RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--33
गतान्क से आगे.
रंभा उसे देख मुस्कुराइ & अपने बाए हाथ से उसके लंड को अंडरवेर के उपर से ही दबाने लगी.जब उसने विजयंत के आंडो को ज़ोर से दबाया तो उसने कमर उचका के,आँखे बंद कर ज़ोर से आह भरी.रंभा झुकी & अंडरवेर के उपर से ही आंडो को दबाते हुए लंड को काटने लगी.विजयंत का तो हाल बुरा हो गया,उसे लगा की अब वो झाड़ ही जाएगा.
रंभा मुस्कुराइ & सर उसकी गोद से उठा अंडरवेर को निकाल दिया & फिर बालो के सिरो को उसके लंड & आंडो पे फिराया.विजयंत इस बार सूपदे की कोमल त्वचा पे बालो के एहसास से और शिद्दत से तडपा.रंभा झुकी & बाए हाथ की हथेलियो को आंडो पे जमाते हुए उसने लंड के निचले हिस्से पे उंगलियालपेटी & उसके मत्थे को मुँह मे भर लिया.विजयंत तो अब मस्ती मे मदहोश हो गया.रंभा का कोमल मुँह उसके सूपदे से प्रेकुं को चाते जा रहा था.
उसने अपनी सारी इच्छा-शक्ति का ज़ोर लगाके खुद को झड़ने से रोका.रंभा उसके लंड पे मुँह चला रही थी & वो उसके चेहरे पे हाथ.कुच्छ देर बाद रंभा ने लंड को मुँह से निकाला,उसकी चूत मे फिर से कसक उठ रही थी.वो उठी & अपने घुटने ससुर की कमर के दोनो ओर जमाते हुए अपनी चूत को लंड पे झुका दिया.
"ऊहह..!",लंड उसकी चूत मे समाने लगा.उसने 2 इंच लंड बाहर ही रहने दिया & फिर उसपे उच्छलने लगी.अपने ससुर की जाँघो को थामे उसकी नज़रो से नज़रे मिलाती वो उस से चुद रही थी.विजयंत ने उसकी कमर थाम लंड को जड तक घुसाना चाहा तो उसने उसे रोक दिया.
"पूरा लंड तो अंदर जाने दो!",उसने उसकी कमर के मांसल बंगलो को मसला.
"उन्ह..हुंग..बिल्कुल नही..आपका बहुत बड़ा है..ऊव्ववव!",वो उसके सीने पे हाथ जमा आगे झुकी तो विजयंत ने उचक के उसकी बाई चूची मुँह मे भर निपल पे काट लिया.रंभा फ़ौरन पीछे हो गयी & थोड़ा पीछे झुकते हुए जाँघो पे हाथ रख & कभी उन्हे सहलाते हुए कमर हिलाके ससुर से चुदवाने लगी.
"अच्छा भाई ठीक है..तो कम से कम अपनी चूचिया तो पिला दो हमे!",उसने उसकी गंद की फांको को दबोचा.
"उउन्न्ं..ना!आप काटते हैं उन्हे.",विजयंत बिस्तर से उठने लगा तो रंभा ने फ़ौरन बाया घुटना बिस्तर से उठा उसे ससुर के सीने पे रख दिया & उठने से रोक दिया.विजयंत उसकी इस अदा पे मुस्कुरा के उसके पाँव को पकड़ उसकी उंगलकिया चूसने लगा.रंभा ने अपने बालो मे बड़े मादक अंदाज़ मे उंगलिया फिराते हुए आँखे बंद कर आह भरी & अपनी चूचियाँ आगे करते हुए जिस्म को कमान की तरह मोड़ा.उसका जिस्म विजयंत की इस हरकत से मस्ती की कगार पे पहुँच गया था & वो झाड़ गयी थी.
अधखुली आँखो से रंभा ने देखा कि विजयंत फिर उठने वाला है तो उसने फ़ौरन उसके सीने पे रखी टांगको दाई तरफ घुमाया & फिर उसके लंड पे ही बैठे हुए बदन को दाए तरफ घुमाने लगी.ऐसा करने से विजयंत के लंड पे उसकी चूत गोलाई मे घूमी & वो मस्ती मे कराहा.रंभा ने पूरा जिस्म घुमा पीठ विजयंत की ओर कर दी & आगे झुक उसकी मज़बूत टाँगो को पकड़ फिर से कमर हिलाने लगी.विजयंत लेटे-2 ही अपने गर्म हाथ उसकी पीठ से लेके गंद तक फिराने लगा.रंभा अब बहुत मस्त हो गयी थी & बस लंड पे कूदे जा रही थी.
जिस्म की गर्मी जब बहुत बढ़ गयी तो उसका दिल महबूब के होंठो की हसरत करने लगा & वो पीछे होने लगी.उसने अपने तलवे बिस्तर पे जमाए & हाथ पीछे झुक बिस्तर पे & अपनी कमर बहुत तेज़ी से हिलाने लगी.इतना शक्तिशाली मर्द उसके पैर चूमने के बाद उसके नीचे उसके मुताबिक चुदाई कर रहा था,इस ख़याल ने उसकी खुमारी & बढ़ा दी थी & वो अब बस झड़ने ही वाली थी.
"आननह..!",विजयंत ने उसकी गंद की दरार मे उंगली फिराई तो वो & ना सह सकी & चिहुनक के आगे होते हुए झाड़ गयी.विजयंत फ़ौरन उठ बैठा & पीछे से ही उसकी मोटी,कसी चूचियो को दबोचा & फिर बाई बाँह को उसकी कमर मे लपेटे दाई तरफ करवट लेते हुए रंभा को पहले बिस्तर पे करवट से लिटाया & फिर और घूमते हुए उसे पेट के बल लिटाया & फिर उसके उपर सवार हो गया.
बहू की मादक अदाओं ने उसे बहुत मस्त कर दिया था.उसने अपने दोनो घुटने जोकि रंभा की फैली टाँगो के बीच बिस्तर पे टीके थे,को बाहर कर उन्ही से धकेल के उसकी टाँगो को आपस मे बिल्कुल सटा दिया & फिर 1 ज़ोर का धक्का दिया.
"हाईईईईई....माआंन्नननणणन्..!",रंभा ने सर उपर झटका.उसकी कसी चूत अब और कस गयी थी & ससुर का लंबा,मोटा,तगड़ा लंड अब चूत की दीवारो को बहुत बुरी तरह रगड़ रहा था.लंड उसकी गंद की मोटी फांको के बावजूद जड तक समा गया था & अगले धक्के पे उसने रंभा की कोख पे चोट की.कमरा क्या पूरी कॉटेज रंभा की मस्त आहो से भर गयी.विजयंत उसके उपर झुका उसकी चूचियों मसलता ज़ोरदार चुदाई कर रहा था.रंभा ने 1 बहुत ज़ोर की आह भारी & फिर झाड़ गयी.
विजयंत ने उसकी टाँगे वापस फैलाई & उनके बीच आ गया & उसकी गंद दबाते हुए चोदने लगा.कुच्छ देर बाद रंभा भी कमर हिला-2 के उसका जवाब देने लगी.विजयंत घुटनो पे बैठ गया & थोड़ा उपर हुआ तो रंभा भी अपने घुटनो & हाथो पे हो गयी & खुद ही कमर आगे-पीछे कर उस से चुदवाने लगी.विजयंत ने उसकी कमर थाम ज़ोरदार धक्के लगाने शुरू कर दिए.रंभा सर झटकते आहे भरे जा रही थी.उसके हाथ बिस्तर की चादर को भिंचे हुए थे.
1 साया कॉटेज की ओर बढ़ रहा था.वो कॉटेज की खिड़की तक आ के ठिठक गया था.वो कुच्छ सोच रहा था.उसने अपनी कलाई पे बँधी घड़ी देखी,11 बज रहे थे.1 घंटे से थोड़ा उपर हो गया था विजयंत को कॉटेज के अंदर गये लेकिन वो जगा था शायद क्यूकी उसके कमरे की बत्ती जाली दिख रही लेकिन क्या इस वक़्त..
"आआहह..!",रंभा चीखी & बिस्तर पे निढाल हो गयी.वो कोख पे अपने ससुर के लंड की & चोटें बर्दाश्त नही कर पाई थी & झाड़ गयी थी & इस बार उसकी चूत की उसी मस्तानी हरकत ने विजयंत के लंड को भी दबोच के झड़ने पे मजबूर कर दिया था.विजयंत उसके उपर गिरा आहे भरता हुआ अपना गाढ़ा वीर्य छ्चोड़े चला जा रहा था जोकि सीधा रंभा की कोख मे जा रहा था.रंभा भी उसके साथ-2 मस्ती के आसमान मे उड़ी जा रही थी.
"ठक-2!",किसी ने दरवाज़ा खाटख़टाया & दोनो चौंक गये & 1 दूसरे को देखने लगे.विजयंत ने लंड बहू की चूत से खींचा & उसे उसके कमरे मे जाने का इशारा किया.रंभा ने उसकी बात मानी & विजयंत कपड़े पहन दरवाज़े की ओर चला गया.
"न-नमस्ते..सर..!",विजयंत मेहरा ने दरवाज़ा खोला तो सामने वही स्टाफ मेंबर खड़ा था जिसके बारे मे थोड़ी देर पहले उसने रंभा को बताया था.वो लगभग 30-35 बरस का आदमी था & घबराया हुआ लग रहा था.
"बोलो,क्या बात है?",विजयंत ने ट्रॅक पॅंट के उपर ड्रेसिंग-गाउन पहन लिया था & उसकी जेबो मे हाथ डाले खड़ा था.उसकी रोबिली आवाज़ ने सामने खड़े शख्स को & घबरा दिया.
"ज-जी..",वो इधर-उधर देख रहा था.
"अंदर आओ.",विजयंत की आवाज़ के रोब से बँधा वो अंदर आ गया,"बैठो.",घबराया सा वो आदमी कॉटेज के ड्रॉयिंग रूम के सोफे के कोने पे बैठ गया,"ये लो.",विजयंत ने पानी का ग्लास उसे दिया तो वो गतगत पी गया,"अब बताओ क्या बात है.",विजयंत उसके सामने बैठ गया.
"स-सर..मेरा नाम मनोज है & मैं यही काम करता हू."
"हूँ.पोल्ट्री विंग तुम्ही देखते हो.मुझे पता है.",विजयंत ने उसपे शुबहे होने पे उसके बारे मे मॅनेजर से पुच्छ लिया था.उसने तो सोचा था कि अगली सुबह वो उसे तलब करेगा लेकिन यहा तो वो खुद ही उसके पास पहुँच गया था.
"सर,समीर सर गायब हुए तो मुझे लगा ये बात आपको बता देनी चाहिए ल-लेकिन मुझे पता नही था कि ऐसा होगा न-नही तो पहले ही सब बता देता."
"आख़िर बात क्या है बताओ तो!",विजयंत अब झल्ला गया था,"..& घबराओ मत तुम्हे कुच्छ नही होगा."
"सर,समीर सर ने कुच्छ दिनो पहले पंचमहल मे सभी स्टाफ मेंबर्ज़ के लिए 1 पार्टी दी थी..नमस्ते,मेडम!..",रंभा भी वाहा आ गयी थी.विजयंत ने उसकी ओर देखा तो उसने सर हिलाके पार्टी होने की बात मानी,"..वाहा फार्म नो.1 का पुराना मॅनेजर हरपाल सिंग भी आया था.वो समीर सर से बार-2 अपना तबादला क्लेवर्त करने को बोल रहा था लेकिन वो मान नही रहे थे क्यूकी उसे वैसे फार्म का तजुर्बा नही था.."
"..पार्टी मे शराब भी थी & हरपाल ने कुच्छ ज़्यादा ही पी ली थी.मैं भी उसी के साथ बैठा था.दरअसल मुझे उसके साथ ही लौटना था.वो नशे मे धुत था & मुझे उसकी कार ड्राइव करनी पड़ी.उस रात मुझे उसके ही फार्म पे रुकना था.रास्ते भर वो यही बोलता रहा कि वो समीर सर को मज़ा चखा देगा.वो उसे उसके परिवार के साथ नही रहने दे रहा तो वो भी उसे उसके परिवार से अलग कर के दम लेगा.."
"..उस वक़्त तो मैने सोचा की वो नशे मे बक रहा है लेकिन समीर सर गायब हुए तो मेरा माथा ठनका & मैने हरपाल को फोन किया लेकिन उसका फोन नही मिला,मैने उसके घर पे फोन किया & उसके घरवालो ने कहा कि वो नौकरी ढूँदने के चक्कर मे बॅंगलुर गया हुआ है तो मैने उनसे उसका मोबाइल नंबर माँगा लेकिन उस नंबर पे भी मैं उस से बात नही कर पाया."
"तुमने ये बातें पोलीस को क्यू नही बताई?"
"सर..वो..",उसने माथे से पसीना पोंच्छा,"..सर..हरपाल की बहन हिना आवंतिपुर मे रहती है &..और.."
"तुम दोनो 1 दूसरे को चाहते हो?",रंभा ने बात पूरी की,"..& तुम्हे लगा कि होने वाले साले को यू फाँसना ठीक नही."
"मेडम..वो..मुझे अभी तक ऐसा लग रहा था कि हरपाल बेकसूर है लेकिन मैने हिना से आज ही बात की & उसने भी अपने भाई से उस रोज़ से बात नही की जिस रोज़ समीर सर पंचमहल से निकले थे.सर,मैं सच कहता हू मेरा & कोई इरादा नही था..मैं तो बस हिना के चलते..-",विजयंत ने हाथ उठाके उसे आगे बोलने से रोक दिया.
"तुम ये बात अब किसी को नही बताओगे,पोलीस को भी नही.मैं नही चाहता कि हरपाल होशियार हो जाए & तुम्हे घबराने की कोई ज़रूरत नही है.तुम अपनी प्रेमिका से भी पहले जैसे ही मिलते रहो,बाते करते रहो लेकिन अगर हरपाल का कोई भी सुराग मिले,तो फ़ौरन हमे बताओगे..",विजयंत ने 1 काग़ज़ पे उसे 1 नंबर लिख के दिया,"..ये हमारा फोन नंबर है जिसपे तुम हमे कॉंटॅक्ट कर सकते हो.अब हमे हरपाल का क्लेवर्त के घर का पता,उसकी बेहन का पता & उसके बारे मे जो भी जानते हो सब बताओ."
30 मिनिट बाद विजयंत & रंभा फिर से 1 दूसरे की बाहो मे समाए थे,"उउम्म्म्म..अब आगे क्या करना है?..आहह..!",कंबल के नीचे विजयंत उसकी गंद को मसलते हुए उसकी गर्दन चूम रहा था.
"अब हम कल सवेरे आवंतिपुर जाएँगे & तुम हिना से मिल के ये पता लगाने की कोशिश करोगी की उसके भाई ने इधर उस से कोई कॉंटॅक्ट किया है या नही,उसके बाद देखेंगे क्या करना है.",विजयंत ने उसकी चूचियो को चूसा तो रंभा ने मस्ती मे आँखे बंद कर ली & ससुर के बाल पकड़ उसके सर को सीने पे & दबा दिया.अब उसे भी ये लग रहा था कि समीर की गुमशुदगी मे उसके बाप का हाथ नही है लेकिन ये भी तो हो सकता था कि उसने 1 बहुत बड़ा जाल बुना हो लेकिन फिर वो उसे साथ लिए क्यू घूम रहा था & जैसे उसके दिमाग़ मे बिजली सी कौंधी..विजयंत उसपे शक़ कर रहा है!
"आननह..!",उसने उसकी चूत मे उंगली घुसा दी थी.रंभा अब सब समझ गयी थी..कैसी अजीब बात थी वो विजयंत पे शक़ कर रही थी & वो उसपे!..वो मुस्कुराइ & थोड़ा उचक के उसकी चूचियाँ चूस्ते विजयंत के सर को चूम लिया & मस्ती मे खो गयी.
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बलबीर मोहन ब्रिज कोठारी के रोज़मर्रा की ज़िंदगी के बारे मे लगभग सब कुच्छ जान गया था मसलन वो कितने बजे दफ़्तर जाता था,उसके मोबाइल का प्राइवेट नंबर क्या था,वग़ैरह-2 लेकिन अभी तक उसे समीर की गुमशुदगी से जोड़ने वाला कोई सिरा नही नज़र आया था.उसे ये भी पता चल गया था कि वो औरतो का शौकीन था & अपनी बीवी सोनिया से लगभग रोज़ ही बेवफ़ाई करता था लेकिन अभी तक उसे उसकी महबूबाओ मे से भी कोई शक़ करने लायक नही दिखी थी.
अभी भी वो 1 रेस्टोरेंट की टेबल पे बैठा ब्रिज को अपने बॅंकर के साथ रात का खाना खाते देख रहा था.बलबीर को अभी तक लगा नही था कि ब्रिज का इस घटना के पीछे कोई हाथ हो सकता है लेकिन उसे पूरी तसल्ली तो करनी ही थी.उसने अपना खाना ख़त्म किया & फिर वेटर 1 सुफ्ले ले आया.उसने उसका 1 नीवाला लिया..बहुत मज़ेदार था.वो दिल ही दिल मे मुस्कुराया..इस खाने का भी बिल विजयंत की फीस मे जुड़ने वाला था..जासूसी मे जितनी भी मुश्किलें हो उसमे कुच्छ फ़ायदे तो थे ही!
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क्रमशः.......
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