RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--57
गतान्क से आगे......
अपने नये प्रेमी के प्यार करने के बिल्कुल ही निराले अंदाज़ ने उसे बहुत मदहोश कर दिया था.उसके मुँह से हल्की सी आह निकली,देवेन उसके पाँव की उंगलियो मे अपने हाथ की उंगलिया घुसा के साबुन लगा रहा था.देवेन ने उसकी टांग नीचे कर दाई टांग को बाए कंधे पे चढ़ाया & वाहा भी वही हरकत दोहराई,फिर उसके हाथ थाम उसे वापस उपर खींचा.इस सब के दौरान लंड चूत मे वैसे का वैसा धंसा हुआ था.रंभा ने उसकी गर्दन मे बाहे डाल उसे शिद्दत से चूमा & अपने हाथ मे साबुन ले उसके सीने पे घिसने लगी.थोड़ी देर बाद साबुन उसके हाथो से फिसल फर्श पे था लेकिन उसके हाथ वैसे ही देवेन के सीने पे घूम रहे थे.उसने उसके सीने से लेके उसके पेट तक साबुन लगाया & फिर दोनो हाथ पीछे ले जाके फिर से उसकी पीठ रगडी तो देवेन ने भी उसे बाहो मे भर लिया & अपने सीने से उसकी छातियो को पीसते हुए उसे चूमने लगा.
देवेन ने कुच्छ देर बाद किस तोड़ी & रंभा के सीने के उभारो को साबुन के खुश्बुदार झाग से ढँकने लगा.रंभा ने मस्ती मे आँखे बंद कर ली & अपने हाथ पीछे फर्श पे टीका दिए & आहें भरने लगी.देवेन उसकी छातियो को मसल रहा था & वो अपनी कमर हिलाने लगी थी.देवेन ने साबुन को उसके पेट पे मला & रंभा की कमर के हिलने की रफ़्तार & तेज़ हो गयी.देवेन उसकी नाभि मे उंगली घुसा-2 के साबुन मल रहा था.रंभा अब मस्ती मे आहें भरती हुई बहुत तेज़ी से कमर हिला रही थी.देवेन का हाथ नीचे गया & रंभा के दाने पे साबुन लगाने लगा.रंभा ने सर पीछे झटका & ज़ोर से चीख मारी.उसका जिस्म काँपने लगा-वो झाड़ गयी थी.
वो निढाल हो पीछे फर्श पे गिरने ही वाली थी की देवेन ने उसकी बाहे थाम उसे उपर अपनी तरफ खींचा & अपनी बाहो मे भर लिया & उसके गंद की फांको पे साबुन लगाने लगा.रंभा अभी मस्ती के तूफान से उबरी भी नही थी कि देवेन ने उसकी गंद मे उंगली घुसा उसे फिर से उस दूसरे तूफान की ओर धकेलना शुरू कर दिया था.
रंभा ने उसकी गर्देन के गिर्द दाए बाज़ू को बँधे हुए बाए हाथ मे लोटा ले उपर उठा पानी गिराया & दोनो जुड़े जिस्मो से साबुन धुलने लगा.देवेन ने उसके हाथो से लोटा लिया & उसकी टाँगो पे पानी डालने लगा.रंभा ने दूसरा लोटा उठा लिया & अपने आशिक़ को नहलाने लगी.कुच्छ ही पलो मे दोनो जिस्मो से साबुन धूल चुका था.दोनो ने लोटो को किनारे किया & 1 दूसरे को बाहो मे भर चूमने लगे.देवेन ने उसे फिर से गोद मे उठा लिया & गुसलखाने से निकल गया.
“नही,कमरे मे नही.”,रंभा उसे चूम रही थी.
“तो कहा?”,देवेन उसकी गंद की पुष्ट फांको को थामे था.
“बाहर.”,रंभा शरारत से मुस्कुराइ & उसके बाए कान पे काट लिया.
“पागल हो गयी हो क्या?कोई देख लेगा तो?”
“उसी मे तो मज़ा है..अभी तो पौ भी नही फटी है फिर भी पकड़े जाने का डर तो है ही,वही रोमांच को बढ़ाता है.चलिए ना प्लीज़!”,किसी बच्ची की तरह ज़िद की उसने तो देवेन मुस्कुरा दिया.दोनो दरवाज़े तक आए तो रंभा ने हाथ पीछे ले जा सांकॅल खोली.देवेन ने उसे गोद मे उठाए हुए बाहर की ठंडी हवा मे कदम रखा.गाँव मे सन्नाटा पसरा था.दरवाज़े के बाहर के छप्पर से ढँके हिस्से के फर्श पे वो घुटनो के बल बैठ गया & आगे झुक रंभा की छातियो से मुँह लगा दिया.
रंभा थोड़ा पीछे झुकी & उसके होंठो से आहत होती,उसके सर को जकड़े आह भरने लगी.देवेन ने धक्के लगाना शुरू कर दिया था.रंभा को बहुत मज़ा आ रहा था.ठंडी हवा दोनो को सिहरा रही थी.देवेन उसकी गांद को भींच बहुत गहरे धक्के लगा रहा था.रंभा ज़ोर-2 से आहे भर रही थी.देवेन ने उसकी चूचियो को चूसने के बाद सर उठा के आस-पास देखा,कही कोई नज़र नही आ रहा था लेकिन ज़्यादा देर यहा ऐसे बैठ के चुदाई करना ख़तरे से खाली नही था.पता नही था की गाँव वाले उस बात को कैसे लेते & वो मुसीबत मे भी पद सकते थे लेकिन रंभा ने सही कहा था,बहुत रोमांच था यू चुदाई करने मे.
रंभा उसके सर को थामे उसे पागलो की तरह चूमती बहुत तेज़ी से अपनी कमर हिला रही थी.देवेन की साँसे भी तेज़ हो गयी थी & उसके हाथो की पकड़ भी रंभा की गंद पे बहुत कस गयी थी.दोनो 1 दूसरे की आँखो मे देखते ज़ोर-2 से आहे भरते हुए अपनी-2 कमर हिला रहे थे.अचानक रंभा ने ज़ोर से आह भरी & सिसकते हुए देवेन का सर पकड़ अपनी चूचियो मे धंसा दिया & बहुत ज़ोर से कमर हिलाने लगी.उसकी चूत ने देवेन के लंड को कसा & देवेन ने भी उसकी छातियो पे होंठ दबाते हुए उसकी गंद को बहुत ज़ोर से भींचा.उसका जिस्म झटके खाने लगा & उसने भी अपना गढ़ा,गर्म वीर्य रंभा की चूत मे छ्चोड़ दिया.
थोड़ी देर तक दोनो 1 दूसरे से चिपके हुए लंबी-2 साँसे लेते हुए बैठे रहे,फिर देवेन ने उसकी गंद को थाम उसे वैसे ही अपनी गोद मे उठाया & घर के अंदर आया.रंभा ने सांकॅल वापस लगाई & दोनो वैसे ही कमरे मे चले गये.
“हाई!समीर,कैसे हो?”,रंभा & देवेन सनार पहुँच चुके थे.सनार था तो 1 गाँव मगर वाहा विदेशी सब्ज़ियो & फलो की खेती होती थी & इस वजह से बाहरी लोगो का आना-जाना लगा रहता था.इस वजह से वाहा 2-3 छ्होटे होटेल भी खुल गये थे.देवेन उन्ही मे से 1 मे कमरे के बारे मे पता कर रहा था & रंभा बाहर कार मे ही बैठी थी.
“ठीक हू.तुम कहा घूम रही हो,यार?वापस क्यू नही आ रही?”
“बहुत याद आ रही है मेरी?”,रंभा ने सवाल तो ऐसे किया कि समीर को लगे कि वो उसे छेड़ रही है मगर उसके चेहरे पे गुस्सा था.
“अब ये भी कोई पुच्छने की बात है!कर क्या रही हो यार तुम वाहा?बाकी लोग तो आ गये वापस.”
“काम ही कर रही हू बाबा!यहा तक आई तो सोचा आस-पास की और जगहें भी देख लू.उनकी तस्वीरें खींच लूँगी & उनके डीटेल्स अपनी कंपनी के डेटबेस मे डाल दूँगी तो आगे ज़रूरत पड़े तो डाइरेक्टर फोटोस देख के अंदाज़ा लगा सकता है कि जगह उसके काम की है या नही.”
“तो अकेले जाने की क्या ज़रूरत थी?किसी को साथ तो रखना था.वैसे बड़े दूर की सोचने लगी हो!”
“क्या करें!नुकसान से बचने के लिए दूर की तो सोचनी ही पड़ती है & किसी को साथ लाती तो कंपनी के काम पे असर पड़ता ना.”,रंभा ने देखा देवेन होटेल से बाहर आ रहा था.उसने समीर से थोड़ी देर & बात की & फोन काट दिया.
“देखो,होटेल मे कमरा तो मिल गया है मगर तुम ज़रा सबके सामने आने से थोड़ा बचना.”
“क्यू?”,रंभा शोखी से मुस्कुराइ.उसे लगा कि देवेन को बाकी मर्दों का उसे घूर्ना पसंद नही.
“क्यूकी तुम मेहरा खानदान की बहू हो & समीर वाले मामले के बाद लोग तुम्हारी शक्ल पहचानने भी लगे हैं..”,रंभा कार से उतर गयी थी & धूप का चश्मा आँखो पे रहने दिया था,”..कोई पहचान लेगा तो बेकार मे तुम्हारे बारे मे बातें उछ्लेन्गि.”,रंभा ने 1 स्कार्फ अपने सर पे लपेटा & देवेन ने होटेल के वेटर को आते देख डिकी खोल दी,”..& फिर मुझे अच्छा नही लगता जब लोग तुम्हे ललचाई निगाहो से देखते हैं.”,वो तेज़ी से वेटर के पीछे-2 आगे बढ़ गया.रंभा मुस्कुराती उसके पीछे चलने लगी.
“बस देख ही सकते है ना!”,कमरे मे घुसते ही रंभा ने अपने आशिक़ के गले मे बाहे डाल दी & उसके गाल चूमने लगी,”..कर तो नही सकते उसने उसके चेहरे पे प्यार से हाथ फिराए,”..वो हक़ तो किसी-2 को ही है.”,देवेन मुस्कुराया & उसकी कमर को बाहो मे कस चूम लिया.
“अच्छा चलो.कुच्छ खा के देखने चलते हैं बालम सिंग का देवी फार्म.”,देवेन ने उसके गाल थपथपाए & बाथरूम मे चला गया.रंभा का फोन बजा तो उसने देखा की प्रणव का फोन था.
“हेलो.”,मुस्कुराते हुए उसने फोन उठाया.
“कहा गायब हो गयी हो जानेमन?..अपने दीवाने का ज़रा भी ख़याल नही तुम्हे?”
“इश्क़ मे थोड़ा तड़पना भी ज़रूरी होता है हुज़ूर!अभी तदपिये थोड़ा.”
“अरे,ठीक से बोलो ना!हो कहा तुम?”
“बस 1-2 दिन मे वापस आ जाऊंगी.अकेले घूम के देख रही थी कि कैसा लगता है.”,देवेन बाथरूम से बाहर आ उसे देख रहा था.रंभा उसके करीब गयी & उसे चूमा & आँखो से शांत रहने का इशारा किया.
“तो कैसा लगा?”
“बहुत अच्छा.कोई दीवाना नही परेशान करने वाला.बहुत सुकून से हूँ!”
“तड़पाव मत यार!जल्दी वापस आओ.कुच्छ बहुत ज़रूरी काम है तुमसे.”,प्रणव की आवाज़ संजीदा हो गयी थी.”
“कैसा काम?”
“आओ तो बताउन्गा.”
“ठीक है.चलो,मैं फिर फोन करूँगी.ओके?”
“ओके,बेबी.बाइ!”
“बाइ!”,रंभा ने देखा देवेन उसे सवालिया निगाहो से देखा रहा था.
“मेहरा खानदान मे अपनी जगह बनाए रखने के लिए मुझे खेल खेलने पड़ते हैं.उसी खेल का 1 मोहरा था ये.”,रंभा ने अपने मोबाइल की ओर इशारा किया.उसके चेहरे पे उदासी की छाया देखा देवेन उसके करीब आया & उसे बाहो मे भर उसके चेहरे को प्यार से सहलाया.
“मुझे नही पता की कौन-2 है तुम्हारी ज़िंदगी मे लेकिन जो भी हैं उनसे रिश्ता रखने का फ़ैसला केवल तुम्हारा होगा.मैं तुमसे कभी भी ये नही कहूँगा की मेरी वजह से तुम किसी से अपना कोई नाता तोडो.मैं तुम्हे चाहता हम अगर ये ज़रूरी नही कि तुम भी मुझे चाहो.”
“ऐसे क्यू बोल रहे हैं?”,रंभा के आँखो मे चिंता झलकने लगी थी.
“अरे तुम समझी नही मेरी बात.”,वो मुस्कुराया,”..मेरा ये कहना है कि मैं तुम्हे चाहता हू & चाहता रहूँगा लेकिन इसका मतलब ये नही कि मैं तुम्हे बाँधना चाहता हू.तुम आज़ाद ख़याल लड़की हो & मुझे ऐसे ही पसंद हो.”
“ओह..देवेन.”,रंभा उसके सीने से लिपट गयी,”..बस कुच्छ दिन और.1 बार मैं अपने पति को बेवफ़ाई करने का सबक सीखा दू फिर मैं आपसे दूर नही जाऊंगी.”,रंभा की आँखे छल्छला आई थी.
“मुझे पूरा भरोसा है तुमपे रंभा.”,दोनो 1 दूसरे को चूमने लगे कि दरवाज़े पे दस्तक हुई,वेटर उनका नाश्ता लेके आ गया था.
सनार के बाहरी इलाक़े मे कोई 10-12 छ्होटे-2 फार्म्स थे जिनमे देवी फार्म सबसे बड़ा था.बाकी फार्म्स तो बस कांटो की तरोसे घिरे थे लेकिन देवी फार्म के चारो तरफ कोई 10 फ्ट ऊँची दीवार थी & उसके उपर भी कांटो की तार लगी थी.
“सब्ज़ियो के लिए ऐसी सेक्यूरिटी!”,देवेन कार मे बैठा सोच मे पड़ गया था.रास्ते के दूसरी तरफ फार्म का मैं गेट था जो बंद था & उसके पार भी कुच्छ नही दिख रहा था,”..1 काम करो उस फार्म पे चलो.”,उसने रंभा को रोड पे पीछे छ्चोड़ आए 1 फार्म की ओर इशारा किया.रंभा ने कार घुमा दी.
“अरे,साहिब.ऐसे मशरूम आपको कही नही मिलेंगे.मेहरा फार्म्स के मशरूम का भी कोई मुक़ाबला नही हमारे मशरूम से.”,रंभा मुस्कुराइ उस किसान ने उसे पहचाना नही था.
“अच्छा.पर हमने तो सुना था कि सनार मे देवी फार्म के मशरूम माशूर हैं.”,किसान के चेहरे का रंग बदल गया.
“अच्छा!कौन बोला आपको ये बात?”
“क्यू?”
“जो भी बोला साहिब आपको झूठ बोला क्यूकी देवी फार्म मे तो मशरूम उगाया ही नही जाता.”,वो हंसा.
“क्या?!”
“जी,वाहा तो विदेशी सलाद के पत्ते उगाए जाते हैं.”,देवेन ने रंभा की ओर देखा.
“लेटास.”,उसने उसे समझाया.
“खैर,आप हमे सॅंपल दीजिए फिर हम आपके पास आएँगे?”
“ज़रूर साहिब ये लीजिए.”,उसने उसे कुच्छ पॅकेट्स पकड़ाए.
“1 बात पुच्छनी थी.”
‘हां पुछिये.”
“आप सभी के फार्म तो बॅसकॅंटो की तार से घिरे हैं ये देवी फार्म की सब्ज़ियाँ क्या आवारा जानवरो को कुच्छ ज़्यादा पसनद है जो इतनी लंबी-चौड़ी दीवार खड़ी कर रखी है!”
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क्रमशः.......
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