RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--38
गतान्क से आगे.
"हूँ..जब आप कपड़े बदलने गये तो भी आपकी निगाह फर्श पे पड़े शीशे के टुकड़ो पे नही गयी?"
"जी,नही.आपने देखा होगा कि कमरे का कपबोर्ड उस टूटे काँच वाले दरवाज़े से बिल्कुल उल्टी दिशा मे है.मैं बेटे के बारे मे सोचता तैय्यार हुआ & वाहा से निकल गया."
"यानी की जब आप रंभा जी के कमरे की आरामकूर्सी पे सो रहे थे उसी दौरान वो अंदर घुसा होगा..खैर!",वो खड़ा हो गया,"..मैं चलता हू.आप अभी भी यही,इसी बंगल मे रहेंगे?"
"नही,मैं तो अभी अपने होटेल शिफ्ट हो रहा हू & रंभा को मैं कल ही डेवाले भेज रहा हू.मैं नही चाहता की ये ज़रा भी ख़तरे मे पड़े.वैसे ऑफीसर मैं चाहता हू कि आप मीडीया से ये बोल दें की मैं भी वापस पंचमहल जा रहा हू."
"ठीक है..",रज़ा हंसा.सवेरे की घटनाओ की कुच्छ भनक तो मीडीया को लग ही गयी थी & वो खबर सूंघते बस उस बुंगले तक पहुँचने ही वाले थे,"..बढ़िया सोचा है आपने.वैसे कुच्छ भी ध्यान आए तो मुझे ज़रूर बताएँ.ओके!",उसने हाथ मिलाया & निकल गया.
"आपने ये क्यू कहा कि मैं डेवाले जा रही हू?",विजयंत बाहर अपनी प्राडो मे बैठ गया था जिसमे बंगल का डरबन उनका समान चढ़ा रहा था.
"क्यूकी तुम जा रही हो.",रंभा ने बैठ के कार का दरवाज़ा बंद किया तो विजयंत ने डरबन को कुच्छ बखशीश दी & कार वाहा से निकली.
"आप ऐसे मेरा फ़ैसला नही ले सकते.मैं नही जा रही!",गुस्से से रंभा का चेहरा लाल हो रहा था.विजयंत उसे क्या डरपोक समझ रहा था!..वो घबराई ज़रूर थी लेकिन अब तैय्यार भी थी.आगे वो शख्स उसके करीब आके देखे,वो उसका मुँह नोच लेगी!
"बहस मत करो!",विजयंत ने उसे डांटा,"..तुम्हारी समझ मे कुच्छ नही आ रहा.बहुत ख़तरा है यहाँ!"
"मुझे डर नही लगता किसी भी बात से."
"बस!",विजयंत की भारी आवाज़ तेज़ हो गयी & उसने बाया हाथ उठाके बहू को चुप रहने का इशारा किया,"..तुम कल जा रही हो.इस बात का फ़ैसला हो चुका है.",रंभा की आँखो मे पानी आ गया.उसे आजतक ऐसे किसी ने नही डांटा था.वो खामोश हो गयी & खिड़की से बाहर देखने लगी.विजयंत को भी महसूस हुआ कि उसने बहू से कुच्छ ज़्यादा ही सख्ती से बात की है & उसने बाया हाथ बढ़ा के स्लीव्ले ब्लाउस से बाहर झाँक रही उसकी नर्म,गोरी दाई बाँह को च्छुआ तो रंभा ने उसे झटक दिया.विजयंत ने हाथ पीछे खींचा & खामोशी से कार चलाने लगा.
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पंचमहल के अपने होटेल मे ब्रिज कोठारी आराम कर रहा था.सवेरे धारदार झरनो पे विजयंत को देख वो बहुत घबरा गया था लेकिन जब उसकी घबराहट कम हुई तो उसने डेवाले वापस लौटने का ख़याल दिमाग़ से निकाल दिया.उस से अंजाने मे 1 अच्छा काम हुआ था.वो अपने ऑफीस की 1 कार उठाके क्लेवर्त तक चला आया था जोकि उसके नाम पे रिजिस्टर नही थी.उस कार को उसने आवंतिपुर के अपने दफ़्तर की पार्किंग मे लगाया & ऐसा करते उसे किसी ने नही देखा.
उसके बाद 1 प्राइवेट टॅक्सी बुक की & पंचमहल पहुँचा & वाहा से सीधा अपने होटेल.अपने आदमियो से उसने यही कहा की वो होटेल की सर्प्राइज़ चेकिंग पे आया है.वाहा से उसने आवंतिपुर के दफ़्तर फोन कर कहा कि डेवाले ऑफीस की 1 कार वाहा पार्क है जिसे वापस भिजवा दिया जाए.
ब्रिज ने सोच लिया था कि वो इस मामले को सुलझा के ही मानेगा & जो भी उसे ऐसे फँसाने की कोशिश कर रहा था उसे वो मज़ा ज़रूर चखायगा.वो बिस्तर पे लेटा था की उसका मोबाइल बजा,"हेलो."
"हाई,जानेमन!कहा रहते हो आजकल?पिक्चर साइन करवा के तो भूल ही गये मुझे.",कामया की खनकती आवाज़ सुनते ही ब्रिज के होंठो पे मुस्कान फैल गयी.
"मेरी जान!हम तो तुम्हारे दिल मे ही रहते हैं,तुम्ही उसे टटोल के देखती नही कभी."
"उफफफ्फ़!..",कामया बिस्तर मे नंगी लेटी थी.उसने अपनी चूत पे हाथ फिराया जिस से कबीर का वीर्य बह रहा था.बस अभी ही उनकी चुदाई ख़त्म हुई थी & कबीर बाथरूम मे नहा रहा था,"..तुमने तो लाजवाब कर दिया,जान!वैसे कहा हो अभी?"
"जहा इस वक़्त होना चाहिए.",ब्रिज ने जान बुझ के बात घुमा दी,"..& तुम?"
"मैं तो आवंतिपुर मे हू,यार.शूटिंग के लिए आई हूँ."
"अच्छा.कब आई..ई मीन कब गयी वाहा?"
"बस सवेरे की फ्लाइट से पहुँची थी.धारदार पे गाना शूट होना था लेकिन पता नही आज वाहा कुच्छ गड़बड़ थी तो पूरा इलाक़ा सील था.अब देखें कल क्या होता है.आज का पूरा दिन तो खाली बैठे बोर होंगी.",कामया ने कितनी सफाई से झूठ बोल दिया था.शूटिंग कॅन्सल होने की खबर सुन कबीर खुशी से उच्छल पड़ा था & उसे अपने कमरे मे ले आया था & अगली सुबह तक कामया वही रहने वाली थी.
"अच्छा.वैसे क्या गड़बड़ हुई है वहाँ?"
"पता नही.कह रहे हैं कि कोई गुंडा दिखा था वाहा तो पहले पूरे इलाक़े को छान के सेफ डिक्लेर करेंगे फिर पब्लिक को जाने देंगे वाहा."
"ओह.",ब्रिज समझ गया की पोलीस असल बात च्छूपा रही है.सही भी था,आख़िर समीर की जान का सवाल था लेकिन फिर उसे क्यू बुलाया था वाहा उस कॉलर ने?..हो ना हो ये विजयंत की ही घिनोनी साजिश है..कमीना!बेटे को मोहरा बना मुझे फाँसना चाहता है,अपने बिज़्नेस के लिए!
"क्या हुआ,ब्रिज डार्लिंग चुप क्यू हो गये?..कही किसी दिलरुबा के साथ तो मसरूफ़ नही हो?",कामया ने उसे छेड़ा.
"दिलरुबा तो इस वक़्त आवंतिपुर मे बैठी है यहा तो बस नीरस फाइल्स & उबाउ काम है.",ब्रिज ने नाटकिया आह भरी तो कामया हंस पड़ी.
"तो यहा आ जाओ ना!अभी तो शूटिंग चलेगी कुच्छ दिन यहा & फिर यहा का मौसम कितना सुहाना है.ऐसे आलम मे तुम्हारी मज़बूत बाजुओ मे पिस्ने का जी कर रहा है,डार्लिंग!"
"थोड़ा सब्र करो,मेरी जान.हो सकता है बहुत जल्द ही तुम्हारी तमन्ना पूरी हो जाए."
"सच?",कामया ने बहुत खुश होने का नाटक किया.कबीर अपने बॉल पोन्छ्ता बाथरूम से बाहर आ गया था.उसका लंड झड़ने के बाद सिकुड़ने के बावजूद अच्छा-खास लंबा था.कामया ने उसे देख होंठो पे जीभ फिराई & अपनी टाँगे फैला अपनी चूत पे 1 उंगली फिराई.
"सच."
"तो जल्दी आना.ओके,बाइ!",कामया ने फोन किनारे फेंका & अपनी फैली टाँगो के बीच उसकी चूत से अपना वीर्य अपनी ज़ुबान से साफ करते कबीर के बालो को सहलाने लगी.
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"मिस्टर.मेहरा,वो बहुत चालाक आदमी है & उसने भाँप लिया था कि मैं उसका पीछा कर रहा हू & क्या चकमा दिया उसने मुझे.उसी कारण मुझे आने मे देर हो गयी वरना उसे रंगे हाथो पकड़ लेता.",बलबीर मोहन होटेल क्लेवर्त वाय्लेट के बार मे विजयंत के साथ बैठा था & दोनो बियर पी रहे थे.बार अभी खुला नही था & इसीलिए दोनो आराम से बाते कर रहे थे.
"बलबीर,उसे कभी भी कम नही आँकना.बहुत शातिर है वो.",विजयंत ने बियर का 1 घूँट भरा,"..वैसे 1 बात समझ नही आई मुझे?"
"क्या?"
"अगर वो समीर की गुमशुदगी के पीछे है तो वो पीछे ही रहना पसंद करेगा बल्कि ऐसा जाल बुनेगा कि कोई ये समझ ही नये पाए की उस जाल के सिरे उस तक जाते हैं.इस तरह से खुद झरने पे आना कुच्छ समझ नही आया."
"हूँ..झरने पे आपके पीछे-2 पोलीस ने भी पहुँचने मे ज़रा देर कर दी नही तो उसका खेल उसी वक़्त ख़त्म हो जाता."
"अभी तक फिर कोई फोन नही आया बलबीर.मुझे समीर की फ़िक्र हो रही है."
"आप घबराईए मत,मेहरा साहब.समीर की कीमत बहुत ऊँची लगाई है उसे अगवा करने वाले ने.बिना आपका जवाब सुने वो उसे हाथ नही लगाएँगे."
"उसके खून से रंगी कमीज़ भेजी है उन्होने बलबीर!",एंहरा की आँखो मे गुस्सा & डर दोनो थे.
"मेहरा साहब,वो आपको डराना चाहते हैं ताकि आप फ़ौरन उनकी बात मान लें.समीर उनके लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है,उसे मारने की बेवकूफी वो नही कर सकते.उन्होने सरिंज से उसकी बाँह से खून निकाल के उस कमीज़ पे गिरा दिया होगा.किसी भी वालिद के लिए औलाद के खून को देखना कितना खौफनाक तजुर्बा हो सकता है,उसी बात पे खेल रहे हैं वो."
"तो क्या करू मैं?",विजयंत पहली बार इतना बेबस महसूस कर रहा था.
"आप उनकी बात मान लीजिए."
"क्या?!"
"हां,आपको अगला फोन जल्द आएगा & वो आपको फिर से समीर को नुकसान पहुचाने की बात कहेंगे.आप घबरा के उनकी बात मान लीजिए फिर देखिए वो क्या बोलते हैं.किसी भी तरह हमे समीर को अपने पास लाना है.आपको बस बात मानने की बात कहनी है सच मे माननी थोड़े ही है.",बलबीर की बात से विजयंत के होंठो पे मुस्कान आ गयी.
"मैं समझ गया तुम्हारी बात,बलबीर."
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"तुम कहा हो,ब्रिज?",ब्रिज कामया से बात कर तैय्यार हुआ ही था की सोनिया का फोन आ गया.
"मैं पंचमहल मे हू,डार्लिंग."
"तुम तो क्लेवर्त गये थे ना?"
"हां,वाहा का काम निपटा के यहा आ गया."
"इतनी जल्दी?"
"हां,काम जल्दी हो गया."
"ओह.वैसे क्या काम था,जान?",सोनिया की आँखे रात भर रोने से ला हो चुकी थी.अगर ब्रिज देख सकता तो देखता कि उसकी बीवी की आवज़ से बिल्कुल उल्टे भाव उसकी सूरत पे थे.
"अरे,मेरी रानी..अपने लोगो को बीच-2 मे चौंकाने से वो मुस्तैद रहते हैं.बस ऐसे ही चेकिंग कर रहा हू."
"हूँ..तो लोटोगे कब?"
"क्यू?याद आ रही है मेरी?",ब्रिज मुस्कुराया.
"ऐसे अचानक चले जाओगे तो चिंता तो होगी ना."
"ओह,डार्लिंग आइ लव यू!मैं जल्दी ही आ जाऊँगा.ओके?"
"ओके,डार्लिंग.आइ लव यू.बाइ!",सोनिया ने फोन कटा & फिर दूसरा नंबर डाइयल किया.
"हाई सोनिया.",विजयंत ने बलबीर को भी अपने होटेल के मॅनेजर से कहके 1 कमरा दिलवा दिया था.बियर पीने के बाद बलबीर आराम करने चला गया था जबकि विजयंत वही बैठा दूसरी बियर पी रहा था.
"विजयंत,मुझे सब कुच्छ बताओ."
"किस बारे मे,सोनिया?"
"समीर के बारे मे जो भी पता चला है तुम्हे.",विजयंत खामोश हो गया.
"क्या हुआ,विजयंत?"
"छ्चोड़ो ना,सोनिया.क्या करोगी जान के?",विजयंत ने जान बुझ के नाटक किया था.कल रात को सोनिया से हुई बात से उसे इतना तो समझ आ गया था कि वो ब्रिज को इस सब के पीछे का दिमाग़ समझ रही थी & इस बात से पति से दुखी भी थी.यही तो उसे चाहिए था.ब्रिज की बर्बादी तो उसका बहुत पुराना सपना था.
"प्लीज़,विजयंत.तुम्हे मेरी कसम.मुझे सब बताओ."
"ओके.",विजयंत ने 1 लंबी सांस ले उसे सारी बात शुरू से बताना चालू किया,"..लेकिन मैं यकीन से नही कह सकता कि वो ब्रिज ही था.अंधेरा था उस वक़्त."
"मैं तुमसे मिलना चाहती हू,विजयंत."
"प्लीज़,सोनिया यहा मत आओ.ख़तरा है यहा!"
"विजयंत,मैं तुमसे मिलने आ रही हू.",सोनिया ने फोन काट दिया.इतने दिनो से दोनो मर्दो के बीच झूलते हुए उसे कभी-2 बहुत ग्लानि होती थी.उसे लगता था कि वो पति से बेवफ़ाई कर रही है & प्रेमी से खेल रही है मगर अब उसकी उलझन सुलझती दिख रही थी.उसे समझ आ गया था कि उसका पति ग़लत था & प्रेमी सही.अब उसे किसी बात की परवाह भी नही थी.वो जानती थी कि विजयंत उस से कभी शादी नही करेगा लेकिन अब उसे उसकी रखैल बनके रहना भी मंज़ूर था.
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क्रमशः.......
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