Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:47 PM,
#68
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--67

गतान्क से आगे......

"ये ड्र.यूरी गोआ मे कब से हैं?",रंभा कार की खिड़की से बाहर के नज़ारे को देख रही थी.कार गोआ के भीड़-भाड़ वाले इलाक़े से बाहर निकल आई थी.

"उस इंसान के बारे मे तुम्हारे दिल मे सवाल पे सवाल मचल रहे हैं.है ना?",देवेन हंसा,"..रंभा,यूरी 1 नुरोसर्जन है.रशिया मे वो क्या करता था मुझे ठीक से नही पता,बस लोगो से कभी-कभार ये सुना है की वो शायद पुराने सोवियट संघ यानी यूयेसेसार की जासूसी एजेन्सी केजीबी मे काम करता था.अब वाहा क्या हुआ कि उसे अपना मुल्क छ्चोड़ यहा आना पड़ा ये मुझे नही पता.बस इतना जानता हू कि,वो 1 कमाल का डॉक्टर है & मैने उसे आज तक किसी के मर्ज़ को नही पकड़ते नही देखा है."

"हूँ.",रंभा ने सर घुमा के विजयंत मेहरा को देखा.वो बस खिड़की से बाहर देखे जा रहा था.उसने रंभा को देखा तो रंभा मुस्कुरा दी मगर उसके चेहरे पे कोई भाव नही आए.रंभा ने सर आगे किया & सामने के रास्ते को देखने लगी.कुच्छ ही देर मे कार देवेन के घर के अहाते मे खड़ी थी.

देवेन का घर कोई बुंगला तो नही था मगर था काफ़ी बड़ा.देवेन ने कार अहाते मे लगा के गेट बंद किया & डिकी से रंभा का समान निकाल घर के अंदर चला गया.उसके पीछे-2 रंभा भी आगे बढ़ी.

आगे बढ़ती रंभा अचानक रुक गयी & पीछे घूम के देखा.विजयंत मेहरा उसका आँचल पकड़े खड़ा था.रंभा घूमी तो आँचल उसके सीने से पूरा हट गया & उसका स्लीव्ले ब्लाउस मे ढँका सीना & गोरा पेट दिखने लगे.रंभा विजयंत के चेहरे को गौर से देख रही थी,उसकी आँखे अब बेजान नही बल्कि उलझन से भरी दिख रही थी.रंभा ने गर्देन घुमाई & देवेन को देखा.उसका समान कमरे मे रख के वापस लौटने के बाद वो भी विजयंत की हरकत देख चौंक गया था.उसने भी रंभा को देखा & हल्के से सर हिलाया जैसे ये कह रहा हो कि उसे भी कुच्छ समझ नही आ रहा था.रंभा ने वापस चेहरा विजयंत की ओर किया & उसकी आँखो मे आँखे डाल दी.उसे ज़रूर कुच्छ याद आया था & तभी उसने उसका आँचल पकड़ा था..शायद रंभा & उसकी पहली रात याद आई थी उसे.ये ख़याल आते ही रंभा के दिमाग़ मे बिजली कौंधी..ड्र.पोपव ने कहा था कि उन्हे विजयंत को बीती बाते याद दिलाने के लिए उसे उन बातो के बारे मे बताना चाहिए..& अगर बताने के बजाय जताया जाए तो!

रंभा ने 1 क़ातिल मुस्कान अपने ससुर की ओर फेंकी & घूमते हुए कमरे मे आगे देवेन की ओर बढ़ने लगी,इस तरह की उसकी सारी खुलती जा रही थी.देवेन अब उसे भी हैरत से देख रहा था कि तभी उसके दिमाग़ मे बिजली कौंधी & उसे अपनी प्रेमिका की हरकत की वजह समझ आ गयी & वो भी मुस्कुराने लगा.रंभा अब अपने दोनो प्रेमियो के बिल्कुल बीच मे खड़ी थी.विजयंत उसे कुच्छ पल देखता रहा & फिर उसके करीब आने लगा.रंभा के करीब पहुँच उसने उसका आँचल छ्चोड़ दिया.वो अपनी बहू के बिल्कुल करीब खड़ा उसकी आँखो मे देख रहा था.अपने चेहरे पे उसकी गर्म साँसे महसूस करते ही रंभा को भी उसके साथ बिताए पॅलो की याद आ गयी & उसका दिल धड़क उठा.अब उसका दिल देवेन का था मगर विजयंत के साथ भी उसने केयी खुशनुमा पल बिताए थे.

विजयंत की आँखे अभी भी उलझन भरी जैसे कुच्छ समझने की कोशिश करती दिख रही थी.वो बहुत धीरे-2 आगे झुक रहा था.रंभा के होंठ खुद बा खुद खुल गये थे.वो समझ गये थे कि विजयंत के लब उनसे मिलने ही वाले थे & अगले ही पल वही हुआ.विजयंत उसके होंठ चूम रहा था & वो उसका पूरा साथ दे रही थी.उसकी आँखे बंद हो गयी & वो बस अपने होंठो पे विजयंत के होंठो की लज़्ज़त महसूस किए जा रही थी.काई पॅलो बाद जब किस तोड़ी & उसने आँखे खोली तो विजयंत को वैसे ही कुच्छ समझने की कोशिश करते उसे देखता पाया.वो कुच्छ करती उस से पहले ही 1 जोड़ी हाथो ने उसकी उपरी बाहे थाम उसे थोड़ा पीच्चे किया & फिर उसके दाए कंधे के उपर से 1 सर आगे झुका & देवेन के होंठ उसके होंठो के रस को पीने लगे.रंभा की आँखे फिर मूंद गयी.घर की दहलीज़ पे कदम रखते हुए उसने सोचा भी नही था कि यहा माहौल ऐसा नशीला हो जाएगा.

“हुन्न्ञन्..!”,उसने देवेन के होंठ छ्चोड़े तो विजयंत ने फिर उसके होंठो को अपने लबो की गिरफ़्त मे ले लिया था.इधर विजयंत उसके गुलाबी होंठो को चूमते हुए उसकी ज़ुबान से ज़ुबान लड़ा रहा था & उधर देवेन उसके बालो को उठा उसकी गर्देन के पिच्छले हिस्से को चूम रहा था.रंभा इतनी सी देर मे ही पूरी तरह से मस्त हो गयी थी विजयंत की जीभ को पूरे जोश से चूस रही थी.देवेन उसकी गर्देन को चूमते हुए नीचे जा रहा था.उसके तपते होंठ रंभा की रीढ़ पे चलते हुए नीचे जा रहे थे.रंभा का जिस्म सिहर रहा था.देवेन उसकी पीठ के बीचोबीच चूमता उसकी कमर तक पहुँच गया था & दोनो तरफ के मांसल हिस्सो को दबाते हुए चूमे जा रहा था.

विजयंत अपने चेहरे को घूमाते हुए उसकी ज़ुबान से खेल रहा था की रंभा ने महसूस किया की देवेन के हाथ उसकी कमर की बगलो से आगे आए & उसके पेट को सहलाते हुए उसकी कमर मे अटकी सारी को खींच दिया.उसी वक़्त विजयंत उसके होंठो को छ्चोड़ उसके गालो & ठुड्डी को चूमने लगा.देवेन उसकी सारी को उसके जिस्म से अलग कर चुक्का था & उसके होंठ अब रंभा की पीठ पे उपर बढ़ने लगे थे.विजयंत उसकी गर्देन चूमता हुआ नीचे आया & ब्लाउस के गले मे से झँकते उसके क्लीवेज को चूमा.रंभा की धड़कने अब बहुत तेज़ हो गयी थी.देवेन उसके ब्लाउस की बॅक से दिखती उसकी पीठ चूम रहा था & विजयंत उसकी चूचियाँ.देवेन थोड़ा & उपर बढ़ा & विजयंत नीचे.थोड़ी ही देर बाद रंभा पीछे हुई & देवेन के चौड़े सीने के सहारे खड़ी हो गयी.देवेन उसकी गुदाज़ बाहो को दबाता हुआ उसके होंठ चूम रहा था & विजयंत उसकी कमर को थामे उसके पेट पे अपनी ज़ुबान फिरा रहा था.

“उउम्म्म्ममम..आन्न्ग्घ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..!”,रंभा का जिस्म कांप रहा था & उसने देवेन के होंठो से अपने होठ खींच लिए.विजयंत उसकी नाभि की गहराई मे अपनी जीभ उतारे बैठा था & देवेन उसकी गर्दन & दाए कंधे को चूमे जा रहा था.रंभा की शक्ल देख ऐसा लग रहा था कि वो बहुत तकलीफ़ मे है जबकि हक़ीक़त ये थी कि इस वक़्त तो वो खुशियो के आसमान मे उड़ रही थी.वो दोनो प्रेमियो की हर्कतो से पहली बार झाड़ गयी थी.देवेन ने पाने हाथ आगे किए & उसकी कसी छातियो की गोलाईयो पे अपने दोनो हाथो की 1-1 उंगली को चलाने लगा.विजयंत भी उसके पेटिकोट के उपर से उसकी गंद की फांको पे अपनी हथेलिया फिरा रहा था.रंभा ने खुद को दोनो मर्दो को बिल्कुल सौंप दिया था.वो कुच्छ भी नही कर रही थी बस उनकी हर्कतो का लुत्फ़ उठा रही थी.

देवेन के हाथ उसकी चूचियो पे घूमने के बाद उनके बीच आए & उसके ब्लाउस के हुक्स खोल दिए.विजयंत भी उसकी कमर की दाई तरफ लगे पेटिकोट के हुक्स को खोल रहा था.जब देवेन ने उसकी बाहे पीछे करते हुए उसके ब्लाउस को निकाला,तब विजयंत ने भी उसके आख़िरी हुक को खोल उसके पेटिकोट को उसकी कमर से नीचे सरका दिया.अब रंभा पीले लेस की ब्रा & पॅंटी मे थी.विजयंत लेस के झीने कपड़े मे से झँकति अपनी बहू की चूत को देख रहा था & देवेन अपनी महबूबा के कड़े निपल्स को ब्रा मे नुकीले उभार बनाते हुए.रंभा अपने ससुर की गर्म साँसे पॅंटी के जालीदार लेस से होती हुई सीधी अपनी गीली चूत पे महसूस कर रही थी.देवेन उसकी चूचियो के नीचे अपनी हथेलिया जमा उसकी गर्दन & कंधो को चूम रहा था & विजयंत उसकी गंद को दबाते हुए उसकी पॅंटी के वेयैस्टबंड & नाभि के बीच के पेट के हिस्से को.रंभा अब ज़ोर-2 से आहे ले रही थी.

वो बेचैन हो घूमी & अपने पंजो पे थोड़ा उचक के अपने महबूब के होंठो को बड़ी शिद्दत से चूमा.नीचे बैठा विजयंत उसकी इस हरकत पे चौंका मगर अगले ही पल उसके होठ रंभा की चिकनी कमर & पीठ को चखने मे लग गये.रंभा ने अपने बेसब्र हाथो से अपने आशिक़ की कमीज़ के बटन्स खोल उसे उसके जिस्म से जुदा किया & उसके बालो भरे सीने को चूमने लगी.उसके हाथ देवेन की पीठ को उपर से नीचे तक खरोंच रहे थे.देवेन के सीने को जी भर के चूमने के बाद वो फिर घूमी & विजयंत को उपर उठाया & उसकी टी-शर्ट निकाल उसके साथ भी वैसा ही बर्ताव किया.जब वो विजयंत के सीने को चूम रही थी देवेन उसकी पीठ से लेके गंद तक अपने हाथ चला रहा था.

रंभा विजयंत के सीने को चूमते हुए नीचे उसके पेट तक पहुँच गयी थी & उसकी नाभि मे जीभ घुसा उसे मस्त करते हुए उसने उसकी जीन्स उतार दी & फिर उसके अंडरवेर के उपर से ही उसके लंड को चूम लिया.देवेन के दिल मे जलन की लहर दौड़ गयी.उसका दिल किया कि इसी वक़्त रंभा को खींच विजयंत से अलग करे & अपने कमरे मे ले जाए.उसने अपना सर झटका..वो जो भी कर रही थी उस शख्स की याददाश्त लौटाने की गरज से कर रही थी..आख़िर वो उसकी बहू के अलावा उसकी प्रेमिका भी रही थी..& अगर वो उस इरादे से नही बल्कि अपनी वासना के चलते भी ऐसा कर रही थी तो भी उसके दिल मे इस जलन के पैदा होने का कोई मतलब नही था..जब रंभा की मर्ज़ी ही यही थी तो वो क्या कर सकता था!..,”..आहह..!”,अपने लंड पे 1 गीला & गर्म एहसास होते ही वो चौंक उठा & अपने ख़यालो से बाहर आ नीचे देखा.

जब तक वो सोच मे डूबा था तब तक रंभा ने विजयंत के अंडरवेर को उतार उसे पूरा नंगा कर दिया था & उसके लंड & आंडो को जम के चूसा था.मगर इस सब के दौरान वो देवेन को भूली नही थी & पंजो पे बैठे हुए ही उसने घूम के उसकी पतलून की ज़िप नीचे कर उसके अंडरवेर मे सेउसके खड़े लंड को निकाल अपने मुँह मे भर लिया था.उसके दाए हाथ मे विजयंत का लंड था जिसे वो हिला रही थी & बाए मे देवेन के अंडे.देवेन ने उसके सर को पकड़ उसकी निगाहो से निगाहें मिलाई & रंभा उसके दिल का हाल समझ गयी.उसने लंड को हलक तक उतार लिया & देवेन को मस्ती मे पागल कर दिया.देवेन अपने उपर काबू खोने ही वाला था कि किसी तरह उसने लंड को बाहर खींचा & फ़ौरन उसे उपर उठाया.

“अच्छा नही लगा..-“,उसने देवेन को बाहो मे भर अपनी चूचियो को उसके सीने से दबाते हुए आगे बढ़ने की इजाज़त माँगनी ही चाही थी कि देवेन ने उसके होंठो को अपने होंठो से बंद कर उसे सवाल करने से रोक दिया.

“माफ़ करना,जान..”,उसने उसकी ब्रा के हुक्स खोले तो रंभा ने अपनी बाहे उसके जिस्म से अलग कर ब्रा को उतार दिया,”..पर क्या करू?..मर्द हू ना..अपनी महबूबा को दूसरे के साथ देख के जलन तो होगी ही.पर मेरी छ्चोड़ो & वोही करो जो तुम्हारा दिल कहता है.”,रंभा आगे बढ़ी & उसे बाहो मे कस लिया & उसे पागलो की तरह चूमने लगी..बस जल्द से जल्द ये उलझने सुलझे & फिर वो इस शख्स के साथ सारी ज़िंदगी यू ही उसकी बाहो मे बिताएगी!

“उउन्न्ह..ऊव्वववववव..!”,देवेन आगे झुक उसकी चूचिया चूस रहा था & अपने हाथो से उन मस्त उभारो को दबा रहा था.रंभा मस्ती मे आहे भर रही थी की उसे अपनी गंद पे कुच्छ महसूस हुआ.उसने गर्देन पीछे घुमाई तो देखा कि विजयंत उसकी पॅंटी उतार उसकी गंद चूम रहा था..इसे कुच्छ याद आ रहा था या बस इसके अंदर का मर्द जगा था?..मगर उसने उसका आँचल पकड़ के रोका था..यानी की उसे उनकी पहली रात की कुच्छ तो याद आई थी..अब देखना था कि इस खेल का उसपे क्या असर होता था.

विजयंत उसकी कमर को जकड़े उसकी मोटी गंद को चूमे जा रहा था.उसकी ज़ुबान रंभा के गंद के छेद से लेके गीली चूत तक घूम रही थी.रंभा ने आहे भरते हुए अपना सर पीछे कर लिया & देवेन के सर को जाकड़ अपने सीने पे और दबा दिया.देवेन उसकी चूचियो को मुँह मे भरे जा रहा था.रंभा का जिस्म दोनो मर्दो की हर्कतो से जोश मे पागल हो गया था.उसने अपने जिस्म को दोनो की बाहो मे बिल्कुल ढीला छ्चोड़ दिया था.देवेन की ज़ुबान उसके निपल्स को छेड़ रही थी & विजयंत की ज़ुबान उसके दाने को.रंभा की चूत मे फिर वही तनाव पैदा हो गया था जिसके चरम पे पहुचने के बाद वोही अनोखी खुशी मिलती थी.उसने बाए हाथ से देवेन के बालो को नोचते हुए उसके सर को अपनी चूचियो पे दबाते हुए चूमा & दाए को नीचे ले जाके पीछे की ओर किया & विजयंत के सर को अपनी गंद पे ऐसे दबाया की उसकी ज़ुबान चूत मे और अंदर घुसा गयी.

"आननह..!",उसने सर झटका & ज़ोर से करही.वो दोबारे झाड़ रही थी.कुच्छ पल वो वैसे ही अपने जिस्म को अपने दोनो प्रेमियो की बाहो के सहारे छ्चोड़ खड़ी रही.उसके बाद जब समभली तो उसने विजयंत के बाल पकड़ उसे उठाया & उसे सामने ला देवेन के बाई तरफ खड़ा किया & दोनो को धकेलने लगी.दोनो पीछे हुए तो उसने दोनो को हॉल मे रखे बड़े सोफे पे बिठा दिया.बाया हाथ देवेन के सीने & दाया विजयंत के सीने पे दबाते हुए वो आगे झुकी & पहले देवेन & फिर विजयंत के होंठो को चूमा.दोनो ने उसे पकड़ के सोफे पे अपने बीच गिराने की कोशिश की मगर उसने उनकी कोशिश नाकाम कर दी & सोफे के पीछे चली गयी.

रंभा ने अपना दाया हाथ देवेन के सीने पे रखा & बाया विजयंत मेहरा के सीने पे & उनके सीने के बालो से खेलते हुए सोफे की बॅक के उपर से इस तरह से झुकी उसकी छातियो दोनो मर्दो के बीच लटक गयी.दोनो ने फ़ौरन अपने-2 मुँह उसकी छातियो से लगा दिए.देवेन उसकी दाई चूची चूस रहा था & विजयंत बाई.रंभा ने अपने ससुर को देखा,उसकी हरकतें तो पूरी जोश से भरी हुई थी मगर अभी भी उसके चेहरे पे पुराने भाव नही आए थे.उसके हाथ दोनो मर्दो के सीनो से होते हुए नीचे गये & उनके लंड से खेलने लगे.

दोनो मर्दो ने भी अपना 1-1 हाथ पीछे ले जाके उसकी गंद की 1-1 फाँक को दबोच लिए & मुँह से उसकी चूचियो को & हाथो से गंद को मसलने लगे.रंभा मुस्कुराती हुई आहे बढ़ने लगी.इस मस्ताने खेल मे अब उसे बहुत मज़ा आ रहा था.तभी विजयंत ने उसे चौंका दिया.उसने उसकी चूची से मुँह हटाते हुए उसके जिस्म को पकड़ उसे सोफे की बॅक के उपर से आगे खींचा.रंभा अचानक की गयी इस हरकत से समभाल नही पाई & आगे गिर गयी.उसका मुँह सीधा विजयंत की गोद मे उसके लंड से जा टकराया.विजयंत ने उसकी कमर को पकड़ा & उसकी गंद की दरार मे जीभ फिराते हुए उसकी गंद की छेद मे उंगली अंदर-बाहर करने लगा.देवेन उसे गौर से देख रहा था.शुरू मे उसे लगा था कि विजयंत को सब याद है & वो बस भूलने का नाटक कर रहा है मगर अभी की थोड़ी जुंगलिपने वाली हरकत ने उसकी सोच को ग़लत साबित कर दिया था.रंभा भी हैरत से बाहर आ गयी थी & विजयंत के लंड को चूसने लगी थी.विजयंत ने उसकी कमर को अपनी तरफ किया & उसकी दोनो टाँगो के बीच मुँह घुसा उसकी चूत चाटते हुए उसकी गंद मे उंगली करता रहा.देवेन से यू अलग-थलग रहना बर्दाश्त नही हुआ & फिर वो उसकी महबूबा थी,विजयंत की नही!

उसने फ़ौरन रंभा की बाहे पकड़ उसे खींचा तो उसके मुँह से विजयंत का लंड निकल गया.रंभा मुस्कुराइ & जैसे ही देवेन ने उसके सर को अपनी ओर किया उसने सर झुका के उसके लंड को मुँह मे भर लिया/देवेन आहे भरता उसकी मखमली पीठ और कमर पे अपने बेसब्र हाथ चलाने लगा.अब उस से बर्दाश्त नही हो रहा था.उसे अब रंभा के जिस्म से मिलना ही था.उसने उसके सर को अपनी गोद से उठाया & उसके कंधे पकड़ के खींचा तो विजयंत के मुँह से रंभा की चूत अलग हो गयी.

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क्रमशः.......
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