RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--35
गतान्क से आगे.
रंभा की गंद बिस्तर से उठ गयी & विजयंत का लंड उसकी चूत को पार कर उसकी कोख को चूमने लगा.कमरा रंभा की मस्त चीखो से गुलज़ार हो गया.विजयंत उसकी उठी जाँघ को सहलाते हुए तंग चूमते धक्के लगाए जा रहा था & उसे खबर नही थी कि कमरे के दरवाज़े के बाहर पर्दे की ओट से देखता वो शख्स हक्का-बक्का खड़ा था.
विजयंत के कमरे की बाल्कनी के बंद दरवाज़े के उपरी फ्रेम मे शीशे लगे थे.उस शख्स ने रुमाल को अपने हाथ पे बाँधा & फिर कोट उतार उसकी बाँह को अपनी दाई बाँह पे इस तरह चढ़ाया कि उसकी मुट्ठी उस से ढँकी रहे & फिर 1 शीशे पे मुक्का मारा.2-3 मुक्को मे शीशा टूट गया.वो कुछ देर सांस रोके खड़ा रहा मगर शायद काँच टूटने की आवाज़ किसी ने सुनी नही थी.उसने उस सुराख से हाथ अंदर डाल के कुण्डी खोली & कमरे मे दाखिल हुआ.
दबे पाँव वो उस कमरे से बाहर निकल बुंगले का मुआयना करने लगा & रंभा की आहो को सुन उस केमर की ओर आ गया.....ये तो ससुर है उसका & उसी से चुद रही है ये!..उसने अपनी आँखे मल दोबारा देखा..कैसी लड़की है ये?..पति गायब है & ये ससुर के साथ मज़े ले-2 के चुदाई कर रही है!..& वो कैसा बाप है जो अपने बेटे की बीवी की चूत मे लंड घुसाए जम के धक्के लगा रहा है..!
उसका दिमाग़ घूम गया था..साली!..जैसी माँ वैसी बेटी!..अब उसे कुच्छ बुरा नही लग रहा था..औलाद को मा-बाप का क़र्ज़ उतारना ही पड़ता है,आज ये भी अपनी माँ का क़र्ज़ उतारेगी..वो दरवाज़े से हट दूसरी तरफ के कमरे मे चला गया.अब उसे इंतेज़ार करना था कि कब वो अकेली मिलती है & उसका इंटेक़ाम पूरा होता है.
"ओईईईईईई.....हाईईईईईईईईईईईईईईईई......उउन्न्ञनह......हाआआआआअन्न्नननणणन्..!",विजयंत के गहर्रे धक्को के कमाल से कमर उचकती अपने सर के नीचे के बिस्तर की चादर को बेचैनी से नोचती रंभा झाड़ रही थी & उसकी दाई टांग को उठाए उस से होंठ चिपकाए विजयंत भी झाडे जा रहा था.लंड थोड़ा सिकुदा तो विजयंत ने उसे बाहर खींचा.लंड खींचते ही उसका गाढ़ा वीर्य रंभा की चूत से टपक उसकी गंद के छेद तक गिरने लगा.
विजयंत ने फ़ौरन अपने साथ लाई 1 डिबिया को खोला & उसमे से 1 क्रीम अपनी उंगली पे लगाई & फिर अपने वीर्य & उस क्रीम को रंभा की गंद के छेद मे भरने लगा.झड़ने से मदहोश रंभा कमर उचकते हुए फिर से बेचैन होने लगी.उसका ससुर उसकी गंद मे उंगली कर रहा था & उसे अजीब सा मज़ा आ रहा था.
"ना...मत करिए,डॅड..आननह..!",रंभा ने बाए हाथ से उसकी कलाई थाम उसे रोकने की नाकाम कोशिश की.विजयंत उसके दाई तरफ हो गया & उसके तरफ अपनी गंद कर उसकी जाँघो को फैला उपर से उसकी चूत चाटता उसकी गंद मे उंगली करने लगा.रंभा ने मदहोशी मे सर इधर-उधर घुमाया & पूरा जिस्म घुमा पेट के बल हो गयी.उसने बाई तरफ सर घुमाया तो उसे विजयंत का सिकुदा लंड लटका दिखा जिस से अभी भी वीर्य की कुच्छ बूंदे टपक रही थी.
रंभा ने हाथ बढ़ा के लंड को पकड़ा & थोड़ा उचक के सिकुदे लंड को चूसने लगी.विजयंत अब उसकी गंद की दरार मे जीभ फिराता उसकी गंद की छेद मे क्रीम भरते हुए उंगली किए जा रहा था.वो रंभा की गंद के कसे छेद को थोडा ढीला कर देना चाहता था ताकि उसके मोटे लंड को घुसने मे आसानी हो.जब रंभा बेचैन हो कमर हिलाने लगी & उसकी ज़ुबान ने उसके सिकुदे लंड को फिर से खड़ा कर दिया तो उसने रंभा की गंद से उंगली निकाली & उसकी कमर थाम गंद को हवा मे उठा उसके पीछे आ गया.
-------------------------------------------------------------------------------
"हेलो.",बलबीर ने देखा कि बॅंकर से बातचीत के बीच ब्रिज कोठारी ने अपने मोबाइल पे 1 कॉल ली & उसके चेहरे का रंग थोड़ा बदल गया.
"एक्सक्यूस मी.",वो अपनी मेज़ से उठा & अंदर बाथरूम की ओर जाने लगा.बलबीर भी उसके पीछे हो लिया.ब्रिज टाय्लेट मे घुसा & 1 क्यूबिकल मे घुसा दरवाज़ा बंद किया.बलबीर उसके साथ वाले क्यूबिकल मे दबे पाँव घुसा.
"तुम पिच्छले 6-7 दिनो से मुझे फोन कर के परेशान रहे हो.आख़िर चाहते क्या हो तुम?",ये शख्स रोज़ ब्रिज को फोन करता था हर बार नंबर बदल के & हर बार 1 ही बात कि क्या उसे अपने दुश्मन को मज़ा चखाना है.
"ब्रिज बाबू,आप क्लेवर्त के पास जो धारदार झरने हैं वाहा पहुँचो & मेरा यकीन मानो की आपको आपकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा तोहफा मिलेगा वाहा.कल सवेरे 4 बजे तक किसी भी हालत मे वाहा पहुँच जाओ मगर बिल्कुल अकेले अगर कोई भी साथ आया तो मुझे पता चल जाएगा & तुम्हारा तोहफा तुम्हे नही मिलेगा."
"मगर..",फोन काट गया था.
बलबीर ने उधर वाले अंजान शख्स की बात तो नही सुनी मगर ये समझ गया कि ब्रिज परेशान है.ब्रिज का दिमाग़ बड़ी तेज़ी से चल रहा था & अपना खाना ख़त्म होने तक उसने फ़ैसला कर लिया था कि वो धारदार फॉल्स ज़रूर जाएगा.खाना ख़त्म होते ही वो अपने दफ़्तर गया & वही से अपनी कार मे अकेला क्लेवर्त के लिए निकल पड़ा.बलबीर उसके पीछे ही था.
"हेलो,सोनिया.मैं क्लेवर्त जा रहा हू किसी काम से लेकिन तुम किसी को ये बात मत बताना मेरे ऑफीस वालो को भी नही.सब ठीक रहा तो कल लौट आऊंगा."
"लेकिन डार्लिंग..-"
"आज कुच्छ मत पुछो जान.कल सब बताउन्गा.बाइ!",ब्रिज ने फोन रखा & कार ड्राइव करने लगा.उधर घर मे अकेली बैठी सोनिया का दिल ना जाने क्यू बहुत ज़ोर से धड़कने लगा,उसे लगा की कुच्छ बुरा होने वाला है.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
"आईईईईईईईययययययययययईईईई...प्लीज़ मत डालिए..बहुत बड़ा है आपका लंड....हाआआआआईयईईईईईईईईईईईई..!",विजयंत के मोटे सूपदे ने रंभा की गंद के छ्होटे से सुराख को बहुत बुरी तरह फैला दिया था & वो चीख रही थी.
"बस हो गया मेरी रानी!....ये लो...चला गया......आहह..!",विजयंत ने सूपदे के पीछे क्रीम & वीर्य से चिकनी गंद मे आधा लंड घुसा दिया.वो जानता था की इसके आगे घुसाना उसकी प्यारी बहू के लिए बहुत तकलीफ़देह हो सकता है.रंभा की गंद ने तो उसके लंड को बिल्कुल जाकड़ लिया था & हर धक्के पे मज़े की वजह से उसकी आह निकल जाती थी.वो उसकी फांको को मसल्ते हुए उसकी गंद मार रहा था & रंभा अब दर्द से कम & जोश से ज़्यादा चीख रही थी.
"उउम्म्म्मममम.....!",वो अपने हाथ को अपने मुँह मे घुसा अपनी ही उंगलिया मस्ती मे चूसे जा रही थी.विजयंत ने दाया हाथ उसकी कमर से आगे उसकी चूत पे सरकया & उसके दाने को छेड़ने लगा & बाए को आगे बढ़ा उसकी भारी-भरकम लेकिन कसी चूचियो को मसल दिया.
"आन्न्न्णनह..बहुत ज़ालिम हैं आप डॅड!..ऊऊव्ववववववव..!",विजयंत ने उसके निपल पे चिकोटी काट ली,"..अपनी बहू को कितना दर्द पहुँचा रहे हैं.....आन्न्न्नह......हाआंन्नणणनह..!",विजयंत आगे झुका & उसकी पीठ से अपनी छाती सताते हुए उसके बाए कान को काट लिया.
"कहो तो निकाल लू लंड बाहर.",उसकी उंगली दाने पे तेज़ी से गोल-2 घूम रही थी.
"उउन्न्ञन्..नही.....उसने बाई तफा मुँह घुमा के बाए हाथ से उनके बाल पकड़ के खींच के उन्हे बड़ी शिद्दत से चूमा,"..बस तड़पाना है मुझे..है ना?....हाईईईईईईई..!",विजयंत ने धक्के लगते हुए उसे पूरी तरह से बिस्तर पे लिटा दिया था & अब उसके ुआप्र लेट के हल्के-2 आधे लंड के धक्के लगा रहा था.
"हााआअन्न्नननणणन्..मारिए......& मारिए अपनी बहू की गंद..आप ही की है ये डॅड......हाआअन्न्नननननणणन्......!",रंभा उसके नीचे दबी च्चटपटाने लगी थी & उसकी गंद ने विजयंत के लंड को और कस लिया था.
"आहह.......रंभा..!",विजयंत ने चीख मारी & बहू के झाड़ते ही उसकी गंद मे अपना गाढ़ा वीर्य छ्चोड़ दिया.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
"विजयंत डार्लिंग?"
"सोनिया?",विजयंत अभी भी रंभा के उपर लेटा था & उसका लंड उसकी गंद मे सिकुड रहा था.
"विजयंत,कुछ बताना है तुम्हे."
"हां-2.बोलो."
"अभी-2 ब्रिज क्लेवर्त गया है अकेला."
"तो?"
"विजयंत..",सोनिया रो रही थी.
"रो मत सोनिया..घबराओ मत..मैं तुम्हे कुच्छ नही होने दूँगा.",रंभा गौर से ससुर की बात सुन रही थी,"..ब्रिज क्लेवर्त गया है..किसलिए गया है?",..उसका ससुर ब्रिज कोठारी की बीवी को जानता था..रंभा हैरान हो गयी..,"..सोनिया..जान..प्लीज़ चुप हो जाओ..& सारी बात बताओ."..हैं!..जान..बाप रे!..ये तो बड़ा पहुँचा खिलाड़ी है..दुश्मन की बीवी को फँसा रखा हैयस इसने!
"विजयंत..विजयंत..मुझे लगता है कि..",सोनिया रोने लगी,"..मुझे लगता है की समीर की गुमशुदगी मे ब्रिज का हाथ है.",उसकी रुलाई & तेज़ हो गयी.
"क्या?!"
"हां..बस यही बताना था.बाइ!",उसने फोन काट दिया,"..आइ'म सॉरी,ब्रिज!",साइड-टेबल पे रखी पति की तस्वीर को देख उसकी रुलाई & तेज़ हो गयी.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
विजयंत उसकी गंद से लंड खींच अब हेअडबोर्ड से टेक लगाके पैरा फैलाक़े बैठा हुआ कुच्छ सोच रहा था.रंभा ने अभी उस से कुच्छ पुच्छना ठीक नही समझा.वो उसके दाई तरफ लेट गयी & दाई बाँह उसके जिस्म पे डाल दी & आज दिन के बारे मे सोचने लगी.ससुर के साथ इस मस्ताने रिश्ते की शुरुआत के बाद आज पहली बार दोनो मे थोड़ी कहा-सुनी हुई थी & विजयंत ने उसे डाँट दिया था.
रंभा का मानना था कि हरपाल की बेहन हिना से मिल के कुच्छ हासिल नही होना था उल्टे वो सावधान हो जाता & शायद समीर को कुच्छ नुकसान पहुँचा देता.इसी बात पे बहस हुई & विजयंत ने उसे डाँट दिया.उसका मानना था कि हरपाल जैसे लोग चूहे होते हैं & उन्हे पता चलने मे कोई हर्ज़ नही कि अब उन्हे मारने के लिए लोग मुस्तैद हो चुके हैं & जहा तक समीर का सवाल हो,अगर उसकी किस्मत खराब हुई तो हो सकता है अभी उन्हे उसकी लाश भी ना मिले.
रंभा को समीर से कोई गहरी मोहब्बत नही थी लेकिन समीर तो उस से मोहब्बत करता था.उसके लिए उसने अपनी दौलत,अपना खानदान ठुकरा दिया था & उसके इस जज़्बे की वो कद्र करती थी.उसे अपने ससुर की बात बहुत बुरी लगी थी.वो उसके कहने पे आवंतिपुर मे हिना से मिल आई.हिना ने भी पिच्छले & दिनो से भाई से बात नही की थी & उसने रंभा के सामने उसे फोन लगाया लेकिन फोन नही मिला.हिना उसे निर्दोष लगी थी & उसने उसे भाई की कोई भी खबर मिलने पे उसे बताने को कहा था.
क्लेवर्त तक के सारे रास्ते उसने विजयंत से कोई बात नही की थी & अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर दी थी लेकिन उसका ससुर भी कमाल का मर्द था!रूठी महबूबा को बिना 1 भी लफ्ज़ बोले ना केवल उसने मना लिया था बल्कि उसकी गंद भी मार ली थी!इतना वो समझ रही थी कि समीर के बारे मे कोई सुराग मिला है & शायद सारे मामले के तार ब्रिज से जुड़े हैं.
तभी विजयंत का मोबाइल दोबारा बजा.उसने नंबर देखा & चौंक गया,"समीर!",उसने रंभा की ओर देख के कहा तो वो भी उठ बैठी,"हेलो,समीर?"
"मेहरा,तुम्हारे लिए 1 तोहफा है.बस अभी 4 बजे तक धारदार फॉल्स पे पहुँचो.बिल्कुल अकेले आना वरना तोहफा नुकसान मे पड़ सकता है."
"हेलो..!..हेलो..!",फोन कट गया था.
"क्या हुआ?",रंभा ने ससुर के चेहरे पे हाथ फिराया.
"कोई समीर के मोबाइल से फोन करके मुझे धारदार फॉल्स बुला रहा है सवेरे 4 बजे."
"तो चलिए & पोलीस को भी खबर कर देते हैं."
"नही.मुझे अकेले बुलाया है नही तो समीर को नुकसान पहुँचा सकते हैं वो."
"मगर आप अकेले भी तो ख़तरे मे पड़ सकते हैं,डॅड..प्लीज़ मुझे ले चलिए."
"नही,तुम्हे ख़तरे मे नही डाल सकता & ना ही समीर को.",विजयंत बिस्तर से उठ गया,"..मैं अकेला जाउन्गा & उसे ले आऊंगा.",ससुर की भारी आवाज़ के वजन के आगे रंभा को कुच्छ और बोलने की हिम्मत नही हुई.
विजयंत मेहरा अपने कमरे मे जाके धारदार फॉल्स जाने की तैय्यारि करने लगा.रंभा अपने कमरे मे ही थी & वो शख्स तीसरे कमरे मे छिपा विजयंत के जाने का इंतेज़ार कर रहा था.वो शख्स जिस कमरे मे था उसमे घुप अंधेरा था & इतनी देर हो जाने के बाद भी उसकी आँखे अंधेरे की आदि नही हो पाई थी.
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
क्रमशः.......
|