Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:40 PM,
#54
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--53

गतान्क से आगे......

"क्यू भाई यहा कही रहने को जगह मिलेगी?",देवेन ने किराने वाले से 1 माचिस खरीदी.वो अपना लाइटर अपने होटेल के कमरे मे भूल आया था & रास्ते मे रंभा के साथ की वजह से उसने 1 भी सिगरेट नही पी थी & अब उसका हाल बुरा था.उसने सिगरेट सुलगा के 1 लंबा कश भरा & फिर सुकून से धुएँ को बाहर छ्चोड़ा.

"यहा कहा साहब..हां,सनार मे मिल जाएगा होटेल."

"फिर भी यार कुच्छ तो इंतेज़ाम होगा..कोई धर्मशाला,कोई सराई?"

"नही साहब यहा तो कुच्छ भी नही मिलेगा.वैसे आप यहा क्या करने आए हैं?",दुकानदार ने दुकान से थोड़ा हटके कार से टेक लगाके खड़ी रंभा को देखा.कसी जीन्स & बिना बाज़ू के टॉप मे रंभा के जिस्म के सारे कटाव उभर रहे थे.

"यहा नही हम तो सनार ही जा रहे थे लेकिन अंधेरा होने लगा तो सोचा रात यही गुज़ार लें.",देवेन को उसका रंभा को यू घूर्ना अच्छा नही लगा & उसे बहुत गुस्सा आया.उसका दिल किया कि उसी वक़्त उसे 4-5 झापड़ रसीद कर दे!मगर अपने गुस्से पे काबू रखते हुए वो थोड़ा दाई तरफ हो गया ताकि रंभा उस किरनेवाले की ललचाई निगाहो से च्छूप जाए.

"तो साहब..यहा तो..",वो सोचने लगा,"..अच्छा चलिए,मैं मुखिया जी के पास ले चलता हू.वो कुच्छ ना कुच्छ कर ही देंगे.",रंभा ने हलवाई से उसके बचे-खुचे समोसे खरीद लिए थे & खाने लगी थी.दुकान बंद कर वो दुकानदार देवेन के साथ उसके करीब आए तो उसने पत्ते का डोना उनकी ओर बढ़ा दिया.देवेन ने मना किया तो रंभा ने मुस्कुराते हुए दुकानदार को समोसे पेश किए.दुकानदार की तो जैसे किस्मत खुल गयी & वो बेवकूफो की तरह हंसते,शरमाते हुए समोसा उठा खाने लगा.

गाँव मे मुश्किल से 30 घर होंगे & दुकानदार उन्हे वाहा के सबसे बड़े घर मे ले गया.मुखिया वही रहता था मुखिया 70 बरस का बिल्कुल बुड्ढ़ा शख्स घर के अंदर आँगन मे बैठा हुक्का गुदगुदाता खांस रहा था.

"आप दोनो हो कौन?",देवेन ने रंभा को देखा & रंभा ने देवेन को.अभी तो दोनो ने अपना नाम बताया था,"..देखो,जगह तो मिल जाएगी लेकिन ये बताओ कि दोनो क्या लगते हो 1 दूसरे के?",देवेन नही समझा मगर रंभा उसके सवाल का मतलब समझ गयी.

"ये मेरे पति हैं.हम दोनो सनार जा रहे हैं क्यूकी सुना है वाहा कोई विदेशी सब्ज़ी की खेती होती है & उसके आगे जाके 1 छ्होटी पहाड़ी नदी भी है ना जोकि बहुत खूबसूरत है उसी को देखने जा रहे हैं.हमारे होटेल है ना शहर मे तो सोचा कि देखे शायद वाहा से कुच्छ सस्ती सब्ज़ियाँ हमे सप्लाइ हो सकें.",देवेन उसके जवाब से चौंक गया & फ़ौरन पलट के उसे देखा.

"हा-हां..",बुड्ढे की नज़र अब उसी पे थी.उसने झट से झूठ बोला और 1 सिगरेट सुलगा ली.पिच्छली उसने घर मे घुसने से पहले फेंक दी थी.

"हूँ..आओ.",तीनो उठे तो बुड्ढे ने किसी नौकर को आवाज़ दी.रंभा ने अपनी बाई बाँह देवेन की दाई बाँह मे फँसा दी.उसने तो ऐसा बुड्ढे को ये यकीन दिलाने के लिए किया था कि दोनो पति-पत्नी हैं लेकिन उसे बिल्कुल अंदाज़ा नही था कि उसके जिस्म मे बिजली का करेंट दौड़ जाएगा.उसके दिल मे गुस्ताख अरमानो ने अंगड़ाई ली & उसने अपने चेहरे को देखते देवेन की निगाहो से शर्मा के अपना मुँह फेर लिया.देवेन भी उस खूबसूरत लड़की के मुलायम,महकते एहसास से मदहोश हो गया था.उसके जिस्म के रोएँ खड़े हो गये थे & धड़कन तेज़ हो गयी थी.रंभा को कुच्छ औरतो की दबी हँसी की आवाज़ सुनाई दी.उसने गर्दन घुमाई तो 1 पर्दे की ओट से 2-3 औरतें खड़ी दिखी.वो मुस्कुराइ & 'अपने पति' के साथ मुखिया & उसके नौकर के पीछे हो ली.

"मुखिया जी,आपके गाँव का नाम क्या है?"

"हराड.",मुखिया इतनी उम्र के बावजूद बिना सहारे के बिल्कुल सीधा चल रहा था.

"बहुत सॉफ-सुथरा है & बिजली भी है यहा तो."

"हां.मुझे कूड़ा-कचरा नही पसंद तो सभी को हिदायत देता रहता हू & बिजली के लिए तो पुछो मत कितना भागना-दौड़ना पड़ा.",चारो गाँव मे & अंदर आ गये थे.नौकर 1 घर के तले को खोल रहा था,"..आओ यहा बैठो.जब तक ये अंदर सॉफ-सफाई कर ले.ये मेरे छ्होटे भाई का घर है.वो यहा नही रहता.",दोनो घर के बाहर की सीढ़ियो पे बैठ गये.

"खाना हमारे साथ ही खाना.यहा कोई परेशानी नही होगी,आराम से सोना.",बुड्ढे ने मुस्कुराते हुए देवेन को देखा & 'सोने' पे ज़ोर दिया.देवेन ने कोई जवाब नही दिया & बस सिगरेट फूंकता रहा.रंभा के गाल उस बात से थोड़े सुर्ख हो गये लेकिन दिल मे 1 उमंग भी उठी.थोड़ी ही देर मे नौकर ने सब सॉफ कर दिया था.

सभी अंदर गये तो देखा की आँगन के बाद 1 बड़ा सा कमरा था जिसमे बड़ी आरामदेह कुर्सियाँ & 1 मेज़ थी & दूसरे मे 1 बिस्तर था जोकि थोड़ा छ्होटा था.उसपे 2 आदमी तो सो सकते थे लकिन फिर दोनो के जिस्मो का टकराने से बचना नामुमकिन था.उस बिस्तर को देख रंभा का दिल धड़क उठा.1 तरफ 1 गुसलखाना बना था जिसमे बल्टियो नौकर ने कुएँ से लाके पानी रख दिया था.देवेन किराने की दुकान के सामने खड़ी कार को उस घर के बाहर ले आया तो नौकर ने उस से उनका समान उतार के अंदर रख दिया.फिर वो वापस मुखिया के घर गया & 1 लालटेन जला के वाहा रख दी.

"अभी 2-3 घंटे के लिए जाएगी बिजली.रोज़ ही जाती है.",मुखिया ने उसकी सवालिया निगाहो को देख जवाब दिया.

"अच्छा,चलता हू..",देवेन मुखिया को बाहर तक छ्चोड़ने आया.नौकर उनसे दूर खड़ा था,"..नहा-धो के खाना खाने आ जाना.हम ज़रा जल्दी सो जाते हैं.वैसे तुम्हे भी जल्दी ही होगी सोने की?",मुखिया फिर दोहरे मतलब वाली बात बोल के हंसा.देवेन भी बस हंस दिया,"..मेरी तरह तुम भी असल मर्द हो.उम्र का हम जैसो पे कोई असर नही पड़ता.मैं तुम्हे कुच्छ उपाय बताउन्गा ताकि जब मेरी उम्र मे पहुँचो तो भी ये दम-खम बरकरार रहे."

"नही,मुझे ज़रूरत नही.",देवेन को अब उस बुड्ढे की बातें हद्द से बाहर जाती दिख रही थी लेकिन वो उसे नाराज़ नही करना चाहता था.

"पक्के मर्द हो!",बुड्ढ़ा फिर हंसा,"..अपनी मर्दानगी के आगे जाके कमज़ोर होने की बात से तिलमिला गये?..कोई बात नही पर मैं बताउन्गा तुम्हे उपाय.भरोसा करो,आगे जाके बहुत काम आएँगे तुम्हे.अच्छा चलो जाके नहा लो.मैं खाने पे इंतेज़ार करूँगा.जल्दी आना.असल मे मैं ज़रा जल्दी सोता हू.",बुड्ढे ने सोता लफ्ज़ पे फिर ज़ोर दिया & हंसता हुआ नौकर के साथ चला गया.देवेन कुच्छ देर उसे जाते देखता रहा & फिर अंदर आ गया.

“तुमने उस मुखिया से ये क्यू कहा कि हम..हम पति-पत्नी हैं?”,देवेन & रंभा उस मुखिया के घर खाना खाने जा रहे थे.रंभा अभी भी जीन्स पहने थी बस उपर का टॉप बदल लिया था.अब उसने 1 काली वेस्ट पहन ली थी जिसमे उसकी बड़ी छातियो का आकार सॉफ उभर रहा था.देवेन को ये अच्छा तो नही लगा था क्यूकी वो जानता था कि अब वाहा के मर्द उसे और घुरेंगे.

“ऐसा ना कहती तो हमे रहने की जगह नही मिलती.अगर मैं सही बात बताती तो उसे लगता हम झूठ बोल रहे हैं & वो हमे चलता कर देता ताकि यहा रुक के हम यहा के माहौल को ना ‘बिगाड़े’.”,रंभा हँसी.दोनो मुखिया के घर की दहलीज़ पे थे.चाँद की रोशनी मे रंभा का खूबसूरत चेहरा चमक रहा था.देवेन का दिल किया की उसके गाल को चूम ले..अभी उसका हाथ पकड़ उसे वापस उस घर मे ले जाए & उसके हुस्न को करीब से देखे..बहुत करीब से..उतने करीब से जितना 1 मर्द & औरत के लिए संभव होता है..रंभा सीढ़िया चढ़ रही थी.देवेन का हाथ आगे बढ़ा लेकिन तब तक अंदर से कोई बाहर आ गया था.

“ये मेरी पत्नी है.”,बमुश्किल 20 बरस की 1 लड़की आगे तक घूँघट गिराए खाना परोस रही थी.रंभा तो खाते-2 चौंकी & देवेन भी.बुड्ढ़ा देवेन की ओर देख मुस्कुराया,”..यहा पास के जंगल मे बड़ी ज़ोरदार बूटियाँ होती हैं.मैं कल तुम्हे दूँगा..”,वो उसके कान मे फुसफुसाया,”..जैसे बताउन्गा वैसे लेना तो ये..”,उसका इशारा रंभा की ओर था,”..पूरी ज़िंदगी तुम्हारी बाँदी बन के रहेगी जैसे मेरी घरवाली है.”,दोनो का खाना ख़त्म हो गया था & दोनो उठ के हाथ धोने जा रहे थे,”..गाँव के कयि नौजवान इसे खराब करने के चक्कर मे लगे रहते हैं..”,1 नौकर लोटे से उनके हाथ धुल्वाने लगा,”..लेकिन मेरी मर्दानगी के नशे मे डूबी इसकी आँखो को वो लंगूर दिखते ही नही!”,वो हंसा तो देवेन भी 1 फीकी हँसी हंस दिया.उसकी बातें उसे असहज कर रही थी & उसका दिल रंभा के नंगे जिस्म के उस से लिपटे होने का तस्साउर करने लगा था.

“वो तो उसकी पोती के बराबर है!”,दोनो खाना खा के लौट रहे थे,”..कैसे शादी हुई होगी इनकी?!”,रंभा बोले जा रही थी.दोनो घर तक पहुँचे ही थे कि रंभा के पैर मे कुच्छ ठोकर लगी & वो गिर गयी,”आउच!”

“क्या हुआ?!..ठीक तो हो?”,देवेन ने उसे सहारा दे के उठाया & फिर जेब से निकाल के मोबाइल ऑन किया.उसकी रोशनी के सहारे दोनो घर के अंदर पहुँचे तो देवेन उसे सीधा उस कमरे मे ले गया जहा बिस्तर लगा था,”देखु,कहा चोट आई है.”रंभा के बदन के दाए हिस्से पे धूल लगी थी जिसे वो झाड़ रही थी,”..पाँव मे लगी है लगता है.”,वो झुक के बैठ गया & रंभा का दाया पाँव उठा लिया.रंभा के जिस्म मे झुरजुरी दौड़ गयी & उसके मुँह से हैरत भरी आह निकल गयी.

देवेन ने उसके पाँव को बाए हाथ मे थामा हुआ था & दाए से वो धीरे-2 उसपे लगी धूल हटा रहा था.पाँव मे हल्की खरॉच आई थी & सबसे छ्होटी उंगली मे कुच्छ चुभा भी दिख रहा था.रंभा के जिस्म को छुते ही उसके भी अरमान जाग उठे थे..कितनी कोमल त्वचा है इसकी..कितने खूबसूरत & नाज़ुक पाँव..जी करता है चूम लू इन्हे..रंभा की भी साँसे तेज़ हो गयी थी. देवेन ने उसके पाँव को थोड़ा & करीब से देखा.छ्होटी उंगली मे 1 काँटा चुबा था.उसने पाँव को दाए हाथ मे पकड़ा & बाए से काँटे को खींचा.देवेन ने उसके पाँव को ज़मीन पे रखा & उसकी दाई टाँग पे जीन्स की सीम के उपर नीचे से उपर तक बहुत ही धीमे से अपने दाए हाथ की 1 उंगली चलाई.रंभा ने माथा दीवार से लगा लिया.उसके दिल मे उमँगो की लहरें अब बहुत तेज़ी से उमड़ रही थी.देवेन उसकी मा से बेइंतहा प्यार करता था,ये जानते ही उसके दिल मे उसके लिए इज़्ज़त पैदा हो गयी थी & लगाव भी.वो पहले दिन से ही उसके साथ केवल सुमित्रा के नाम से जुड़ी ग़लतफहमी को दूर करने के लिए नही हुई थी.उसके दिन ने उस से कहा था कि उस भले इंसान की मदद करके ही उसका शुक्रिया अदा करे.मगर अभी जो हो रहा था उसे वो बिल्कुल भी ग़लत या बुरा नही लग रहा था.

“हान्न्न्ंह..!”,रंभा मामूली से दर्द & बड़ी सी कसक से आहत हो गयी थी.रात के वक़्त,चारो तरफ फैली खामोशी मे 1 घर मे,1कमरे मे उन दोनो का तन्हा होना-रोमानी माहौल ने उसके उपर असर करना शुरू कर दिया था.खून की 1 बहुत छ्होटी सी बूँद उसकी गोल सी उंगली पे दिख रही थी.देवेन ने उस काँटे को किनारे किया & रंभा के पाँव को थोड़ा उपर उठाया.वो सहारे के लिए पीछे की दीवार से टिक गयी.उसकी निगाहे अपनी मा के प्रेमी पे ही जमी हुई थी.देवेन का चेहरा अब उसके पाँव के इतने करीब था कि वो उसकी गर्म साँसे महसूस कर रही थी.

“आहह..!”,वो थोडा & झुका था & उसकी उंगली को मुँह मे भर खून की उस बूँद को चूस लिया था.रंभा के जिस्म मे बिजली दौड़ गयी थी.उसकी चूत मे कसक उठने लगी थी & उसके होंठ देवेन के होंठो की तमन्ना मे काँपने लगे थे.कुच्छ पल बाद देवेन ने उसकी उंगली को मुँह से निकाला तो खून बंद हो गया था.उसने उपर देखा & मस्ती से भरी 2 काली-2 आँखो से उसकी नज़रें टकराई.उसने उसे देखते हुए उसके पाँव को चूमा & उसके अन्द्रुनि हिस्से पे 1 उंगली फिराई.रंभा को ना जाने क्यू शर्म आ गयी.उसे बिल्कुल वैसा महसूस हो रहा था जैसा विजयंत के साथ पहली रात महसूस हुआ था.वो घूमी & दीवार की ओर मुँह कर खड़ी हो गयी.देवेन की नज़रो के सामने काली जीन्स मे कसी उसकी चौड़ी,पुष्ट गंद आ गयी.

उसने उसके पाँव को ज़मीन पे रखा & बहुत हौले से उसकी दाई टांग के बाहरी हिस्से पे,नीचे से लेके उपर तक जीन्स की सीम पे अपने दाए हाथ की 1 उंगली चलाई.रंभा के दिल मे उमड़ रही हसरतें अब तूफ़ानी लहरो की शक्ल इकतियार कर रही थी.उसने अपना माथा दीवार से लगा लिया था & देवेन की अगली हरकत का इंतेज़ार कर रही थी.देवेन के लिए उसके दिल मे जगह तो तब ही बन गयी थी जब उसे पता चला था कि वो उसकी मा से बेइंतहा मोहब्बत करता था.वो उसके साथ केवल इसीलिए नही आई थी क्यूकी वो सुमित्रा के नाम के साथ जुड़ी ग़लतफहमी को दूर करना चाहती थी बल्कि वो सच मे उसकी मदद करना चाहती थी.उस इंसान ने बहुत दर्द सहे थे केवल इसीलिए क्यूकी वो उसकी मा के साथ सारी ज़िंदगी गुज़ारना चाहता था.उसने भी तय कर लिया था कि वो उसके दर्द जितना हो सके कम करेगी & उसके घाव पे ज़रूर मरहम लगाएगी.मगर कुच्छ और भी था..वो खिचाँव जो 1 मर्द & 1 औरत 1 दूसरे के लिए महसूस करते हैं..वो खिचाँव जो उनके दिल मे जिस्मो को 1 साथ जोड़ प्यार का इकरार करने पे मजबूर कर देता है.

अब देवेन की 1-1 उंगली दोनो टाँगो की सीम्ज़ पे नीचे से उपर & उपर से नीचे आ रही थी.रंभा उसकी साँसे अपनी गंद पे महसूस कर रही.जीन्स के मोटे कपड़े के बावजूद उनकी तपिश वो अपने नाज़ुक अंग पे महसूस कर रही थी.उसकी चूत से अब पानी रिसने लगा था,”..उउन्न्ह..!”,उसने फिर आह भरी.उसकी काली वेस्ट थोड़ी उपर हो गयी थी & देवेन की गर्म साँसे अब उसकी कमर के उस नुमाया हिस्से को गर्म कर रही थी.इस बार जब उसकी दाई उंगली उपर आई तो फिर नीचे नही गयी बल्कि जीन्स के दाई तरफ के बेल्ट के लूप मे फँस गयी.उसने उसी उंगली से रंभा को खींचा & रंभा मुड़ने लगी.अब रंभा की पीठ दीवार से लगी थी & उसकी वेस्ट & जीन्स के बीच के 2 इंच के नुमाया हिस्से पे देवेन की गर्म साँसे गिर रही थी.रंभा की साँसे अब बहुत तेज़ हो गयी थी.उसकी नाभि का बस ज़रा सा निचला हिस्सा नुमाया था & उसके कोने को चूमती देवेन की सांसो को वो महसूस कर रही थी.उसने देखा वो उसके पेट को निहार रहा था.उसके दाए हाथ की उंगली उसकी कमर पे दाई तरफ से जीन्स के वेयैस्टबंड पे चलते हुए उसके बटन तक आ गयी थी.

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क्रमशः.......
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