Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:40 PM,
#52
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--51

गतान्क से आगे......

“उउन्नगज्गघह..!”,रंभा ने उसकी गर्देन के नीचे अपने दाँत गढ़ाए & अपने दाए हाथ को उसकी पीठ से ले जाते हुए प्रणव के दाए कंधे को भींचा & बाए को उसकी शर्ट के अंदर घुसा उसकी छाती मे नाख़ून धंसा दिए & झड़ने लगी.उसका जिस्म थरथरा रहा था.प्रणव उसके चेहरे को हौले-2 चूमते हुए बाए हाथ से उसकी पीठ सहलाता रहा.

रंभा संभली तो उसने चेहरा प्रणव के कंधे पे रखे-2 ही उपर घूमके उसे देखा तो प्रणव ने उसके रस से भीगी अपनी उंगलिया उसकी स्कर्ट से निकाली & उसे दिखाते हुए उन्हे मुँह मे भर उसका रस चाट लिया.रंभा ने बाए हाथ से उसके बालो को पकड़ते हुए सुके सर को घुसाया & चूमने लगी.

प्रणव ने चूमने के बाद उसका हाथ अपने लंड पे रख दिया.रंभा ने इधर-उधर देखा & उसकी ज़िप खोल दी & हाथ अंदर घुसा अंडरवीअर के उपर से ही उसके लंड को सहलाने लगी & अपने प्रेमी को चूमने लगी.प्रणव ने उसके हाथ को अपने अंडरवेर पे और दबाया & फिर अंडरवेर नीचे कर लंड को बाहर निकाल उसे अपनी महबूबा के हाथ मे दे दिया.

“पागल हो क्या!..कोई देख लेगा..!”,रंभा घबरा के बोली मगर उसे मज़ा भी आ रहा था.

“कोई नही देखेगा.”,प्रणव ने उसके हाथ को लंड पे & दबाया तो वो उसे बाए हाथ से हिलाने लगी.प्रणव उसकी शर्ट के बटन्स खोलने लगा.

“नही!बिल्कुल नही!”,रंभा ने लंड छ्चोड़ दूर होने की कोशिश की तो प्रणव ने फिर से लंड को उसे थमा दिया.

“बस 2 बटन्स खोल रहा हू,जान!घबराओ मत.”,उसने अपना दाया हाथ अंदर घुसा उसकी चूचियो को ब्रा के उपर से ही दबाना शुरू कर दिया.कुच्छ देर बाद रंभा ने देखा कि कोई उनकी ओर ध्यान नही दे रहा तो वो थोड़ा सायंत हुई & लंड ज़ोर-2 से हिलाने लगी.अब प्रणव के च्चटपटाने की बारी थी.उसने हाथ रंभा के सीने से हटाया & उसका सर पकड़ के नीचे किया तो रंभा उसका ऐशारा समझ गयी & फिर मना किया.

“प्लीज़..कोई नही देख रहा..बस तुरंत हो जाएगा..प्लीज़ मेरी जान!”,दिल तो रंभा का भी कर रहा था & प्रणव के इसरार ने उसे थोड़ा पिघला भी दिया.उसने फिर इधर-उधर देखा & जल्दी से नीचे झुक अपने महबूब का लंड मुँह मे भर लिया.उसने उसे हिलाना नही छ्चोड़ा था & साथ मे चूसना भी शुरू कर दिया था.थोड़ी ही देर मे प्रणव सीट पे अपने आप को रोकने की कोशिश कर रहा था & रंभा का मुँह उसके लंड पे & दाब रहा था.रंभा उसके आंडो को भिंचे हुए थी & उसकी ज़ुबान जिसने प्रणव के सुपादे को खूब छेड़ा था अब उसके वीर्य को चख रही थी.रंभा उसके आंडो को ऐसे दबा रही थी जैसे उन्हे दबा के वीर्य की सारी बूंदे निकाल लेना चाहती हो.उसकी ज़ुबान जल्दी-2 सारे वीर्य को अपने हलक मे उतार रही थी.कुच्छ पल बाद उसने प्रणव की गोद से सर उठाके उसकी निगाहो मे झाँका तो उसे वो उसका शुक्रिया अदा करती दिखी.प्रणव ने उसके शर्ट के बटन्स लगाए तो सुने भी उसके लंड को अंदर डाल उसकी पॅंट की ज़िप चढ़ा दी & फिर उसके कंधे पे सर रख उसकी बाहो मे क़ैद हो आँखे बंद किए सुकून के एहसास का लुफ्त उठाने लगी.

रंभा ने अपने पास रखे सुमित्रा के थोड़े से समान को छान मारा था लेकिन उसके हाथ कुच्छ नही लगा था.उसने देवेन को ये बात बताई थी.उसका कहना था कि शायद गोपालपुर जाके फिर से नये सिरे से खोज करने से दयाल के बारे मे कुच्छ जानकारी मिल सके मगर रंभा उसकी इस बात से सहमत नही थी.उसका मानना था कि दयाल जैसा लोमड़ी की तरह का चालक & शातिर शख्स ने अपने पीछे कोई निशान नही छ्चोड़ा होगा.

“तो क्या करें?”,देवेन थोड़ा झल्ला गया था.

“मुझसे मिलिए तो साथ बैठ के कुच्छ सोचते हैं.”

“ठीक है.मेरे होटेल आ जाओ.”,रंभा शाम को उसके होटेल के कमरे मे बैठी थी.उसने घुटनो तक की कसी,भूरी स्कर्ट & 1धारियो वाली पूरे बाज़ू की क्रीम शर्ट पहनी थी.पैरो मे हाइ हील वाले जूते थे & जब उसने देवेन के कमरे मे कदम रखा तो उसकी नज़रो मे दिखी उसके जिस्म की तारीफ रंभा से च्छूपी नही रही थी मगर अगले ही पल देवेन की नज़रे फिर से पहले जैसी हो गयी थी जिन्हे रंभा के हुस्न से कोई मतलब नही था.रंभा को उसका उसकी सुंदरता को निहरना बहुत अच्छा लगा था लेकिन जब उसकी निगाहे अपने पहले वाले अंदाज़ मे आ गयी तो वो अंदर से थोड़ी मायूस हो गयी थी.

ये उसकी मा का प्रेमी था..ये उसकी मा को कैसे प्यार करता होगा?..& मा..क्या वो भी इसका साथ देती होगी?..अजीब लगा उसे मा के बारे मे ऐसी बातें सोच के लेकिन इंसान का दिमाग़ तो वो बेलगाम घोड़ा है जो अपनी मर्ज़ी से अपने रास्ते पे भागता है..वक़्त के थपेड़े इसकी शक्ल पे दिखते हैं लेकिन अभी भी देखने मे ये बुरा नही है..& उसकी तरफ क्यू नही देखता वो?..क्या मा के बाद इसने किसी औरत से रिश्ता नही रखा?..ऐसा नामुमकिन है तो फिर..-

“क्या सोच रही हो?”,वो उसके सामने चाइ बनाके प्याला बढ़ाए उसे देख रहा था.

“कुच्छ नही.”,धीमी आवाज़ मे जवाब दे रंभा ने कप लिया.उसके दिल मे इस शख्स के लिए 1 जगह बन गयी थी लेकिन कैसी ये उसकी समझ मे अभी नही आ रहा था,”दयाल को जानने वाले क्या बहुत लोग थे गोपालपुर मे?..आपकी मुलाकात कैसे हुई थी?..& आपने कहा था कि आपको ये पता था कि वो कुच्छ ग़लत करता था लेकिन पूरी तरह से मालूम नही था तो ये बताइए कि क्या पता था आपको उसके बारे मे?”

“बाप रे!तुमने तो सवालो की झड़ी लगा दी.”,देवेन हंसा & चाइ का घूँट भरा.रंभा को उसकी हँसी सूरत अच्छी लगी & अपने बचपाने पे थोड़ी शर्म भी आई.देवेन उसके सुर्ख गुलाबी चेहरे को देखने लगा..मा की झलक थी उसमे..& वही शर्मीली मुस्कान..जब वो चूमता था उसे तो कैसे शरमाते हुए उसके सीने मे मुँह च्छूपा लेती थी सुमित्रा..उफफफ्फ़..& फिर जवाब मे उसकी गर्दन को चूम लेती थी..सुमित्रा को कभी नंगी नही देखा था लेकिन ये तो बला की खूबसूरत थी & कितनी बेबाक!..अपने ससुर से रिश्ता जोड़ा था & बिस्तर मे उसका पूरी गर्मजोशी से साथ दे रही थी..वो गुस्से मे तिलमिला गया था जब उसे देखा था विजयंत मेहरा से चुद्ते हुए लेकिन 1 ख़याल ये भी तो आया था कि विजयंत कितना किस्मतवाला है जो उसके नशीले जिस्म को भोग रहा है!..क्या हो गया है उसे?..वो उसकी माशूक़ा की बेटी है..तो क्या हुआ?..नही..!

“मेरी मुलाकात दयाल से उसी लॉड्ज मे हुई थी जहा मैं रहता था.वैसे तो वो अपने काम से काम रखता था..”,उसकी निगाह उसकी गोरी,सुडोल टाँगो पे पड़ी & उसे याद आया कि कैसे 1 बार सुमित्रा ने कीचड़ से बचने के लिए अपनी सारी उपर कर ली थी & उसकी टाँगो की गोराई से मदहोश हो बाद मे उसने उसके घर पे उस से विदा लेने से पहले उसकी सारी उपर कर उसकी टाँगो का निचला हिस्सा चूम लिया था.सुमित्रा उस से छिटक गयी थी,कुच्छ शर्म..कुच्छ गुस्से से लेकिन उसकी निगाहो मे उस रोज़ पहली बार उसने मस्ती की चमक देखी थी.3 बार उसने अपना लंड हिलाया था उस रात सुमित्रा को याद करके..वो क्यू बार-2 बीती, मस्तानी यादों मे खो रहा था..सब इस लड़की के हुस्न का असर था!

“..मगर कुच्छ इत्तेफ़ाक़ यू हुआ कि हमारी 1-2 बार बातें हुई & फिर या तो उसे मेरा साथ ठीक लगा या फिर उसने मुझे फसाने के ख़याल से मुझसे मेल-जोल बढ़ाना शुरू किया.मुझे भी उस से बाते करना अच्छा लगता था & बस हम दोस्त बन गये.मुझे पता था कि अगले कस्बे मे बनी जैल के क़ैदियो को वो वो जैल के हवलदारो के साथ मिलके कुच्छ चीज़ें सुप्पलाई करता था मसलन गंजा,अफ़ीम या फिर छ्होटे चाकू या फिर कॉन..-“,उसने खुद को रोका.उसे उस लड़की से कॉंडम का ज़िक्र करना अजीब सा लगा.रंभा ने भी उसकी उलझन समझते हुए नज़रे नीची कर ली.ना जाने क्यू उसे भी उसके सामने थोड़ी शर्म आने लगी थी..ऐसा पहले तो कभी नही हुआ था..विजयंत के साथ भी उसे इतनी शर्म नही आई थी..फिर आज क्यू?

“यही था उसका काम?”,रंभा ने बात आगे बढ़ाई.

“हां या फिर वो कभी-कभार शहर से कुच्छ समान लाके गोपालपुर मे बेचता था जैसे कपड़े या जूते मगर 1 बात थी.वो कभी-कभार बिना बताए अचानक चला जाता था & जब लौटता था तो उन्ही सामानो के साथ जिन्हे वो बेचने को लाता था.लॉड्ज के मालिक ने 1 बार मुझे कहा था कि मैं उसके साथ ज़्यादा ना घुलु क्यूकी उसे वो ठीक आदमी नही लगता था.मैने हंस के बात टाल दी थी.अगर पता होता तो..”

“खैर..वो इतना समान लाता था कि 3-4 दिन मे बिक जाए & 1 बात और थी.मैने उसे वो समान बेचने के लिए बहुत परेशान होते या फिर उसका प्रचार करते उसे नही देखा.आमतौर पे कैसा भी कारोबारी हो,अपने धंधे को बढ़ाने के लिए वो ज़्यादा से ज़्यादा लोगो से मिल उन्हे उसके बारे मे बताना चाहता है लेकिन दयाल ऐसा नही करता था.”

“यानी कि वो ये सब बस दिखावे के लिए करता था.”,..लड़की खूबसूरत होने के साथ तेज़ भी थी..अगर सुमित्रा सच मे मेरी तरह दयाल की चाल की शिकार बनी तब तो ये मा पे बिल्कुल नही गयी है & नही तो फिर ये अपनी मा की ही बेटी है,”..मुझे तो यही लगता है कि शुरू मे तो उसने आपसे दोस्ती बस इसीलिए रखी थी ताकि कोई तो ऐसा हो जो उसे कस्बे के बारे मे & किसी भी नयी खबर के बारे मे बताता रहे.अपने छ्होटे-मोटे कामो के बारे मे बता या यू कहे की अपने कुच्छ मामूली से ‘राज़’ आपके साथ बाँट के उसने आपका भरोसा जीता & बाद मे जब मौका मिला तो उसने आपको फँसा दिया.देखिए,जिस तरह से आप पकड़े गये थे,उस से तो यही लगता है कि दयाल को भनक लग गयी थी कि पोलीस उसके लिए जाल बिच्छा रही है & उसने चालाकी से अपनी जगह उसमे आपको फँसा दिया.”

“हूँ..तो अब क्या कहन्ना है तुम्हारा..उसे कैसे ढूंडे?”

“जो तस्वीर आपके पास है वो बहुत पुरानी & खराब भी हो गयी है.बस अंदाज़ा भर लग पता है उसकी शक्लोसुरत का.”,रंभा सोचने लगी.उसे उस कामीने दयाल को ढूँढना ही था जिसकी वजह से उसकी मा की ज़िंदगी मे खुशियाँ आने से पहले ही वापस लौट गयी..उस हरम्खोर की वजह से उसकी मा की देवेन से शादी नही हुई..अगर वैसा हुआ होता तो शायद आज वो भी ऐसी ना होती..कही बहुत सुकून से 1 आम लड़की की ज़िंदगी जी रही होती,”..उस जैल मे काम करने वाले हवलदरो को नही खोज सकते क्या हम?..हो सकता है उन्हे कुच्छ पता हो उसके बारे मे?”

“रंभा..”,वो खड़ा हो गया,”..मैं तुम्हारे जज़्बात समझता हू लेकिन क्या तुम मेरा साथ दे पओगि इस काम मे?..तुम्हारी अपनी ज़िंदगी है..1 पति है..ऐसे मे..-“

“-..अपनी मा का नाम बेदाग रखने से ज़रूरी & कोई काम नही मेरे लिए & इसके लिए मैं कोई भी कीमत चुकाने को तैय्यार हू.”

“हूँ..”,लड़की की सच्चाई पे उसे अब बिल्कुल भी शुबहा नही था,”..ठीक है.मैं देखता हू कि आगे क्या हो सकता है.”

“ठीक है तो मैं चलती हू.आप मुझे फोन कीजिएगा.”

“ज़रूर.”

“ओके,बाइ!”,रंभा को समझ नही आया कि विदा कैसे ले & उसने अपना हाथ आगे कर दिया.देवेन ने उसका हाथ थामा & उस पल दोनो के जिस्मो मे जैसे कुच्छ दौड़ गया & दोनो की मिली नज़रो ने दोनो के दिलो तक 1 दूसरे के 1 जैसे एहसास के महसूस होने की बात पहुँचा दी.

समीर वापस आ गया था & उसका बदला रवैयय्या बरकरार था.ऐसा नही था कि वो रंभा से बिल्कुल ही बेरूख़् था लेकिन दोनो के रिश्तो मे वो पहले जैसी चाहत,वो गर्मजोशी नही रह गयी थी.रंभा को उसकी ये बात पसंद तो नही आ रही थी मगर उस से इस बात पे झगड़ वो बात बिगाड़ना नही चाहती थी.उसकी जिस्मानी ज़रूरतें तो प्रणव से पूरी हो रही थी & उसके दिमाग़ ने उसके पति को अपने काबू मे रखने की तरकीबो के बारे मे सोचना शुरू भी कर दिया था.

“समीर..”,उसने उसे पीछे से बाहो मे भर लिया & उसके कुर्ते के उपर से ही उसके सीने पे नाख़ून चलाए & उसके दाए कंधे को चूम लिया,”..1 बात कहु?”

“हां.”,समीर ने अलमारी मे अपनी घड़ी रख के उसे बंद किया & घूमा तो रंभा ने उसके गले मे अपनी बाहे डाल दी.समीर ने भी अपने हाथ उसकी कमर पे रख दिए.रंभा आयेज बढ़ी & उसके जिस्म से बिल्कुल सॅट गयी.समीर अपनी पत्नी से कितना भी बेरूख़् क्यू ना हो गया हो था तो वो 1 मर्द ही.रंभा के कोमल जिस्म की हरारत ने उसके बदन की गर्मी भी बढ़ा दी & उसकी कमर पे रखे हाथ पीछे गये & उसकी पीठ को घेरते हुए उसे अपने जिस्म से और सतने लगे.

“डार्लिंग,मैं कुच्छ काम करना चाहती हू.”,रंभा उसके सीने को चूम रही थी & उसके हाथ पति के गले से उतार उसके कुर्ते मे घुस उसके पेट पे घूम रहे थे.

“कैसा काम?”,समीर के हाथ भी बीवी की निघट्य को उठा उसकी गंद को मसल रहे थे.रंभा ने जानबूझ के नाइटी के नीचे कुच्छ नही पहना था.समीर के हाथ जैसे ही उसकी मुलायम त्वचा से सटे उसका लंड पूरा तन गया & उसने जोश मे भर बीवी को खुद से और सटा लिया.

“ऊव्ववव..आराम से,मेरी जान..कही भागी थोड़े जा रही हू..आख़िर बीवी हू तुम्हारी!”,रंभा उसके पैरो पे खड़ी हो गयी & उचक के उसके होंठ चूम लिए.समीर ने फ़ौरन उसकी गंद को मसल्ते हुए उसके मुँह मे अपनी जीभ घुसा दी,”..उउम्म्म्म..घर मे बैठे-2 ऊब जाती हू..उउफफफ्फ़..इसीलिए सोचा कि कुच्छ काम ही कर लू..”,समीर के हाथ उसकी गंद से उपर उसकी नंगी पीठ पे चल रहे थे & रंभा भी मस्त हो गयी थी.रंभा ने हाथ नीचे ले जाके पति के पाजामे की डोर खींच दी & उसके लंड को पकड़ लिया.सच बात तो ये थी कि विजयंत मेहरा के बाद उसे कोई भी लंड उतना कमाल का नही लगा था & फिर समीर का लंड तो बाप के लंड के मुक़ाबले काफ़ी छ्होटा था मगर फिर भी था तो 1 लंड ही वो भी उस पति का जिसे वो फिर से जीतने की कोशिश कर रही थी,”..आपकी कंपनी मे कोई नौकरी मिलेगी,सर?”,रंभा नीचे बैठ गयी & बड़ी मासूम निगाहो से पति को देखा & फिर लंड के सूपदे को अपने गुलाबी होंठो से पकड़ लिया.

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क्रमशः.......
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