Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:48 PM,
#72
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--71

गतान्क से आगे......

..& बस उस दिन की याद ताज़ा करने के इरादे से मैने इनका साथ दिया और फिर हम दोनो..-“

“-..रंभा,मुझे यू शर्मिंदा ना करो!”,देवेन झल्ला गया था.रंभा उसे उसकी गैरमोजूदगी मे हुई विजयंत मेहरा & उसकी चुदाई की पूरी कहानी सुना रही थी,”..तुम मुझे इस तरह सफाई मत दिया करो,प्लीज़!..प्यार का दूसरा नाम भरोसा होता है & वो मुझे तुमपे है.”,वो उसके करीब आ गया.रंभा ने झीनी हरी सारी & मॅचिंग स्ट्रिंग बिकिनी का टॉप पहना था जिसकी पतली डोर उसके गले मे माला की तरह से लटकी थी & पीछे पीठ पे बँधी उसकी छातियो को ढँके थी.देवेन को वो बहुत प्यारी लग रही थी & उसने उसके खुले बालो को उसके कानो के पीछे कर उसके चेहरे को हाथो मे थामा,”..बेकार की बातो मे दिमाग़ को मत उलझाया करो,वैसे ही कम उलझने नही हैं हमारी ज़िंदगी मे.”,उसने उसका माथा चूमा,”चलो अब मुस्कुरओ.”,तभी बाहर गेट पे किसी कार के हॉर्न की आवाज़ आई,”..लगता है यूरी आ गया.”,वो बाहर गया तो रंभा विजयंत के कमरे की ओर चली गयी.

लॉन मे बेहोश पड़े विजयंत को वही पौधो को पानी देने वाले फुआहरे से पानी डाल के देवेन होश मे लाया था मगर कुच्छ देर बाद वो फिर से बेहोश हो गया था.देवेन ने उसे उठाके उसके कमरे मे पहुचेया & फिर यूरी को बुलाया था.

अमोल बपत कोई कच्ची गोलिया खेला इंसान तो था नही.उसने उसी रोज़ देवेन के बारे मे पता करना शुरू कर दिया मगर साथ ही उसने बीसेसर गोबिंद के बारे मे भी पता करने का फ़ैसला लिया.अपनी अफीशियल आइड से लोजीन कर उसने महकमे के डेटाबेस मे गोबिंद को ढूँढना शुरू किया & कोई 30-35 मिनिट बाद उसे वो मिल गया.जैसा देवेन ने उसे बताया था,गोबिंद मारिटियस के पासपोर्ट से सेच्लेस से फ्लाइट पकड़ के मुंबई एरपोर्ट से घुसा था.उसने यहा आने का कारण सैर-सपाटा & यहा के ऐतिहासिक जगहो को देखने की हसरत बताई थी.उसके साथ उसने अड्वेंचर स्पोर्ट्स का शौकीन होने की बात भी कही थी.सामने तस्वीर मे 1 भूरे बालो वाला बुज़ुर्ग सा शख्स दिख रहा था..ये उम्र & अड्वेंचर स्पोर्ट्स..बपत को बात कुच्छ हाज़ाम नही हो रही थी.उसने प्रिंटर ऑन किया & कमॅंड देके उस से निकलते पन्नो को देखने लगा.

“रंभा कहा है?”,होश मे आते ही विजयंत ने ड्र.पोपव से सवाल किया.

“यही है.मैं अभी उसे बुलाता हुआ..”,वो उसकी आँखे देखने लगा & फिर उसकी नब्ज़ चेक की & फिर उस से कुच्छ सवाल करने लगा,”..कैसे बेहोश हुए थे याद है तुम्हे?”

“हाँ,मैं & रंभा बाहर..-“,वो चुप हो गया.उसे इस आदमी को अपनी चुदाई के बारे मे बताना कुच्छ ठीक नही लग रहा था.

“देखो,तुम्हारी ज़ुबान मे 1 सेयिंग है..आइ मीन हां!..कहावत है कि डॉक्टर & वकील से कुच्छ नही च्छुपाना चाहिए.वैसे भी मुझे देवेन & रंभा ने सारी बात बता दी है.मैं तो बस तुम्हे चेक करने के लिए ये सवाल कर रहा हू.”

“हम चुदाई कर रहे थे.”,विजयंत ने चेहरा दूसरी तरफ कर लिया था,”..रेलिंग पे..& तभी मैने नीचे देखा & मेरे दिमाग़ मे जैसे धमाका सा हुआ..रोशनी कौंधी..बहुत सी तस्वीरे 1 साथ उभरी..बहुत तेज़ी से..& फिर अंधेरा च्छा गया..”

“वो तस्वीरे याद हैं अभी?”

“नही.पर रंभा कहा है?”

“अभी बुलाता हुआ उसे.पर रंभा के बारे मे सब याद है तुम्हे?”

“वो मेरी महबूबा है.मैं उस से बहुत प्यार करता हू.”

“अच्छा,कब मिले थे उस से पहली बार?”

“ये तो याद नही पर हमेशा मेरे दिमाग़ मे उसके साथ अकेले मे बिताए..खूबसूरत लम्हो की सॉफ तस्वीरे मेरे ज़हन मे घूमती हैं.”

“अच्छा,अभी तक तुम ठीक से बोलते क्यू नही थे?..बस 1-2 लफ्ज़ कहते थे..ऐसा क्यू?..कुच्छ बता सकते हो?”

“पता नही.”,विजयंत ने कंधे उचका दिए.

“हूँ.”,डॉक्टर उठ खड़ा हुआ,”रंभा को भेजता हू.”,वो मुस्कुराता हुआ कमरे से बाहर चला गया.

कुच्छ पल बाद रंभा कमरे मे आई तो विजयंत बिस्तर से तेज़ी से उतरा & मुस्कुराता हुआ उसके पास आ गया & उसके कंधे थाम लिए,”रंभा!”

“डॅड,आप ठीक हैं?”,वो भी मुस्कुराइ.यूरी ने उसे सब बताया था.

“डॅड..”,विजयंत के माथे पे शिकन पड़ गयी,”..मुझे डॅड क्यू कह रही हो,रंभा?”

“आप यहा बैठिए.”,रंभा ने उसे बिस्तर पे बिठाया,”..मेरी बात ध्यान से सुनिए.मैं आपको आपकी ज़िंदगी की दास्तान सुनाने वाली हू.”

“देवेन..”,यूरी & देवेन ड्रॉयिंग हॉल के 1 कोने मे बने बार पे बैठ के जिन पी रहे थे,”..मैं समझ सकता हू,तुम्हारे लिए ये बहुत मुश्किल होगा पर विजयंत को ठीक करने का इस वक़्त इस से बेहतर रास्ता कोई & नही दिखता.वो रंभा को अपनी लवर समझता है & मैं चाहता हू कि फिलहाल उसे रंभा के करीब रहने दिया जाए.”

“यूरी,रंभा अभी अंदर उसे उसकी ज़िंदगी के बारे मे सब बता रही है तो उसके बाद क्या ज़रूरत है इस सबकी?”,यूरी हंसा.वो समझ सकता था कि कितना मुश्किल था अपनी महबूबा को 1 दूसरे मर्द के साथ बाँटना.

“माइ डियर फ्रेंड,थे ह्यूमन ब्रायन इस आर्ग्यूवब्ली दा मोस्ट इंट्रीगिंग थिंग एवर क्रियेटेड बाइ दा ऑल्माइटी..खुदा ने इंसानी दिमाग़ से ज़्यादा पेचिड़ी चीज़ शायद ही कोई और बनाई हो!..रंभा उसे कहानी सुनाएगी मगर उसे उस पे यकीन भी तो होना चाहिए.इसका मतलब ये नही कि उसे रंभा पे भरोसा नही मगर जब तक उसे खुद सारी बात याद नही आ जाती वो उसकी सुनाई कहानी को पूरे दिल से नही मानेगा.”,उसने जिन ख़त्म कर ग्लास बार पे रखा,”प्रोग्रेस अच्छी है & अगर मेरा कहा मनोगे तो शायद बहुत जल्द वो बिल्कुल ठीक हो जाए..ये मेडिसिन्स मंगवा लेना..”,उसने अपना ब्रीफकेस खोल 1 पॅड पे कुच्छ दवाओ के नाम लिखे & फिर पन्ना फाड़ देवेन को दिया,”..पुरानी मेडिसिन्स बंद कर इन्हे शुरू कर दो.ओके,अब चलता हू.”

“हॅव डिन्नर विथ उस,यूरी.”

“थॅंक्स ,देवेन पर आज वेरा आने वाली है.”यूरी मुस्कुराया & ब्रीफकेस बंद कर उस से हाथ मिलाया & 1 बार रंभा & विजयंत से बात की & फिर वाहा से चला गया.देवेन उसे बाहर तक छ्चोड़ने गया & वापस आ अपनी जिन ख़त्म कर बार से टिक के खड़ा हो गया.

“देवेन..”,विजयंत & रंभा वाहा आ गये थे,”..थॅंक्स,तुमने मेरे लिए इतना सब किया.”,विजयंत उसके करीब आ उसका हाथ थाम के हिला रहा था,”..& मैं माफी चाहता हू अगर..”

“नही कोई बात नही.”,देवेन ने 1 सॉफ्ट ड्रिंक की बॉटल खोल उसे दी & बार के दूसरे कोने पे जा अपने लिए फिर से जिन भरा.अब रंभा दोनो के बीच खड़ी थी.

“ड्र.पोपव चाहते हैं कि..”,रंभा की अधूरी बात का मतलब देवेन जानता था.

“हूँ.”,उसने जिन का घूँट भरा.विजयंत दोनो को देख रहा था.वो भी जानता था कि रंभा किस बात के बारे मे कह रही थी,”..अभी तो तुम्हे समझाया था,रंभा.कम ऑन रिलॅक्स!”,देवेन मुस्कुराया & अपना ग्लास खाली करने लगा.

रंभा बार से पीठ लगाए उसपे दोनो हाथ रखे खड़ी थी.विजयंत मेहरा उसके दाई तरफ उसी के जैसे खड़ा था.उसका बाया हाथ शेल्फ पे आगे सरका & रंभा की उंगलियो के पोरो को छुने लगा.रंभा ने उसके हाथ को देखा,उसके दिल की धड़कने तेज़ हो गयी थी.विजयंत की उंगलिया आगे सर्की & उसकी उंगलियो के बीच घुस गयी.रंभा के जिस्म मे वही जानी-पहचानी सिहरन दौड़ गयी.विजयंत ने देखा सारी के झीने आँचल के पार उसके दिल का हाल कहता उसका सीना उपर-नीचे हो रहा था.विजयंत का हाथ अब उसके पूरे हाथ को ढँक चुका था & सहला रहा था.रंभा ने आँखे बंद कर ली & अपनी ठुड्डी को 1 बार अपने दाए कंधे पे यू रगड़ा मानो कह रही हो कि उसके गुलाबी गाल,उसका हसीन चेहरा अब बस किसी के गर्म होंठो का साथ चाहते थे.

तभी उसके जिस्म मे बिजली की 1 & लहर दौड़ गयी.शेल्फ के दूसरी तरफ रखे उसके बाए हाथ पे देवेन ने अपनी 1 उंगली रख दी थी & उसे बहुत धीमे-2 उसके हाथ पे उपर बढ़ा रहा था.रंभा ने गर्देन घुमाके उसे देखा.देवेन को उसकी निगाहो मे केवल नशा दिखा,जिस्म की चाहत का नशा.विजयंत अपने पूरे हाथ को उसकी गोरी कलाई पे चलता हुआ उपर बढ़ा रहा था.उसका सख़्त हाथ रंभा की अन्द्रुनि बाँह को सहलाते हुए उपर के गुदाज़ हिस्से पे पहुँच रहा था.उधर देवेन की उंगली भी उसकी दूसरी बाँह के उपरी हिस्से पे पहुँच गयी थी & दायरे बना रही थी.

उसकी दाई,नर्म बाँह को विजयंत ने अपनी तरफ खींचा तो रंभा ने उसकी ओर देखा.विजयंत का चेहरा उसके चेहरे की तरफ झुक रहा था.रंभा के होंठ आने वाली किस के लिए खुद बा खुद ही खुल गये.विजयंत के होंठ रंभा के लरजते होंठो से मिले & अगले ही पल दोनो की ज़ुबाने गुत्थमगुत्था हो गयी.रंभा का जिस्म मस्ती से कांप रहा था.विजयंत का हाथ उसकी बाँह से उतर उसकी लगभग नंगी पीठ पे घूम रहा था.दोनो शिद्दत से काफ़ी देर तक 1 दूसरे को चूमते रहे.

जब सांस लेने की ज़रूरत महसूस हुई तो दोनो के होंठ अलग हुए & तब देवेन की उंगली उसकी बाँह से आगे उसके बाए कंधे पे आई & उसकी गर्देन से होते हुए उसकी ठुड्डी पे आई & उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाया.अपने प्रेमी से नज़रे मिलते ही रंभा उसकी ओर झुकी & देवेन की खिदमत मे अपने होंठ पेश कर दिए.देवेन ने उसकी पेशकश बड़ी गर्मजोशी से कबूल की & उसके गुलाबी होंठो का रस चूस्ते हुए उसके मुँह मे अपनी जीभ घुसा दी.विजयंत दोनो को चूमते हुए देख रहा था & रंभा की चिकनी पीठ सहला रहा था.

देवेन ने रंभा को चूमते हुए उसके बाए कंधे से उसके सारी के आँचल को सरका दिया.रंभा अब बहुत मस्त हो गयी थी & आह भरते हुए उसने किस तोड़ दी.इस तरह से 2 मर्दो के साथ दूसरी बार उनकी गर्म हर्कतो का निशाना बनाना उसे बहुत मदहोश कर रहा था.तभी विजयंत ने उसकी कमर मे अपना हाथ डाला & उसे अपनी ओर खींचा & खुद से चिपका लिया.रंभा तेज़ साँसे लेती हुई उसके कंधे पे हाथ रख उसकी आँखो मे देखने लगी.उस शख्स को कुच्छ भी याद नही था सिवाय इसके की वो उसकी महबूबा थी..उसकी बीवी थी,बच्चे थे..इतना बड़ा कारोबार & ना जाने कितनी माशुकाएँ थी..पर उसे केवल वो याद थी,केवल रंभा!वो अपने पंजो पे उचकी & उसके बालो को नोचती उसे चूमने लगी.

विजयंत को चूमते हुए उसकी आह निकल गयी.देवेन की 1 उंगली अब उसकी गर्देन के नीचे से उसकी पीठ पे घूम रही थी & उसके ब्लाउस की डोर तक आ गयी थी & उसकी पीठ की चौड़ाई पे उस डोर के साथ-2 घूम रही थी.रंभा जानती थी कि बस अब उसके ब्लाउस की वो पतली सी डोर खुलने ही वाली है..कुच्छ ही पलो मे वो नंगी होगी & इन दोनो के जिस्मो के बीच उसका नंगा जिस्म मस्ती की नयी ऊचईयाँ च्छुएगा!..इस ख़याल ने आग मे घी का काम किया & उसकी चूत मे कसक उठी जिसकी वजह से उसने अपनी मोटी जंघे बेचैनी से आपस मे रगडी.देवेन ने उसकी इस हरकत के कारण उसकी गंद मे होने वाली थिरकन को देखा & उसका लंड उसकी पॅंट मे छॅट्पाटेने लगा.उसने अपनी उंगली & अंगूठे को मिला ब्लाउस की डोर को खींचा & फिर रंभा की नंगी पीठ के बीचोबीच अपने होंठ रख बहुत ज़ोर से चूमा.

“आहह..!”,रंभा ने आह भरते हुए किस तोड़ी & पीछे सर झटका.देवेन ने उसकी कमर मे हाथ डाल उसके पेट को दबाते हुए अपनी ओर खींचा & उसके दाए कंधे को चूमते हुए उसके हसीन चेहरे तक अपने होंठ ले आया.रंभा ने दोनो हाथ पीछे ले जा अपने आशिक़ के गले मे डाले & उसके बॉल खींचते हुए उसके होंठो को तलब किया & उन्हे चूमने लगी.विजयंत को अजीब लग रहा था रंभा को इस तरह देवेन की बाहो मे देखना..वो उसकी थी..इतना तो याद था उसे..मगर उसने खुद उसे थोड़ी देर पहले जो बातें बताई थी,उस हिसाब से वो उसकी बहू लगती थी & उनका रिश्ता दुनिया की नज़रो मे नाजायज़ होता..पर फिर उसे ये बात क्यू याद नही?..याद तो उसे बहुत कुच्छ नही..दोनो के होंठ अलग हो चुके थे & दोनो 1 दूसरे को देख रहे थे.विजयंत को देवेन से जलन हुई..कुच्छ ऐसा था रंभा की निगाहो मे जोकि जब वो उसे देखती थी तो नही होता था..जब वो उसे देखती थी तो वासना होती थी,चाहत होती थी मगर वो बात..वो लगाव..वो मोहब्बत की शिद्दत नही होती थी जो इस वक़्त उसकी आँखो मे देवेन को देखते हुए थी..पर ये हक़ीक़त थी & चाहे जैसी भी हो उसे इसी के साथ जीना था.

उसका दिल तो नही किया दोनो को अलग करने का मगर उसका जिस्म रंभा की नज़दीकी के लिए तड़प रहा था.वो झुका & फर्श पे बैठते हुए रंभा का दाया पाँव अपने हाथ मे ले लिया & उस से सॅंडल उतारा.रंभा ने नीचे देखा विजयंत उसके पैरो की उंगलियो को 1-1 करके चूम रहा था.उसने आह भरी & पीछे देवेन के सीने से सर टीका के आँखे बंद कर ली.बहुत मज़ा आ रहा था उसे मगर साथ ही थोड़ा ग्लानि भी हो रही थी..उसे क्यू अच्छा लग रहा था विजयंत का साथ?..वो तो देवेन को दिलोजान से चाहती थी..उसके लिए अपनी जान देने से भी नही झिझकति वो फिर क्यू विजयंत को वो रोकती नही थी बल्कि उसका पूरा साथ देती थी वो!..जिस्म को इन बातो से क्या मतलब!..उसे तो बस अपनी भूख मिटानी होती है..& उसे जब कोई पसंद आ जाए तो वो रिश्ते-नाते-वफ़ा,किसी की परवाह नही करता..रंभा को अपनी इस उलझन,इस बेबसी पे गुस्सा आया & उसने अपने हाथ पीछे ले जाके देवेन के बाल बहुत ज़ोर से खींचे.

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क्रमशः.......
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