रहे थे.रंभा उसके जोशीले प्यार से मस्त हो गयी थी.उसका बदन मज़े की आस मे मचल रहा था.शाह के लिए रंभा का जवान जिस्म किस्मत से मिला वो तोहफा था जिसके साथ अब वो जी भर के खेलना चाहता था.

उसके हाथ रंभा की चूचियो से आ लगे & उन्हे दबाते हुए वो उन्हे चूसने लगा.ऐसा नही था की उसने कभी ऐसी बड़ी छातियो से नही खेला था मगर रंभा की चूचियो जैसी बड़ी मगर कसी & गोरी,रसीली चूचियो उसके लिए बिल्कुल ही नया तजुर्बा थी.वो उन मुलायम उभारो को गर्मजोशी से दबाता हुआ चूम & चूस रहा था & रंभा बस उसके सर को पकड़े मस्ती मे च्चटपटती आहें भर रही थी.शाह ने अपनी ज़ुबान से उसके दोनो निपल्स & अरेवला को छेड़ा तो वो सिहर उठी.उसकी चूत की कसक 1 बार फिर उसके सर चढ़ के बोल रही थी.अब तो बस उसे शाह का लंड चाहिए था अपनी चूत के अंदर.शाह ने उसकी चूचियो का जम के लुत्फ़ उठाने के बाद उसकी कमर को पकड़ उसके पेट को चूमा & फिर उसकी कमर पे अपना चेहरा रगड़ने लगा.

उसकी कमर को जाकड़ उसके बाई तरफ चूमते हुए शाह की निगाह उसकी गंद पे पड़ी तो उसने उसकी कमर के किनारे अपना चेहरा टीकाया & अपने हाथो मे उसकी मस्तानी गंद की कसी फांको को दबाने लगा.उसकी कमर चूमते हुए उसने उसकी गंद थपथपाई तो रंभा की आहो मे और इज़ाफ़ा हो गया.रंभा के शानदार जिस्म के इस क़ातिल अंग पे उसके हाथो की ताप से पैदा हुई दिलकश थरथराहट देख शाह के दिल मे उसके इस अंग का भरपूर लुत्फ़ उठाने की ख्वाहिश पैदा हो गयी.उसने सर रंभा के जिस्म के पीछे ले जाते हुए उसकी गंद की बाई फाँक को चूमना शुरू कर दिया तो रंभा आगे झुक गयी & सहारे के लिए शाह के पीछे पलंग के हेडबोर्ड को थाम लिया.वो भी शाह की नियत समझ गयी थी & उसकी धड़कने भी आने वाले गर्मागर्म पॅलो की मस्ती को सोच और तेज़ हो गयी थी.

शाह ने रंभा को बिस्तर पे उल्टा लिटा दिया & उसकी गंद को दीवानो की तरह प्यार करने लगा.उसकी गुदाज़ फांको को कभी वो आपस मे मिलके दबाता तो कभी बिल्कुल फैला देता & उनकी दरार मे अपनी नाक घुसा के रगड़ देता.रंभा उसकी हर्कतो को अपनी बाई तरफ शीशे मे देख रही थी & उसके जिस्म की गर्मी पल-2 बढ़ रही थी.आज मर्द और औरत के जिस्मानी रिश्तो के 1 नये पहलू से वो रूबरू हुई थी-वो ये की अपने आशिक़ के साथ खेलते हुए दोनो के अक्सो को शीशे मे देखना बेहद रोमांचक,बेहद मस्ताना तजुर्बा था.शाह उसकी मांसल गंद पे अपने होंठो के निशान छ्चोड़ रहा था जब उसने अपनी नयी-नवेली महबूबा को शीशे मे देखते पाया.दोनो की नज़रे मिली & शाह मुस्कुरा दिया.रंभा उस मदहोशी के आलम मे भी अपने मक़सद को भूली नही थी.उसकी 1-1 हरकत बस शाह को अपने जवान हुस्न के जाल मे फँसाने के मक़सद से थी.रंभा ने अपनी नशीली आँखो से शाह को देखा और चूमने का इशारा किया.

अब तो शाह के जोश का ठिकाना ना रहा.उसकी ज़ुबान रंभा की गंद की दरार को चाटते हुए उसके छेद से आ लगी & उसे छेड़ने लगी.उसके हाथ अभी भी गंद की फांको को मसल रहे थे.रंभा अब बिस्तर की चादर को बेसब्र हाथो से खींचती & ज़ोर से आहे भर रही थी.शाह उसकी गंद की छेद मे तेज़ी से उंगली कर रहा था.रंभा जानती थी कि वो ये सब उसके गंद के छेद को खोलने के लिए कर रहा है ताकि उसके लंड को अंदर घुसने मे आसानी हो.अचानक शाह बिस्तर से उतरा & 1 कॅबिनेट खोल 1 ट्यूब निकल के वापस आया.उसने उस ट्यूब से क्रीम निकल रंभा की गंद के छेद को भर दिया & अपने लंड पे भी उसे मला,फिर उसने रंभा की कमर पकड़ उसकी गंद को हवा मे उठा लिया & घुटनो पे खड़ा हो उसके पीछे आ गया.

“वी..माआआआआअ......!”,रंभा बहुत ज़ोर से चीखी & बिस्तर की चादर को और ज़ोर से भींच लिया.शाह का मोटा लंड उसकी गंद के छेद को बुरी तरह फैला रहा था & वो बहुत च्चटपटा रही थी.शाह उसे प्यार भरे बोल बोल समझते हुए लंड को अंदर धकेले जा रहा था.आधे लंड को घुसा उसने उसी से रंभा की गंद मारनी शुरू कर दी.कमर हिलाते हुए वो दोनो को शीशे मे देख रहा था & उसका जोश और बढ़ रहा था.थोड़ी देर बाद वो रुका & रंभा की कमर थाम उसे घुमाने लगा & थोड़ी देर मे रंभा बिस्तर पे हाथो & घुटनो पे सीधा शीशे के सामने थी & शीशे मे ही उसकी और शाह की नज़रे मिली हुई थी.

महादेव शाह अब बहुत ज़्यादा जोश मे आ गया था.रंभा की गंद की कसावट उसके लंड को पागल किए जा रही थी & अब उसे बस उस सुराख को अपने रस से भरना था.शाह अपने घुटनो से उठ रंभा की टाँगो के दोनो तरफ पैर जमा के थोड़ा झुक के खड़ा हो गया & उसकी गंद पकड़ धक्के लगाने लगा.कमरे मे रंभा की आहें-नही आहें नही मस्ती भरी चीखें-गूंजने लगी.रंभा की गंद शाह के लंड के अंदर घुसने पे सिकुड जाती & शाह का अगला धक्का पहले धक्के से ज़्यादा जोश मे भरा होता.

वो उसकी गुदाज़ गंद को जोश मे मसलते हुए धक्के लगा रहा था.रंभा की चूत को वो च्छू भी नही रहा था मगर वाहा खलबली मची हुई थी.रंभा बस बिस्तर के सहारे उसकी चादर की सलवटो के ज़रिए अपनी मस्ती,अपनी बेचैनी का इज़हार करती अपने जिस्म मे पैदा हो रहे मज़े का लुत्फ़ उठा रही थी.उसकी चूत तो ऐसे पानी छ्चोड़ रही थी मानो शाह का लंड गंद मे नही चूत मे ही धंसा हो & उसे इस बात से बहुत खुशी & उतनी ही हैरत हो रही थी.

शीशे मे शाह का जोश से तमतमाया चेहरा दिख रहा था & रंभा उस से नज़रे मिलाए आहें भरती हुई उसे चूमने के इशारे पे इशारे किए जा रही थी.शाह ने उसकी गंद की फांको को हाथो मे भर बहुत ज़ोर से दबोचा & आख़िरी धक्के लगाए.

"ओह....हाआाआआन्न्‍नननननननननणणन्.....!",रंभा बिस्तर की चादर नोचती च्चटपटाए हुए चीखने लगी.शाह के गर्म वीर्य के गंद मे च्छूटते ही उसकी चूत मे भी जैसे कुच्छ फुट पड़ा था.उसका जिस्म कांप रहा था & वो सब भूल गयी थी.वो खुशी मे डूबी आसमान मे उड़ रही थी & उसे ये होश नही था की वो सूबक रही थी.उसकी आँखो से आँसू बह रहे थे जोकि उसकी तकलीफ़ नही बल्कि शिद्दती मज़े का इज़हार कर रहे थे.

शाह का जिस्म झटके खा रहा था & उसका लंड तो वीर्य की बौच्हर पे बौच्हर छ्चोड़े जा रहा था.उसे भी खुद पे हैरत हो रही थी.आजतक किसी लड़की के साथ उसने इस कदर मज़े को महसूस नही किया था.वो निढाल हो आगे गिरा & रंभा को अपने जिस्म के नीचे दबा दिया.दोनो लंबी-2 साँसे ले रहे थे.शाह ने उसके चेहरे को ढँकी ज़ुल्फो को किनारे किया & उसके दाए गाल को चूम लिया.उसकी वासना को जिस तरह इस लड़की ने भड़काया था वैसा उसकी पिच्छली ज़िंदगी मे कभी कोई लड़की नही कर पाई थी.

लंड सिकुदा तो शाह ने धीरे से उसे गंद से बाहर खींचा & करवट बदली.रंभा अभी भी धीमे-2 सिसक रही थी.शाह उसकी पीठ सहलाने लगा.कुच्छ पल बाद रंभा ने करवट बदली तो शाह ने उसे बाहो मे भर लिया.

"तुम्हे तकलीफ़ तो नही हुई?",शाह उसकी ज़ूलफे सवार रहा था.

"हुई..पर उस से भी कही ज़्यादा..अच्छा लगा.",रंभा ने फिर उसके सीने मे मुँह च्छूपा लिया,"पर.."

"पर क्या?"

"पर अब मैं आपसे दूर नही रह सकती!",रंभा की आवाज़ मे बेसब्री थी.

"मेरा भी तो यही हाल है पर तुम्हारे तलाक़ तक तो रुकना होगा."

"मुझसे अब इंतेज़ार नही होता!",रंभा की आँखे नम हो गयी थी..ये उसकी चाल का आख़िरी पर बहुत अहम हिस्सा था.वो 1 बेवफा बीवी का नाटक रही थी जो अपने आशिक़ के साथ के लिए किसी भी हद्द तक जा सकती थी.

"इंतेज़ार तो मुझसे भी नही होता!",शाह के जज़्बात भी शिद्दती होने लगे थे.ये पहला मौका था उसकी ज़िंदगी मे जब उसे दौलत से भी ज़्यादा कोई लड़की प्यारी & ज़रूरी लग रही थी.पर रंभा तो उसके हाल-ए-दिल से नावाकिफ़ थी & उसकी बातो की सच्चाई परखने मे लगी थी,"पर क्या कर सकते हैं!"

"ठीक है मैं कल ही तलाक़ की अर्ज़ी दे देती हू.आप बस समीर को हटाइए मेरी ज़िंदगी से.",उसने शाह के सीने मे चेहरा दफ़्न किया और सुबकने लगी,"..मुझे अब 1 पल भी उसके साथ नही रहना!"

"अरे!ऐसे जल्दबाज़ी मे ये काम नही करना.",शाह घबरा गया.उसे लगा कि ये जज़्बाती लड़की कही सारा खेल ही ना बिगाड़ दे,"..अभी कुच्छ दिन इंतेज़ार करो."

"मैं नही करती इंतेज़ार!",रंभा झटके से उठ बैठी.उसकी आँखे आँसुओ से लाल थी,"आपको भी मेरी कोई फ़िक्र नही!",वो घुटनो पे हाथ रख मुँह च्छूपा रोने लगी.शाह फ़ौरन उठ बैठा और उसे समझाने की कोशिश करने लगा.

"तो फिर क्या बात है आख़िर जो आप मुझे रोक रहे हैं तलाक़ लेने से?",शाह उसके आँसू पोंच्छ रहा था & सोच रहा था कि आख़िर क्या बोले रंभा से..क्या उसे उसका असली मक़सद बता देना चाहिए?..कही ये भड़क गयी तो?..फिर ये उसका राज़ खोल देगी & उसे भी इसे ना चाहते हुए भी ठिकाने लगाना पड़ेगा.

"बोलिए!क्या बात है आख़िर?",रंभा ने उसे झकझोरा.

"रंभा,मैं जो कहूँगा उसे ठंडे दिमाग़ से सुनना.",शाह उसे बाई बाँह के घेरे मे ले बहुत गंभीर हो गया था.रंभा भी उसे ध्यान से सुनने लगी,"रंभा,मैं ट्रस्ट ग्रूप का मालिक बनाना चाहता हू.",रंभा ने चौंकने का नाटक किया,"..प्रणव भी मेरे साथ है.हमारा मानना है कि ट्रस्ट और ऊँचाइयाँ छु सकता है लेकिन समीर उसे सही ढंग से चला नही रहा.प्रणव ने तुमसे इस बारे मे कुच्छ बात की है या नही मुझे नही पता.",उसने झूठ बोला,"..देखो,रंभा मे नही चाहता कि तुम्हे लगे कि ट्रस्ट को हथियाने के लिए मैं तुम्हारे करीब आया पर प्रणव से किया कंपनी बचाने का वादा भी मुझसे तोड़ा नही जाता.इसी पशोपेश की वजह से मैं तुमसे ऐसे बात कर रहा था.",रंभा ने उसकी बात सुन सर झुका लिया.

"क्या आपको मेरे और प्रणव के बारे मे पता है?",रंभा सर झुकाए हुए थी.अब वो धीरे-2 शाह का पूरा भरोसा जीतने की ओर कदम बढ़ा रही थी.

"नही क्या..ओह..",शाह थोड़ी देर से बात समझा.

"पर अब नही.उस भले इंसान ने मुश्किल वक़्त मे मुझे सहारा दिया & हम करीब आ गये पर आज मुझे एहसास हुआ है कि मुझे असल सुकून & खुशी केवल आपके आगोश मे मिलती है!",रंभा रुवन्सि थी,"..अब सिफ आपकी होके रहना चाहती हू.प्लीज़ आप मुझे मत छोड़िएगा.",शाह ने उसे बाहो मे भर लिया.कुच्छ सिसकियो के बाद रंभा ने उसका चेहरा हाथो मे भर लिया,"..आप अगर मुझसे शादी करते हैं तो फिर आपको ट्रस्ट का मालिक बनाने का ख्वाब छ्चोड़ना होगा.है ना?",शाह ने हां मे सर हिलाया,"..& इस बात से सबसे ज़्यादा तकलीफ़ पहुँचेगी प्रणव को जो हम दोनो का दोस्त है.",शाह ने फिर सर हिलाया.

"तो कुच्छ ऐसा करते हैं कि हम भी 1 हो जाएँ & उसे भी मायूस ना होना पड़े.",रंभा की आँखो मे 1 विश्वास था & आवाज़ मे 1 ठंडापन जिस से शाह भी थोड़ा हिल गया था.

"क्या?"

"अगर तलाक़ होता है तब तो कंपनी गयी हाथ से.तो बात कुच्छ यू होनी चाहिए कि कंपनी भी हो,समीर भी रास्ते से हट जाए और हम दोनो भी 1 हो जाएँ."

"तुम कहना क्या चाह रही हो?",शाह समझ रहा था रंभा का इशारा & मन ही मन खुश था कि उसकी मुश्किल वो खुद आसान कर रही थी.

"अगर समीर नही रहता है तो क्या होगा?",उसके होंठो पे 1 कुटिल मुस्कान आ गयी थी.

"क्या होगा?"

"उसकी कोई वसीयत नही है & सब कुच्छ मेरा होगा.मैं कंपनी की मालकिन बनूँगी & मेरा दूसरा पति और उसका दोस्त मालिक.",शाह कुच्छ देर खामोशी से उसे देखता रहा.रंभा सांस रोके उसके रिक्षन का इंतेज़ार कर रही थी.शाह के होंठो पे मुस्कान की हल्की सी लकीर खींच गयी जोकि थोड़ी ही देर मे गहरी हुई & फिर अगले ही पल दोनो हंसते हुए 1 दूसरे को बाहो मे भर खुशी से चूम रहे थे.रंभा अपनी चाल मे कामयाब हो गयी थी.

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क्रमशः.......
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