Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:36 PM,
#34
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--34

गतान्क से आगे.

"सर,आपने प्रॉजेक्ट 23 मे 2 फ्लोर्स & बढ़ने के ऑर्डर्स दिए हैं.."

"हां.",प्रणव ने अपने लॅपटॉप को बंद किया & सामने खड़े शख्स को देखा.

"लेकिन सर,उस से तो प्रॉजेक्ट की कीमत बढ़ जाएगी & हमने तो पर्मिशन भी नही ली थी उन मंज़िलो की."

"मिस्टर.शर्मा,आप अपना काम मुस्तैदी से करते हैं,इस बात की कद्र करता हू लेकिन प्लीज़ मेरे फ़ैसलो को लेके ज़्यादा चिंतित ना हों.अर्ज़ी डाल दी गयी है & मैं कल खुद ही कन्सर्न्ड अफ़सर से मिलके उसे अप्रूव करवा दूँगा.वाहा काम रुकना नही चाहिए.प्रॉजेक्ट अपनी पुरानी डेडलाइन से पहले पूरा होना चाहिए."

"वो ठीक है सर,लेकिन ऐसे फ़ैसले तो केवल विजयंत सर ले सकते हैं."

"मिस्टर.शर्मा,अभी बॉस मैं हू & सारे फ़ैसले मैं ही लूँगा एम आइ क्लियर?",उसकी आवज़ तेज़ हो गयी थी.

"यस,सर."

"तो आप जा सकते हैं.",शर्मा गया तो प्रणव मुस्कुराया.ट्रस्ट ग्रूप उसके इशारो पे चल रहा था..कितनी ताक़त थी उसके पास..इस सब का मालिक वो था फिलहाल..फिलहाल..ससुर के आने पे उसे ये कुर्सी छ्चोड़नी पड़ेगी & उसका दिल अब ऐसा करने को तैय्यार नही था.वो कुर्सी से उठा & कुच्छ सोचने लगा.उसका दिमाग़ अब इस कुर्सी पे बरकरार रहने की तरकीब सोच रहा था.

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"तुमलोग कोई काम ढंग से नही कर सकते?..ये फ्लवर आरंगेमेंट कहा था मैने..!..वो पीले फूलो का क्या हुआ..",सोनिया अपने स्टाफ को डाँट रही थी,"..चलो जाओ,सब ठीक करो.",वो 1 कुर्सी पे बैठ गयी.उसे पता था कि उसने अभी कुच्छ ज़्यादा ही डांटा था सबको मगर वो क्या करती वो बहुत चिड़चिड़ी हो गयी थी इधर.कारण वही था,विजयंत से दूरी.

हर रोज़ ब्रिज उसके लिए वक़्त ज़रूर निकालता & हर रात की चुदाई तो पक्की थी ही,उपर से दौलत की कोई कमी थी नही,अपना बिज़्नेस भी उसके मन बहलाने के लिए काफ़ी था लेकिन विजयंत के साथ से मिलने वाला सुख नदारद था अभी.उसने अपना चेहरा हाथो मे च्छूपा लिया..ओह विजयंत कब आओगे वापस तुम!

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सोनम ने महसूस किया था कि प्रणव जैसा दिखता था वैसा सीधा या भला था नही.वो ये सोच रही थी कि कही समीर को गायब करवाने मे उसी का हाथ तो नही था.समीर के गायब होने से हर चीज़ की वारिस अकेली शिप्रा ही बचती थी & उसका पति होने के नाते ये सब प्रणव का ही हो जाता.उसने सोचा कि 1 बार विजयंत को बस इस बात का आभास करा दे लेकिन बात विजयंत के दामाद की थी जिसपे वो इतना भरोसा करता था.बिना सबूत के उंगली उठाने पे उसका निकाला जाना तय था & फिर ब्रिज भी उसे नही पुछ्ता.

नही..वो प्रणव पे निगाह रखेगी & जैसे ही काम की बात पता चली उस से अपना फ़ायदा ज़रूर निकालेगी.

क्लेवर्त के बुंगले के अपने कमरे मे रंभा ने बिस्तर से उतर के खड़ी होके अंगड़ाई ली.उसने 1 पूरे बाजुओ की सफेद टी-शर्ट & कसे,गुलाबी शॉर्ट्स पहने थे जो की बस उसकी गंद को ढके हुए थे.हाथ हवा मे उठे होने की वजह से उसकी शर्ट उपर उठ गयी & उसकी कमर का कुच्छ हिस्सा नुमाया हो गया.

"हुन्न..!",वो चौंक पड़ी.किसी ने उसकी नुमाया कमर को थम उसे पीछे से गर्दन पे चूम लिया.उसने गर्दन घुमाई तो देखा विजयंत मेहरा उस से चिपका खड़ा था.उसने उसे बड़ी ठंडी निगाहो से देखा & उस से अलग हो वापस बिस्तर पे चली गयी.वो उसकी ओर पीठ किए बाई करवट पे लेटी हुई थी.सॉफ ज़ाहिर था की वो अपने ससुर से खफा थी.

विजयंत मुस्कुराया & अपने साथ लाई शिशियो को वही बिस्तर पे रखा & उसके पीछे बैठ उसकी दाई टांग पे हाथ फिराने लगा.रंभा ने टांग खींच उसे ऐसा करने से रोक दिया.विजयंत ने मुस्कुराते हुए 1 शीशी खोली & उसमे से थोड़ा खुश्बुदार तेल हाथ मे धार उसे अपनी बहू की टांग पे मल दिया.रंभा खामोश रही & बस मुँह बिस्तर मे च्छूपाते हुए पेट के बल लेट गयी.

विजयंत सख़्त हाथो से उसकी टाँगो के पिच्छले हिस्से पे तेल की मालिश करने लगा.पिच्छले 2 दिनो से वो दिन भर कार मे बैठी रहती थी & रातें फार्म्स के कॉटेजस पे गुज़री थी.अभी जब विजयंत ने मालिश शुरू की तो उसे एहसास हुआ की उसकी टाँगे कितनी थॅकी हुई थी.विजयंत के मज़बूत हाथ उसके पाँवो से लेके घुटनो के पिच्छले हिस्से तक चल रहे थे.उसे बहुत अच्छा लग रहा था मगर वो वैसे ही चुप मुँह च्छुपाए पड़ी थी.

विजयंत ने उसकी बाई टांग को पकड़ उसे हवा मे उठाया & फिर उसके पाँव को दबाते हुए उसकी उंगलियो के बीच अपने हाथ की उंगलिया घुसा तेल मलने लगा.

"आहह..!",जब उसने उसके पंजो की उंगलियो को 1-1 कर खींचा तो रंभा के मुँह से सुकून भरी आह निकल ही गयी.विजयंत ने उसकी घुटने से उठी टांग को वैसे ही थामे हुए मालिश की & फिर दाई टांग को उठा लिया.वाहा भी उसने वही हरकत दोहराई.रंभा ने महसूस किया कि ना केवल उसकी थकान मिट रही थी बल्कि उसकी मस्ती भी धीमे-2 बढ़ रही थी.

विजयंत ने उसकी टाँगे वापस बिस्तर पे रखी & अब घुटनो से उपर उसकी शॉर्ट्स तक उसकी मांसल जाँघो के पिच्छले हिस्सो पे अपने हाथ चलाने लगा.रंभा की चूत मे कसक उठी.उसके ससुर के हाथ उसके जिस्म को मदहोश कर रहे थे.उसने अपने हाथ अपने सीने के नीचे दबाए हुए थे.उसकी मस्ती की गवाही देते हाथो ने बिस्तर की चादर को भींच लिया था.विजयंत कुच्छ देर तक उसकी कोमल जाँघो पे हाथ फिराता रहा.

"उउन्न्ह..!",रंभा ने बिस्तर से सर उठा के आँखे बंद किए 1 मस्त आ भारी.उसके ससुर के हाथ उसकी शर्ट मे घुस उसकी कमर की मांसल बगलो को मसल रहे थे.विजयंत हाथ ऐसे दबाते हुए उपर से नीचे ला रहा था मानो उसकी मांसपेशियो की थकान को उसके जिस्म से निचोड़ देना चाहता हो.रंभा की चूत गीली होने लगी थी.

विजयंत के हाथ उसकी बगलो पे फिरते हुए सीधे उसके जिस्म के नीचे उसके पेट पे पहुँच गये.रंभा चिहुनकि & उसने महसूस किया की उसका ससुर उसकी शॉर्ट्स के बटन को खोल रहा है.शॉर्ट्स ढीली करने के बाद विजयंत के मज़बूत हाथ वापस पीछे आए & वेयैस्टबंड मे फँस उसकी शॉर्ट्स को नीचे सरकाने लगे.

अगले पल रंभा अपने ससुर के सामने अपनी नंगी गंद किए लेटी थी.विजयंत की आँखे बहू की कसी गंद देख चमक उठी.उसने फिर से उसके घुटनो के उपर से जाँघो के पिच्छले हिस्सो पे हाथ चलाना शुरू किया & इस बार हाथो को गंद की फांको से होता हुआ सीधा उसकी कमर तक ले आया.रंभा अब बहुत हल्की-2 आहें भर रही थी.विजयंत ने 4-5 बार हाथ वैसे ही चलाए & उसके बाद उन्हे रंभा की मोटी गंद से चिपका दिया.हाथ दोनो फांको पे गोलाई मे घूमते हुए वाहा के माँस को गूँध रहा थे.पहले हाथो का बनाया दायरा बड़ा था लेकिन पल-2 वो दायरा छ्होटा होता जो रहा था.जब दायरा बिल्कुल छ्होटा हो गया तो विजयंत ने दोनो फांको के माँस को दोनो हाथ मे भींच के उपर खींचा.

"ऊव्ववव..!",रंभा के चेहरे पे मस्ती भरी शिकन आई & वो सर उठा के चिहुनकि.ससुर की इस हरकत ने चूत की कसक को कुच्छ ज़्यादा बढ़ा दिया था.उसने सर वापस बिस्तर मे धँसाया & विजयंत के हाथो का लुत्फ़ उठाने लगी.विजयंत ने देखा की बहू अब गर्दन को बहुत धीरे-2 उपर उठाके वापस बिस्तर पे दबा रही है.उसकी बेचैनी देख वो मुस्कराया & इस बार हाथो को गंद से फिसलते हुए उसकी कमर से पीठ तक ऐसे ले गया की रंभा की शर्ट उसकी गर्दन तक उठ गयी.

अब उसकी पीठ के पार सफेद ब्रा दिख रहा था जिसके उपर से ही हाथ चलाते हुए वो रंभा की मालिश कर रहा था.उसने अपने दोनो घुटने रंभा की कमर की दोनो ओर जमाए & उसकी गंद पे बैठ गया.

"उउन्न्ह....!",उसका दिल अज़ीज़ विजयंत का तगड़ा लंड जैसे ही उसकी गंद पे दबा रंभा ने फिर से सर उठाके अपनी खुशी & बेचैनी का इज़हार किया.विजयंत उसकी गंद पे लंड दबाए बैठा उसकी पीठ पे बहुत सख़्त हाथो से मालिश कर रहा था.उसके हाथ पहले रंभा के जिस्म की बगलो पे नीचे से उपर जाते & फिर उपर आके वो उसकी रीढ़ के दोनो तरफ हाथ उपर से चलते हुए नीचे उसकी गंद तक लाता.हाथ वापस उपर जाते & फिर उसकी बगलो पे फिसलते हुए वापस नीचे आते.

ससुर के हाथो की मस्ताना हरकते & उसके लंड का नशीला एहसास रंभा को झाड़वाने के लिए काफ़ी था.वो अपनी गंद पे बैठे ससुर को उसकी हर्कतो से झूलते हुए,बिस्तर मे मुँह च्छुपाए सुबक्ते हुए झाड़ गयी.विजयंत मुस्कुराते हुए उसकी गंद से उठा & बिस्तर के 1 किनारे आ गया & फिर रंभा के उपरी बाज़ू पकड़ उसका मुँह अपनी ओर कर लिया.अब रंभा पेट के बल बिस्तर के किनारे पे मुँह टिकाए लेटी हुई थी.

विजयंत वही अपने पंजो पे बैठ गया & रंभा की बाई बाँह को अपने दाए कंधे पे रखा & फिर हाथो मे तेल लेके उस बाँह की मालिश करने लगा.रंभा अधखुली आँखो से उसे देख रही थी.उसकी निगाहो मे विजयंत को अब नाराज़गी की जगह केवल मस्ती दिखाई दे रही थी.वो अपने हाथो मे उसकी कलाई जाकड़ गोल-2 घूमाते हुए उसकी कोहनी तक जाता & वाहा से फिर उसके कंधे था.जब बाई बाँह की मालिश हो गयी तो उसने यही हरकत दाई बाँह के साथ दोहराई.अपने दोनो कंधो पे टिकी रंभा की बाँहो से उसने उसके ब्रा स्ट्रॅप्स को सरकाया & फिर खड़ा होने लगा तो रंभा ने उसका कुर्ता पकड़ उसे रोक लिया.

विजयंत फिर बैठ गया तो रंभा ने उसके कुर्ते को पकड़ उसे उपर खींचा & उसका इशारा समझ विजयंत ने कुर्ता निकाल दिया.रंभा ने वैसे ही लेटे हुए ससुर के सीने के बालो मे अपने हाथ फिराए & फिर उसकी गर्दन मे बाँहे डाल उसकी दाढ़ी पे अपने मुलायम गाल रगडे.विजयंत के होंठो को अपने लबो की गिरफ़्त मे ले उसके मुँह मे अपनी जीभ चलाके उसने अपनी नाराज़गी ख़त्म होने का एलान कर दिया.कुच्छ देर तक दोनो प्रेमी वैसे ही 1 दूसरे को चूमते रहे & फिर विजयंत खड़ा हो गया.

विजयंत ने खड़े होके हाथो मे थोडा सा तेल लिया & आगे झुक के रंभा की नंगी पीठ से लेके कमर तक अपने हाथ फिराने लगा.रंभा के चेहरे के सामने ही उसके ससुर के पाजामे मे क़ैद तना लंड पाजामे पे प्रेकुं का धब्बा छ्चोड़ता दिख रहा था.उसने फ़ौरन पाजामा ढीला किया & ससुर की बालो भरी जाँघो पे नीचे से उपर तक हाथ फिराने लगी & अपना मुँह आगे कर उसके लंड से उपर के बालो मे घुसा दिया.

विजयंत ने मज़े मे आँखे बंद की लेकिन बहू की मालिश वैसे ही जारी रखी.रंभा ने ससुर की मज़बूत,पुष्ट गंद को उंगलियो के नखुनो से खरोंचते हुए मसला & लंड के सूपदे को मुँह मे भर लिया.

"आहह..!",आह भर विजयंत आगे झुका & इस बार उसके हाथ रंभा की गंद तक पहुँच गये & उसकी फांको को फैलाने लगे.रंभा ने ससुर की गंद थाम लंड चूसना शुरू किया तो विजयंत ने बहू की गंद फैला पीछे से उसकी चूत मे उंगली कर दी.रंभा कमर उचकाते हुए ससुर का लंड चूस रही थी.विजयंत उसकी ज़ुबान की हर्कतो का लुत्फ़ उठाता हुआ उसकी चूत मे उंगली तेज़ी से अंदर-बाहर कर रहा था.

रंभा ने लंड मुँह से निकाला & उसपे अपनी नाक & गालो से रगड़ने लगी.वो अब पूरी तरह से मदहोश थी.विजयंत की उंगली उसे मस्ती की कगार पे ले गयी थी & अब वो अपनी ही दुनिया मे खो गयी थी.उसने अभी भी विजयंत की गंद थामी हुई थी लेकिन अब लंड चूस नही रही थी बल्कि अपना मुँह विजयंत की गोद मे धंसाए बस झाडे जा रही थी.विजयंत की उंगली उसकी चूत रगडे जा रही थी & वो उस कगार से गिर मस्ती के सागर मे गोते लगा रही थी.

वो शख्स अपने गाल के निशान को सहलाता बंगल के अहाते मे दाखिल हो गया था.ये बुंगला विजयंत का नही था बल्कि उसके किसी दोस्त का था.गेट के बाहर बैठा दरबान पास के बुंगले के चौकीदार के साथ बीड़ी पीता गप्पे हांक रहा था & उसकी नज़र बचा के वो पिच्छली दीवार के साथ कार लगाके उसपे चढ़ अंदर कूद गया था.फार्म्स विजयंत का इलाक़ा था & वाहा उसके मुसीबत मे फँसने के आसार बहुत थे लेकिन यहा ऐसी कोई बात नही थी बस रंभा उसे अकेली मिल जाए & उसका काम हो गया समझो.

बुंगले के बाहर भी 1 सीढ़ी थी जो उपरी मंज़िल को जा रही थी लेकिन सीढ़ी के अंत मे बना दरवाज़ा बंद था.वो सीढ़ी के उपर पहुँचा & देखा बाई तरफ बनी बाल्कनी तक वो पहुँच सकता था.सीधी के बगल की रैलिंग & उस बाल्कनी के बीच बस 4 फ्ट का फासला था,बस उसे सावधानी से कूदना था.उसने थोड़ी देर पहले इसी बाल्कनी पे विजयंत को खड़े देखा था.बाल्कनी का दरवाज़ा बंद था & कमरे मे अंधेरा था.उसने दरवाज़े को खिचा मगर वो मज़बूती से बंद था.वो अपने निशान को खुजाते आगे जाने का रास्ता सोचने लगा.

विजयंत ने रंभा को पलटा & उसकी छातियो को मसलने लगा.तेल लगी हथेलियो को वो उसकी छातियो पे जमा के उन्हे गोल-2 घुमा रहा था & रंभा मस्ती मे कराहे जा रही थी.उसने अपने हाथ पीच्चे ले जाके ससुर की गंद को फिर से थाम लिया था & नीचे से जीभ निकाल उसके आंडो को छेड़ रही थी.विजयंत थोडा झुका & रंभा ने उसके बाए अंडे को मुँह मे भर लिया.

विजयंत उसके निपल्स को उंगलियो मे पकड़ उपर खींचता & रंभा दर्द & मस्ती के अनूठे मिले-जुले भाव से आहत हो कराह उठती.विजयंत ने उसकी दोनो चूचियो को बाहर से पकड़ आपस मे दबा रहा था.रंभा भी आहे भरती हुई सर बिस्तर के किनारे से नीचे लटका उसके आंडो को चूस रही थी.विजयंत उसकी ज़ुबान से काफ़ी जोश मे आ चुका था.वो आगे झुका & बहू की जंघे फैला उसकी रस बहाती चूत से मुँह चिपका दिया.

रंभा मस्ती मे जंघे आपस मे भींचने-खोलने लगी & कमर उचकाने ल्गी.उसने विजयंत की कमर को जाकड़ लिया & आंडो को पागलो की तरह चूसने लगी.विजयंत ने उसकी नाज़ुक चूत पे बहुत जल्द दोबारा हमला कर दिया था & इस बार उसे झड़ने मे कोई वक़्त नही लगा.उसके झाड़ते ही विजयंत बिस्तर पे उसके पीछे आ गया & उसे बाई करवट पे कर उसकी दाई जाँघ को हवा मे उठा दिया.अपनी बाई कोहनी पे उचकी रंभा दाए हाथ से अपनी चूचिया मसला रही थी.

"ऊव्ववव....हाईईईईई..!",उसने बाया हाथ सीने से हटा पीछे ले जा ससुर के सर को थाम लिया जिसका लंड उसकी चूत मे उतर चुका था.विजयंत अपनी बाई कोहनी पे उचका दाए हाथ से उसके पेट को सहलाते हुए उसकी चूचियो को गिरफ़्त मे ले चुका था & पीछे सर घुमा के उसे चूमती रंभा की किस का भरपूर मज़ा ले रहा था.

उसका लंड चूत को बुरी तरह रगड़ रहा था.रंभा ने ससुर के बाल को पकड़ के खिचा & अपनी कोहनी सीधी करती बिस्तर पे निढाल हो गयी.उसकी आँखे बंद थी & उसके चेहरे पे केवल मस्ती दिख रही थी.विजयंत ने उसकी दाई जाँघ को उपर किया & बिना लंड निकाले सीधा हो गया & उसकी दाई जाँघ को अपने बाए कंधे पे टिका दिया.

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क्रमशः.......
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