RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--77
गतान्क से आगे......
देवेन उसकी इस हरकत से बहुत जोश मे भर गया और आगे हो चूमने लगा.रंभा मेज़ पे पीछे झुक के अपनी कोहनियो पे उचक गयी & उसकी किस का जवाब देने लगी.देवेन के होंठ नीचे उसकी गर्देन पे आए & फिर उसके धड़कते क्लीवेज पे.उसकी आँखो ने ब्रा कप्स के बीच लगे बटन को भाँप लिया & उसे फ़ौरन खोल उसकी छातियो को अपनी निगाहो के सामने किया.रंभा मस्ती मे देवेन की कमर को टांगो मे कस उसके लंड पे चूत को दबा रही थी.देवेन उसकी छातियो को चूम रहा था.
रंभा के जिस्म मे अब सनसनी फैल गयी थी.देवेन का लंड उसकी चूत की कसक भी बढ़ाए जा रहा था.देवेन ने उसके कंधो से ब्रा को सरकाया तो रंभा फ़ौरन कोहनियो पे से उठी & ब्रा को जिस्म से अलग किया & उसके बाद प्रेमी के सर को बाहो मे भरे उसे अपने सीने से चिपकाए लेट गयी.देवेन उसकी भारी-भरकम चूचियो का लुत्फ़ उठाने मे जुट गया.मेज़ से किचन का काउंटर बस थोड़ी ही दूर था & रंभा ने बेचैनी मे टाँगे फैलाई तो वो उसी से जा लगी.रंभा ने काउंटर पे पैर जमा देवेन के लंड पे चूत को रगड़ अपनी बेचैनी जताई मगर उसका आशिक़ तो उसके सीने के उभरो की खूबसूरती मे जैसे उसके बाकी जिस्म को भूल ही गया था.देवेन उसकी चूचियो को अपने सख़्त हाथो मे दबा रहा था,मसल रहा था.उसकी ज़ुबान उसके निपल्स को छेड़ती & फिर वो उसकी चूचियो को मुँह मे भर ज़ोर से चूस लेता.रंभा आहे भर रही थी.उसका जिस्म देवेन की 1-1 हरकत से मज़े के समुंदर मे और गहरे डूबा जा रहा था.उसकी चूत की कसक बहुत ज़्यादा बढ़ गयी थी.लंड की इतनी नज़दीकी के बावजूद चूत अभी तक खाली थी & शायद ये बात उस से बर्दाश्त नही हो रही थी.उपर से देवेन की ज़ुबान की मस्ताना हरकतें जो खेल तो रंभा की चूचियो से रही थी मगर उनके छुने से पैदा हुई बिजलिया उसके पूरे जिस्म मे दौड़ती हुई मानो उसकी चूत मे ही आ के रुक रही थी.देवेन ने उसकी दोनो चूचियो को पकड़ के आपस मे मिलाते हुए दबाया & फिर उसकी दाई चूची को बहुत ज़ोर से दबोचते हुए बाई को मुँह मे पूरा भरने की कोशिश की.रंभा ने ज़ोर से आह भरते हुए अपना सीना और उपर उचकाया & देवेन की कमर को टांगो मे कस ज़ोर से कमर हिलाई-वो झाड़ चुकी थी.
वो काँपते हुए सूबक रही थी & देवेन उसके सीन के उभारो को चूमे जा रहा था.कुच्छ देर बाद वो नीचे उसके पेट तक पहुँचा & उसकी नाभि के अंदर जीभ घुमाने लगा.रंभा के चेहरे पे मस्ती भरी मुस्कान खेलने लगी & उसने प्रेमी के बालो को पकड़ उसे पेट पे दबा दिया.देवेन उसके जिस्म की बगलो मे हाथ चलाते हुए उसकी नाभि सहित पूरे पेट को चूमने लगा.चिकने पेट पे उसकी फिसलती ज़ुबान का गुदगुदाता एहसास रंभा के जिस्म को रोमांच से भर रहा था & बीच-2 मे वो हल्के से हंस भी देती.देवेन उसके पेट के बाद उसकी पॅंटी को चूमने लगा तो उसने अपनी दोनो टाँगो-जिन्हे उसने झड़ने के बाद मेज़ पे रख किया था,को घुटने से मोड़ा & अपने प्रेमी के पेट पे रख उसे परे धकेला.
देवेन ने उसे हैरत से देखा तो वो शोखी से मुस्कुराती उठ बैठी & फिर दाए हाथ से देवेन की जीन्स को पकड़ उसे अपनी ओर खींचा & फिर उसके अंडरवेर पे उपर से नीचे तक हाथ चलाने लगी.उसने देवेन की जीन्स को नीचे सरकाया & जब वो उसके घुटनो मे फँस गयी तो उसने अपने पाँवो से उसे & नीचे कर दिया.देवेन ने भी मुस्कुराते हुए जीन्स को अपने जिस्म से जुदा कर दिया तो रंभा ने उसे अपनी बाहो मे फिर से वैसे ही भर लिया.देवेन उसकी मखमली पीठ को सहलाते हुए उसकी टाँगो मे क़ैद हो चूत पे अपना लंड दबाते हुए उसे चूमने लगा.
देवेन ने उसे चूमते हुए उसकी गंद के नीचे हाथ लगाके गोद मे लेते हुए मेज़ से उठाके सामने के काउंटर पे रख दिया.रंभा भी उसकी दीवार से टिक के बैठ गयी & अपनी चूचिया आगे कर दी ताकि देवेन उन्हे आसानी से चूस सके.देवेन भी उन्हे अपने हाथो मे कस के दबाते हुए चूसने लगा मगर इस बार उसने उनपे ज़्यादा वक़्त नही लगाया.इस बार वो जल्द ही रंभा की मोटी चूचियो से नीचे उसके पेट को चूमते हुए अपने पंजो पे बैठ गया.रंभा ने भी अपनी जंघे फैला दी थी & जब देवेन ने उसकी पॅंटी खींची तो उसने काउंटर से अपनी गंद उचका देवेन की पॅंटी निकालने मे मदद की.रंभा अब पूरी तरह नंगी बैठी थी & घुटने मोड़ पाँव काउंटर पे जमा अपने आशिक़ को अपनी चूत पेश कर रही थी.
देवेन ने उसकी आँखो मे देखा & फिर उसकी निगाह रंभा के पूरे जिस्म को चूमती हुई उसकी चूत पे आके रुक गयी.रंभा का कुँवारापन तो बहुत पहले ख़त्म हो गया था,उस पर से उसके चुदाई के शौक ने उसकी चूत को कभी भी बहुत ज़्यादा दिनो के लिए लंड से महरूम नही रखा था मगर फिर भी इस वक़्त देवेन के सामने उसकी चूत गुलाब की बंद काली की तरह दिख रही थी जिसपे सवेरे की ओस की बूंदे चमक रही थी.
देवेन ने उसकी दाई अन्द्रुनि जाँघ को चूमा तो रंभा ने सर दीवार से लगाके आह भरी.जब देवेन ने दूसरी जाँघ के अन्द्रुनि हिस्से पे भी अपने गर्म चलाए तो रंभा ने बेचैनी से उसके बाल नोचे.देवेन बहुत धीमे-2 अपने होंठ उसकी चूत की ओर ले जा रहा था.रंभा को बहुत मज़ा आ रहा था.उसका दिल देवेन के लबो के उसकी चूत से सटने की हसरत से बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था और वो मस्ती मे काँपने लगी थी.
विजयंत की आँखो मे नींद नही थी.वो बार-2 यही सोच रहा था कि वो शख्स जो स्टोर रूम मे बेहोश पड़ा था,आख़िर किसके क़त्ल के मंसूबे से यहा आया था.देवेन ने उसे अपनी ज़िंदगी के बारे मे कुच्छ खास नही बताया था ना ही उसे उसके ज़ाति मामले मे दखल देना ठीक लगा था मगर 1 बात तो तय थी कि वो कोई बहुत गहरी चोट खाया था..विजयंत कमरे से बाहर आया तो उसके कानो मे कुच्छ आवाज़ें आई..तो क्या देवेन की ज़िंदगी लेने आया था वो अजनबी?..विजयंत समझ गया कि आवाज़ें किचन से आ रही थी & वो उधर ही चला गया.किचन की दहलीज़ पे कदम रखते ही उसकी आँखे सामने के गर्म नज़ारे से टकराई & उसके दिल मे भी जोश भर गया.
पंजो पे बैठा देवेन नंगी रंभा की चूत चाट रहा था और वो काउंटर पे कसमसा रही थी.उसके चेहरे पे शिकने थी मगर साथ ही मुस्कान भी.वो मस्ती मे पूरी डूबी थी & ना उसे ना ही उसके प्रेमी को विजयंत की मौजूदगी का एहसास था.विजयंत ने अंदर जाने के लिए कदम उठाया मगर फिर रुक गया.वो जानता था कि उसके जाने पे दोनो को कोई ऐतराज़ नही होगा मगर अभी उसे दोनो के बीच दखल देना ठीक नही लगा.वो जानता था कि देवेन रंभा को बहुत चाहता था & उसे उसका भी रंभा को चोदना बहुत पसंद नही था.शायद उसकी ये हालत ना होती तो वो उसे रंभा के पास फटकने भी नही देता.
“आन्न्ग्घ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..!”,रंभा दोनो हाथो से देवेन के सर को पकड़े अपनी चूत पे दबाते हुए अपनी दोनो टाँगे उसके कंधो के उपर से उसकी पीठ पे दबा मानो उसे अपनी चूत मे घुसा लेने की कोशिस कर रही थी.उसके चेहरे की शिकाने और गहरी हो गयी थी & उसकी कसमसाहट & बढ़ गयी थी.विजयंत समझ गया कि वो झाड़ गयी है.तभी देवेन खड़ा हुआ और रंभा को बाहो मे भर लिया & फिर दोनो 1 दूसरे को पागलो की तरह चूमने लगे.रंभा बड़ी बेचैनी से बया हाथ देवेन के पूरे जिस्म पे फिरा रही थी & डाए से उतनी ही बेचैनी से उसके लंड को दबा रही थी.
विजयंत ने 1 पल & उन्हे देखा & फिर वाहा से चला गया.उसे थोड़ी मायूसी थी मगर आज उसे दोनो के बीच घुसना बिल्कुल भी ठीक नही लग रहा था.उसके दिल मे एहसासो का बवंडर घूम रहा था.रंभा को देवेन की बाहो मे देख उसे बहुत जलन होती थी..ऐसा लगता था जैसे कि वो उसी की हो & देवेन ने उसे छ्चीन लिया हो!..मगर कही दिल के किसी कोने मे ये भी एहसास था कि उसका और रंभा का रिश्ता कुच्छ ठीक नही था..वो किसी और की थी.अब उसे ये तो पता था कि रंभा उसकी बहू है मगर नही,ये एहसास तो इस जानकारी के ना होने पे भी उसे होता,इतना उसे पता था..आख़िर इतना गहरा रिश्ता कैसे बन गया था उसका अपनी बहू से?..& उसकी बीवी से कैसा रिश्ता था उसका जिसकी 1 भी बात याद नही उसे?..2 बच्चे पैदा किए थे उसने उसके और फिर भी उसे वो याद नही & चंद महीनो पहले उसके बेटे से शादी करने वाली लड़की के तस्साउर से ही उसका दिल धड़कने लगता था?..& वो सोनिया..जिसके नाम से ही 1 टीस उठती थी दिल मे..वो कौन थी?..ड्रॉयिंग रूम के बगल मे 1 कमरा & था जिसमे वो अभी तक नही गया था.वो उसी कमरे मे चला गया & बत्ती जलाई.वाहा 1 कॅबिनेट था जिसे खोलने पे उसे कुच्छ किताबें & मॅगज़ीन्स दिखाई दी.किताबें तो जासूसी उपन्यास थे.उसने वो सारी किताबें उठा ली.वक़्त काटने मे ये उसके काम आने वाली थी,फिर उसने मॅगज़ीन्स उठाई & उसके ज़हन मे वही धमाका सा हुआ..’हू विल विन दिस वॉर?’,1 मॅगज़ीन पे उसकी और ब्रिज कोठारी की तस्वीर के साथ यही लिखा था.उसके दिल मे उस शख्स की तस्वीर देखने पे कुच्छ गुस्से सा भाव आया था.विजयंत ने देखा सारी की सारी बिज़्नेस मॅगज़ीन्स थी.उसने सभी मॅगज़ीन्स उठाई & उपन्यास वही छ्चोड़ अपने कमरे मे चला गया.
रंभा सुबक्ती हुई देवेन के मुँह मे अपनी जीभ & उसके अंडरवेर मे अपना हाथ घुसा अपने जिस्म की मदहोशी की दास्तान बयान कर रही थी.देवेन ने भी उसकी ज़ुबान चूस्ते हुए अपना अंडरवेर नीचे किया तो रंभा ने अपने पाँवो से उसे उसके जिस्म से अलग कर दिया.देवेन ने उसके घुटने पकड़ के उसकी छातियों से लगा दिए & उसकी चूत को पूरा खोल अपने लंड को आगे धकेला.
“ऊव्ववव..हाआंन्नणणन्..!”,रंभा के चेहरे पे शिकने पड़ी,उसकी आँखे बंद हो गयी मगर साथ ही वो मुस्कुराइ & लंड के चूत के अंदर घुसते ही कमर उचकाते हुए सर पीछे झटका.देवेन ने 1 ही धक्के मे लंड को उसकी चूत मे जड तक उतार दिया & उसे बाहो मे भर चूमने लगा.रंभा ने अपना जिस्म उस से पूरी तरह चिपका दिया & उसके कंधे & पीठ से लेके उसकी पुष्ट गंद तक अपने नाख़ून चलाते हुए कमर हिलाके अपनी टाँगे उसकी कमर के उपर बाँध दी & काउंटर पे बैठे-2 अपनी कमर हिलाके उसके हर धक्के का जवाब देने लगी.देवेन अपने सीने मे उसके नुकीले निपल्स की चुभन से & उसकी चूत की कसावट से पागल हो बहुत तेज़ धक्के लगा रहा था.उसके हाथ रंभा की छातियो को दबाने के बाद पीछे गये & उसने उसकी गंद के नीचे हाथ लगाके उसे उठाके 1 बार फिर मेज़ पे बिठा दिया.
देवेन उसकी छातियों को इतनी ज़ोर से दबा रहा था कि रंभा ने आहत हो किस तोड़ दी & जिस्म पीछे झुका के हाथ पीछे मेज़ पे रख दिए & ज़ोर-2 से आहे भरने लगी.देवेन खड़ा होके धक्के लगा रहा था & जब वो आगे झुका & रंभा की चूचियो को दबाते हुए चूसने लगा तो रंभा मेज़ पे लेट गयी & उसे बाहो मे भर उसके सर को सीने पे भींच दिया.उसकी गोरी,मोटी छातियो को चूस्ता देवेन उसकी चूत मे बहुत तेज़ी से लंड अंदर-बाहर कर रहा था.रंभा ने उसके सर को अपनी छातियो के बीच बहुत ज़ोर से दबाया & खुद जैसे मेज़ से उठने की कोशिस करती हुई उसके सर को चूमने लगी.उसकी कमर भी बहुत तेज़ी से हिल रही थी.देवेन ने उसी वक़्त अपने लंड पे उसकी चूत की मस्तानी सिकुड़ने-फैलने की हरकत महसूस की & समझ गया की उसकी महबूबा झाड़ गयी है.
देवेन उसकी छातियो को चूमते,चूस्ते हुए वैसे ही धक्के लगाता रहा.कुच्छ देर बाद रंभा भी झड़ने की खुमारी से बाहर आई & देवेन के बाल पकड़ उसके सर को अपने सीने से उठाया & उसके होंठ चूमने लगी.देवेन ने उसे चूमते हुए फिर से उठाया & रंभा अब उसकी गंद को दबाते हुए उसकी चुदाई का लुत्फ़ उठाते हुए उसकी किस का जवाब देने लगी.दोनो के हाथ 1 दूसरे की गंदो से चिपके हुए थे.देवेन उसकी मुलायम फांको को दबा-2 के मस्ती मे बहाल हो रहा था.रंभा के गुदाज़ जिस्म को हाथो मे भरते ही उसके जिस्म मे अजीब सी सनसनी,1 अजीब सा नशा भर जाता था.उसके धक्के अब बहुत तेज़ हो गये थे.रंभा भी चूत की दीवारो उसके लंड की रगड़ को महसूस कर जोश मे भर सर पीछे झटक रही थी.देवेन के लंड की मोटाई उसकी चूत की दीवारो को हर बार बुरी तरह फैला देती थी & वो हल्के दर्द & ढेर सारे मज़े मे बिल्कुल मदहोश हो जाती थी.उपर से लंड की लंबाई इतनी ज़्यादा थी कि हर बार उसका सूपड़ा उसकी कोख से आ टकराता था & उसके जिस्म मे मस्ती बिजली जैसे दौड़ने लगती थी.रंभा ने अपने आशिक़ की गंद मे नाख़ून धंसा दिए थे & देवेन भी उसकी गंद को मसलते हुए उसकी चूचिया पी रहा था.1 बार फिर रंभा की चूत ने उसके लंड को अपने शिकंजे मे उसी जानी-पहचानी हरकत से तड़पाना शुरू किया & इस बार देवेन का भी सब्र टूट गया.
उसने अपने मुँह मे रंभा की बाई चूची को पूरा भर लिया & पागलो की तरह चूस्ते हुए उसकी गंद दबाते हुए धक्के लगाने लगा.रंभा भी उसकी कमर को टाँगो मे कस मेज़ से लगभग उठती हुई,कमर उचकाती,ज़ोर-2 से चीखती,उसकी गंद को अपने नखुनो से छल्नी करती उस से चुद रही थी.तभी रंभा ने ज़ोर से चीख मारी & जिस्म पीछे की तरफ मोड़ दिया & देवेन का जिस्म भी काँपने लगा.रंभा झाड़ चुकी थी & देवेन का लंड उसकी कोख को अपने वीर्य से भर रहा था.रंभा मस्ती मे कांप रही थी,उसके होंठ थरथरा रहे थे,देवेन लंबी-2 साँसे ले रहा था & अपनी प्रेमिका से चिपका हुआ था.दोनो ही के चेहरे पे झड़ने का सुकून था.
थोड़ी देर तक दोनो वैसे ही लिपटे बस अपनी खुश,सुकुनी & 1 दूसरे के साथ के एहसास को बस महसूस करते रहे फिर रंभा ने देवेन के कंधे से सर उठाया & मुस्कुराते हुए उसके चेहरे को सहलाने लगी.देवेन भी मुस्कुराता उसकी ज़ुल्फो से खेल रहा था..इस इंसान की नेक्दिलि,उसकी मा के लिए बेपनाह मोहब्बत,उसकी मर्दानगी..आख़िर क्या कारण था जो वो अब उसका सब कुच्छ बन गया था?..रंभा अपने आशिक़ की आँखो मे देखते हुए सोचे जा रही थी..उसके लिए तो अब देवेन ही सबकुच्छ था..वो तो उसे अपना खुदा मानने लगी थी & बस हर वक़्त उसकी इबादत मे मशगूल रहना रहती थी.
रंभा ने नीचे देखा,सिकुड़ने के बावजूद लंड अभी भी चूत मे था.रंभा ने देवेन को थोडा पीछे धकेला & लंड को चूत से बाहर कर दिया और मेज़ से सरक के फर्श पे घुटनो पे बैठ गयी.अब उसे अपने देवता की इबादत करनी थी.अपना जिस्म तो उसने उसे सौंप ही दिया था मगर अब उसके जिस्म की खिदमत कर उसे और खुशी देने की हसरत हो रही थी उसे.उसने अपनी हथेलियो को आंडो के नीचे लगाया और लंड के सूपदे को चूमा.
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क्रमशः.......
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