Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:48 PM,
#71
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--70

गतान्क से आगे......

"म्र्स.मेहरा मुझे सिर्फ़ आपको ढूँदने का काम दिया गया था.आप दोनो के ज़ाति मामलो मे पड़ने का मेरा ना इरादा है ना ही ख्वाहिश."

"मिस्टर.मोहन,शायद समीर ने आपको बताया नही कि मैने उस से साफ-2 कहा था कि वो मुझे ढूँढने की कोशिश ना करे वरना वही होगा जो मैने अभी पहले कहा था & आपने जिस दिन मुझे ढूँढने का काम अपने हाथ मे लिया,चाहते या ना चाहते हुए आप भी हमारे ज़ाति मामले का हिस्सा बन गये.अब ये बात समीर को बताइए & मुझे चंद दिन यहा सुकून से गुज़रने दीजिए.गुडबाइ!",बलबीर अपने मोबाइल को देख कर सर हिला रहा था.

रंभा ने मोबाइल किनारे रखा & सामने समंदर की लहरो को देख उसका दिल उनसे खेलने को मचल उठा.उसने पिच्छली शाम ही देवेन की पसंद के कुच्छ स्विमस्यूट्स खरीदे थे.आज वक़्त था उनमे से 1 को ट्राइ करने का.वो मुस्कुराती हुई अपने कमरे मे गयी & जब लौटी तो उसके गोरे जिस्म पे 1 सफेद 2-पीस बिकिनी थी.रंभा घर के पिच्छले हिस्से मे बने लॉन के आख़िर मे बनी सीढ़ियो से नीची उतरी & 1 गेट खोल बीच पे आ गयी.यहा काफ़ी दूरी पे घर बने थे & बीच भी लगभग खाली ही था.उसे बस इक्का-दुक्का लोग या तो सुन्बाथ लेते या फिर कही आते-जाते दिख रहे थे.रेत पे चलते हुए वो समंदर के पानी मे उतर गयी & लहरो से खेलने लगी.उसे बड़ा मज़ा आ रहा था तैरने मे.लहरे उसके जिस्म को अपनी बाहो मे भर उच्छलती तो उसका दिल रोमांच से भर जाता.देर तक वो किसी जलपरी की तरह पानी मे अठखेलिया करती रही.

जी भर के तैरने के बाद वह पानी से निकली & घर की तरफ बढ़ी.घर की ओर देखते ही वो चौंक गयी.जिस जगह खड़ी हो वो बलबीर से बात कर रही थी वाहा पे अब विजयंत मेहरा खड़ा उसे देख रहा था.रंभा को गुजरात के समंदर के किनारे की वो सवेरे की मुलाकात याद आ गयी & उसका दिल धड़क उठा.वो धीमे कदमो से गेट तक पहुँची,उसे खोला & अंदर गयी.विजयंत उसे देखे जा रहा था & उसकी आँखो मे वही कुच्छ समझने का सा भाव था.

रंभा सीढ़िया चढ़ उसके करीब पहुँची.उसका गीला जिस्म धूप मे चमचमा रहा था.विजयंत की निगाहें उसके चेहरे पे जमी थी जिसे भीगे गेसुओ से टपकती बूंदे चूम रही थी.उसने अपना हाथ आगे बढ़ा के रंभा को तौलिया थमाया & उसकी निगाहें उसके चेहरे से नीचे उसके गीले चमचमते बदन को चूमने लगी.रंभा का धड़कता दिल मस्ती से भर उठा था.उसके बिकिनी के ब्रा मे 2 नुकीले उभार उभर आए थे..क्या इसे याद है वो सुबह जब मैने इसकी मौजूदगी मे झुर्मुट की आड़ मे कपड़े बदले थे?

"थॅंक्स.",उसने तौलिया लिया & अपने बाई तरफ के 2 बड़े पौधों के पीछे चली गयी.उनके बड़े-2 पत्तो की आड़ मे अपने प्रेमी को देखते हुए वो तौलिए से अपने गाल सुखाने लगी.

"रंभा.",वो अपने सीने पे तौलिए को दबा रही थी जब उसके ससुर ने उसका नाम पुकारा.

"हूँ.",विजयंत ने पत्तो को नीचे किया.उसकी निगाहें बहू के सीने पे रखे तौलिए पे थी.

"तुमने कोई अच्छा काम किया है.",रंभा के माथे पे शिकन पड़ गयी..ये कैसा सवाल था?,"..तुमने कुच्छ अच्छा किया है.",..अब वो समझी..गुजरात मे उसने उसकी सेमेंट के दाम वाली बात बताने पे तारीफ की थी..उसे वही याद आ रहा था.विजयंत के हाथ उसके सीने पे रखे तौलिए को थामे हाथो पे आ गये थे.

"हां,बताइए क्या अच्छा किया है?",विजयंत ने तौलिया नीचे गिरा दिया & उसके हाथ पकड़ के सीने से हटा दिए & उसके क्लीवेज को देखने लगा.

"कुच्छ अच्छा किया है..",वो झुका & उसकी गर्दन चूमने लगा.

"उउन्न्ञन्..याद कीजिए डॅड,क्या अच्छा किया था?",वो उसके क्लीवेज पे लगी बूँदो को अपनी ज़ुबान से चख रहा था.उसकी ज़ुबान & गर्म साँसे रंभा के सीने को तपते हुए उसे मस्त कर रही थी.उसके हाथ ससुर के मज़बूत जिस्म को महसूस करने को मचल रहे थे.उसने अपनी उंगलिया विजयंत की उंगलियो से अलग की & उसके कंधे थाम लिए & उसके सर को चूमने लगी.

"आपने मुझे ऐसे देखा है कभी..ऊहह..?",विजयंत उसके क्लेवगे को चूस रहा था.उसने उसके बाल पकड़ सर को उपर किया & उसकी आँखो मे देखा,"..बोलिए देखा है आपने मुझे कभी ऐसे?"

"शायद..नही..कुच्छ..धुँधला सा....है..!",उसके माथे पे शिकन गहरी हो रही थी.रंभा ने उसके सीने पे हाथ रख उसे पीछे रेलिंग पे बिठा दिया & उसके कंधो पे बाहे जमा उसके चेहरे को हाथो मे भर लिया & चूम कर उसके माथे की सलवटो को दूर करने लगी.

"कोई बात नही..परेशान मत होइए.सब याद आ जाएगा..ऊव्ववव..!",विजयंत के हाथ उसकी मोटी गंद को दबाने लगे थे & वो चिहुनक के आगे हो गयी थी.विजयंत का चेहरा उसके सीने मे घुस गया था & 1 बार फिर उसके क्लीवेज पे उसके गर्म होंठ अपने निशान छ्चोड़ने लगे थे.रंभा ने उसके सर को बाहो मे पकड़ सीने पे ज़ोर से दबाया & और आगे हो गयी.विजयंत के हाथ उसकी पॅंटी मे घुस उसकी गंद की कसी फांको को मसल रहे थे.

"आपको समीर याद है डॅड..शिप्रा..रीता..बोलिए?..आननह..!",उसकी पॅंटी को नीचे कर वो उसकी गंद को दबोचते हुए उसके क्लावेज को काट रहा था.रंभा ने उसके बाल पकड़ उसके सर को अपने सीने से अलग किया & उसकी टी-शर्ट को उपर खींचा.विजयंत ने उसकी बिकिनी टॉप के कप्स से उसकी मोटी छातियो बाहर निकली & उन्हे मसलने लगा.रंभा ने अपने नाख़ून उसकी नाभि से लेके निपल्स तक चलते हुए उसे झुक के चूमा तो वो बहुत ज़ोर से उसकी ज़ुबान चूसने लगा.

"नही.",वो उसकी चूचिया चूस रहा था & उसकी कमर को जकड़े हुए उसकी गीली पीठ & गंद को अपने हाथो से मसल रहा था.

"ट्रस्ट..डेवाले..पंचमहल..क्लेवर्त..होटेल वाय्लेट....ये नाम जानते हैं आप?..ओईईईईई..!",विजयंत ने उसकी पॅंटी उपर की & फिर उसकी टाँगे फैला के उसे अपनी गोद मे बिठा लिया था & उसे बाहो मे भींच उसके निपल्स काट रहा था,"..दाँत मत लगाइए..दर्द होता है..हान्न्न्न्न..ऐसे ही..वी माआआ..ऐसे ही चुसिये..हाईईईईईईईईई..!",नीचे हाफ-पॅंट मे क़ैद विजयंत का लंड उसकी बिकिनी बॉटम के गीले कपड़े से ढँकी उसकी उतनी ही गीली चूत को चूम रहा था & उपर उसका ससुर उसकी चूचियो को अपने मुँह मे पूरा भरने की कोशिश करता हुआ चूस रहा था.रंभा तो मस्ती मे पागल हो गयी & पीछे झुक के अपने बाल पकड़ उनमे बेचैनी से हाथ फिराते हुए झड़ने लगी.विजयंत की मज़बूत बाहे उसे पीछे गिरने से रोके हुई थी.

"कुच्छ नही याद आ रहा आपको?",रंभा संभली तो सीधी हुई & उसकी पीठ को नोचते हुए उसे चूमने लगी.गंद आगे-पीछे कर वो ससुर के लंड को छेद रही थी.

"नही.",विजयंत ने उसकी कमर पकड़ उसे उठाया & उसे घुमा के चौड़ी रेलिंग पे लिटा दिया & अपनी पॅंट उतार दी.रंभा ने उसका लंड पकड़ उसे अपनी ओर खींचा & लेटे-2 ही उसे मुँह मे भर लिया & चूसने लगी.

"ये याद है आपको डॅड?",रंभा ने लंड मुँह से निकाल उपर कर उसके आंडो को अपने सामने किया & 1 को मुँह मे भर लिया.

"हान्न्न्न्न्न..आहह..!",रंभा हैरान हो गयी.

"सच ये याद है आपको?",वो आंडो के उपर की त्वचा को अपने दन्तो मे बहुत हल्के से पकड़ के खींच रही थी.

"हां..याद है..",रंभा ने लंड को ज़ोर से हिलाया & फिर उसके सूपदे को चूसा.

"& क्या याद है आपको?",वो उठ बैठी & ससुर की कमर को बाहो मे भर उसकी गंद को दबोचते हुए उसके पेट के बालो मे अपने गालो & नाक को रगड़ने लगी.

"बस यही..आहह..!",वो उसके बालो मे बेचैनी से हाथ फिराते हुए उसके सर को अपने पेट मे दबा रहा था.रंभा ने दाए हाथ से उसके लंड को पकड़ अपनी चूचियो के बीच की वादी मे दबाया & फिर उसकी नाभि मे जीभ घुसाते हुए अपनी दोनो छातियो को बाहर से थाम लंड को उनके बीच क़ैद कर उसे हिलाने लगी.

"यही की आप ये सब करते थे मेरे साथ?"

"हान्न्न्न्न..ओह..!",विजयनत्न की आँखे बंद थी & उसके चेहरे पे लकीरे खीच गयी थी..मज़े की या उलझन की-ये रंभा की समझ मे नही आ रहा था.

"कहा करते थे ये सब मेरे साथ आप?",वो बदस्तूर लंड को अपनी मखमली चूचियो के बीच दबा हिलाए जा रही थी.

"कमरे मे.",विजयंत के माथे की शिकने फिर गहरी हो रही थी.

"कैसे कमरे मे?..किसके कमरे मे?..किसी घर के कमरे मे या फिर कही & के?",उसने लंड को ज़ोर से हिलाते हुए & सवाल किए.

"नही याद मुझे..बिल्कुल नही..आहह..!",विजयंत चीखा.उसके माथे की शिकने अब बहुत गहरी हो गयी.आँखे बिल्कुल मीची हुई थी & वो रंभा के बालो को अब इतनी ज़ोर से खींच रहा था की उसे दर्द होने लगा था.

"कोई बात नही.छ्चोड़ दीजिए याद करना.",रंभा समझ गयी कि अब & सवाल करना विजयंत के लिए नुकसानदेह हो सकता था.उसने लंड को चूचियो की क़ैद से आज़ाद किया & लेट गयी,"..आइए अब वो कीजिए जो आपको याद है डॅड.इस जिस्म को प्यार कीजिए..",नशीली निगाहो से देखते हुए उसने अपने हाथो से अपनी चूचियाँ आपस मे ज़ोर से दबाई,"..जी भर के खेलिए इस से..",उसके हाथ सीने के उभरो से फिसलते हुए उसके पेट से होते हुए उसकी पॅंटी पे आए.उसने अपने घुटने मोडते हुए अपनी टाँगे फैलाई & अपने हाथ चूत पे दबा दिए,"..& अपनी & मेरी,दोनो की प्यास बुझा दीजिए जैसे आप हमेशा बुझाते हैं!"

बहू की बातो ने विजयंत के माथे की शिकनो को दूर कर दिया था.उसकी ज़हनी परेशानिया दूर हो गयी थी & उसे अब बस जिस्मानी चाहत का होश था.उसने रंभा के हाथ उसकी पॅंटी से अलग किए & उसे उतार दिया.रंभा ने पनती उतरते ही फिर से अपने हाथो से अपनी चूत को च्छूपा लिया.विजयंत ने उसके चेहरे को देखा.रंभा के अधखुले होंठ & नशे से बोझल पलके चीख-2 के उसके मस्ताने हाल को बयान कर रही थी.विजयंत बहुत जोश से भर गया था.

"उउम्म्म्म.....आन्न्न्नह..हान्ंनणणन्..उउन्न्ह..!",वो झुका & रंभा के हाथो को चूमने लगा & उसकी उंगलियो के बीच ऐसे ज़ुबान फिराने लगा मानो वो उंगलिया चूत की फांके हों & उनके बीच की जगह चूत की दरार.रंभा मस्ती मे सर दाए-बाए झटकते हुए आहे भरने लगी.विजयंत की ज़ुबान ने उसकी उंगलियो को इतना छेड़ा की वो मस्ती से आहत हो उन्हे मोड़ने लगी & अपनी चूत को नुमाया कर दिया.ऐसा करते ही विजयंत की ज़ुबान ने उसकी कोमल उंगलियो को छ्चोड़ उसकी नाज़ुक,गुलाबी चूत को अपना निशाना बनाया & कुच्छ ही देर मे रेलिंग पे खुले आसमान के नीचे कमर हिलाती रंभा झाड़ रही थी.

"आननह..!",विजयंत फ़ौरन उठा & रैलैन्ग पे दाया घुटना जमाते हुए अपना लंड रंभा की रस बहाती चूत मे घुसा दिया.रंभा ने दर्द & मस्ती से जिस्म को कमान की तरह मोड़ा & अपनी चूचियो को अपने ही हाथो से दबाने लगी.विजयंत रैलैन्ग पे घुटना जमा उसे चोदने मे जुट गया.रंभा अपनी छातियो से खेलती मस्ती भरी आँखो से उसके चेहरे को देख रही थी..क्या उसे बस उसका & अपना रिश्ता याद था?..& कुच्छ भी नही..हां,तभी तो कल भी उसने उसका आँचल थाम उस रोका था & फिर..,"..ऊव्ववव..!",वो करही.उसके ससुर के धक्के अब बहुत गहरे हो गये थे & उसकी चूत की दीवारो को उसका लंड बुरी तरह रगड़ रहा था.

विजयंत ने उसके हाथ उसकी छातियो से अलग किए & उन्हे बुरी तरह दबाने लगा..बस यही बात रंभा की समझ मे नही आ रही थी..पहले का बड़ी गर्मजोशी मगर उतनी ही कोमलता से उसे छुने वाला विजयंत अब इस जूंगलिपने के साथ उस से क्यू पेश आ रहा था?..हां..ड्र.पोपव..इस सवाल का जवाब दे सकते थे..उसका दिमाग़ थोड़ी देर को इन सवालो से जूझने के बाद फिर से वापस जिस्म की मस्ती के ख़यालो से भर गया था.

उसने अपने सीने को रौन्दते हाथो को थाम विजयंत को आगे खींचा तो वो उसके उपर गिर गया.रंभा ने अपने नाख़ून उसकी गंद मे धंसा दिए & उसके बाए कान मे जीभ फिराते हुए कमर उचकाने लगी.विजयंत अपने दाँत पीसते हुए बस धक्के पे धक्के लगाए जा रहा था.बेचैनी मे वो कभी रंभा के चेहरे तो कभी चूचियो को चूमता या बस सर उठाये आहे भरने लगता.

"आननह..दद्द्द्द्द्द्दद्ड..!",रंभा ने ज़ोर से आह भरी & विजयंत की कंधो मे नाख़ून धँसाते हुए अपनी चूचियाँ उपर उचकाई & सर पीछे कर लिया.उसकी आँखे बंद थी & चेहरे पे झड़ने की खुमारी के भाव.

गंद मे नाख़ून धंसते ही विजयंत के धक्के अपनेआप तेज़ हो गये & उसका बदन झटके खाने लगा.रंभा की चूत की मस्तानी हर्कतो से विवश हो वो भी झाड़ गया था.आँखे बंद किए सर उपर उठाए वो उसकी चूत की कसावट से बहाल हो आहे भर रहा था.

कुच्छ पलो बाद दोनो प्रेमियो ने 1 साथ आँखे खोली & 1 दूसरे को देखा.विजयंत की नज़रे रंभा के बाई ओर रेलिंग के नीचे गयी & रंभा को उनका रंग बदलता दिखा.वो समझ गयी कि कुच्छ गड़बड़ होने वाली थी.उसना फ़ौरन गर्दन घुमा रेलिंग के नीचे देखा.वाहा कुच्छ भी नही था बल्कि दूर-2 तक बीच खाली पड़ा था,"डॅड..क्या हुआ?"

मगर विजयंत ने जैसे उसका सवाल सुना ही नही था.उसके चेहरे को देख ऐसा लग रहज़ा था मानो वो बहुत तकलीफ़ मे हो,बहुत दर्द हो रहा हो उसे,"नही..सोनियाआआ..!",वो चीखा & उसकी आँखे उलट गयी & वो रंभा के सीने पे गिर गया.

"डॅड!..क्या हुआ?!..उठिए..!",रंभा ने उसके भारी-भरकम जिस्म को धकेला तो वो कटे पेड़ की तरह लॉन की घास पे गिर गया.वो बहुत घबरा गयी.उसने फ़ौरन उसकी धड़कन & सांस चेक की..दोनो ठीक थे.वो बेहोश हो गया था.तभी 1 कार के रुकने की आवाज़ आई.वो भागती हुई घर के सामने की ओर गयी.देवेन अपनी चाभी से मेन गेट खोल कार अंदर लगा रहा था,"..देवेन..जल्दी आइए..जल्दी!",देवेन ने जल्दी से गेट लॉक किया & उसके पीछे-2 अंदर आया.

"क्या हुआ?",दोनो की नंगी हालत देख उसे समझने मे देर नही लगी कि कुच्छ देर पहले दोनो कर क्या रहे थे.

"डॅड..बेहोश हो गये.",रंभा की आवाज़ कांप रही थी.

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क्रमशः.......
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