RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--43
गतान्क से आगे......
“तो ये थी सारी बात.”,दोनो बिस्तर पे लेटे थे.सोनिया की स्लीव्ले घुटनो तक की सफेद ड्रेस थोड़ा नीचे खिसकी थी & उसकी गोरी जाँघो का कुच्छ हिस्सा नुमाया हो गया था.विजयंत उसकी बाई तरफ लेटा था & उसका बाया हाथ उसके घुटने के उपर ही घूम रहा था.अब सोनिया भी थोड़ी संभाल गयी थी & अपने आशिक़ की नज़दीकी & उसके मर्दाना जिस्म के एहसास ने उसके जज़्बातो का रुख़ भी अब मोड़ दिया था.उसका दाया हाथ भी विजयंत की कमीज़ के खुले बटन्स के पार उसके सीने के बालो मे घूम रहा था.
“& तुम फिर भी मुझसे उस गलिज़ इंसान को छ्चोड़ने से रोक रहे हो?!”,उसकी उंगलियो ने विजयंत के बाए निपल को छेड़ा.
“देखो,सोनिया..”,विजयंत थोड़ा घूम उसके जिस्म पे अपने आधे बदन का भर डालते हुए उसकी जाँघो के बीच घुसे हाथ को उपर उसकी पॅंटी की ओर बढ़ने लगा,”..मुझे नही लगता की कोठारी इतना बेवकूफ़ है कि ऐसा काम करे & उसमे अपने शामिल होना यू इस तरह ज़ाहिर करे.”,उसका हाथ पॅंटी के उपर से ही सोनिया की चूत को सहला रहा था.सोनिया ने मस्ती मे भर उसके बालो को पकड़ उसे नीचे खींचा & उसके मुँह मे अपनी ज़ुबान घुसाते हुए उसे शिद्दत से चूमने लगी.
“उउम्म्म्म..लेकिन ये भी तो हो सकता है कि,ऐसा नाज़ुक काम किसी & के हाथो मे देने का भरोसा ना हो उसे..आननह..”,सोनिया की उंगलिया विजयंत की बाहो पे कस गयी क्यूकी उसके आशिक़ की उंगलिया उसकी पॅंटी के बगल से अंदर घुस उसकी चूत को कुरेदने लगी थी,”..& इसीलिए उसे खुद आना पड़ा & तुमने उसे देख लिया..आननह..!”,सोनिया के नाख़ून कमीज़ के उपर से ही विजयंत के माबूत बाजुओ मे धँस गये & उसके चेहरे पे वोही दर्द & मस्ती का मिला-जुला भाव आ गया जो किसी लड़की के चेहरे पे मस्ती की शिद्दत का एहसास करने पे आता है.
“हो सकता है.",विजयंत ने उसके रसीले होंठो को चूमा & उसके उपर आ अपना हाथ उसकी चूत से खींचा & अपने लंड को उसकी पॅंटी के उपर से ही उसकी गीली चूत पे दबाया & उसे दिखाते हुए उसके रस से भीगी अपनी उंगलिया मुँह मे घुसा उसका रस पी लिया.सोनिया विजयंत की इस हरकत से मस्ती & उसके लिए प्यार से भर उठी & उसने अपने हाथ उसकी कमीज़ के अंदर घुसा उसे ऐसे फैलाया की उसके बटन्स टूट गये & अगले ही पल कमीज़ विजयंत के जिस्म से जुदा थी.दोनो ने 1 दूसरे को बाहो मे भींच लिया & अपने-2 जिस्मो को आपस मे रगड़ते हुए अपने नाज़ुक अंगो को आपस मे दबाते हुए 1 दूसरे को चूमने लगे.
“मुझे प्यार करो,विजयंत..इतना प्यार कि मैं सब भूल जाऊं..सब कुच्छ..!”,सोनिया के आँखो के कोने से आँसुओ की 2 बूंदे उसके गालो पे ढालक गयी.विजयंत के लिए सोनिया बस 1 मोहरा थी लेकिन इस वक़्त उसे अपने आप पे शर्म आई..वो 1 मासूम लड़की के जज़्बातो से खले रहा था..लेकिन इसमे उसकी क्या ग़लती थी?..वो चाहती तो उसे ठुकरा भी सकती थी लेकिन उसने भी पति से बेवफ़ाई करने का फ़ैसला खुद ही लिया था..& फिर कोठारी को हराने के लिए वो कुच्छ भी कर सकता था..कुच्छ भी!
सोनिया के लब थरथरा रहे थे & जिस्म कांप रहा था.उसका दिलज़ीज़ आशिक़ उसके कपड़े उतार रहा था.कैसा अजीब एहसास था ये..हर बार उसके सामने नंगी होने पे उसे ये शर्म,ये झिझक महसूस होती थी & साथ ही दिल भी आने वाली उमँगो की हसरत से & तेज़ी से धड़कने लगता था..वो उसे ब्रिज से भी पहले क्यू नही मिला..फिर ना ये दर्द होता ना तड़प..बस खुशी ही खुशी होती & मस्ती ही मस्ती!
विजयंत खुद भी नंगा हो गया & सोनिया के उपर लेट गया.2 हसरातो से भरे जिस्म 1 दूसरे से लिपट गये & मस्ती का खेल शुरू हो गया.
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वो शख्स अपना समान बाँध चुका था लेकिन अब उसने डेवाले जाने का ख़याल बदल दिया था..वो इतना उतावला क्यू हो रहा था?..जहा इतने बरस इंतेज़ार किया उसने वाहा चंद दिन और सही..कल सवेरे की घटना के बाद विजयंत तो बहुत होशियार हो गया होगा & इसीलिए उसने अपनी बहू को महफूज़ जगह यानी अपने घर भेज दिया.वाहा जाने मे बहुत ख़तरा था.उसे इन्तेक़ाम लेना था लेकिन उसके बाद फिर से हवालात जाने का शौक उसे नही था..बहुत देर सोचने के बाद उसने वो रात वही गुज़ारना तय किया.उसे क्या पता था कि उसका ये फ़ैसला विजयंत मेहरा के लिए कितना अहम होने वाला था.
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“क्या बात है,कोठारी!”,फिर से उसी शख्स का फोन था & इस बार फिर 1 नये नंबर से.ब्रिज पिच्छले 2 दिनो से अपने हिसाब से ही उस अंजन कॉलर के बारे मे पता लगाने की कोशिश कर रहा था लेकिन टेलिकॉम डिपार्टमेंट के उसके आदमी से उसे सिर्फ़ ये पता चला था कि ये सारे नंबर क्लेवर्त के पब्लिक फोन बूत्स के थे,”..उस दिन तो यार तुम तोहफा लेने से पहले ही भाग गये.बड़े डरपोक हो यार!”,उस शख्स ने उसकी खिल्ली उड़ाई.
“कामीने!तू है कौन?चूहो की तरह च्छूप के के मुझे फँसाने की कोशिश कर रहा है.सामने से वार कर.”
“अरे यार,तुम तो मुझे दुश्मन समझते हो!मैं तो दोस्त हू तुम्हारा.उस दिन ज़रा टाइमिंग गड़बड़ हो गयी मगर आज नही होगी.आज भी आ जाओ यार & देखो की तुम्हारी प्यारी बीवी कैसे तुम्हारे दुश्मन की बाहो मे गुलच्छर्रे उड़ा रही है.”
“कुत्ते!मेरी बीवी के बारे मे ऐसी गंदी बात करता है,हराम जादे!..तुझे अपने हाथो से नर्क भेजूँगा मैं!”
“और गलियाँ दे दे यार लेकिन धारदार फॉल्स के पास के कंधार फॉल्स पे 3 बजे सुबह आओ & अपनी आँखो से देखो की तुम्हारी जान तुम्हारे दुश्मन के साथ कैसे चोंच से चोंच & और भी बहुत कुच्छ मिला रही है.”,& फोन कट गया.ब्रिज गुस्से से कांप रहा था.उसे ज़रा भी यकीन नही था उस कामीने की बात पे लेकिन..
तभी उसका मोबाइल बजा,”हेलो.”
“हाई!ब्रिज डार्लिंग.”,कामया की खनकती आवाज़ उसके कानो मे गूँजी,”..क्या जान,अपनी बीवी को लेके इतनी खूबसूरत जगह आ गये हो & मैं यहा तुम्हारे लिए तड़प रही हू!”
“क्या?!”,ब्रिज के कान खड़े हुए.
“अरे सोनिया मिली थी आज मुझे लेकिन उसने तुम्हारे बारे मे कुच्छ नही बताया..1 मिनिट..”,कामया को जैसे कुच्छ याद आया,”..वो तो मुझे वाय्लेट की लॉबी मे मिली थी.”
“क्या बोल रही हो?!”
“यही की सोनिया वाय्लेट होटेल मे क्या कर रही थी?”,ब्रिज ने फोन काट दिया.उसका चेहरा गुस्से & बेइज़्ज़ती से तमतमाया हुआ था..सोनिया..उसकी जान..बल्कि जान से भी ज़्यादा..उसे देखते ही उसके दिल मे शादी का ख़याल आया था जोकि आज तक किसी भी लड़की के लिए नही आया था & उसने इस तरह से उसका भरोसा तोड़ा था & वो भी विजयंत के साथ!
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"आननह..डालो ना अंदर..ऐसे मत तड़पाव..हाईईईईईईईई..!",सोनिया की खुली टाँगो के बीच उसकी गीली चूत की दरार पे अपना लंड रगड़ते विजयंत उसके जोश को देख मुस्कुरा रहा था.इस वक़्त वो अपनी सारी उलझन भूल बस उसके लंड की चाहत मे दीवानी हो रही थी.विजयंत ने उसके घुटने मोडते हुए उन्हे उसकी छातियो पे दबाया & 1 ही झटके मे लंड को अंदर घुसा दिया.सोनिया के चेहरे पे दर्द की लकीरें खींच गयी लेकिन साथ ही 1 मस्ती भरी मुस्कान भी उसके होंठो पे खेलने लगी.विजयंत का लंड उसकी कोख तक जा रहा था & उसका जिस्म अब खुशी से भर गया था.विजयंत घुटनो पे बैठे हुए उसकी चूचियो को मसलता उसे चोद रहा था लेकिन उसके ज़हन मे रंभा का चेहरा घूम रहा था.अपनी बहू जैसी मस्तानी लड़की आजतक उसके करीब नही आई थी & बस 1 रात की दूरी भी उसे खलने लगी थी.
"ऊव्ववव..आननह..!",उसकी बाहो मे नाख़ून धँसती सोनिया चीख रही थी.रंभा के ख़याल ने विजयंत के जोश को बढ़ा दिया था & उसके धक्के & तेज़ हो गये थे.सोनिया के झाड़ते ही उसने उसके कंधे पकड़ उसे उपर उठाया & अपनी गोद मे बिठा के चोदने लगा.सोनिया ने उसके बाए कंधे पे अपनी ठुड्डी जमाई & उसकी गर्दन के गिर्द अपनी बाहें लपेट & उसकी कमर पे अपनी टाँगे कस आँखे बंद कर के उसके धक्को का मज़ा लेने लगी.
विजयंत के हाथो मे उसकी गंद की फांके थी & उसके होंठ सोनिया की गर्दन को तपा रहे थे.सोनिया की कसी चूत मे घुस उसका लंड अब अपनी भी मंज़िल की ओर बढ़ने को बेताब था लेकिन अभी भी विजयंत के दिलोदिमाग मे रंभा का हसीन चेहरा & नशीला जिस्म घूम रहा था.उसके होंठ सोनिया की गर्दन & बाए कंधे के मिलने वाली जगह पे चिपक गये & उसके हाथो ने उसकी गंद को मसल दिया.सोनिया ने बाल पीछे झटकते हुए ज़ोर से चीख मारी & झड़ने लगी.उसी वक़्त विजयंत के लंड ने भी अपना गर्म वीर्य उसकी चूत मे छ्चोड़ दिया.
"ट्ररननगज्गग..!",विजयंत ने वैसे ही अपनी महबूबा को अपनी गोद मे थामे हुए बाए हाथ को बढ़ा अपना मोबाइल उठाया-फिर से समीर के मोबाइल से फोन आ रहा था!,"हेलो."
"मेहरा,लगता है तुम्हे अपने बेटे से प्यार नही..",विजयंत को आवाज़ पिच्छली बार की ही तरह थोड़ी अजीब लग रही थी,"..तुम ना केवल पोलीस को साथ लाए बल्कि अपने जासूसी कुत्ते को भी मेरे पीछे लगाया हुआ था.लगता है इस बार तुम्हे तोहफे मे समीर के खून के साथ-2 उसके जिस्म का कोई हिस्सा भी चाहिए."
"नही!",विजयंत चीखा तो सोनिया ने उसके चेहरे को अपने हाथो मे थाम लिया.अभी चुदाई की खुमारी उतरी भी नही थी कि इस फोन ने उसे फिर से उसकी उलझानो की याद दिला दी,"..तुम उसे कोई नुकसान नही पहुचना,प्लीज़!!जो चाहते हो वोही करूँगा मैं."
"ठीक है.तो बस अभी 2.30 बजे कंधार फॉल्स पे 1 सफेद टोयोटा क़ुआलिस लेके जिसका नंबर क्प-0व-5214 होना चाहिए,पहुँचो,बिना पोलीस या बलबीर मोहन के & साथ मे वो काग़ज़ भी लाओ जिसपे ये लिखा होगा कि तुम आने वाले दिनो मे अपने कारोबार को नही बढ़ाओगे & आनेवाले 3 महीनो तक कोई नया टेंडर नही भरोगे."
"लेकिन..-",फोन कट चुका था.
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"डॅम इट!",अकरम रज़ा ने खीजते हुए अपनी बाई हथेली पे दाए से मुक्का मारा,"..बस चंद सेकेंड्स & लाइन पे रहता तो कॉल ट्रेस हो जाती.",वो वही क्लेवर्त मे ही बैठ के विजयंत का फोन टॅप करवा रहा था,"..चलो,कंधार फॉल्स 2.30 बजे,चलते हैं.",उसने अपने मातहत अफ़सर को अपना हेडफॉन थमाया & आगे की करवाई के बारे मे सोचने लगा.
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"विजयंत क्या हुआ डार्लिंग?",विजयंत सोनिया की गंद की बाई फाँक को थामे बाए हाथ मे फोन को पकड़े जैसे बुत बन गया था.
"ह-हुन्न्ञन्..",सोनिया की आवज़ से जैसे वो नींद से जगा,"..सोनिया..",& उसने उसे सारी बात बताई.
"मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी.",सोनिया अभी भी उसकी गोद मे बैठी थी.
"पागल मत बनो,सोनिया.उसने मुझे अकेला आने की सख़्त ताकीद की है."
"नही विजयंत,मैं साथ चलूंगी तुम्हारे क्यूकी मैं उसका चेहरा देखना चाहती हू.कैसा लगेगा उसे उस वक़्त जब वो अपने सबसे बड़े दुश्मन से जीतने की खुशी के बीच उसकी बाहो मे अपनी बीवी को देखेगा.विजयंत,उसने तुम्हे इतनी बड़ी चोट पहुचाई है,अब उसका भी हक़ बनता है,उतनी ही बड़ी चोट खुद खाने का!",विजयंत सोनिया को गौर से देख रहा था..सही कह रही थी वो..अगर कमीना कोठारी इस साज़िश मे शामिल है तब तो इस से करारा तमाचा उसे नही पड़ सकता & अगर नही भी शामिल है तो भी ऐसी चोट उसे पागल करने को काफ़ी है!..उसने सोनिया को बाहो मे भर लिया & उसे चूमने लगा.
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वो शख्स क्लेवर्त बस स्टॅंड की पार्किंग मे पहुँचा & पहले वाहा का जायज़ा लिया.उसकी कार अभी भी वैसे ही खड़ी थी & उसे उसपे नज़र रखता भी कोई नही दिखा.उसे 1 सवारी चाहिए थी & नयी का इंतेज़ाम करने का वक़्त नही था.अब ये ख़तरा तो उठाना ही था.उसने धड़कते दिल के साथ आगे बढ़के उसने अपनी चाभी का बटन दबाया & पिंग की आवाज़ के साथ लॉक खुल गया.ठीक उसी वक़्त उसके कंधे पे किसी ने हाथ रखा.उसकी धड़कन & तेज़ हो गयी & वो बहुत धीरे से घुमा.उसे पूरी उमीद थी कि कयि पोलिसेवाले उसकी तरफ अपनी बंदुके ताने खड़े होंगे.उसे खुद पे खिज भी हुई कि क्यू आया था वो इस जगह वापस!
"भाई साहब,आपके पास .50 के छुत्ते होंगे?",1 चश्मा लगाए भला सा शख्स उसके सामने 50 का नोट लिए खड़ा था.उसने राहत की सांस ली.किसी अंकन शख्स को देख ऐसी खुशी उसे पहले कभी नही हुई थी.
"हां-2.ये लीजिए.",उसने छुत्ते उसे दिए & अपनी पार्किंग स्लिप & दिन भर कार खड़ी करने के पैसे उसने अटेंडेंट को थमाए & वाहा से निकल गया.बाहर निकलते ही 1 थोड़ी सुनसान जगह पे सुने रास्ते के किनारे लगे नाल से पानी ले थोड़ी मिट्टी के साथ कीचड़ बना अपनी कार की बॉडी & उसके नंबर प्लेट्स पे ऐसे रगड़ा की देखने वाले को लगे की कार कीचड़ भरे रास्ते से आई है.उसका असली मक़सद तो कार का नंबर च्छुपाना था.उसने कार आगे बढ़ाई & होटेल वाय्लेट से थोड़ा पहले बने सस्ते होटेल्स के सामने लगा दी & अपनी सीट थोड़ा नीचे कर लेट गया.इस जगह से वाय्लेट का मैं एंट्रेन्स सॉफ दिखता था.उसने घड़ी पे नज़र डाली.अभी 11 बजे थे.बस उसे विजयंत मेहरा पे नज़र रखनी थी.हो ना हो वो अपनी बहू के पास या उसकी बहू उसके पास ज़रूर आएगी & तब वो रंभा से मुलाकात करेगा-अकेले मे.
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रात के 1 बजे विजयंत & सोनिया होटेल की 1 टोयोटा क़ुआलिसजसिके नंबर प्लेट्स बदल दिए गये थे,मे कंधार के लिए निकल पड़े.वो शख्स उंघ रहा था कि सामने से आती विजयंत की कार की हेडलाइट्स की रोशनी उसकी आँखो पे पड़ी .उसने आँखे खोली & बगल से गुज़रती कार के शीशे को दाए हाथ से चढ़ाता & बाए से स्टियरिंग संभाले उसे विजयंत दिखा.उसने फ़ौरन कार स्टार्ट की & उसके पीछे लग गया.1 मारुति आल्टो मे 2 सादी वर्दी के पोलीस वाले दोनो कार्स के पीछे लग गये.2 बजे तीनो गाड़ियाँ अपने पीछे लगी गाड़ी से अंजान कंधार पहुँची की विजयंत का मोबाइल बजा,"हेलो."
"कार वापास लो."
"क्या?"
"कार वापस लो.",फोन काट गया.विजयंत ने कार घुमाई तो वो शख्स & पोलीस वाले दोनो बौखला गये & उन्होने फ़ौरन अपनी-2 कार्स को घुमा के आगे बढ़ाया & तब उस शख्स ने आल्टो को देखा.उसने कार की रफ़्तार बहुत तेज़ की & पहाड़ी रास्ते के बिल्कुल किनारे ले जाते हुए अपनी कार से उस आल्टो को ओवर्टेक किया..हो ना हो ये पोलिसेवाले थे!
"सर,क्या करें अब?वो पीछा करने वाला शख्स भाग रहा है & विजयंत भी अब वापस जा रहा है?",सादी वर्दी वाला अफ़सर रज़ा को पल-2 की खबर दे रहा था.
"क्या?!तुम..तुम अभी मेहरा के पीछे लगे रहो.",तब तक आल्टो को दूसरे अफ़सर ने आगे बढ़े रास्ते के किनारे की झाड़ियो मे घुसा दिया था.2 पल बाद ही विजयंत की क़ुआलिस उनके बगल से उनकी मौजूदगी से अंजान वाहा से निकली,"..टीम सी कम इन.",रज़ा ने कंधार फॉल्स पे खड़ी अपनी टीम को तलब किया,"..मीटिंग वाहा नही हो रही है.तुमलोग जितना हो सके उतनी शांति से वाहा से निकलो आगे मैं बताता हू क्या करना है."
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क्रमशः.......
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