Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:38 PM,
#42
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--41

गतान्क से आगे.

"वेलकम,मिस्टर.प्रणव.",प्रणव जब उस शानदार बंगल पे पहुँचा जोकि उसके घर से ज़्यादा दूर नही था तो 1 नौकर उसे बुंगले के सजे हुए हॉल मे ले गया जहा उसने पहली बार महादेव शाह को देखा.शाह 50-55 बरस का शख्स था जिसके सारे बाल सफेद हो चुके थे.देखने मे वो भले ही बूढ़ा लगता हो लेकिन 6 फ्ट का वो मर्द बिल्कुल चुस्त जिस्म का मालिक था.

"हेलो,मिस्टर.शाह."

"आइए..",वो उसे हॉल के कोने मे बने बार पे ले गया,"..क्या लेंगे?"

"स्कॉच."

"ओके.",उसने उम्दा स्कॉच का 1 पेग बनाके अपने मेहमान को दिया & खुद के लिए भी 1 पेग बनाया.

"तो मिस्टर.शाह आप किस सिलसिले मे मुझसे मिलना चाहते थे?"

"कम ऑन,प्रणव जी.",शाह ने शराब का 1 घूँट भरा & मुस्कुराया,"..अब आप जैसे दिमाग़दार शख्स से मुझे ऐसे सवाल की उम्मीद नही थी.",प्रणव हंस दिया.

"मिस्टर.शाह,जब डॅड ने आपका ऑफर ठुकरा दिया था तो मैं क्या कर सकता हू!"

"प्रणव जी,मैं जब 30 बरस का भी नही हुआ था तो ये मुल्क छ्चोड़ त्रिनिडाड चला गया था & 30 बार्स का होते-2 अपने गन्ने के फार्म्स & रूम डिसटिल्लरी का मालिक था.उसके बाद मैने कयि मुल्को मे कयि धंधे कर ये दौलत इकट्ठा की.अब मैं कोई कारोबार नही करना चाहता & उम्र के इस आख़िरी दौर मे अपने मुल्क वापस आ यहा के बिज़्नेसस मे अपना पैसा लगाना चाहता हू.."

"..हर व्यापारी को अपने बिज़्नेस को,चाहे बड़ा हो या छ्होटा,आगे बढ़ाने की ख्वाहिश होती है & उसके लिए पैसे की ज़रूरत होती है.बस इसीलिए मैं आपके ससुर के पास गया था मगर उन्होने मेरा ऑफर ठुकरा दिया.पता नही उन्हे मुझे अपने ग्रूप के चंद शेर्स देने मे क्या ऐतराज़ था?..",शाह थोड़ी देर खामोशी से पीता रहा.

"खैर..प्रणव..आइ होप यू डॉन'ट माइंड इफ़ आइ कॉल यू ओन्ली प्रणव."

"नोट अट ऑल."

"प्रणव,मुझे तुम मे अपना अक्स दिखता है.",शाह की आँखो मे उसकी कही बात मे झलकता विश्वास दिख रहा था,"..मुझे लगता है कि तुम इस सुनहरे मौके का फ़ायदा उठा सकते हो."

"वो ठीक है,मिस्टर.शाह लेकिन मैं कोई फ़ैसला कैसे ले सकता हू?..मैं कंपनी का मालिक नही हू."

"नही.पर शेर्स हैं तुम्हारे पास & ससुर की दी हुई पवर ऑफ अटर्नी भी."

"मगर.."

"मगर क्या?..देखो,प्रणव ये सुनेहरी मौका है & इसमे तुम्हारा भी बहुत फ़ायदा हो सकता है..तुम मेरी बात समझ रहे हो.",शाह का बोलने का लहज़ा थोड़ा बदल गया था.

"ज़रा तफ़सील से कहिए."

"देखो,प्रणव.इस कंपनी का मालिक विजयंत है & उसके बाद कौन?"

"समीर.",प्रणव की आवज़ का ठंडापन शाह से च्छूपा नही.

"& तुम..बस वही चंद शेर्स..कहने को बोर्ड पे हो..हर फ़ैसले के वक़्त तुम्हारी मौजूदगी ज़रूरी है..लेकिन क्या सचमुच तुम्हारी राई के बिना कोई भी फ़ैसला रुकता है नही..क्यूकी फ़ैसला तो केवल मालिक ही लेता है..ये सब तो बस फॉरमॅलिटीस हैं.",प्रणव को उसकी बातें सच लग रही थी..वो भी तो बस 1 नौकर ही था..अपने ससुर का.

"..ये मौका है प्रणव की तुम मालिक बन जाओ.मैं ये नही कह रहा कि विजयंत को हटा दो लेकिन मुझे लगता है की अब उसका वक़्त पूरा हो गया है.उसकी सोच अब पहले जैसी पैनी नही रही ही & उपर से ये समीर का चक्कर.वक़्त रहते अगर किसी जवान,चुस्त शख्स ने ग्रूप की बागडोर नही संभाली तो सब बिखर सकता है & इतने दिन हो गये..मुझे नही लगता समीर वापस आने वाला है...तो 1 तरह से तो तुम ग्रूप की भलाई के लिए ये सब कर रहे हो."

"हूँ..लेकिन फिर भी मुझे क्या फ़ायदा होगा इतना बड़ा रिस्क उठाने से?"

"हूँ..",शाह ने अपनी ड्रिंक ख़त्म की & उसकी पीठ पे धौल जमाया,"..अब की तुमने समझदारी वाली बात!..मैं दुनिया मे काई जगह घुमा हू & खास कर के वो जगहें जिन्हे टॅक्स हेवन्स कहा जाता है.",वो हंसा तो प्रणव भी मुस्कुरा दिया.टॅक्स हेवन्स-ऐसे मुल्क जोकि बस 1 छ्होटा सा जज़ीर-आइलॅंड रहता है & वाहा के टॅक्स के क़ानून बिल्कुल बकवास.थोड़े कागज़ी खेल खेल के आप अपना काला धन वाहा के बाँक्स मे महफूज़ रख सकते हैं.

"..केमन आइलॅंड्स के बॅंक मे तुम्हारे नाम से 1 रकम जमा कर दी जाएगी.बस तुम मेरे पैसे लेके मुझे ट्रस्ट के शेर्स दिलवा दो.",शाह उसके जवाब का इंतेज़ार करता उसे देख रहा था & प्रणव सर झुका के अपनी ड्रिंक पी रहा था.

कुच्छ देर बाद उसने अपना सर उठाया & ग्लास बार पे रखा.उसकी आँखो के भाव को देख के शाह समझ नही पा रहा था की उसकी बात उसे पसंद आई या नही.

"दट'स इट!",कुच्छ देर बाद ही प्रणव के चेहरे का भाव बदला & मुस्कुराते हुए उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया था.शाह ने उसे खुशी से थामा & हिलाने लगा.

"उस शख्स को यहा पे 1 निशान था.",रंभा विजयंत मेहरा के सीने पे अपनी छातियाँ दबाए,उसकी पेड़ के तनो जैसी जाँघो पे अपनी मुलायम,भारी जंघे टिकाए लेटी उसके बाए गाल पे दाए हाथ की उंगली फिरा रही थी.

"तुमने ये बात रज़ा को क्यू नही बताई?",विजयंत ने उसके बालो को उसके कान के पीछे किया & उसकी उंगली उसके गोरे गालो पे घूमने लगी.बहू की चूत के नीचे दबा उसका लंड भी धीरे-2 अपना सर उठा रहा था.

"मेरे दिमाग़ से ये बात बिल्कुल उतर गयी थी.अभी अचानक याद आई.",पिच्छली शाम ही विजयंत के अपनी खफा बहू को मनाने के बाद ही दोनो चुदाई मे जुट गये थे.विजयंत बस 1 बार झाड़ा था लेकिन रंभा को तो होश भी नही था कि वो कितनी बार झड़ी & कब सो गयी.कुच्छ देर पहले उसकी नींद खुली तो उसने देखा की घड़ी मे 3 बज रहे हैं.ससुर के नंगे,मज़बूत मर्दाना जिस्म को जैसे ही उसने छेड़ना शुरू किया तो वो भी फ़ौरन जाग गया.

"1 आइडिया आया है.",रंभा के दिमाग़ मे बिजली सी कौंधी & वो ससुर के सीने से उठ गयी.उसके घुटने ससुर के जिस्म के दोनो तरफ बिस्तर पे जम गये & जैसे ही विजयंत ने उसकी कमर को थामा वो उसका इशारा समझ उपर उठी & फिर उसके लंड पे चूत को झुकाने लगी,"..उउम्म्म्म..!",उसकी आँखे मस्ती मे बंद हो गयी.

"कैसा आइडिया?",विजयंत की आँखे भी लंड के बहू की कसी चूत से जकड़े जाने से मज़े मे मूंद गयी.

"ऊहह..",रंभा ने ससुर के सीने के बालो को मुत्ठियो मे भर हल्के से खींचा & मस्ती मे अपनी कमर हिलाने लगी,"..देखिए,आपने रज़ा को कह दिया है कि मैं डेवाले जा रही हू.आप ये बात लीक भी कर दीजिए..आन्न्न्नह..इतनी ज़ोर से नही..!",विजयत ने जोश मे उसकी गंद की फांको को बहुत ज़ोर से दबोच लिया था.

"मगर क्यू?",उसके हाथ बहू के पेट से उसकी चूचियो तक घूम रहे थे.वो बस अपनी उंगलियो के पोरो से उसके कड़े निपल्स को छुते हुए हाथ उपर-नीचे सरका रहा था.

"ताकि वो शख्स धोखा खा जाए & अगर उसका निशाना मैं हू तो वो यहा से डेवलाया चला जाए & मैं यही कही छुप के रहू..ऊन्नह....उउम्म्म्मम..!",विजयंत ने बहू की चूचियाँ पकड़ उसे नीचे खींचा & फिर उसकी कमर को बाहो मे जाकड़ उसकी गर्दन चूमते हुए नीचे से कमर उच्छाल-2 के उसकी चुदाई करने लगा.

"आन्न्न्नह..निशान पड़ जाएगा,दाद..ऊव्ववववव..प्लीज़..नाआअहह..!",लंड के क़ातिल धक्को ने उसे बहुत मस्त कर दिया & वो ससुर के होंठो को अपनी गर्दन से जुदा करते हुए,उसकी जाकड़ से च्चटपटाते हुए उपर उठ गयी & चीख मारते हुए पीछे उसकी जाँघो पे गिर के झड़ने लगी.विजयंत ने लेटे-2 ही उसकी उसके लंड को कस्ति चूत मे से उसके बिल्कुल लाल हो चुके दाने को अपने बाए हाथ के अंगूठे से छेड़ा.रंभा के मस्ताने जज़्बात विजयंत की इस हरकत से उसके काबू मे ना रहे & उसकी आँखो से छलक पड़े.

"प्लान तो बढ़िया है मगर इसमे ख़तरा भी है.",वो जल्दी से उठा & अपनी बहू को अपनी टाँगो से उठाके बाहो मे भर लिया .रंभा उसके सीने के बालो मे मुँह च्छुपाए सिसक रही थी.विजयंत ने उसकी चूत मे लंड धंसाए हुए उसकी गंद को थामे हुए अपने घुटने मोड & उसे अपनी गोद मे ले लिया.

"आप ख़तरो से कब से डरने लगे?",संभालने के बाद रंभा ने नज़रे उपर की & अपने ससुर की आँखो मे झाँका.विजयंत को उन निगाहो मे सुकून के पीछे च्चिपी मस्ती & 1 चुनौती भी थी.

"मुझे ख़तरो से कब डर लगा है!",विजयंत ने उसके लंबे बालो को पीछे खींचा तो रंभा को थोड़ा दर्द हुआ लेकिन ससुर के इस तरह उसकी बात को दिल से लगाने से उसे थोड़ा मज़ा भी आया-वो मज़ा जो प्रेमी-प्रेमिका 1 दूसरे को छेड़ने मे पाते हैं,"..मुझे तुम्हारी फ़िक्र है बस.",रंभा ने सर पीछे झुकाया था तो उसकी गोरी गर्दन विजयंत के सामने चमक उठी थी & उसके बेसबरे होंठ उसी से चिपक गयी थी.

"थोड़ा ख़तरा तो उठाना ही पड़ेगा ना...आन्न्न्नह.नही..कहा ना दाग पड़ जाएगा!",रंभा ने ससुर के बाल उठा के उसकी गर्दन को शिद्दत से चूमते होंठो को अपनी गर्दन से अलग किया.विजयंत उसकी कमर & गंद को थामे ज़ोर-2 से धक्के लगा रहा था.

"प्लान तो ठीक लगता है.मैं डेवाले मे अपने आदमियो को चौकन्ना कर दूँगा & हो सकता है वो शख्स पकड़ा जाए.",रंभा ससुर के लंड की चुदाई से मस्त हो अपनी कमर हिला के उसके धक्को का जवाब दे रही थी & उसके बालो को पकड़े उसे पागलो की तरह चूम रही थी.विजयंत ने अब उसकी गंद की मोटी फांको को अपने बड़े-2 हाथो मे थाम लिया था & घुटनो पे बैठ ज़ोर-2 से लंड अंदर-बाहर कर रहा था.

"ऊवुयूयियैआइयैआइयीयीयियी......अभी तक कोई फोन नही आया ना?..आन्न्‍न्णनह....हान्न्न्नह..!",वो पीछे झुकी थी & विजयंत उसके निपल्स को दांतो से काट रहा था.

"नही.",विजयंत को भी अब समीर की चिंता हो रही थी.उसने दाए हाथ से रंभा की गंद थामे हुए बाए से उसकी दाई चूची को मसला & बाई चूची को मुँह मे भर चूसने लगा.ससुर की ज़ुबान की गुस्ताख हर्कतो ने रंभा की जिस्म मे बिजलियो की कयि लहरें दौड़ा दी & वो उसके सर को पकड़े च्चटपटाने लगी.दोनो जिस्म 1 दूसरे से चिपके 1 बार फिर मस्ती के आसमान मे घूमने लगे थे.रंभा ने दोनो बाहें विजयंत के कंधो पे टिका के उसके सर को अपनी पकड़ मे जाकड़ लिया था & अपना सर उसके सर के उपर टिकाके पागलो की तरह चीख रही थी.उसका जिस्म झटके खा रहा था & नीचे विजयंत उसकी चूचियो को मुँह मे भरता आहें भर रहा था.दोनो 1 बार फिर 1 साथ झाड़ गये थे.

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वो शख्स बहुत बौखलाया हुआ था.उसने सवेरे ही अपना होटेल छ्चोड़ दिया था & अपनी कार भी.जब से रंभा की तलाश ख़त्म हुई थी सब कुच्छ गड़बड़ हो रहा था.पहले समीर गायब हुआ & विजयंत रंभा के साथ चिपक गया.अब तो दोनो के बीच 1 नाजायज़ रिश्ता भी जुड़ गया था & दोनो का अलग होना और मुश्किल नज़र आ रहा था.उपर से सवेरे रंभा ने उसकी शक्ल भी देख ली थी.

क्लेवर्त की पहाड़ियो मे काई होटेल्स & लॉड्जस थी & ऐसा नही था की सभी बहुत चलती थी.उसने पहले अपने गाल के निशान के उपर 1 बॅंड-एड लगाया & अपनी कार को 1 पार्किंग मे छ्चोड़ क्लेवर्त शहर से थोड़ी दूरी पे 1 पहाड़ी पे बने1 छ्होटी सी लॉड्ज मे 1 कमरा ले लिया था.अब उसे 1 नयी सवारी चाहिए थी लेकिन कैसे ये उसकी समझ मे नही आ रहा था.

उसने सबसे पहले अपना हुलिया पूरा बदला.अभी तक वो कोट & पॅंट मे रहता था.उसने मार्केट जाके सबसे पहले कुच्छ जॅकेट्स,जीन्स & स्वेटर्स खरीदे & 1 जॅकेट & जीन्स 1 पब्लिक टाय्लेट मे बदली.उसके बाद उसने पहले उस बंगल का रुख़ किया जहा सवेरे सब गड़बड़ हुआ था.वाहा अभी भी पोलीस थी.अब उसे ये पता करना था की आख़िर रंभा गयी कहा.

उस पूरे दिन उसने काई जुगाड़ किए लेकिन उसे ये नही पता चला की आख़िर विजयंत & रंभा गये कहा.जिस वक़्त विजयत्न & रंभा 1 दूसरे के आगोश मे समाए चुदाई का लुत्फ़ उठा रहे थे,वो शख्स बेचैनी से करवटें बदल रहा था & जिस वक़्त रंभा ने ससुर को अपने प्लान के बारे मे बताया,उसी वक़्त उसकी आँख लगी इस बात से बेख़बर की उसका शिकार अब उसी के लिए जाल बिच्छा रहा था.

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"ओह..प्रणव डार्लिंग..ऊव्ववव..",शिप्रा बिस्तर पे बुरी तरह कसमसा रही थी.उसके चेहरे पे दर्द & मस्ती से भरी मुस्कान खेल रही थी.उसकी टाँगो के बीच उसका प्यारा पति अपने घुटनो पे बैठा उसके उसकी दाई तंग को थामे उसके पैर के अंगूठे को मुँह मे चूस्ते & बीच-2 मे काटते हुए,उसे चोद रहा था.

"क्या बात है जान?..आन्न्‍न्णनह..आज तो तुम बहुत जोश मे हो..हााआ....!",शिप्रा ने अपने बाए घुटने पे जमे प्रणव के हाथ की उंगलियो मे अपने बाए हाथ की उंगलिया फँसाई तो प्रणव उसकी टांग के गुदाज़ हिस्से को चूसने लगा.

"तुम्हे देख को तो हमेशा ही मेरा ये हाल हो जाता है,डार्लिंग!",प्रणव के आंडो मे अब मीठा दर्द हो रहा था.बहुत देर से वो खुद पे काबू रखे हुए थे.उसने उसकी टांग छ्चोड़ी & शिप्रा के उपर लेट गया & उसकी गर्दन के नीचे बाई बाँह लगा के उसे आगोश मे भर लिया,"..1 बात पुच्छू?"

"पूछो ना जान.",शिप्रा ने पति के चेहरे को हाथो मे भर चूम लिया.

"तुम्हारे पास कंपनी के शेर्स हैं & तुम भी ग्रूप की मालकिन हो,अगर मैं कोई फ़ैसला लू तो क्या तुम मेरा साथ दोगि?",प्रणव के धक्के तेज़ ओ गये थे.वो अब जल्द से जल्द झड़ना चाहता था.शिप्रा की टाँगे उसकी पिच्छली जाँघो पे जम गयी थी & वो नीचे से कमर उचकाने लगी थी.

"क्या बात है प्रणव?",उसने उचक के उसे चूमा तो प्रणव ने भी अपनी ज़ुबान उसकी ज़ुबान से लड़ा दी.

"वक़्त आने पे बताउन्गा.तुम्हे मुझपे यकीन तो है ना,शिप्रा की मैं बस कंपनी के भले के लिए फ़ैसला लूँगा?",पति-पत्नी दोनो 1 दूसरे से बेचैनी से गुत्थमगुत्था थे.

"ओह..हां प्रणव,पूरा भरोसा है डार्लिंग....आन्न्‍न्णनह..!"

"थॅंक्स,जान!..य्ाआअहह..!",दोनो 1 दूसरे को चूम रहे थे & दोनो के बदन झटके खा रहे थे.शिप्रा झाड़ रही थी & प्रणव अपना वीर्य उसकी चूत मे छ्चोड़ रहा था.

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विजयंत ने अगली सुबह ये खबर अपने मीडीया के सोर्सस के ज़रिए लीक करा दी कि रंभा वापस डेवाले जा रही है.एरपोर्ट पे तेज़ी से चेक इन काउंटर की ओर जाती रंभा के पीछे उस से सवाल पूछते रिपोर्टर्स की तस्वीरे उस शख्स ने टीवी पे देखी & मुस्कुरा दिया.

उधर रंभा ने टिकेट लिया था पंचमहल & फिर वाहा से डेवाले का लेकिन उसने पंचमहल से आगे की फ्लाइट नही ली.उसकी जगह बलबीर मोहन की कंपनी की 1 लड़की ने रंभा के टिकेट से सफ़र किया.अब कोई भी फ्लाइट रेकॉर्ड्स चेक करता तो यही समझता की रंभा डेवाले पहुँच गयी.

रंभा को बस 1 रात पंचमहल मे अकेले गुज़ारनी थी & फिर वाहा से अगले दिन वो ट्रेन & सड़क के रास्ते वापस क्लेवर्त जाने वाली थी.इन सब बातो से बेख़बर वो शख्स अपना समान बाँध रहा था डेवाले जाने के लिए.

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क्रमशः.......
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