Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:47 PM,
#69
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--68

गतान्क से आगे......

देवेन ने उसकी कमर थाम उसे अपनी गोद मे अपने लंड पे बिठाया तो रंभा ने भी दाया हाथ पीछे ले जा उसके लंड को थाम उसे अपनी चूत का रास्ता दिखाया.रंभा उसके कंधो पे कोहनिया टीका उसे चूमते हुए उसके लंड पे कूदने लगी.देवेन भी उसकी कमर के मांसल हिस्सो को दबाते हुए,उसकी पीठ को जकड़ते हुए उसकी किस का जवाब दे रहा था.उसने रंभा की गर्दन को जम के चूम & फिर अपने होंठ उसकी चूचियो से लगा दिए.

"एयेयीयैआइयीईयेयीईयी..!",रंभा चीखी तो देवेन ने भी चौंक के उसके सीने से सर उठाया.कब विजयंत सोफे से उठ रंभा के पीछे आ गया था & उसकी गंद मे अपना लंड घुसा दिया था उसे पता ही नही चला था.देवेन की आँखो मे गुस्सा उतर आया & वो विजयंत को परे धकेलने ही वाला था कि रंभा ने आँखो से इशारा कर उसे रोका & उसे चूमा.विजयंत आधा लंड अंदर घुसा बहुत धीरे-2 उसकी गंद मार रहा था.रंभा ने अपने दाए कंधे के उपर से गर्दन घुमाई तो वो आगे झुका & उसके होंठ चूमने लगा.

"उउंम..मैं कौन हू,डॅड..आपको याद है?",रंभा ने दाई बाँह उसकी गर्दन मे डाल दी.वो मस्ती मे पागल हो गयी थी.विजयंत ने उसके होंठो को छ्चोड़ा & उसे देखने लगा जैसे याद करने की कोशिश कर रहा हो कि वो कौन है.उसके माथे पे शिकन पड़ती जा रही थी & रंभा को लगा कि कही वो दिमाग़ पे ज़्यादा ज़ोर ना डाल ले & उसने दोबारा उसके सर को नीचे झुका उसके होंठो को चूम लिया.विजयंत & देवेन दोनो ही उसकी चूचियाँ मसल रहे थे & जब 1 उसके होंठ छ्चोड़ता तो दूसरा चूमने लगता.

"आननह..!",रंभा फिर चीखी.विजयंत ने लंड & अंदर धकेल दिया था.इतनी अंदर तक उसकी गंद मे कुच्छ भी नही घुसा था & उसे दर्द हो रहा था.उसकी कमर थामे विजयंत हल्के-2 उसकी गंद मार रहा था & वो चूत मे घुसे देवेन के लंड पे उच्छल रही थी.उसकी आँखे बंद हो गयी थी & जिस्म मे जैसे जान ही नही थी बस मस्ती ही मस्ती थी.वो झाडे जा रही थी मगर दोनो मर्द रुकने का नाम ही नही ले रहे थे.देवेन ने उसके सीने के उभारो को छूने के बाद सर उठाया तो महबूबा की हालत समझ गया.

"विजयंत,रूको.",उसने बड़ी सायंत मगर हुक्म देती आवाज़ मे विजयंत से कहा.विजयंत रुक गया,"..लंड बाहर खिँचो.",उसने वैसा ही किया.रंभा आश्चर्य से देख रही थी.दुनिया भर को हुक्म देने वाला विजयंत देवेन के हुक्म कैसे मान रहा था!देवेन ने रंभा की कमर को बाहो मे जकड़ा & उसे थाम के खड़ा हुआ & फिर सोफे पे लिटा के उसके उपर आ उसे चूमते हुए चोदने लगा.विजयंत दोनो को खड़ा देख रहा था.

"उउंम..ऊव्ववव..",देवेन का लंड उसकी कोख पे चोट कर रहा था & वो मस्ती मे उसकी पीठ नोच रही थी,"..सुनिए..बुरा मत मानिए प्लीज़..पर इन्हे आने दीजिए ना!..मुझे लगता है इन्हे इस से...आहह..कुच्छ याद आ जाए..उउन्न्ह..!",विजयंत के लंड ने उसे कगार के उपर से धकेल दिया था & वो फिर मस्ती की खुमारी मे खो गयी थी.

देवेन का दिल तो नही कर रहा था मगर रंभा की बात सही थी लेकिन उसने सोच लिया था कि इस बार वो उसे उसके जिस्म के साथ जुंगली पने से नही खेलने देगा.उसने रंभा को दाई करवट पे घुमाया & उसके पीछे आया & बाई बाँह उसकी कमर पे डाल उसके पेट को सहलाते हुए उसकी गर्दन चूमने लगा.वो भी बाया हाथ पीछे ले जा मुस्कुराते हुए उसके बालो से खेलने लगी.देवेन उसकी गर्दन चूमते हुए उसकी पीठ पे आया & उसे पेट के बल लिटा उसकी चिकनी पीठ को अपने होंठो से तपाने लगा.रंभा सोफे मे मुँह च्चिपाए चिहुनक रही थी.देवेन उसकी पीठ चूमते हुए नीचे उसकी गंद तक आया & उसकी फांको को फैला उसकी गंद के छेद को चूमने लगा.रंभा उसका इरादा भाँप गयी,"..उउन्न्ह..नही..वाहा बहुत दर्द होता है..ऊहह..!",देवेन अपनी उंगली से उसकी गंद मारने लगा था.रंभा आहे भरती अपनी कमर उचका रही थी.

"आननह..!",देवेन ने उसकी कमर थाम उसकी गंद को हवा मे उठाया & अगले ही पल उसका आधा लंड उसकी महबूबा की गंद मे था.इस बार वो उसके इस नाज़ुक अंग के साथ विजयंत को कोई बेरेहमी करने का मौका नही देना चाहता था.लंड गंद मे धंसाए बिना हिलाए वो उसके उपर लेट गया & उसकी गर्दन & बाल चूमने लगा.जब रंभा थोड़ा संभली तो उसके सीने के नीचे हाथ घुसा उसकी चूचियो को बहुत हल्के-2 दबा के उसने उसकी गंद मारना शुरू किया.रंभा अब आहे भर रही थी & उसके हाथ उसकी बेचैनी की कहानी कहते सोफे के गद्दे मे धँस रहे थे.देवेन ने रंभा के जिस्म को अपनी बाहो मे कसा & करवट ली & अगले पल वो उसके उपर लेटी थी & वो उसके नीचे.

"आओ,विजयंत.",अपने दिल पे पत्थर रख देवेन ने विजयंत को अपनी प्रेमिका की चूत चोदने का न्योता दिया.विजयंत आगे बढ़ा & सोफे पे दोनो के पैरो के पास घुटनो पे बैठ गया.रंभा का दिल बहुत ज़ोरो से धड़क रहा था.विजयंत ने उसकी चूत मे उंगली घसाई तो वो चिहुनक उठी & उसके बदन मे सिहरन दौड़ गयी.उसकी चूत बहुत गीली थी.विजयंत ने उसकी टाँगे फैलाई & आगे झुक के लंड को उसकी चूत मे घुसाया & उसके उपर झुकने लगा.थोड़ी देर बाद लंड जड तक चूत मे था & वो उसके उपर झुका उसकी आँखो मे देख रहा था.रंभा ने अपने हाथ उसके मज़बूत उपरी बाजुओ पे लगाए & उचक के उसके होंठ चूमे तो विजयंत ने कमर हिला उसकी चुदाई शुरू कर दी.रंभा उसके होंठ छ्चोड़ नीचे हुई & आँखे बंद कर देवेन के सीने पे लेटी दोनो लंड का मज़ा लेने लगी.

विजयंत की आँखे अभी भी उसे जैसे पहचानने की कोशिश कर रही थी.उसका दिल,उसका दिमाग़ शायद उसे नही पहचानते थे मगर उसके जिस्म को तो रंभा के जिस्म से मिलते ही मानो सब याद आ गया था.उसका लंड उसकी चूत की दीवारो को रगड़ते हुए उसकी कोख पे चोट कर रहा था.रंभा ने अपना सर देवेन के दाए कंधे पे रख दिया था & वो कभी उसे चूमती तो कभी उपर झुके विजयंत को.अब तीनो के जिस्म मस्ती के आसमान मे बहुत ऊँचे उड़ रहे थे.दोनो मर्दो ने भी बहुत देर से अपने उपर काबू रखा हुआ था & अब बात उनके बस के भी बाहर थी.वो भी अब बस जल्द से जल्द अपनी मंज़िल पे पहुचना चाहते थे.देवेन उसकी कमर थामे नीचे से अपनी कमर उचका के आधे लंड से उसकी गंद मार रहा था & उसके उपर झुका मस्ती की शिद्दत से दाँत पिसता विजयंत उसकी चूत मे बहुत तेज़ धक्के लगा रहा था.रंभा को अब कुच्छ होश नही था.पिच्छले कुच्छ पलो मे वो कितनी बार झड़ी थी उसे कुच्छ होश ही नही था बल्कि उसे तो ये लग रहा था कि वो1 लंबी झदान है जो ख़त्म ही नही हो रही है.

"याआह्ह्ह्ह्ह..!",देवेन करहा & रंभा ने गंद मे उसके गर्म वीर्य की बौच्चरें महसूस की & उसकी चूत ने भी जवाब दे दिया.

"आननह..!",उसने आह भरी & उसका जिस्म अकड़ सा गया & वो जिस्म को कमान की तरह मोदते झड़ने लगी.उसकी चूत विजयंत के लंड पे सिकुड़ने-फैलने लगी & उस वक़्त विजयंत के दिमाग़ मे जैसे 1 धमाका सा हुआ.उसके ज़हन मे काई तस्वीरे 1 साथ कौंध गयी.हर तस्वीर मे वो लड़की जिसकी चूत मे वो लंड धंसाए था उस से चिपकी मदहोश हो रही थी & वो उसके साथ अपने जोश को शांत कर रहा था.

"रंभा..!",वो चीखा & उसने रंभा की चूत मे अपना गर्म वीर्य छोड़ दिया.रंभा हैरान होके उसे देखने लगी & देवेन भी..क्या उसकी याददाश्त वापस आ गयी थी?विजयंत उसके उपर झुका हुआ हाँफ रहा था,"..तुम रंभा हो.",उसे अभी भी भरोसा नही था.

"हां,मैं रंभा हू.",रंभा खुश हो गयी & उसका चेहरा थामा,"..क्या लगती हू मैं आपकी बताइए?",विजयंत सोचने लगा.उसके माथे पे पहले हल्की शिकन पड़ी मगर धीरे-2 वो गहरी होने लगी.उसके चेहरे पे दर्द के भाव आने लगे,"बस..नही याद आता तो छ्चोड़ दीजिए.",रंभा ने उसे खींच अपने सीने पे उसका सर रख लिया & सहलाने लगी.

कुच्छ पॅलो बाद उसने उसके सर को उठाया & अपने उपर से उठने का इशारा किया तो विजयंत ने उसकी चूत से लंड बाहर खींचा & खड़ा हो गया.रंभा ने अपनी गंद से देवेन का सिकुदा लंड बाहर निकाला & सोफे से नीचे उतरी.देवेन भी उसके पीछे-2 उठा & रंभा को गोद मे उठा लिया & अपने कमरे की ओर बढ़ गया.उनके पीछे-2 विजयंत भी आगे बढ़ा.

"बस,अब ये आराम करेगी,विजयंत.ठीक है?",कमरे की दहलीज़ पे वो रुका & विजयंत से मुखातिब हुआ.विजयंत ने हां मे सर हिलाया,"..& इस कमरे मे तुम इसे नही चोदोगे.ओके?..यहा के अलावा कही भी..पर इस कमरे मे नही..हूँ..अब जाओ..कपड़े पहन अपने कमरे मे आराम करो.मैं कुच्छ देर बाद हम खाना खाएँगे.",विजयंत ने समझने का इशारा करते हुए सर हिलाया & अपने कमरे मे चला गया.

"थोड़ी देर मेरे पास रहिए.",देवेन रंभा को बिस्तर पे लिटा के वाहा से जा रहा था कि उसने उसे रोक लिया.वो उसके बगल मे लेट गया तो रंभा उसके पहलू मे आ गयी,"..इस कमरे मे उन्हे क्यू नही आने दिया?",उसकी आँखो मे शरारत थी,चुदाई के दौरान भी देवेन की उलझन उस से छिपि नही थी & उसे इस वक़्त बहुत प्यार आ रहा था अपने प्रेमी पे.

"तुम्हे नही पता क्या?..कोई और हालात होते तो..",उसने बात अधूरी छ्चोड़ दी.

"तो?",रंभा ने उसके निपल को खरोंचा.

"तो मैं यहा से बाहर चला जाता.तुमपे अपना ज़ोर चलाने की हिमाकत तो कभी नही करूँगा मगर इस तरह गैर की बाहो मे देखना मेरे लिए बहुत मुश्किल होता है."

"ओह!देवेन..",रंभा ने उसे पीठ के बल लिटाया,"..आइ'म सॉरी!..मेरा यकीन मानिए..बस 1 बार ये उलझने ख़त्म हो जाएँ..फिर इस दिल,इस बदन को आपके सिवा किसी & को सौंपने के बजाय मर जाना पसंद करूँगी.",

"चुप!",देवेन ने उसके होंठो पे अपना हाथ रखा,"..ऐसी मनहूस बात आगे मत करना.मुझे पूरा भरोसा है तुमपे,रंभा.मैं तो बस अपने दिल का हाल कह रहा था.",उसने उसे अपने आगोश मे भर लिया,"..चलो अब सो जाओ.बहुत थकाया है तुम्हे हमने.",वो प्यार से उसे थपकीया देते हुए सुलाने लगा.

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क्रमशः.......
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