Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:39 PM,
#49
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--48

गतान्क से आगे......

“पर मैं करू क्या?!”,रंभा के कान अब खड़े हो गये थे..आख़िर प्रणव के मन मे क्या चल रहा था?..उसने उसकी गंद को अपनी गिरफ़्त मे ले लिया था & उसके लंड को अपने मुँह मे हलक तक भर सर आगे-पीछे कर रही थी & प्रणव को ये एहसास हो रहा था कि वो अपनी महबूबा का मुँह चोद रहा है.आहें भरते हुए उसने उसके सर को थाम लिया था.

“तुम पढ़ी-लिखी,काबिल लड़की हो.शादी से पहले तुम नौकरी करती थी तो अब क्यू नही काम करती?”,उसने रंभा का सर अपने लंड से खींचा.रंभा को ये अच्छा तो नही लगा लेकिन अगले ही पल वो फिर से खुश हो गयी क्यूकी प्रणव ने उसे लिटा के अपना लंड दोबारा उसके मुँह मे दे दिया था & खुद 69 पोज़िशन मे आते हुए उसकी चूत चाटने मे जुट गया था.उसकी भारी जाँघो को थाम के उसने फैलाया & अपनी आतुर ज़ुबान उसकी गुलाबी चूत मे उतार उसके रस को चाटने लगा.

“उउम्म्म्म..”,रंभा ने अपनी नाक उसकी झांतो मे रगडी.प्रणव की ज़ुबान उसकी चूत को पागल कर रही थी,”..पर कैसा काम करू मैं?..आन्न्‍णणन्..!”,प्रणव उसके दाने को उंगली से ज़ोर-2 से रगड़ रहा था & उसकी कमर अपनेआप उचकने लगी थी.

“ग्रूप को जाय्न कर लो.समीर को बोलो कि वो तुम्हे कोई भी काम दे दफ़्तर मे.कितना भी मामूली क्यू ना हो मगर काम हो ताकि तुम घर मे बैठी मायूस ना हो & तुम्हारा दिल बहला रहे.”,प्रणव उसके दाने को रगड़ते हुए उसकी चूत से बहते रस को पी रहा था.

“आन्न्‍न्णनह..हाआआन्न्‍ननननननणणन्.....!”,प्रणव की झांतो मे मुँह बेचैनी से रगड़ते हुए उसके आंडो को नाक से छेड़ती रंभा झाड़ गयी थी,”..क्यू जानेमन..तुम तो हो ही मेरा दिल बहलाने के लिए फिर मुझे दफ़्तर मे नीरस फाइल्स मे सर खपाने की बात क्यू कर रहे हो?..उउन्न्ञणन्..!”,रंभा मस्ती की खुमारी मे भी प्रणव के दिल को टटोल रही थी.प्रणव उसके उपर से उतरा तो वो बाई करवट पे हो गयी & वो उसके पीछे आ गया & उसकी जाँघ उठाके अपने लंड को दोबारा उसकी चूत मे घुसाने लगा.

“पर तुम भी अच्छी तरह से जानती हो की लाख चाहने के बावजूद..आहह..कितनी कसी है तुम्हारी चूत,जान!..समीर तुम्हे चोद्ता नही क्या,मेरी रानी?”,उसने लंड पूरा अंदर घुसाया & उसकी जाँघ को थामे हुए उसकी चुदाई मे जुट गया.

“चोद्ता है मगर उसके पास तुम्हारे जैसा अंदाज़ कहा!”,रंभा ने दाए हाथ को टाँगो के बीचे ले जा उसके अंडे दबा दिए तो वो जॉश मे पागल हो उसकी चूचियो को दबाने लगा & उसे चूमने लगा.

“हां तो मैं कह रहा था कि मैं हर पल तुम्हारे साथ नही हो सकता और जुदाई के उन लम्हो मे तुम अकेलेपन & अपने दर्द को & शिद्दत से महसूस करोगी.तो ज़रूरी है कि तुम अपना ध्यान कही और भी लगाओ.फिर तुम समीर की बीवी होने के नाते कंपनी की कुच्छ हद्द तक मालकिन भी हो.तुम्हारा भी हक़ बनता है ग्रूप पे.”,प्रणव धक्के लगाता हुआ उसके दाने को भी रगड़ रहा था & रंभा का जिस्म झटके खाने लगा था.चूत पे दोहरी मार वो बर्दाश्त नही कर पाई थी & झाड़ गयी थी,”..& सबसे ज़रूरी बात..”,उसने रंभा की चूत सेबिना लंड निकाले उसे पीठ के बल लिटाया & फिर उसकी जाँघ को थामे हुए उसकी टाँगो के बीच आ गया & उसके उपर लेट गया.रंभा ने उसे बाहो मे भर लिया & उसके चेहरे & होंठो को चूमने लगी.

“..इन भाई-बेहन के लिए हम खिलोने हैं रंभा..”,वो उसकी गर्दन चूम रहा था.उसके धक्के रंभा को मस्ती से बहाल कर रहे थे.रंभा के पैर उसकी पिच्छली जाँघो पे लग गये थे & वो कमर उचका रही थी,”..इन्हे हम पसंद आ गये तो ये हमे शादी कर अपने घर ले आए..”,रंभा ने उसे बाहो मे भींच लिया था.उसके जिस्म का दबाव उसे बहुत भला लग रहा था.उसके दिल मे फिर से विज़ायंत के जिस्म के भार के मीठे एहसास की खुमारी जागी & उसकी चूत की कसक दोगुनी हो गयी & वो आहें भरते हुए तेज़ी से कमर उचकाने लगी,”..कल को ये हम से ऊब जाएँगे और हमे अपनी ज़िंदगी से ऐसे निकाल फेंकेगे जैसे दूध मे पड़ी मक्खी इसीलिए ज़रूरी है कि हम अगर इनकी ज़ाति ज़िंदगी मे इनके काम के ना रहें तो इनकी कारोबारी ज़िंदगी मे हम इनकी ज़रूरत बने रहें..आहह..!”,रंभा की चूत की कसक चरम पे पहुँची & उसने अपने नाख़ून प्रणव की पीठ मे धंसा दिए & उचक के उसे चूमने लगी.उसकी चूत ने झड़ते ही अपनी मस्तानी हरकतें शुरू कर दी & प्रणव का लंड उस मस्ती से बहाल हो वीर्य की पिचकारियाँ छ्चोड़ने लगा.

सुकून से भरी रंभा अपनी च्चातियो पे पड़े हान्फ्ते प्रणव के बॉल सहला रही थी & ये सोच रही थी कि उसके नंदोई की बातो मे ईमानदारी है या फिर उसका मक़सद कुच्छ और है..जो भी हो..उसकी चुदाई ज़बरदस्त थी & उसे तो उसी से मतलब था..& फिर उसकी ईमानदारी जानने के लिए उसे अपने बिस्तर मे रखने से ज़्यादा अच्छी तरकीब और क्या हो सकती है.

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वो शख्स सिगरेट का 1 पूरा पॅकेट ख़त्म कर चुका था.रंभा को अपार्टमेंट के अंदर गये 3 घंटे हो गये थे लेकिन वो अभी तक बाहर नही आई थी.उसकी समझ मे नही आ रहा था कि आख़िर वो अंदर कर क्या रही थी.वो यहा तक कार खुद चला के आई थी & अगर वो यहा से सीधा अपने बंगल गयी तो वाहा तक के रास्ते मे बीच मे 1 सुनसान हिस्सा पड़ता था जहा उसका काम हो सकता था.उसने सिगरेट का 1 नया पॅकेट डॅशबोर्ड से निकाला & खोल के 1 नयी सिगरेट सुलगाई.आज तो वो रंभा से मुलाकात करके ही रहेगा,उसने पक्का इरादा किया & काश खींचने लगा.

“दफ़्तर नही जाना क्या?..छ्चोड़ो ना..& कितना करोगे..ऊव्ववव..!”,रंभा बिस्तर पे बैठी थी & प्रणव उसे पीछे से बाहो मे भरे उसकी छातियो को मसलते हुए उसे वापस लिटाने की कोशिश कर रहा था.

“अभी तो पूरा दिन पड़ा है,जानेमन!”,उसने उसके निपल्स को उंगलियो मे दबाया & उसके दाए कान पे काटा.

“नही.अब हो गया.अब ऑफीस जाओ & मैं भी घर जाती हू वरना किसी को शक़ ना हो जाए.”,रंभा उसकी गिरफ़्त से निकली & बिस्तर से उतर अपने कपड़े उठा बाथरूम मे घुस गयी.प्रणव ने भी ठंडी आह भरी & अपने कपड़े पहनने लगा.रंभा ने बात तो ठीक कही थी लेकिन वो भी मजबूर था.वो हसीन थी ये तो उसे पता था लेकिन उसके नंगी होने पे & साथ हमबिस्तर होने पे उसे पता चला कि उसका हुस्न कितना नशीला,कितना दिलकश है & उसकी अदाएँ कितनी क़ातिल हैं.वो तो उसे अपने पहलू से निकलने ही नही देना चाहता था मगर किया क्या जा सकता था!

रंभा बाथरूम से निकली तो उसने वही ब्लाउस पहना था जिसे पहन वो फ्लॅट मे आई थी.प्रणव ने उसे सवालिया निगाहो से देखा तो रंभा दूसरे ब्लाउस को पॅकेट मे रखते हुए मुस्कुराइ,”ये ब्लाउस पहन के निकलती तो लोग सोचते नही कि पति शहर से बाहर है & किसी पार्टी मे भी नही जा रही तो ऐसे लिबास मे किसे रिझाने जा रही है.”

प्रणव मुस्कुरा. हुए उसके करीब आया & उसे बाहो मे भर चूमते हुए कमरे से निकल फ्लॅट के मेन दरवाज़े की ओर बढ़ा. रंभा हसीन थी,दिलकश थी & काफ़ी होशियार भी.प्रणव को इस बात की खुशी हुई की उसे ज़्यादा कुच्छ समझाना नही पड़ेगा लेकिन साथ ही ये डर भी लगा कि कही उसकी चालाकी उसकी राह मे कोई रोड़ा ना अटकाए.फिलहाल तो ये हुसनपरी उसकी बाहो मे थी & अभी उसे खुद से जुदा करने का उसका कोई इरादा नही था,”तुम 15 मिनिट बाद निकलना.ओके?”,प्रणव ने 1 आख़िर बार उसके लब चूमे & निकल गया & उसके कहे मुताबिक 15 मिनिट बाद रंभा भी.

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रंभा ड्राइव करते हुए प्रणव के बारे मे सोच रही थी.उसकी समझ मे नही आ रहा था कि आख़िर वो उसे ग्रूप जाय्न करने को क्यू उकसा रहा था..जो भी हो बात तो ठीक लगती थी..लेकिन वो करेगी क्या?..उसने कार उसी सुनसान स्ट्रेच पे मोदी.मोड़ पे 1 सिनिमा का पोस्टर लगा था जिस पर कामया की तस्वीर बनी थी.उसे देखते ही रंभा के दिल मे गुस्सा,नफ़रत & जलन भर गये लेकिन दिमाग़ मे 1 ख़याल कौंधा..हां!..यही ठीक रहेगा..वो ट्रस्ट ग्रूप की फिल्म प्रोडक्षन कंपनी को जाय्न करेगी & इस चुड़ैल पे नज़र रखेगी..नज़र क्या,कामिनी का करियर ही चौपट कर देगी!....स्कककककककरररर्रररीईईककचह..!

ख़यालो मे डूबी रंभा ने अचानक 1 इंसान को गश खाते हुए रास्ते के बगल से उसकी कार के सामने आ गिरते देखा & उसने फ़ौरन ब्रेक लगाया.बस ज़रा सी देर करती और वो इंसान उसकी कार के पहियो के नीचे आ जाता.वो जल्दी से कार से उतरी & उस आदमी को देखने गयी जो औंधे मुँह बेहोश पड़ा था.

“सुनिए..सुनिए..!”,रंभा ने उसके कंधे पे हाथ रख के हिलाया ही था कि वो शख्स बिजली की फुर्ती से उठा & अपनी बाए हाथ मे पकड़ी पिस्टल रंभा की ओर तान दी.रंभा डर से कांप उठी..गाल पे वो निशान!..ये तो वही शख्स था जो क्लेवर्त के बुंगले मे घुसा था!

“ चुपचाप अपनी कार मे बैठो.”,उस शख्स ने पिस्टल को अपने कोट की बाई जेब मे घुसा उसे अंदर से रंभा पे तान दिया था ताकि बगल से गुज़र रही इक्का-दुक्का गाडियो को वो ना दिखे,”..भागने की कोशिस या ज़रा भी चूं-चॅपॅड की तो गोली भेजे के पार होगी.बैठो!”

“इधर नही ड्राइविंग सीट पे.”,रंभा कार की पिच्छली सीट पे बैठने लगी तो उसने उसे टोका,”..अब कार आगे बढ़ा & जिधर मैं कहु वाहा ले चलो.”,वो रंभा के बगल मे बैठ गया था & उसकी पिस्टल अभी भी कोट की बाई जेब मे च्छूपी रंभा पे तनी थी.वो शख्स बहुत चालाक था.रंभा की शुरुआती घबराहट कम हुई तो उसने सोचा था की रास्ते के किसी ट्रॅफिक सिग्नल पे कार रुकी तो वो ख़तरा मोल ले शोर मचा देगी लेकिन उस शख्स ने ऐसे रास्ते चुने जिनपे सिग्नल था ही नही & जो 1-2 मिले भी उनपे कोई खास भीड़ थी ही नही.उपर से सिग्नल्स पे वो शख्स पिस्टल को जेब से निकाल उसकी खोपड़ी से सटा देता था.

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थोड़ी देर बाद कार शहर के बाहर 1 नयी बस्ती कॉलोनी के 1 खाली मकान के बाहर रुकी.उस शख्स ने शहर आने के बाद सबसे पहले-रंभा पे नज़र रखने से भी पहले-इस जगह को ढूँढा था.उस मकान के मालिक विदेश मे थे & उनका जो रिश्तेदार बीच-2 मे उसे देखने आता था वो भी 2 महीनो से बाहर था.उसने उसका ताला तोड़ा & उसपे अपना ताला लगा दिया.

“कार से उतर के गेट के अंदर चलो & याद रहे कोई चालाकी मत दिखाना वरना यही ढेर कर दी जाओगी.”,रंभा जानती थी की वो बुरी तरह फँस गयी है & उस शख्स की बातें मानने की अलावा उसके पास & कोई चारा नही.मकान के अंदर घुसते ही उस शख्स ने उसे 1 कुर्सी पे बैठने को कहा & फिर उसे उस से बाँध दिया.

“तुम चाहते क्या हो?कौन हो तुम?..आख़िर मुझे यहा बंद क्यू किया है?”,वो शख्स सिगरेट सुलगाते हुए मुस्कुरा रहा था.

“तुमहरा नाम रंभा है?”

“हां,लेकिन..-“,उसने हाथ उठा उसे खामोश रहने का इशारा किया.

“तुम्हारी मा का नाम सुमित्रा था?”

“हां.”

“तुम उसके साथ गोपालपुर नाम के कस्बे मे रहती थी?”

“हां.”,कयि दिनो मे पहली बार उस शख्स को सुकून मिला था.उसकी तलश अंजाम तक पहुँच गयी थी.यही थी उस कमिनि की बेटी!उसने सिगरेट फेंकी,उसकी आँखो मे खून उतर आया था & इतने दिनो से अंदर उबाल रहा गुस्सा अब बस फूट पड़ना चाहता था.वो तेज़ी से आगे बढ़ा & रंभा का गला दबाने लगा.

“उउन्नगज्गघह..छ्चोड़ो..!”,रंभा के गले से आवाज़ भी नही निकल रही थी.

“ग़लती तुम्हारी नही है..ग़लती तो तुम्हारी कमीनी माँ की है..लेकिन क्या करें मुझे इन्तेक़ाम लेना है & वो मक्कार तो मर गयी.अब मा-बाप के क़र्ज़ औलाद नही उतरेगी तो & कौन उतरेगा!”,वो शैतानी हँसी हंसा & रंभा का गला छ्चोड़ दिया.रंभा बुरी तरह खांसने लगी,”..लेकिन घबराओ मत.तुम्हारी मौत इतनी जल्दी & इतनी आसान नही होगी.14 बरस गुज़ारे हैं जैल मे & उसके बाद भी बहुत धूल फंकी है.उस सब की कीमत तो तुम्हे ही चुकानी है.”

“लेकिन तुम हो कौन?..& मेरी माँ ने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा?..वो बहुत भली औरत थी..तुम्हे कोई ग़लतफहमी हुई है..!”,रंभा का गला दुख रहा था.

“चुप!वो मक्कार थी.अपने रूप & बातो के जाल मे मुझे फँसा के मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी & खुद ऐश करने लगी दयाल के साथ!”

“बकवास मत कर,कामीने!मेरी मा के बारे मे अनाप-शनाप मत बोल,हराम जादे!”,मा के बारे मे उल्टी-सीधी बातें सुन रंभा को गुस्सा आ गया.

“तड़क्कककक..!”,उसने 1 करारा तमाचा रंभा के गाल पे रसीद किया,”..तू भी उस हराम की कमाई पे ही पली-बढ़ी है ना..तुझे तो अब सज़ा ज़रूर मिलेगी.”,वो दोबारा उसका गला घोंटने लगा,”..मेरे पैसे चुरा के भागी थी वो दयाल के साथ.मैं उस से प्यार करता था & शादी करना चाहता था लेकिन वो कमीनी मेरे पैसे लेके भाग गयी मेरे ही दोस्त के साथ!

“तब तो ज़रूर मारो मुझे….उउन्न्नननगज्गघह…..पैसे चुराने के बाद भी जिसे तंगहाली मे ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ी..ऐसी औरत की बेटी का तो मर जाना ही अच्छा है..!”,रंभा की आवाज़ मे कुच्छ ऐसा था कि वो शख्स रुक गया,”..रुक क्यू गये..!दबाओ मेरा गला..”,रंभा खाँसने लगी,”..मार दो मुझे जान से ताकि उपर जाके अपनी मा से ये सवाल कर सकु कि अगर उसने इतने पैसे लूटे थे तो फिर वो बेचारी पूरे साल मे बस 1 सारी क्यू ख़रीदती थी?..क्यू वो मुझे कोई कमी महसूस ना हो इसके लिए वो 12-12 घंटे काम करती रही उस 2 टके के की जगह मे?..& उसका कोई यार था तो क्यू सारी उम्र उसने तन्हा गुज़ार दी?..रातो को मुझसे च्छूप वो क्यू रोती रहती थी?. .”,रंभा कितनी भी मतलबी लड़की थी लेकिन अपनी मा से उसे बहुत प्यार था & उसकी याद आते ही उसकी आँखे छलक पड़ी.,वो शख्स कुच्छ देर उसे देखता रहा.वो उस लड़की को भाँपने की कोशिश कर रहा था..उसके आँसू सच्चे लग रहे थे.बातो से भी ईमानदारी की महक आ रही थी.लड़की हिम्मतवाली भी थी..अभी भी घबरा नही रही थी & शायद उसे बातों मे फाँसना चाह रही हो..लेकिन हो सकता है बात सही कह रही हो..दयाल तो था भी कमीना!..& जब सब हुआ था तो ये बमुश्किल 3-4 बरस की होगी..अब इसे क्या पता?..उपर से ना जाने उसने इसे क्या कहानी सुनाई हो..वैसे बताने मे कोई हर्ज भी नही..पता तो चले सुमित्रा ने बेटी को क्या बताया था अपनी ज़िंदगी के बारे मे!..मगर इस लड़की से होशियार रहना पड़ेगा.थी ये भी मा के ही जैसी..साली ससुर के साथ सोती थी!

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क्रमशः.......
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