Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:39 PM,
#46
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--45

गतान्क से आगे......

हाथ-पाँव बँधे समीर को अकरम रज़ा ने उसी तरह झरने के पास था.हुआ ये था कि रज़ा कंट्रोल रूम से निकला तो उस सफेद क़ुआलिस का पीछा करने के लिए था लेकिन थोड़ा आगे बढ़ते ही उसका दिमाग़ ठनका & उसने आल्टो & जीप्सी मे बैठे अपने आदमियो को क़ुआलिस को ओवर्टेक कर उसे रोकने को कहा & खुद 5 पोलिसेवालो के साथ कंधार की ओर चल पड़ा.ना जाने क्यू उसे ऐसा लग रहा था कि उसे वही झरने के पास कुच्छ सुराग मिलेगा.जब वो वाहा पहुचा तो मदद के लिए पागलो की तरह चिल्लाता,रोता-बिलखता समीर दिखा.उसने उसके बंधन खोल उस से सवाल किए & जो समीर ने बताया उसे सुनके उसे अपने कानो पे यकीन नही हुआ.

समीर के मुताबिक उसका बाप वाहा सोनिया के साथ आया था जिस देख ब्रिज गुस्से मे पागल हो अपनी छुपने की जगह से वाहा भागता हुआ आया & उसके बाप से भीड़ गया.दोनो मे काफ़ी हाथापाई हुई,सोनिया उन्हे अलग करने की कोशिश कर रही थी लेकिन दोनो को कुच्छ नही सूझ रहा था & उसी सब के बीच पता नही कैसे तीनो किनारे तक पहुँच गये.वो चीख-2 के अपने आप को आगाह कर रहा था लेकिन अगले ही पल तीनो कगार सेकयि फीट नीचे गिर गये थे.समीर के मुताबिक उसे क्लेवर्त से हरपाल ने अगवा किया था.वो गेस्ट हाउस मे सोया हुआ था जब उसने उसकी नाक पे बेहोशी की दवा वाला रुमाल दबा उसे बेहोश किया & फिर उसी की कार मे डाल उसे ले वाहा से फरार हो गया.उसे ये नही पता था कि उसे कहा रखा गया था लेकिन वो जगह किसी गोदाम जैसी लगती थी.

शुरू मे तो उसे लगा कि उसे नौकरी से निकालने की वजह से हरपाल ने ऐसा कदम उठाया है लेकिन बाद मे उसे पता चला की इसके पीछे कोठारी का भी हाथ है.उसने अपने बाज़ू दिखाए जहा पे चीरा लगाके उसका खून निकाल उसकी कमीज़ को उस से भिगो के वो ले गये थे.रज़ा को झरने के पास पत्थर के नीचे दबा वो स्टंप पेपर भी मिला था जिसपे विजयंत के दस्तख़त भी थे.उसने समीर से हरपाल के बारे मे पुछा की जब झरने के पास हाथापाई हो रही थी तो वो कहा था तो समीर ने बताया कि ब्रिज ने उसे वाहा आने से पहले ही उसे पैसे दिए थे.उसने उनकी बातें सुन ली थी & उसी से ये अंदाज़ा लगाया था कि ब्रिज को शायद किसी तरह इस बात का पता चल गया था कि हरपाल समीर से नाराज़ है & उसी बात का फ़ायदा उसने उठाया था.जब हाथापाई हुई तो हरपाल उसे वाहा नही दिखा था जबकि वही था जिसने उसे रेलिंग के पार उस जगह पे वैसे बाँध के बिठाया था.

रज़ा ने हरपाल की खोज के लिए आदमी दौड़ा दिए थे लेकिन उसे पता था कि वो नही मिलने वाला था.1 बात और उसे परेशान कर रही थी.वो ये कि सब कुच्छ उसे बहुत साधारण,बहुत सिंपल लग रहा था.ब्रिज कोठारी जैसा पहुँचा हुआ कारोबारी ऐसा कमज़ोर जाल बुनेगा कि अगर कुच्छ गड़बड़ हो तो उसके खिलाफ सारे सबूत इतनी आसानी से जुट जाएँ.मगर & कौन उसे फँसाने की सोच सकता था?..उसका सबसे बड़ा दुश्मन तो उसके साथ झरने की गोद मे सोया था.समीर भी झूठ बोलता नही दिख रहा था.उसके बाज़ू के निशान,उसकी कमज़ोर हालत & उसकी घबराहट सब उसकी सच्चाई की गवाही दे रहे थे.उसने आवंतिपुर सिविल हॉस्पिटल के साइकाइयेट्री के हेड डॉक्टर से भी बात की थी & उसकी शुरुआती रिपोर्ट भी यही कहती थी कि समीर किडनॅपिंग & बाप की दर्दनाक मौत को इतने करीब से देखने से गहरे सदमे मे है.उसने बलबीर का भी बयान दर्ज किया था & उसने भी उसे यही बताया था कि विजयंत को कोठारी पे शक़ था & उसने उसे इसी बात की तहकीकात के लिए लगाया था.वो क़ुआलिस जो कंधार से निकली थी,उसे पोलीस वालो ने रोक लिया था & उसमे से 1 डर से काँपता ड्राइवर निकला था जिसने उन्हे बताया कि 1 शख्स ने उसे ऐसा करने के लिए रुपये दिए थे.जब उसे हरपाल की तस्वीर दिखाई गयी तो उसने उसे पहचान लिया था.सारे सिरे मिल रहे थे मगर कुच्छ तो था जो अभी भी रज़ा को खटक रहा था.

रीता,प्रणव & शिप्रा आवंतिपुर पहुँच चुके थे मगर उन सब से पहले पहुँची थी रंभा.सभी को रज़ा ने ही खबर दी थी.समीर उसकी बाहो मे फुट-2 के किसी बच्चे की तरह रोया था & उसके साथ उसकी भी आँखे बरस पड़ी थी.उसे बिल्कुल अंदाज़ा नही था कि इस सब का अंजाम ऐसा दर्द भरा होगा.विजयंत & उसका रिश्ता नाजायज़ था,दोनो के रिश्ते की बुनियाद जिस्मानी थी & बस चंद दिन ही तो हुए थे उन्हे साथ मिले लेकिन इन ज़रा से दीनो मे ही 1 अजीब सा नाता जुड़ गया था दोनो के बीच मे.आज कुद्रत ने विजयंत के साथ-2 उस नाते को भी ख़त्म कर दिया था & रंभा के दिल मे टीस उठ रही थी.ये तकलीफ़ उसे समीर के लापता होने पे भी नही महसूस हुई थी लेकिन अब अपने ससुर की मज़बूत बाहो मे फिर कभी ना क़ैद हो पाने का गम उसकी आँखो से आँसुओ की शक्ल मे बरस रहा था.

"मिस्टर.प्रणव,आपके ससुर की बॉडी अभी तक झरने से बरामद नही हुई है.",रज़ा ने प्रणव को कुच्छ फॉरमॅलिटीस पूरी करने के लिए आवंतिपुर पोलीस हेडक्वॉर्टर्स बुलाया था,"..मिस्टर.&म्र्स.कोठारी की लाशें तो मिल गयी हैं लेकिन मिस्टर.मेहरा की लाश हमारे हाथ अभी तक नही लगी है.झरने का पानी बहुत गहरा है & आगे वो पानी तेज़ बहती नदी की शक्ल अख्तियार कर लेता है.ख़तरे के बावजूद गोताखोरो ने पूरी कोशिश की.उसी का नतीजा है कि 2 लाशें हमे मिली."

"तो डॅड की बॉडी का क्या हुआ होगा?"

"देखिए,2 सूरतें है या तो उनकी बॉडी बह के बहुत आगे निकली है.उस बात को मद्देनज़र रखते हुए हमने उस नदी के किनारे बसे सभी गाँवो की पोलीस को होशियार कर दिया है..& दूसरी सूरत है की बॉडी वही झरने के गिरने वाली जगह पे गहरे पानी मे डूब गयी है & उस सूरत मे हम लाचार हैं क्यूकी वाहा जो भी गोता लगाएगा वो सीधा मौत के मुँह मे जाएगा."

"हूँ."

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विजयंत मेहरा की तस्वीर उसके बुंगले के लॉन मे लगे सफेद शामियने के नीचे 1 मेज़ पे रखी थी जो उसकी शोक-सभा मे आए लोगो के लाए फूलो से घिरी हुई थी.परिवार के सभी सदस्य सफेद लिबास मे थे.रीता की आँखो पे काला चश्मा चढ़ा था & वो सभी लोगो के अफ़सोस पे बस हाथ जोड़ रही थी.15 दिन हो गये थे उस हादसे को & अब समीर भी पहले से काफ़ी बेहतर दिख रहा था.

उसने आज का सारा इंतेज़ाम अपनी देख-रेख मे करवाया था.कल सवेरे विजयंत का वकील उसकी वसीयत लेके आनेवाला था & मेहमानो की ख़ैयारियत पुछ्ते प्रणव का दिमाग़ अभी भी उसी के बारे मे सोच रहा था.जब उसने आवंतिपुर मे पहली बार समीर के मिलने के बाद देखा था तो उसे बहुत खुशी हुई थी-इसलिए नही कि उसका अज़ीज़ साला फिर से मिल गया बल्कि इसीलिए की वो उसे कंपनी संभालने या फिर उसके फ़ैसले लेने के काबिल नही लगा था.

मगर समीर ने उसकी सोच को ग़लत साबित करते हुए अपने को बिल्कुल ठीक कर लिया था.विजयंत की लाश नही मिली थी & ना ही उसका अंतिम संस्कार हुआ था,उस सूरत मे किसी की समझ नही आ रहा था कि क्या किया जाए,तब समीर ने ही फ़ैसला लिया था कि ये शोक सभा रखी जाए & उसकी आत्मा की शांति के लिए उपरवाले से दुआ की जाए.

समीर & शिप्रा अपनी मा के आस-पास ही घूमते दिख रहे थे & इन सब से थोड़ा अलग-थलग बैठी थी रंभा.उसने अपने को समीर की तीमारदारी मे डूबा दिया था & उसके ठीक होने का कुच्छ श्रेय उसे भी मिलता था लेकिन उसे समीर अब बदला-2 सा लग रहा था.ऐसा लगता था जैसे अगवा कर उसके समीर को गायब कर उसकी जगह किसी दूसरे समीर को उसके पास भेज दिया गया हो.

उसकी सास & ननद का रुख़ तो अभी भी ठंडा ही था.केवल 1 प्रणव था जो उस से हमदर्दी से बात करता था.शोक-सभा मे आए लोग उस से भी मिल रहे थे & वो भी सभी को हाथ जोड़ उनसे बात कर रही थी.उसने आँखो के कोने से देखा कि कामया वाहा आई & तस्वीर पे माला चढ़ाने के बाद पहले रीता & शिप्रा से मिली & उसके बाद समीर के साथ भीड़ से थोड़ा अलग होके बात करने लगी.बाते करते हुए समीर का बाया हाथ आगे बढ़ा & कामया के दाए हाथ को पकड़ के दबाया लेकिन फिर फ़ौरन ही उसे छ्चोड़ दिया & दोनो इधर-उधर देखने लगे जैसे ये पक्का कर रहे हों कि उनकी चोरी पकड़ी तो नही गयी.रंभा ने फ़ौरन उनकी तरफ से नज़रें हटाई & सामने खड़े मेहमान से बात करने लगी.

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"उउन्न्ह..",समीर ने करवट बदली & पीछे से उसे बाहो मे भर उसके बाए गाल को चूमती रंभा को देखने लगा,"..सोई नही तुम अभी तक?",रंभा ने मुस्कुराते हुए इनकार मे सर हिलाया.वो किसी भी कीमत पे समीर को खुद से दूर नही जाने दे सकती थी.उसने तय कर लिया था कि अपने सारे हथियारो का इस्तेमाल कर अपने पति को खुद से बेरूख़् नही होने देगी.उसने समीर के चेहरे को हाथो मे भर उसके होंठ चूमे लेकिन कुच्छ पलो के बाद समीर ने चेहरा घुमा के किस तोड़ दी.

"क्या बात है?",रंभा खिज उठी थी लेकिन उसकी आवाज़ ने उसके दिल के भाव को ज़ाहिर नही होने दिया.

"कुच्छ नही.बस मन नही है."

"अब अच्छी नही लगती मैं क्या?",मासूमियत से वो पति के उपर इस तरह से झुकी की नाइटी के गले मे से उसकी बिना ब्रा की चूचियाँ अपने पूरे शबाब मे उसे नज़र आएँ.

"ये बात नही है.",समीर की उंगलिया उसके चेहरे पे फिसली & निगाहें उसके सीने पे,"..बस सचमुच मन नही है,जान.",रंभा ने उसकी बात अनसुनी करते हुए दोबारा उसके लबो से लब सताए & अपनी छातियाँ उसके सीने पे दबा दी.समीर के बाज़ू उसकी पीठ पे कसे तो उसे बहुत खुशी हुई..उसका हुस्न अपना असर दिखा रहा था.समीर ने उसे पलटा & उसके उपर चढ़ उसे चूमने लगा.रंभा ने खुद को पति की बाहो मे ढीला छ्चोड़ दिया.समीर के हाथ उसकी नाइटी मे घुस रहे थे & कभी उसकी जाँघो तो कभी पेट पे फिसल रहे थे.

"आननह..उसने उसके निपल्स को उंगलियो मे पकड़ चिकोटी काटी तो उसकी आह निकल गयी & उसने भी समीर के लंड को उसके पाजामे के उपर से पकड़ लिया & लंड पकड़ते ही उसे विजयंत के लंड की याद आ गयी.उसका जिस्म ससुर के मज़बूत जिस्म के लिए तड़प उठा & उसके दिल मे कसक उठी.उसने समीर का लंड बहुत ज़ोर से जाकड़ लिया.वो ये भूल गयी थी की उसके पति को उसका लंड छुना पसंद नही था.समीर ने उसका हाथ लंड से अलग किया & दोनो कलाईयो को उसके सर के दोनो तरफ बिस्तर पे दबा उसके गले को चूमने लगा.रंभा को थोड़ा बुरा लगा था लेकिन अब समीर ही उसका अकेला सहारा था & फिलहाल वो उसे नाराज़ नही कर सकती थी.समीर की गर्म साँसे उसकी मस्ती को बढ़ा रही थी.उसने उसकी पकड़ मे कसमसाते हुए अपनी कमर उचकाई तो समीर उसकी बेचैनी का सबब समझते हुए नीचे आया & उसकी पॅंटी सरका के उसकी चूत चाटने लगा.रंभा भी थोड़ी देर के लिए अपनी उलझने भूल गयी & बस मस्ती मे खोने लगी.

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वो शख्स 1 कार मे विजयंत के बुंगले का बाहर से मुआयना कर अपने होटेल की ओर जा रहा था.उस रात झरने का नज़ारा अभी भी उसके ज़हन मे ताज़ा था.ब्रिज के विजयंत से भिड़ते ही वो समझ गया था कि यहा बहुत गड़बड़ होने वाली है & वो अपने च्चिपने की जगह से उठके झाड़ियो की ओट मे से तेज़ी से अपनी कार की तरफ भागा था.गड़बड़ का मतलब था पोलीस & पोलीस का मतलब था उसका फिर से जैल जाना & ऐसा वो हरगिज़ नही चाहता था.कम से कम तब तक तो नही जब तक की उसका इन्तेक़ाम पूरा ना हो जाए.वो कुच्छ दूर गया था कि उस कच्चे रास्ते पे 1 साया बहुत तेज़ी से भागता दिखा.वो जो भी था वो झरने की तरफ से ही भगा था.उसने क़ोहसिह की लेकिन उसकी शक्ल नही देख पाया.उसने इतना ज़रूर देखा कि वो शख्स कच्चे रास्ते के दूसरे तरफ की झाड़ियो मे कुद्ता हुआ घुस गया था & जब तक वो अपनी कार तक पहुँचा उसने देखा की कच्चे रास्ते से 1 मोटरसाइकल उतरके तेज़ी से वाहा से जा रही है.उसके बाद वो भी अपनी कार मे निकल भागा था लेकिन 3 चीखो की आवज़ सुनाई दी थी उसे,हैरत & घबराहट से भरी हुई चीखो की आवाज़.

वो कार मे झरनो से 2 किमी दूर गया होगा जब उसने पहाड़ी घुमावदार रास्ते पे नीचे की ओर 1 सवारी को उपर बढ़ते देखा.उसने फ़ौरन अपनी कार तेज़ी से आगे बढ़ते हुए कुच्छ पेड़ो के बीच घुसा दी & जैसे ही वो सवारी जोकि रज़ा की जीप थी,उसके पास से गुज़री & उसके कानो मे उसके एंजिन की आवाज़ आना भी बंद हो गयी वो वाहा से निकला & फिर सीधा आवंतिपुर मे ही रुका.उस बाइक को उसने दोबारा नही देखा था.उसके बाद कुच्छ दिन गोआ मे रहने के बाद आज सवेरे ही वो डेवाले आ गया था.अब उसे जल्द से जल्द रंभा से मुलाकात करनी थी.

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"आहह..समीर..हाआंणन्न्..बस..थोड़ी देर और...हाआंणन्न्..!",बिस्तर पे लेटी रंभा के उपर झुका समीर उसकी चूत मे तेज़ी से लंड अंदर-बाहर कर रहा था.कुच्छ देर पहले उसने उसकी चूत को बस थोड़ी देर ही चटा था & वो झाड़ भी नही पाई थी.जब तक वो कुछ समझती उसकी टाँगे फैलाक़े वो अपना लंड अंदर डाल उसकी चुदाई शुरू कर चुका था.उसका लंड उसे उसके सफ़र के अंजाम की ओर ले जा रहा था.वो उसके बाजुओ मे नाख़ून धंसाए अपनी कमर उचकाते हुए उसका पूरा साथ दे रही थी कि तभी समीर ने आह भरी & उसने उसका वीर्य अपनी चूत मे च्छूटता महसूस किया.अगले पल समीर उसकी छातियो पे ढेर था.वो नही झड़ी थी उस अब बहुत खिज हो रही थी.कुच्छ देर तक वैसे ही उसके सीने पे लेटे रहने के बाद समीर ने सर उठाया & उसके होतो को हल्के से चूम उसके बगल मे लेटा & फिर उसकी ओर पीठ घुमा चादर ओढ़ के सोने लगा.रंभा उसे हैरत से देख रही थी.पहले तो उसने ऐसा कभी नही किया था..फिर आज क्या वजह थी?..आख़िर क्यू बदल गया था वो?..& उस कामिनी कामया का क्या लेना-देना था इस सब से?..समीर गहरी नींद मे चला गया था.वो उठी & अपनी नाइटी उठाके बातरूम चली गयी.

उसे थोड़ी घुटन सी महसूस हो रही थी.उसने नाइटी पहन ली थी.उसके उपर उसने अपना गाउन डाला & कमरे से बाहर चली आई.आवंतिपुर से आने के बाद समीर उसे लेके अपने मा-बाप के बगल मे बने अपने बंगल मे रहने लगा था.उनका बेडरूम उपरी मंज़िल पे था.रंभा सीढ़ियो से नीचे उतरी & अपने बंगल के सामने के लॉन मे घूमने लगी.बाहर बहुत उमस थी.उसने आसमान मे देखा तो उसे चाँद का मद्धम अक्स बदलो के पीछे च्छूपा दिखा..लगता था बारिश होने वाली थी.

"नींद नही आ रही?",ख़यालो मे गुम वो चौंक पड़ी & पीछे घूमी तो देखा प्रणव खड़ा था,"..मुझे भी नही आ रही.अगर बुरा ना मानो तो तुमहरे साथ टहल लू."

"ज़रूर.",रंभा मुस्कुराइ.प्रणव उसे बहुत भला & अच्छा इंसान लगता था,"इसमे बुरा मानने वाली क्या बात है."

"1 बात पुच्छू?",कुच्छ देर तक खामोशी से साथ चलने के बाद प्रणव ने उस से पुचछा.

"क्या?"

"तुम्हे नींद क्यू नही आ रही है?",रांभ खामोशी से सर झुका के घूमती रही.

"उसकी वजह कही समीर तो नही?",रंभा ने चौक के उसे देखा..कही उसका चेहरा उसके दिल की उलझने तो बयान नही कर रहा?..& फिर नज़रे नीची कर टहलने लगी,"..मैं ये बात इसीलिए कह रहा हू कि मेरे जागने की वजह भी तुम्हारे जैसी ही है.तुम भाई की वजह से जागी हो & मैं बेहन की वजह से.",रंभा उसे देखने लगी.

"रंभा,दरअसल इसमे इन भाई-बेहन की भी कोई ग़लती नही है.इन्हे पाला-पोसा ही इसी तरह गया है कि इन्हे आजतक कभी किसी चीज़ की कमी नही हुई ये इस कारण कभी ये नही समझ पाते कि दूसरे को कभी कोई ज़रूरत महसूस हो सकती है..",वो लॉन के झूले पे बैठ गया था & रंभा भी उसके बगल मे बैठ गयी.प्रणव की निगाहें 1 पल को उसके खुले गाउन के बीच उसकी नाइटी के गले से दिखते उसके गोरे क्लीवेज पे गयी & फिर वापस उसके चेहरे पे,"..& ये हमारे दर्द से अंजान रहते हैं और उसे कभी मिटा नही पाते."

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क्रमशः.......
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