RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--78
गतान्क से आगे......
विजयंत मेहरा बिस्तर पे अढ़लेटा खुद के बारे मे सोच रहा था.उसके पास वो सारी मॅगज़ीन्स पड़ी थी जिनमे से हर 1 मे उसके बारे मे कुच्छ ना कुच्छ लिखा था..तो वो सच मे इतने बड़ी मिल्कियत का मैल्क था!..पर उन मॅगज़ीन्स मे 1 ऐसे शख्स की तस्वीर उभर रही थी जिसने बेशाक़ ट्रस्ट ग्रूप को आसमान तक पहुचा दिया था मगर वो खुद 1 मतलबी & केवल अपने फ़ायदे को सोचने वाला इंसान था..पर क्या सच मे वो ऐसा है?..अभी कुच्छ देर पहले उसने अपना मन मार कर खुद को रंभा और देवेन की चुदाई मे शरीक होने से रोका था..नही,वो ऐसा तो नही है..पर फिर सारी मॅगज़ीन्स मे उसके बारे मे ऐसे क्यू लिखा था?..ओफफ्फ़!..कब याद आएगा मुझे सब कुच्छ कब?!!..उसने साइड-टेबल पे रखा लॅंप बंद किया & सोने की कोशिश करने लगा लेकिन उसके ख़याल उसे सोने नही दे रहे थे.1 धुंधली सी तस्वीर उभर रही थी उसके दिमाग़ मे..ऊँचाई से कुच्छ या कोई गिर रहा था & उसे दुख हो रहा था..वो भी उस चीज़/इंसान के साथ-2 गिर रहा था मगर ना तो उस चीज़/इंसान की तस्वीर साफ थी ना ही उस जगह की जहा ये हो रहा था..विजयंत ने करवट बदल तकिये मे मुँह च्छूपा लिया..अब उस से ये उलझन,ये परेशानी & बर्दाश्त नही हो रही थी.
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रंभा घुटनो पे बैठी देवेन के आंडो को हथेलियो मे भर हौले-2 दबा रही थी & उसके सिकुदे लंड के गीले सूपदे को चूस रही थी.देवेन उसके हाथो & होंठो की छुअन से मस्त हो गया था.उसने रंभा के बालो मे हाथ फिराए मगर रंभा को तो उस लंड के सिवा मानो & कुच्छ दिख ही नही रहा था.उसने फॉरेस्किन पीछे धकेली & पूरे सूपदे पे जीभ चला उसके गीलेपन को चाटने लगी.इस गीलेपान मे केवल देवेन का वीर्य ही नही,रंभा का रस भी मिला था & उसका स्वाद चखना उसे रोमांच से भर रहा था.रंभा ने लंड को पकड़ अपने मुँह मे घुसाया & उसे चूसने लगी.देवेन के जिस्म मे बिजली दौड़ गयी.उसने रंभा के बालो से लगे अपने हाथो मे उसकी ज़ूलफे पकड़ ली & उसके सर को अपनी गोद मे हल्के से दबाया.रंभा सिकुदे लंड को हलक तक उतर चुकी थी & उसे चूस रही थी.देवेन आँखे बंद किए उसकी ज़ुबान का लुत्फ़ उठा रहा था.
रंभा ने कुच्छ देर बाद लंड को मुँह से निकाला & फिर आंडो को चूसा.उसने अपना मुँह देवेन की झांतो मे घुसा के रगड़ा तो देवेन उस गुदगूदे एहसास से और रोमांच से भर गया.उसका लंड 1 बार फिर तन के खड़ा था.रंभा ने उसे हिलाया & देवेन के निचले पेट को चूमने लगी.उसका बाया हाथ देवेन की मज़बूत जाँघो को सहला रहा था.देवेन महबूबा के कोमल हाथो के अपने नाज़ुक अंगो से खेलने से अब बिल्कुल जोश मे भर चुका था & 1 बार फिर उसके जिस्म के साथ अपने जिस्म को मिलना चाहता था.रंभा के हाथ उसकी जाँघो को बगलो मे उपर-नीचे चलाते हुए उसकी गंद को भी सहला रहे थे & उसका मुँह लगातार उसके लंड को चूस रहा था.देवेन के आंडो मे अब मीठा दर्द शुरू हो गया था.ये उसके जिस्म का इशारा था,इस बात का की अगर उसकी माशुका ने कुच्छ देर & अपने होंठो का इसी तरह इस्तेमाल किया तो वो उसके मुँह मे ही अपना रस छ्चोड़ देगा.देवेन ने आहिस्ता से रंभा के बालो को पकड़ उसका सर पीछे कर लंड को बाहर खींचा.रंभा उसका इशारा समझ गयी & उसके पेट को चूमते हुएऊपर उठने लगी.उसके हसरत भरे हाथ अपने आशिक़ के सीने के बालो मे घूमते हुए उसके निपल्स को छेड़ रहे थे & वो उसके सीने को केवल चूम ही नही बल्कि हल्के-2 काट भी रही थी.
देवेन ने उसे बाहो मे भरा & उसकी पीठ से लेके गंद तक अपने बेसब्र हाथ चलाते हुए उसके चेहरे,होंठो और सीने को अपनी किस्सस से ढँक दिया.रंभा मस्ती मे मुस्कुरा रही थी.देवेन उसकी गंद की फांको को दबोचे था & उसके दिल मे अपनी प्रेमिका की गंद मारने की ख्वाहिश पैदा हुई.उसने रंभा को बाहो मे भरे हुए घुमा दिया & अब पीछे से उसके पेट को पकड़ उसकी छातियाँ दबाते हुए उसकी गर्देन & कंधे चूमने लगा.रंभा भी गंद के उपर उसके गर्म लंड के एहसास से मस्त हो गयी & अपनी गंद पीछे कर उसके लंड को दबा अपनी मस्ती का इज़हार किया.देवेन ने उसकी छातियो को ज़ोर से दबोचा तो वो थोड़े दर्द & बहुत से मज़े से बहाल हो आगे काउंटर पे झुकी.देवेन ने उसी वक़्त उसकी बाई जाँघ को घुटने से उठा के काउंटर पे रख दिया.रंभा थोड़ा और आगे झुकी & अपनी गंद अपने महबूब के लिए और निकाल के खड़ी हो गयी.देवेन अपने पंजो पे बैठ गया & उसकी गंद की पुष्ट फांको को अलग कर उसकी चूत & गंद के गुलाबी छेद को अपनी जीभ से छेड़ते लगा.रंभा आहे भरती च्चटपटाने लगी.देवेन की ज़ुबान ने उसकी चूत की प्यास फिर से जगा दी थी मगर उसे पता था कि अभी वो उसकी गंद को अपने लंड से भरने वाला है.
देवेन खड़ा हुआ & दाए हाथ मे लंड को पकड़ बाए से उसकी गंद की बाई फाँक को पकड़ उसके छेद को थोड़ा खोलते हुए उसमे घुसने लगा.रंभा की आहे चीखो मे तब्दील हो गयी.वो झटके खाती,च्चटपताई जिस्म के उस छ्होटे से सुराख मे अपने आशिक़ के मोटे तगड़े लंड की 1-1 हरकत पूरी शिद्दत से महसूस कर रही थी.देवेन को लंड अंदर घुसने मे थोड़ी परेशानी हुई तो उसने लंड बाहर खींचा & फिर 1 उंगली चूत मे डाल गीला किया & फिर उस गीलेपान से रंभा की गंद को गीला किया मगर अभी भी बात नही बनी थी.उसकी निगाह पास पड़े मक्खन के पॅकेट पे गयी.उसने फ़ौरन मक्खन का 1 टुकड़ा हाथ मे लिया & रंभा की गंद पे मलने लगा.टुकड़ा पिघलने लगा & देवेन पिघले मक्खन को माशुका की गंद के छेद मे भरने लगा.थोड़ी ही देर मे गंद गीली थी & देवेन अपना लंड उसमे उतार रहा था.
“ऊव्ववववववववव..पूरा अंदर डाल दिया आपने प..हााईयईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई.....!”,वो चीखी मगर उसके जिस्म मे मज़े की फुलझड़िया छूट रही थी.देवेन उसकी कमर थामे धक्के लगा उसकी गंद मारने लगा.गंद का पतला सुराख & लंड के घुसने पे उसके सिकुड़ने से वो जोश मे पागल हो गया था.रंभा को शुरू मे तो दर्द हुआ मगर अब उसे भी मज़ा आ रहा था.देवेन दोनो हाथो से उसकी गंद की फांको को मसलते हुए धक्के लगा रहा था & वो बस काउंटर के सहारे खड़ी आहे भर रही थी.देवेन ने बाई बाँह उसकी कमर पे लपेटी & दाई सीने के पार ले जा उसकी छातियो को भींच उसे खुद से चिपका लिया.रंभा ने भी दाए हाथ को पीछे ले जा देवेन के सर को आगे किया & उसके लबो से अपने लब सटा दिए.देवेन का बाया हाथ उसकी चूत से आ लगा था & उसके दाने पे दायरे की शक्ल मे घूम रहा था.रंभा अब जोश मे पागल हो गयी.1 साथ उसके सभी नाज़ुक अंगो के साथ देवेन के खिलवाड़ ने उसे बिल्कुल मदहोश कर दिया & वो देवेन को पागलो की तरह चूमते हुए आहे भरने लगी.वो उसका नाम लेके उसके प्यार की कसमे खा रही थी,अपने जिस्म मे पैदा हुए बेशुमार मज़े की बात कह रही थी..उसका पूरा जिस्म मस्ती मे भर गया था & देवेन उसकी बातो का जवाब देता,उसके बदन को अपने आगोश मे कसे हुए उसकी चूत & चूचियो को हाथो से छेड़ते हुए,उसकी गंद मारे चला जा रहा था.
“आननह..!”,तभी रंभा ने देवेन के गले से हाथ खींचा & आगे काउंटर पे झुक अपना सर पीछे झटकते हुए सुबकने लगी.वो झाड़ गयी थी & उसकी कमर थामे उसकी चूत रगड़ता देवेन भी उसकी गंद मे अपना वीर्य छ्चोड़ रहा था.
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“कब आएगी ये रंभा वापस?”,महादेव शाह थोड़ा झल्ला गया था.
“कुच्छ पता नही.”,प्रणव उसके साथ बैठा 1 ग्लास की रिम पे अपनी उंगली चला रहा था.रीता उसकी जेब मे थी & समीर को तो वो किनारे करने ही वाला था मगर उसकी चाल का सबसे अहम मोहरा,रंभा ही ना जाने कहा गायब हो गयी थी.उपर से समीर भी उसे ढूँढने की कोशिश करता नही दिख रहा था.
“लगता है,अब इंतेज़ार करने के अलावा & कोई चारा नही.”,शाह ने ठंडी आह भरी.
“हूँ.”
“पर ध्यान रहे,प्रणव.जैसे ही रंभा वापस आए,समीर..”,उसने गर्देन काटने का इशारा किया तो प्रणव हल्के से मुस्कुराया.
“हूँ.ओके,अब चलता हू.”,प्रणव वाहा से निकल आया..रंभा,कहा हो?..जल्दी से आओ & मुझे ट्रस्ट का राजा बनाओ!
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समीर अपने दफ़्तर मे गहरी सोच मे डूबा था.ग्रूप बिल्कुल सही तरीके से चल रहा था.आने वाले दीनो के जो प्रोजेक्षन्स थे,वो भी बहुत बढ़िया थे.अभी-2 पिच्छले क्वॉर्टर्स के नतीजे भी बहुत अच्छे थे.कारोबार इतना बढ़िया चल रहा था मगर उसकी ज़ाति ज़िंदगी मे सब गड़बड़ हो गया था..रंभा ने सब गड़बड़ कर दिया था & अब गोआ मे बैठी थी.2 पार्टीस मे वो उसके बिना शरीक हुआ था मगर अब वो उसके बिना किसी जलसे मे जाने का ख़तरा नही उठा सकता था..बस किसी 1 बंदे को हल्की सी भी भनक लगी तो फिर इस खबर के टीवी & अख़बारो की सुर्खिया बनते देर नही लगेगी...& फिर उसका असर पड़ेगा कारोबार पे..& ये उसे मंज़ूर नही था..कुच्छ तो करना ही था..किसी भी तरह रंभा को वापस तो लाना ही था!
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“गुड मॉर्निंग.”,देवेन 1 स्टूल पे रॉकी के सामने बैठा था,”..कैसी नींद आई?”,वो हंसा.मुँह पे टेप लगाया रॉकी बस उसे देखता रहा.देवेन आगे झुका & 1 झटके मे उसके मुँह से टेप खींच दिया,”अब भाई,ये बताओ की खंजर लेके मेरे घर मे किस लिए घुसे थे?”,रॉकी खामोश रहा.
“हूँ..तुम अभी तो कोई जवाब नही दोगे.”,देवेन ने लंबी सांस ली,”..चलो,मत दो.घर मे घुसे तो तुम मेरे क़त्ल के इरादे से थे..”,तो इसे नही पता कि वो रंभा को मारने के लिए वाहा आया था,रॉकी सोच रहा था,”..इसराइली तुम्हारे साथ थे मगर वो तुम्हारे साथ या पीछे यहा तक नही आए.इसका मतलब तो ये है की तुम उनके लिए नही बल्कि शायद वो तुम्हारे लिए काम कर रहे थे..नही..नही..तुमने उनकी मदद ली थी..& उन्होने उसके लिए पैसे लिए तुमसे.”
“अब जल्दी ये बताओ कि किसने भेजा तुम्हे यहा मेरे पीछे वरना ये तो तुम जानते ही हो कि मैं तुम्हे तकलीफ़ पहुन्चाउन्गा.हूँ?”,रॉकी बुरी तरह फँसा था.उसके धंधे का उसूल था कि अपने क्लाइंट का नाम कभी ना बताओ मगर यहा से निकलने के लिए वो इस शख्स से कुच्छ सौदा कर सकता था मगर उसकी परेशानी ये थी कि उसे पता ही नही था कि रंभा को मारने का कांट्रॅक्ट उसे किसने दिया था.1 फोन आया जिसे उसने टाल दिया मगर अगले ही दिन 10 लाख रुपये से भरा बॅग उसके दरवाज़े पे रखा था.बॅग उठाते ही दूसरी बार फोन आया & इस बार लंबी बात के बाद उसने काम के लिए हां कर दी.रॉकी जानता था कि जिसने भी रंभा की सुपारी दी है वो शख्स चाहता तो उसे भी ख़त्म कर सकता था & इसीलिए उसे धोखा देने का उसे कोई इरादा नही था मगर इस वक़्त उसकी ज़िंदगी का सवाल था.सामने बैठा शख्स जो भी था,उसकी आँखो मे उसे सॉफ दिख रहा था कि उसे मारने मे वो ज़रा भी नही हिचकेगा.
“मुझे नही पता.”
“अच्छा.तो तुम्हे ख्वाब आया & तुम मुझे मारने आ गये?”,रॉकी खामोश रहा.देवेन ने तो अंधेरे मे तीर चलाया था.उसे अभी तक ये नही पता था कि रॉकी आख़िर किसके क़त्ल के इरादे से आया था-रंभा के या उसके,मगर उसे लग रहा था कि ड्रग सिंडिकेट से उलझने की वजह से वो ही उसका निशाना हो.रंभा को मारने की कोई ठोस वजह उसे दिख नही रही थी.कोई 30 मिनिट तक देवेन रॉकी से पुच्छ-ताछ करता रहा मगर उसने कुच्छ भी काम की बात नही बताई.देवेन ने उसके मुँह पे टेप लगाया & कमरे से बाहर आ गया.
"रंभा,अपना & विजयंत का समान बांधो.जल्द से जल्द हमे डेवाले वापस जाना होगा."
"मगर क्यू?",रंभा के माथे पे शिकन पड़ गयी,"..क्या कहा उसने?"
"उसने कुच्छ नही कहा मगर मुझे लगता है कि तुम्हे अब वापस समीर के पास जाना होगा.अब वक़्त आ गया है कि पहले विजयंत के इस हाल की गुत्थी सुलझाई जाए.मेरा इंटेक़ाम अभी इंतेज़ार कर सकता है.",असल बात ये थी कि रंभा को और ख़तरे मे डालना उसे अब ठीक नही लग रहा था मगर ये बात उसे बता के वो रंभा को घबराना नही चाहता था.
"ठीक है.",रंभा अपने कमरे मे जाने लगी तो देवेन ने उसे रोका.
"मैं अभी ज़रा 2-3 घंटो के लिए बाहर जाऊँगा.तुम होशियार रहना."
"हूँ."
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क्रमशः.......
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