RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--76
गतान्क से आगे......
"रंभा,तुम फ़ौरन अपना मोबाइल का हंडसफ़री किट मुझे दो.",विजयंत मेहरा की आँख दूरबीन से ही चिपकी हुई थी,"..& फ़ौरन दूसरे घर पे जाओ मगर यहा के पीछे के गेट से.",सामने के गेट को तो देवेन ताला लगाके गया था.रंभा ने अपने कपड़े ठीक किए & फ़ौरन विजयंत के कान पे इयरफोन लगाया,"..अभी 1 कार आएगी & देवेन चाहता है कि उसका ड्राइवर तुम्हे देख ले.",रंभा बाहर की तरफ भागी,"..उसके देखते ही घर के अंदर चली जाना.बाकी देवेन संभाल लेगा.",2 मिनिट बाद रंभा दूसरे घर के गेट को बंद कर रही थी.उसके सामने 1 कार धीमी हो रही थी जिसमे बैठे रॉकी की बाछे उसे देखते ही खिल गयी थी.
तभी रंभा और रॉकी दोनो चौंक पड़े.अंदर से देवेन नशे मे बुरी तरह धुत इंसान की तरह ज़ोर-2 से गाना गा रहा था.रंभा मूडी और घर के अंदर चली गयी.देवेन गाना गाते हुए 1 काग़ज़ पे कुच्छ लिख रहा था & उसे दिखा रहा था,"तुम मुझे डांटो और नशे मे होने के लिए झिड़कती रहो फिर मुझे सुलाने का नाटक करना."
रंभा ने वैसा ही करना शुरू किया.रॉकी घर के चारो तरफ घूम के जायज़ा ले रहा था इस बात से अंजान की विजयंत सब देख रहा था & देवेन अपने कान पे लगे इयरफोन से उसके ज़रिए बाहर का सारा हाल सुन रहा था.रॉकी अंदर देख तो नही पा रहा था बस सुन पा रहा था & इस वक़्त उसके कानो मे 1 जोड़े की नोक-झोंक आ रही थी.
"अब सो जाओ..नशेड़ी इंसान!"
"देवेन,वो घर के अहाते मे घुस चुका है.तुम्हारे बेडरूम की खिड़की के बाहर है अभी.",देवेन ने रंभा को इशारा किया & दोनो उसके कमरे मे गये.देवेन ने बिस्तर पे गिरने का नाटक किया & फिर फ़ौरन उठ गया & रंभा को बोलते रहने का इशारा किया.
"रंभा डार्लिंग..आ जाओ मेरी जान..!",देवेन नशे मे होने का नाटक करते हुए बाहर की तरफ गया.रॉकी ने उसके मुँह से रंभा का नाम सुना तो उसकी खुशी का ठिकाना नही रहा.वो आज रात ही काम निपटा के वापस जा सकता था.रंभा गुस्से मे बड़बड़ा रही थी & लाइट बंद कर रही थी.देवेन उसे लेके घर के ड्रॉयिंग रूम मे आया & उसे टीवी चलाने का इशारा किया.वो उसके करीब आया & कान मे फुसफुसाया,"जो भी हो इस सोफे से ना हिलना ना पीछे घूम के देखना."
"सो गया नशेड़ी..हुंग!",रंभा ने बड़बड़ाते हुए टीवी ओन किया & देवेन स्टोर रूम मे घुस गया.उसे बस 2 चीज़ें चाहिए थी जोकि वही मौजूद थी-1 3फिट का लोहे का पाइप & 1 कपड़ा.देवेन ने पाइप के 1 सिरे पे कपड़े को लपेट के बाँधा & उस कमरे मे आ गया जहा विजयंत रहता था.उस कमरे के दरवाज़े की ओट मे खड़े हो वो बाहर खड़े रॉकी के अंदर आने का इंतेज़ार करने लगा.
रॉकी कुच्छ देर तो बाहर खड़ा रह के इंतेज़ार करता रहा.उसके बाद उसने घर के खिड़की दरवाज़ो को टटोल के कम से कम आवाज़ कर अंदर घुसने का रास्ता ढूँडने लगा.विजयंत ने ये बात देवेन को बताई तो वो धीरे से किचन मे गया & वाहा की खिड़की की चिताकनी खोल दी & वापस अपने छुप्ने की जगह पे आ गया.टीवी के चॅनेल्स रिमोट से बदलती रंभा का दिल ज़ोरो से धड़क रहा था..आख़िर कौन था वो कार मे बैठा शख्स?..समीर ने उसे क्यू भेजा था यहा?
रॉकी रसोई की खिड़की तक आ गया था & उसे टटोलते ही उसे अपनी किस्मत पे भरोसा नही हुआ.सब कुच्छ उसके हक़ मे जा रहा था.उसने खिड़की खोली तो थोड़ी आवाज़ हुई.वो झुक के खिड़की ने नीचे बैठ गया & इंतेज़ार करने लगा कि कही रंभा को आहट तो नही हो गयी.रंभा को आहट हुई थी मगर देवेन के कहे मुताबिक उसने अपनी गर्दन तक नही हिलाई.रॉकी घड़ी देख के 5 मिनिट बाद उठा & फुर्ती से खिड़की के रास्ते रसोई मे घुस गया.
उसने अपनी शर्ट के कॉलर के नीचे गले मे बँधा बड़ा सा रुमाल निकाल के अपने मुँह पे बाँधा & फिर जीन्स की हिप पॉकेट से सर्जिकल रब्बर ग्लव्स निकाले & पहन लिए.दवा की दुकान से खरीदे ये दस्ताने वो हमेशा अपने पास रखता था.उसने बाई टांग उठा के जीन्स को उपर किया & जूते के उपर टांग पे बँधी शीत मे रखा खंजर निकाल के हाथ मे ले लिया.वो किचन से निकला & पहले उसने देवेन के कमरे को चेक करने का फ़ैसला किया.
देवेन जानता था कि वो ऐसा ही करेगा इसीलिए वो स्टोर मे च्छूपा था.रसोई से निकलते ही उसका कमरा दाई तरफ पड़ता था जबकि विजयंत का कमरा था रसोई के बाई तरफ.जैसे ही रॉकी उसके कमरे की दहलीज़ तक पहुँचा देवेन दरवाज़े की ओट से बाहर आया & दबे पाँव मगर फुर्ती से रॉकी के पीछे गया & पाइप से वार किया.
"ठुड्द..!..खन्णन्न्....!",1 थोड़ी भारी मगर दबी सी आवाज़ & फिर कोई मेटल फर्श पे गिरने की खनकती आवाज़ रंभा के कान मे पड़ी मगर उसने अपने महबूब के कहे मुताबिक ना ही गर्दन घुमाई ना ही सोफे से उठी.
देवेन रॉकी को बस बेहोश करना चाहता था,उसका सर फोड़ना उसका मक़सद नही था इसीलिए उसने पीपे पे कपड़ा बाँधा था.ये तरकीब और ऐसी काई बातें उसने जैल मे या फिर जैल से निकलने के बाद सीखी थी.अचानक हुए साधे हाथ के ज़ोर के वार से रॉकी पल मे बेहोश हो गया था & उसके हाथ का खंजर फर्श पे गिर गया था.
"रंभा,इधर आना.",जहा देवेन ने रॉकी को चित किया था उस जगह से थोड़ा हटके 1 गलियारे के बाद ड्रॉयिंग रूम था.रंभा फ़ौरन वाहा आई,"सब ठीक है,विजयंत.मैने उसे काबू मे कर लिया है मगर तुम अभी नज़र रखे रहो.सब ठीक रहा तो हम बस 15 मिनिट मे वाहा पहुचते हैं."
"ओके,देवेन."
देवेन ने रॉकी को नंगा किया & उसकी कपड़ो की तलशी ली.रॉकी के पास से उस खंजर के अलावा 1 बहुत छ्होटी सी पिस्टल मिली थी जोकि उसके शर्ट के नीचे की बनियान मे बने 1 खास पॉकेट मे छिपि थी.उसके पर्स मे जो ड्राइविंग लाइसेन्स & आइडी मिले उसमे उसका नाम अनिल कुमार लिखा था.देवेन जानता था कि वो फ़र्ज़ी हैं.
"इसे नंगा क्यू कर रहे हैं?",रंभा देवेन के बगल मे बैठी तो देवेन ने उसे घूम के देखा.रंभा पसीने से भीगी थी जबकि मौसम खुशनुमा था.उसने अपनी माशूक़ा को बाँहो मे भर लिया.
"घबरा गयी क्या?",रंभा ने उसकी गर्दन मे मुँह च्छूपा लिया & हां मे सर हिलाया,उसकी नज़र वाहा आते ही फर्श पे पड़े खंजर पे पड़ी थी & उसे समझते देर नही लगी थी कि वो अजनबी किस इरादे से वाहा आया था,"..मेरे होते भी घबराती हो!",वो उसकी पीठ सहला रहा था,"..अब सब ठीक है.हूँ.",काफ़ी देर तक वो उसे बाहो मे भरे चुपचाप बैठा रहा & उसकी पीठ सहलाता रहा & उसके बाल & माथे को चूमता रहा,"अब ठीक हो?",रंभा ने कंधे से सर उठाया तो विजयंत ने उस से पुछा.
"हूँ."
"पानी पियोगी?..अभी लाता हू."
"आप रहने दीजिए.मैं लाती हू.",रंभा उठ खड़ी हुई.
"स्टोर मे जितनी रस्सिया पड़ी होंगी सब लेती आना & थोड़े पुराने कपड़े भी."
"अच्छा.",10 मिनिट बाद नंगा,बेहोश रॉकी फर्श पे बँधा पड़ा थे.देवेन ने उसे ऐसे बाँधा था कि वो बस लेटा रह सकता था & ज़रा भी हिलडुल नही सकता था.देवेन ने पुराने कपड़ो से उसका मुँह बाँधा.वैसे अभी तो वो बेहोश था मगर वो कोई रिस्क नही ले रहा था.
रंभा के पानी लाने का बाद दोनो ने पानी पिया उसके बाद देवेन ने रंभा की मदद से रॉकी को घर के बाहर खींचा & फिर कार की पिच्छली सीट पे डाल दिया.उसके बाद घर बंद किया & तीनो बुंगले पे आ गये.
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"इसकी पहरेदारी की ज़रूरत नही क्या?",देवेन ने बंगल पे पहुँच रॉकी के मुँह से कपड़ा हटाया & मोटा डक्ट टेप लपेट दिया & फिर 1 पेन से होंठो के उपर 1 सुराख किया ताकि उसे थोड़ी कम तकलीफ़ हो.दोनो ने उसे बुंगले के स्टोर रूम मे डाला & फिर उसके पैरो मे 1 रस्सी बाँध के दूसरा सिरा पास पड़ी 1 टूटी कुर्सी से बंद दिया.अब रॉकी जब भी उठता & ज़रा भी हिलता तो कुर्सी की टूटी टांग जिस से रस्सी बँधी थी,गिर जाती & उसके बाद कुर्सी भी & उस आवाज़ से उन्हे उसके होश मे आने का पता चल जाता.
"खाना तैय्यार है.",रंभा वाहा आई तो दोनो स्टोर पे ताला लगा रहे थे.
"चलो,विजयंत खाना खाते हैं.",देवेन ने उसके कंधे पे हाथ रखा,"..आज तुम बहुत थके हुए हो.खा के सो जाना.यूरी के हिसाब से तुम्हे अभी ज़्यादा स्ट्रेन नही लेना चाहिए.",विजयंत ने पीछे घूम स्टोर के दरवाज़े को देखा.
"उसकी फ़िक्र मत करो,दोस्त.",देवेन हंसा,"..वो 5-6 घंटो से पहले जागने वाला नही & हां चाहे कुच्छ हो जाए तुम उसके सामने मत जाना,दोस्त.",तीनो खाने की मेज़ के पास आ कुर्सिया खीच बैठ गये & रंभा सबको खाना परोसने लगी.
खाना खाने के बाद देवेन ने विजयंत मेहरा को सोने भेज दिया.वो नही चाहता था कि उसकी सेहत पे कोई भी बुरा असर पड़े & फिर उसे अपनी माशुका के साथ तन्हाई के लम्हे भी गुज़ारने थे.रंभा बचा खाना फ्रिड्ज मे रख रही थी जब देवेन ने उसे पीछे से बाहो मे भर लिया.रंभा ने फ्रिड्ज बंद किया & पलट के उसके आगोश मे समा गयी.देवेन उसे बाहो मे भरते ही समझ गया कि वो अभी तक थोड़े तनाव मे है.उसने बड़े प्यार से उसकी पीठ सहलाते हुए झुक के उसके गाल चूमे,”अभी तक घबरा रही हो?”
रंभा ने बिना जवाब दिए चेहरा झुका लिया.खंजर गिरने की आवाज़ अभी तक उसके कानो मे गूँज रही थी,”वो आदमी..क़त्ल के इरादे से आया था..”
“हां,पर नाकाम रहा और यही अहम बात है.”,देवेन ने उसके बाल उसके चेहरे से हटके उसकी आँखो मे झाँका,”..रंभा,शायद आज से पहले तुम्हे उस ख़तरे का एहसास नही था जो हमारे चाहते ना चाहते हुए भी हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है.ये घबराहट होना भी लाज़मी है मगर रंभा,मुझे लगता है कि बहुत जल्द ये सारा मामला अपने अंजाम तक पहुचने वाला है..”,उसके हाथ प्रेमिका के गालो से हाथ उसकी कमर पे आ गये थे,”..अब वो अंजाम हुमारे हक़ मे होगा या नही ये बस उसे पता है..”,देवेन ने नज़रे उपर कर दुनिया के मालिक की ओर इशारा किया,”..& उस अंजाम की फ़िक्र मे डर-2 के जीना मुझे ठीक नही लगता.तुम्हे क्या लगता है?”,उसकी निगाहे अभी भी रंभा की निगाहो मे झाँक रही थी.
रंभा भी उसकी आँखो मे देख रही थी.देवेन की बातो से उसे हौसला मिला था..सही कह रहा था वो..यू घुट-2 के वो क्यू जिए?..उसकी क्या ग़लती थी बल्कि उसे तो उस शख्स का जीना हराम कर देना चाहिए जिसने उसके इन खुशियो भरे पलो को बर्बाद करने की सोची..रंभा के हाथ देवेन के सीने पे थे.उसने उन्हे वाहा से उपर उसकी गर्देन मे डाला & उचक के मुस्कुराते हुए उसके लबो से अपने लब सटा दिए.देवेन ने उसकी कमर को कस लिया & दोनो प्रेमी 1 दूसरे को शिद्दत से चूमने लगे.
किचन मे रखी खाने की मेज़ की कुर्सी पे देवेन बैठा तो रंभा खुद ही उसकी गोद मे बैठ गयी.दोनो अभी भी 1 दूसरे को चूमे जा रहे थे.देवेन का दाया हाथ रंभा की पीठ पे था & बाया उसकी वेस्ट को उठा उसकी कमर के मांसल भाग को सहला रहा था.रंभा देवेन की बातो & अब उसकी हर्कतो से थोड़ी देर पहले की घटना की वजह से पैदा हुई घबराहट को भूल रही थी.दोनो प्रेमियो ने अपनी ज़ुबाने अपने-2 मुँह से बाहर निकाल ली थी & उन्हे लड़ा रहे थे.रंभा अपने महबूब की ज़ुबान चाटते हुए मुस्कुरा रही थी & जब देवेन ने उसकी वेस्ट उपर कर उसके पेट को दबाया तो वो खुशी से चिहुनकि & अपनी बाहे उपर कर दी.
देवेन ने उसकी वेस्ट निकाली & 1 बार फिर उसकी पतली कमर को अपनी बाहो मे कसा & उसके चेहरे & होंठो को अपने गर्म होंठो से ढँकने लगा.रंभा के हाथ भी अपने आशिक़ की टी-शर्ट मे जा घुसे थे & उसकी मज़बूत पीठ पे घूम रहे थे.देवेन उसके चेहरे से नीचे उसकी गर्देन को चूम रहा था & रंभा अब अपने हाथ आगे ले आके उसके सीने के बालो मे घूमाते हुए उसके निपल्स खरोंच रही थी.देवेन का बाया हाथ उसकी स्कर्ट मे घुस गया था & उसकी जंघे भी उसके हाथ की आहट पाते ही अपने आप खुल गयी ताकि उनके बीच छुपि उसकी चूत को वो हाथ आसानी से च्छू सके.रंभा अब मस्त होने लगी थी.पॅंटी के उपर से ही देवेन उसकी चूत सहला रहा था & अब उसकी हसरतें भी बढ़ रही थी.उसने देवेन का मुँह अपने गले से उठाया & उसकी शर्ट निकाल दी & फिर झुक के उसके सीने को चूमने लगी.उसका दाया हाथ देवेन के मज़बूत सीने को सहलाता हुआ नीचे उसकी जीन्स के उपर से ही उसके लंड को दबा रहा था.देवेन भी उसकी इस हरकत से जोश मे आ गया & उसने रंभा की कमर थाम उसे अपने सामने खड़ा किया & फिर उसकी कमर के बगल मे लगे हुक्स खोल उसकी स्कर्ट को नीचे सरका दिया.लाल ब्रा & पॅंटी मे सज़ा रंभा का गोरा जिस्म बड़ा ही नशीला लग रहा था.देवेन कुच्छ पॅलो तक अपने सामने खड़ी उस हुस्न की मल्लिका को निहारता रहा.
“ऐसे क्या देख रहे हैं?”,रंभा के गालो के गोरे रंग मे हया की सुर्ख लाली घुल गयी थी.उपरवाले ने लड़कियो का दिल भी अजीब अदा से बनाया है.जिस मर्द के साथ हर रात सोती हैं,जिस से उन्हे कोई परदा मंज़ूर नही,उसकी निगाहो से भी शर्मा जाती हैं!पर शायद यही बात है जोकि मर्दो को लुभाती है!
“ये बेपनाह हुस्न देख रहा हू.”,देवेन भी खड़ा हो गया था.
“रोज़ ही तो देखते हैं.”
“पर हर रोज़ नयी लगती हो.”,1 बार फिर दोनो आगोश मे समा गये & 1 दूसरे को चूमने लगे.देवेन के हाथ रंभा के लगभग नंगे जिस्म पे बड़ी बेचैनी से फिसल रहे थे.उसके हाथो की गर्मी रंभा की मस्ती भी बढ़ा रही थी.देवेन उसे चूमते हुए थोड़ा आगे हुआ तो रंभा पीछे खाने की मेज़ पे बैठ गयी.उसने अपनी टाँगे खोल देवेन को आगे खींचा & उसके लंड को अपनी चूत पे दबाते हुए चूमने लगी.रंभा के हाथ देवेन की सख़्त पीठ से फिसलते हुए नीचे आए & जीन्स के उपर से ही उसकी गंद को दबाते हुए आगे आए & उसके बेल्ट को खोल ज़िप को नीचे सरकया & अंडरवेर के उपर से ही उसके सख़्त लंड को दबाने लगे.
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क्रमशः.......
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