RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--44
गतान्क से आगे......
उस शख्स ने अपनी कार तेज़ी से वाहा से निकाली & 1 कच्ची सड़क दिखते ही उसे उसी पे उतार दिया & कुच्छ देर बाद उसे उसी रास्ते के किनारे की झाड़ियो मे तब तक अंदर घुसाया जब तक कि वो पेड़ो के झुर्मुट के बीच नही पहुँच गयी & वाहा से आगे जाना नामुमकिन हो गया.उसने कार को वही छ्चोड़ा & आगे बढ़ने लगा कि तभी उसे 1 साया दिखा & वो वही झाड़ियो मे बैठ गया.
"तुम्हे कच्ची सड़क दिख रही है?",विजयत का मोबाइल दोबारा बजा,"..उसी रास्ते पे आगे बढ़ो & अपनी कार को छ्चोड़ दो.",पोलीस की आल्टो थोड़ी पीछे थी & जब तक वो वाहा पहुँची तब तक उसी कच्चे रास्ते से 1 दूसरी क़ुआलिस जिसका नंबर भी क्प-0व-5214 था,बहुइत तेज़ी से वापस क्लेवर्त की ओर जाती दिखी.
"सर,वो वापस क्लेवर्त जा रहा है."
"ओके,उसके पीछे लगे रहो लेकिन उसे शक़ नही होना चाहिए.",रज़ा ने कंधार वाली टीम को भी उसी रास्ते पे आगे बढ़ने को कहा.विजयंत के मोबाइल पे 2 कॉल्स आई थी लेकिन जब तक उन्हे सुना जाता कॉल्स कट गयी थी.वो बस ये सुन पाया था की उस शख्स ने उसे कंधार से लौटने को कहा था,"जीप निकालो.",उसने तय कर लिया था कि अब उसे भी विजयंत के पीछे लगना था.
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"अपना मोबाइल बंद कर वही ज़मीन पे फेंक दो.",विजयंत & सोनिया कच्चे रास्ते पे पैदल बढ़ रहे थे जब उन्हे 1 आवाज़ सुनाई दी.वो शख्स वही झड़ी मे बैठा बोलने वाले साए को देख रहा था..कहा फँस गया था वो लेकिन अब किया क्या जा सकता था?
"आगे देखो,रास्ते के किनारे की झाड़ियो मे छ्होटा सा गॅप दिखेगा.उसी मे आगे बढ़ते जाओ दोनो.",विजयंत को अजीब लगा की जो भी था उसे सोनिया के आने पे ऐतराज़ नही हुआ था लेकिन वो उसके कहे मुताबिक आगे बढ़ता रहा.कोई 30 मिनिट अंधेरे मे झाड़ियो के बीच चलने के बाद वो दोनो फिर से कंधार पे पहुँच गये थे.कंधार का नाम कंधार इसलिए था क्यूकी वो धरधार जितना तेज़ बहने वाला झरना नही था लेकिन इसका मतलब ये नही था की उसकी रफ़्तार धीमी थी,उसकी रफ़्तार भी अच्छी ख़ासी थी.
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ब्रिज जिस वक़्त कंधार & धारदार जाने वाले रास्ते के शुरू मे पहुँचा ही था कि उसने सामने से तेज़ी से आती 1 क़ुआलिस को देखा.वो जब थोड़ा आगे बढ़ा तो उसे 1 आल्टो दिखी & कुच्छ गड़बड़ी के अंदेशे से उसने अपनी कार धीमी कर ली कि उसे वही 1 ढाबा दिखा.उसने कार झट से उसके सामने लगाई & वाहा सिगरेट खरीदने चला गया.सिगरेट सुलगाते हुए उसने 2 पोलीस जीप्स को उसी आल्टो के पीछे जाते देखा.कुच्छ पल इंतेज़ार करने के बाद वो अपनी कार मे बैठा & कंधार की ओर बढ़ गया.आज उसकी ज़िंदगी का बहुत अहम लम्हा उसके इंतेज़ार मे झरने पे खड़ा था.आज उसे पता चलने वाला था कि औरत भरोसे के लायक चीज़ है या नही.
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"डॅड!",अंधेरे को चीरती 1 दर्द भरी आवाज़ गूँजी.
"समीर!",विजयंत जवाब मे चीखा & आवाज़ की दिशा मे आगे बढ़ा & झाड़ियो से निकलते ही आधे चाँद की हल्की,सफेद रोशनी मे रेलिंग्स के दूसरी तरफ अपने घुटनो पे बैठा उसे समीर दिखा.उसकी आँखो पे पट्टी बँधी थी & हाथ पीछे बँधे थे.विजयंत उसकी तरफ दौड़ा की 1 आवाज़ गूँजी.
"वही रूको,मेहरा.पहले ये बताओ की वो काग़ज़ लाए हो."
"हां.",सोन्या बहुत घबरा गयी थी & विजयंत के दाई तरफ उस से चिपकी खड़ी थी.
"आगे बढ़ो & वाहा बीच मे रखे पत्थर के नीचे उसे दबा दो & फिर वापस जाओ लड़की के पास.",विजयंत ने वैसा ही किया.जब वो काग़ज़ रख के लौटा तो सोनिया उस से बिल्कुल चिपक गयी.
"अब दोनो रेलिंग के पार जाओ & अपने बेटे को ले लो.",विजयंत का माथा ठनका,उसे काग़ज़ नही देखना है क्या?
"तुम्हे वो काग़ज़ नही देखना?",विजयंत मेहरा ने सवाल किया.
"वो मेरी परेशानी है,मेहरा.तुम अपने बेटे को सम्भालो.जाओ दोनो!"
"लड़की यही रहेगी,मैं अकेला जाऊँगा."
"तो फिर बेटे की लाश ले जाना यहा से."
"डॅड,क्या रंभा है आपके साथ?",समीर की कांपति आवाज़ आई.
"नही,तेरे बाप की यार है!"
"कामीने!",विजयंत गुस्से से चीखा.
"मेहरा,थोड़ी और देर करो & फिर सच मे बेटे की लाश ही मिलेगी तुम्हे.",सोनिया काफ़ी घबरा गयी थी.ये आवाज़ ब्रिज की नही थी & उसे अब बहुत डर लग रहा था.विजयंत ने उसकी बाँह थामी & आयेज बढ़ा.पहले विजयंत ने रेलिंग पार की & फिर सोनिया की मदद करने लगा.सोनिया रिलिंग से उतरते हुए लड़खड़ाई & विजयंत ने उसे बाहो मे थाम लिया.सोनिया ने अपनी बाहे उसकी गर्दन मे कस दी.
"मुझे बहुत डर लग रहा है,विजयंत."
"बस सब ठीक हो गया.अब वापस चलते हैं.",विजयंत ने उसकी पीठ थपथपाई & उसी वक़्त ब्रिज कोठारी वाहा पहुँचा & सामने का नज़ारा देख उसकी आँखो से अँगारे बरसने लगे.
"सोनिया!",वो चीखता हुआ उधर दौड़ा.विजयंत & सोनिया 1 दूसरे को थामे हैरत से उसे देख रहे थे.अगले पल ही वो रेलिंग पे था & विजयंत से गुत्थमगुत्था था.सोनिया चीख रही थी & दोनो को अलग करने की कोशिशें करती रो रही थी कि तभी उसके सर पे किसी ने वार किया.
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"उम्म्म्म..हूँ..प्रणव!..तुम यहा?!..आन्न्न्नह..!",प्रणव शिप्रा के सोने के बाद अपनी सास के बुंगले मे घुस आया था.बेख़बर सोती रीता को देखते हुए उसने अपने कपड़े उतारे & उसके पीछे बिस्तर मे घुस अपनी दाई बाँह उसकी कमर पे लपेट उसके दाए कान को काट लिया था.
"पागल हो तुम..उउफफफफ्फ़..",प्रणव का हाथ सास की नाइटी मे घुस गया था & उसके पेट को सहलाने के बाद उसकी चूचियों को दबाने लगा था.उसके होंठ रीता के चेहरे पे हर जगह घूम रहे थे,"..शिप्रा को पता चल गया तो ग़ज़ब हो जाएगा..उउम्म्म्मम..!",उसने दामाद के लबो से अपने लब चिपकाते हुए उसके मुँह मे अपनी ज़ुबान घुसा दी.
"वो गहरी नींद मे सो रही है & उसे यही लग रहा है कि मैं स्टडी मे काम कर रहा हू.",प्रणव उसके निपल्स को मसल रहा था & उसका लंड रीता की गंद की दरार की लंबाई मे फँस गया था.रीता ने नाइटी के नीचे कुच्छ नही पहना था & प्रणव के हाथ उसके नाज़ुक अंगो से पूरी गर्मजोशी के साथ खिलवाड़ कर रहे थे.
"फिर भी..",प्रणव ने उसकी नाइटी को उपर खींचा तो रीता ने हाथ उठा दिए ताकि वो आसानी से निकल जाए,"..ऐसे ख़तरा क्यू मोल लेते हो?..आहह..!",प्रणव उसकी दाए घुटने को आगे मोडते हुए उसकी चूत को नुमाया कर उसमे अपना तगड़ा लंड घुसा रहा था.
"क्यूकी आपसे मोहब्बत हो गयी है मुझे,मोम!",प्रणव उसे शिद्दत से चूमने लगा.रीता उसके आगोश मे क़ैद थी.प्रणव का दाया हाथ उसकी चूत के दाने से लेके चूचियो तक घूम रहा था & बाया हाथ जो उसकी गर्दन के नीचे दबा था उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाए हुए था ताकि उसके रसीले लबो का स्वाद वो आसानी से चख सके,"..आहह..!"
"क्या हुआ?",रीता ने थोड़ी चिंता से दामाद को देखा.
"कुछ नही.आपकी चूत तो अभी भी बहुत कसी है,मों..ऊहह..आप तो शिप्रा की बड़ी बेहन से ज़्यादा नही लगती!"
"आन्न्न्नह..झूठे!",रीता का दिल तारीफ से खुशी से झूम उठा था & उसने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए दामाद के बाए गाल पे काटा.
"सच कहता हू,मोम.आपके रूप का दीवाना हो अगया हू मैं.अब तो आपके बिना जीने की सोच भी नही सकता!",उसके धक्को & उसकी उंगली की रगड़ ने उसकी सास को झाड़वा दिया था.
"आन्न्न्नह..मैं भी तुम्हारे बिना नही रह सकती,प्रणव..आइ लव यू,डार्लिंग!",प्रणव ने उठके उसकी बाई जाँघ को उठाया & फिर घुटने हुए उसके उपर आ गया.मस्ती मे चूर रीता ने उसे बाहो मे भर लिया & उसके धक्को का जवाब कमर उचका-2 के देने लगी.
"1 बात पुच्छू,मोम?"
"पुछो ना,प्रणव?",रीता ने बाया हाथ उसके चेहरे पे प्यार से फिराया & दाए से उसकी गंद को टटोला.
"अगर मैं कंपनी के लिए कोई फ़ैसला लेता हू लेकिन डॅड को वो पसंद नही & बात अगर वोटिंग तक पहुँची तो आप क्या करेंगी?",प्रणव ने उसकी चूचिया मसली & गर्दन को चूमने लगा.
"तुम्हारे दिमाग़ मे क्या है प्रणव?",रीता दामाद के सवाल से थोड़ा सोच मे पड़ गयी थी.
"अभी कुच्छ नही लेकिन मैं कंपनी के भले के लिए कुच्छ सोच रहा था?"
"क्या?"
"1 आदमी है महादेव शाह जोकि हमारे ग्रूप मे पैसा लगाने को तैयार है.डॅड उसे मना कर चुके हैं लेकिन मुझे लगता है कि हम उसे अपने ग्रूप मे इनवेस्ट करके बहुत मुनाफ़ा कमा सकते हैं."
"हूँ.....ऊव्वववव..कितने बेसबरे हो?थोड़ा आराम से करो ना!..हाईईईईईई..!",रीता ने दामाद की गंद पे चिकोटी काटी तो उसके धक्के & तेज़ हो गये.
"आप इतनी हसीन,इतनी मस्त क्यू हैं कि मैं खुद पे काबू ही नही रख पाता..आहह..!",धक्को की तेज़ी को रीता बर्दाश्त नही कर पाई & उचक के प्रणव की गर्दन थाम उसे पागलो की तरह चूमने लगी.उसकी कमर भी हिल रही थी & जिस्म थरथरा रहा था.वो झाड़ रही थी & उसकी चूत मे उसे प्रणव के गाढ़े वीर्य की पिचकारियाँ छूटती महसूस हो रही थी.
"आपने मेरे सवाल का जवाब नही दिया.",प्राणवा उसकी चूचियो पे सर रखे लेटा था & वो उसके बाल सहला रही थी.
"मुझे ज़रा तफ़सील से सब बताना,उस शाह के बारे मे भी & उसके प्रपोज़ल के बारे मे भी फिर मैं फ़ैसला करूँगी..इतना यकीन रखो प्रणव की अगर उसका प्रपोज़ल ज़रा भी ठीक लगा & बात वोटिंग तक पहुँची तो मैं तुम्हारे हक़ मे ही अपना वोट दूँगी."
"ओह,मोम.आइ लव यू!",प्रणव उसकी चूत मे पल-2 सिकुड़ता लंड डाले उठके उसके होंठ चूमने लगा तो रीता ने भी उसकी गर्दन मे बाहे डाल दी.तभी उसका मोबाइल बजा.
"हेलो..क्या?",रीता के चेहरे का रंग बात सुनते हुए बदलता जा रहा था,"..लेकिन कैसे..मुझे समझ नही आ रहा..",उसके हाथ से फोन छूट बिस्तर पे गिर गया.
"क्या हुआ मोम?!..बोलिए ना!",प्रणव ने उसे झकझोरा.
"समीर मिल गया,प्रणव..",कुच्छ पल बाद रीता बोली,"..लेकिन.."
"लेकिन क्या?"
"लेकिन..विजयंत..विजयंत..",रीता की आँखे छल्कि & फिर उसकी रुलाई छूट गयी.प्रणव ने फ़ौरन उसके उपर से उठते हुए उसकी बगल मे लेट उसे अपने आगोश मे भर लिया.
"मोम..प्लीज़ चुप हो जाइए..क्या हुआ डॅड को?..कहा है वो?..समीर कहा मिला?",वो उसे बाहो मे भरे उसके बाल & पीठ सहला रहा था.
"प्रणव..प्रणव..",प्रणव ने उसका चेहरा अपने दाए हाथ मे थाम लिया.
"हां मोम बोलिए!"
"प्रणव,विजयंत नही रहा..ही ईज़ डेड!"
पूरे मुल्क मे ये खबर जंगल की आग की तरह फैल गयी थी कि विजयंत मेहरा मारा गया है & उसके साथ ब्रिज कोठारी & उसकी बीवी सोनिया भी.मीडीया वाले गुड के आस-पास भीनभिनती मक्खियो की तरह कंधार फॉल्स,डेवाले मे मेहरा परिवार के बुंगले & ट्रस्ट ग्रूप के दफ़्तर के बाहर & आवंतिपुर के उस हॉस्पिटल जिसमे समीर भरती था,के बाहर जमा थे.
विजयंत ने शायद अपनी ज़िंदगी मे पहली बार अपना फ़ायदा ना सोचते हुए किसी & इंसान की परवाह करते हुए रात को झरने पे जाने से पहले बलबीर मोहन को कुच्छ नही बताया था वरना शायद इस वक़्त वो ब्रिज & सोनिया समेत ज़िंदा होता.बलबीर को इस बात का काफ़ी मलाल था कि जो काम उसने हाथ मे लिया था उसे वो सही तरीके से अंजाम तक ना पहुँचा सका.
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क्रमशः.......
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