Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:37 PM,
#38
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--37

गतान्क से आगे.

पता नही कितनी देर दोनो वैसे ही खड़े रहे & प्रणव उसके कंधो को सहलाता रहा.अब दोनो दिल ही दिल मे ये समझ गये थे कि दोनो के दिलो मे क्या चल रहा था.रीता ने आँखे खोली & जैसे नींद से जागी.उसने उसका हाथो को हटाया & वाहा से जाने लगी तो प्रणव ने कंधो पे हाथ वापस जमा दिए & उसे अपनी ओर घुमाया.

"प्रणव..",वो आगे झुका & रीता के गुलाबी होंठ चूम लिए.रीता की भी आँखे बंद हो गयी & उसके होंठ अपनेआप प्रणव के लबो को चूमने की इजाज़त देते हुए खुल गये.प्रणव ने उसके होंठो पे ज़ुबान फिराके उसे अंदर घुसाया & जैसे ही रीता क़ी ज़ुबान से सताया उसे जैसे करेंट लगा & आँखे खोल उसे परे धकेला लेकिन प्रणव ने उसे खुद से अलग नही होने दिया.

ये क्या कर रहे हो,प्रणव?..ये ठीक नही..प्लीज़..!",प्रणव उसे बाँहो मे भर पागलो की तरह चूम रहा था,"..नही..प्रणव..!"

"तड़क्ककक..!",कमरे मे चाँते की आवाज़ गूँजी,"निकलो यहा से!",रीता चीखी.

"नही!..नही जाउन्गा..पहले ये कहिए कि आपको मेरा छुना अच्छा नही लगा.आपके लब मेरे लबो को अपनी लज़्ज़त नही चखने देना चाहते थे..आपका जिस्म मेरे जिस्म के साथ मिलना नही चाहता..!"

"हां.नही अच्छा लगा मुझे & मैं नही चाहती ये करना!",रीता अपने सीने पे बाहे बाँध तेज़ी से साँसे लेते हुए घूम गयी & प्रणव की ओर पीठ कर ली.

"यही बातें मेरी आँखो मे आँखे डाल के कहिए.",उसने रीता की बाई बाँह पकड़ उसे घुमाया & बाए हाथ से उसका चेहरा पकड़ उसे अपनी आँखो मे देखने को मजबूर किया.

"प्लीज़..प्रणव..प्लीज़.",रीता की आँखे छल्छला आई.

"क्यू रोक रही हैं खुद को?..",उसने रीता को फिर से बाहो मे भर लिया.रीता की आँखो से आँसू बह रहे थे,"..कबूल कर लीजिए मुझे!"

"मगर ये ठीक नही..शिप्रा..-",प्रणव ने बाए हाथ की 1 उंगली उसके लबो पे रख उसे खामोश कर दिया.उसकी उंगली की च्छुअन ने रीता को मदहोश कर दिया & उसने आँखे बंद कर ली.चेहरे पे आँसुओ की चिलमन के पीछे उलझन के साथ-2 अब मदहोशी भी दिख रही थी.

"आप मुझे चाहती हैं & मैं आपको..बस..शिप्रा को ये राज़ ना जानने की ज़रूरत है ना हमे उसे बताने की.",उंगली हटा के वो झुका & इस बार जब उसने अपनी सास को चूमा तो उसने भी पुरज़ोर तरीके से उसकी किस का जवाब दिया.प्रणव की बाहें रीता की 32 इंच की कमर पे कस गयी & उसने उसके जिस्म को अपनी बाहो मे बिल्कुल भींच लिया.

कहते हैं कि औरत की मस्ती मर्द की मस्ती से कही ज़्यादा होती है & शायदा इसीलिए उपरवाले ने उसे शर्म नाम के गहने से नवाज़ा है ताकि वो अपनी मर्यादा ना भूले & इंसान उलझानो से बचा रहे लेकिन उसी खुदा ने मर्द को इसरार कर अपनी बात मनवाने का हौसला भी दे दिया है.और मर्द भी तब तक दम नही लेता जब तक उसकी चहेती उसकी बाहो मे ना झूल जाए.यहा भी कुच्छ ऐसा ही हुआ लगता था.

रीता को भी दामाद के जिस्म का एहसास बड़ा नशीला लग रहा था.इस उम्र मे भी 1 जवान मर्द उसकी चाहत अपने दिल मे रखता था,इस ख़याल ने ना केवल उसके दिल मे खुशी की लहर दौड़ा दी थी बल्कि उसकी मस्ती की आग को भी भड़का दिया था.

प्रणव उसे बाहो मे कसे हुए बिस्तर तक ले गया & उसे लिटा उसके उपर सवार हो उसे चूमता रहा.कयि पलो बाद दोनो ने सांस लेने के लिए अपने होंठो को जुदा किया तो प्रणव ने रीता के चेहरे से अपने होंठो से आँसुओ के निशान सॉफ कर दिए.रीता ने उसके बाल पकड़ उसके चेहरे पे किस्सस की झड़ी लगा दी.

प्रणव का बया हाथ नीचे आ रीता के दाए घुटने को उठा रहा था.उसका लंड रीता की चूत के उपर दबा हुआ था & अब उसे दामाद के अंग से निकलती गर्मी पागल कर रही थी.प्रणव ने उसकी बाई जाँघ पे से गाउन सरका उसे नंगा किया तो रीता को शर्म आ गयी & उसने हाथ बढ़ा गाउन को नीचे करने की कोशिश की लेकिन प्रणव ने उसके हाथ को पकड़ उसके सर के पीछे बिस्तर पे रख दिया & उसके लब चूमने लगा.

रीता उसकी ज़ुबान से अपनी ज़ुबान लड़ाती मस्ती मे खो रही थी.प्रणव ने उसके दोनो हाथो को अपनी गिरफ़्त मे ले उसके सर के उपर बिस्तर से लगाए पकड़ा हुआ था & उसकी गर्दन चूम रहा था.उसके जिस्म के नीचे दबी रीता को अपनी बेबसी से बहुत मज़ा आ रहा था.

"ऊहह..प्रणव..नही..!",प्रणव उसके क्लीवेज को चूम रहा था & चूचियाँ नंगी होने के ख़याल से रीता शर्मा गयी थी.प्रणव ने अपनी जीभ उसके सीने की 36सी साइज़ की गोलैयो पे फिराई जोकि जोश मे और बड़ी हो गयी दिख रही थी.रीता अब मस्ती मे अपना सर इधर-उधर झटक रही थी.प्रणव अपनी कमर हिला उसकी गाउन से धकि चूत पे अपने लंड के धक्के लगा रहा था.रीता को अंदाज़ा हो अगया था कि उसके दामाद का लंड अच्छे आकर का है & उसकी चूत भी अब पानी छ्चोड़ रही थी.

"आननह..!",प्रणव ने अपनी नाक से उसके गाउन को थोड़ा नीचे कर उसके दाए निपल को नुमाया किया & जैसे ही उसपे अपनी जीभ फिराई,रीता झाड़ गयी & बिस्तर पे उचकने लगी.प्रणव ने उसके हाथ छ्चोड़े & उसकी नंगी छाती को चूसने लगा तो रीता ने उसका सर पकड़ के अपने सीने से उठाया & उसे चूमने लगी.थोड़ी देर बाद प्रणव ने किस तोड़ी & उसके जिस्म से उठ गया & अपनी शर्ट निकाल दी.

दामाद को नंगा होते देख रीता ने शर्म से आँखे बंद कर ली.जब अपनी जाँघो पे उसने प्रणव के हाथ महसूस किए तो उसने आँखे खोली,"..नही परणाव..आन्न्‍नणणनह..!",प्रणव उसके गाउन को कमर तक उठाके उसकी जाँघो पे चूमे चला जा रहा था.उसने उसकी मोटी जाँघ पे हल्के से काटा तो वो उसे मना करना भूल अपने बालो से बेचैनी से खेलने लगी.

उसकी गुलाबी पॅंटी मे छिपि चूत गीली हो रही थी & प्रणव का लंड भी उसकी पॅंट मे प्रेकुं बहा रहा था.उसने घड़ी की ओर देखा,शिप्रा कभी भी आ सकती थी.उसके पहले ही उसे अपनी सास के साथ शुरू किए इस नये रिश्ते की नीव उसकी चुदाई कर पुख़्ता का देनी थी.

"ऊहह..प्रणव..आहह...आनन्नह..उउन्न्नह..!",उसने रीता की चूत पे पॅंटी के उपर से जी अपना मुँह चिपका दिया था & वो बिस्तर से उठाके उक्से सर के बाल खींचती आहें भर रही थी.प्रणव ने उसकी पॅंटी को उतारा नही बस उसे बाए हाथ से 1 तरफ खींच उसकी चिकनी चूत को अपनी निगाहो के सामने किया.इस उम्र मे भी रीता की चूत ढीली नही हुई थी.उसने जल्दी-2 उसकी चूत से बह रहे रस को चाटना शुरू कर दिया.

रीता वापस बिस्तर पे लेट गयी & अपना जिस्म कमान की मोड़ने लगी.उसके जिस्म मे मस्ती बिजली बन के दौड़ रही थी.वक़्त के साथ-2 विजयंत अपने उपर काबू रखना सीख गया था.रीता को चोद्ते हुए वो उसे मस्ती से भर देता था लेकिन खुद जोश की वजह से आपे से बाहर जाता नही दिखता था.मगर प्रणव अभी जवान था & उसकी हर्कतो का बेसबरापन & कुच्छ हद्द तक का जंगली पन रीता को अपनी जवानी की याद दिलाने लगा.

"ऊन्नह..प्रणव....!",रीता कमर उचकाते झड़ी तो प्रणव ने उसकी पॅंटी खींच दी.रीता अधखुली आँखो से अपने दामाद को खुद को नंगा करते देख रही थी.उसके हाथ अभी भी उसे रोकने की कोशिश कर रहे थे मगर ये साफ ज़ाहिर था कि उसके हाथ केवल रोकने की रस्म निभा भर रहे थे.

प्रणव ने अपनी पॅंट उतारी & उसका 8.5 इंच लंबा लंड तना उसकी सास की आँखो के सामने आ आगाया.रीता के दिल मे खुशी की 1 लहर उठी.प्रणव ने उसकी मोटी जाँघो को फैलाया & उसकी चूत के दाने पे अंगूठे से रगड़ते हुए उसके पेट को दबाया & अपना लंड अंदर घुसा दिया.

"उउन्न्ह....!",रीता ने जिस्म मोडते हुए सर पीछे ले जाके दर्द & मज़े से आँखे बंद कर ली.लंड विजयंत के लंड से बड़ा नही था मगर इतना छ्होटा भी नही था कि उसे मज़ा ना आए.प्रणव ने धक्के लगाके सास की चुदाई शुरू कर दी.रीता से दामाद की वासना से भरी निगाहें बर्दाश्त नही हुई & उसने अपनी आँखे बंद कर ली & अपना चेहरा घुमा लिया.

प्रणव ने उसके गाउन को उसके सर से निकाला & अब उसकी सास पूरी नंगी उसके नीचे उस से चुद रही थी.रीता ने आँखे और ज़ोर से मिंच ली.

"मॉम,आप कितनी हसीन हैं..",जवान मर्द के मुँह से तारीफ सुन के रीता का दिल बल्लियो उच्छलने लगा,"..आपकी चूचिया अभी भी कितनी कसी हुई है..किसी जवान लड़की से ज़्यादा खूबसूरत हैं ये गोलाइयाँ..!",उसने दोनो छातियो को आपस मे मिलके दबाते हुए बाए निपल को इतनी ज़ोर से चूसा की आहत हो रीता ने उसके सर को अपने हाथो मे कस लिया,"..आहह..आपकी चूत तो बहुत कसी है,मोम..बहुत मज़ा आ रहा है मुझे!"

प्रणव की गुस्ताख बातों & उस से भी कही ज़्यादा गुस्ताख हरकतो ने रीता को मुस्कुराते हुए आँखे खोलने पे मजबूर कर ही दिया.दामाद का लंड उसे भी जन्नत की सैर करा रहा था.

"शर्म नही आती अपनी सास से ऐसी बातें करते हुए..आननह..!",प्रणव ने 1 ज़ोर का धक्का लगाया & रीता ने दामाद की पीठ मे अपने नाख़ून गढ़ा दिए.उसकी टाँगे खुद बा खुद उसकी कमर पे कस गयी.

"तारीफ करने मे शर्म कैसी,मों!मैं बेवकूफ़ था जो इतने दिनो आपके हुस्न को देखा नही मगर आज से अपनी ग़लती सुधारना शुरू कर दिया है मैने.",उसने अपना मुँह उसकी मोटी चूचियो मे छुपा लिया.सच कहा था उसने.रीता को अपने पाले मे करना बहुत ज़रूरी था & आज के बाद तो वो उसी की तरफ रहने वाली थी.सास की गोरी चूचियो को भींचते हुए प्रणव ने महसूस किया कि ट्रस्ट ग्रूप पे भी उसकी पकड़ मज़बूत हो रही है.

इस ख़याल ने उसके जोश मे इज़ाफ़ा किया & उसके धक्के और तेज़ हो गये.रीता दामाद की ज़ोरदार चुदाई से मस्ती मे पागल हो गयी थी & उसकी गंद दबोच कमर उचका उसके हर धक्के का जवाब दे रही थी....अब जो भी हो,वो अपनी कुर्सी छ्चोड़ेगा नही!

"आन्न्‍नननणणनह..!",रीता ने ज़ोर से आह भारी & प्रणव के सर को अपने सीने पे बिल्कुल भींच दिया & पागलो की तरह कमर उचकाने लगी.वो अपने दामाद के लंड के धक्को से झाड़ गयी थी.उसने चूत मे कुच्छ गर्म & गीला महसूस किया & उसके होंठो पे सुकून भरी मुस्कान फैल गयी.उसकी चूत मे पहली बार उसके प्यारे दामाद मे अपना गाढ़ा वीर्य छ्चोड़ा था.

"हूँ..इस खत के हिसाब से तो आपका कोई दुश्मन मिस्टर.समीर मेहरा की गुमशुदगी का ज़िम्मेदार है,मिस्टर.विजयंत मेहरा?",केस की छान-बीन कर रहे इन्वेस्टिगेटिंग ऑफीसर अकरम रज़ा ने खून के धब्बो वाले खत को बड़ी हिफ़ाज़त से 1 प्लास्टिक बॅग मे डाल अपने साथ आए 1 सब-इनस्पेक्टर को थमाया,"..इसे फोरेन्सिक लॅब भेजो & पक्का करो कि ये समीर के ही खून के निशान हैं."

"तो मिस्टर.मेहरा..",वो वापस विजयंत से मुखातिब हुआ.उसके साथ बैठी रंभा गहरी सोच मे डूबी थी,"..आपको अभी भी किसी पे शक़ नही?"

"नही ऑफीसर,मुझे अभी भी किसी पे शक़ नही है.",विजयंत ने ना जाने क्यू ब्रिज कोठारी के धारदार फॉल्स पे मौजूद होने वाली बात च्छूपा ली थी.

"हूँ.."रज़ा गौर से ससुर & बहू को देख रहा था,"मिस्टर.मेहरा,क्या मैं आप दोनो के यहा आने की वजह जान सकता हू?"

"हम समीर की तलाश करते यहा पहुँचे हैं,ऑफीसर.मैने सोचा कि क्यू ना मैं उसी रास्ते से उन जगहो पे जाके खुद थोड़ी पुच्छ-ताछ करू,जिनपे समीर ने आख़िरी बार सफ़र किया था.आप तो जानते ही हैं कि पिच्छले 1 महीने से समीर हमसे अलग रह रहा था.मैने अपनी बहू को इसलिए साथ रखा ताकि कोई ऐसी बात जोकि इस दौरान हुई हो जिसके बारे मे मुझे जानकारी ना हो & इन्हे पता हो तो ये मुझे बता दें."

"रंभा जी,आपने मुझसे कही कुच्छ च्छुपाया तो नही है?",रज़ा अब रंभा से मुखातिब था.

"जी नही लेकिन इस सवाल की वजह जान सकती हू?"

"देखिए,मिस्टर.मेहरा को 1 फोन आता है & उन्हे 4 बजे धारदार झरने पे बुलाया जाता है.उसी वक़्त घर मे कोई शख्स घुस के बैठा है..क्या है उसकी यहा आने की वजह?..चोरी या कुच्छ और?..मुझे ये लगता है कि किसी का इरादा विजयंत साहब को घर से बाहर कर आपको अकेला करने का था?"

"क्या?!",विजयंत & रंभा 1 साथ चौंके,"..लेकिन किसलिए?.ऐसा क्यू चाहेगा कोई?",रज़ा दोनो को गहरी निगाहो से देख रहा था.दोनो सच मे चौंकते दिख रहे थे मगर उसे पक्का यकीन तो था नही.

"हो सकता है कोई रंभा जी को नुकसान पहुँचना चाहता हो."

"मुझे?..लेकिन क्यू?"

"अब यही तो पता लगाना है,मेडम!या तो मुजरिम हाथ आ जाए या उसका मक़सद पता चल जाए..केस सुलझ जाएगा..वैसे 1 बात और पुच्छनी है मुझे.मिस्टर.मेहरा,आपके कमरे के दरवाज़े का काँच तोड़ वो शख्स अंदर घुसा था लेकिन आपको काँच टूटने की आवाज़ नही सुनाई दी?"

"नही."

"हूँ..ऐसा कैसे हो सकता है?"

"देखिए.मुझे फोन आया तो मैने फ़ौरन रंभा के कमरे मे जाके उसे जगाया & सारी बात बताई जिसे सुन ये घबरा गयी.धारदार जाने मे काफ़ी वक़्त था & मैने इसे सोने को कहा लेकिन ये अकेली डर रही थी तो मैने इसे सोने को कहा & खुद इसके कमरे की आराम कुर्सी पे बैठ गया & ना जाने कब मेरी आँख लग गयी.ख़ैरियत थी कि मैने अपने मोबाइल पे 2.30 बजे का अलार्म लगा रखा था & उसके बजने से ही मेरी नींद टूटी जिसके बाद मैने कपड़े बदले & यहा से जाने लगा & फिर सारी घटना घटी."

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क्रमशः.......
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