RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--28
गतान्क से आगे.
"ऊहह....हान्णन्न्..",रंभा सर पीछे किए ख़ुसी से मुस्कुरा रही थी.उसके उपर सवार विजयंत उसकी गर्दन चूम रहा था & बहुत ही हल्के धक्को के साथ उसकी चुदाई कर रहा था.रंभा ने सर के उपर फैले अपने हाथ नीचे किए & अपने ससुर की पीठ सहलाई..अफ..कितना मज़बूत,कितना सख़्त जिस्म था..उसने आँखे बदन की & विजयंत के सर को चूमते हुए हाथ उसकी गंद पे ले गयी & वाहा दबाने लगी.अपने इस नये प्रेमी के गथिले जिस्म पे हाथ फेरने से भी उसकी चूत की कसक बढ़ा रही थी. विजयंत ने अभी भी लंड पूरा नही घुसाया था.
"ओईईईईईई..माआआअ..!",वो उसकी गर्दन से उठा & उसकी आँखो मे देखते हुए 1 धक्का लगाया.लंड जड तक समा गया & रंभा की कोख से टकराया.उसकी टाँगे खुद बा खुद विजयंत की कमर पे कैंची की तरह कस गयी & कमर अपनेआप हिलने लगी,"..डॅड..1 बात बताइए...आन्न्न्णनह..!"
"क्या?",विजय्न्त के हाथ उसकी गंद के नीचे जा लगे थे & उसकी फांको को मसल रहे थे.
"क्या मम्मी भी मुझसे नाराज़ हैं?..उउन्न्ञणनह..!",लंड कोख पे चोट पे चोट किए जा रहा था.उसका बदन उसके बस मे नही था & झटके खाए जा रहा था.वो विजयंत की पीठ को अपने नाख़ून से छल्नी कर रही थी.
"तुम्हारी वजह से उसका बेटा घर छ्चोड़ के चला गया,कुच्छ तो नाराज़गी होगी ही लेकिन मुझे नही लगता इस मुश्किल वक़्त मे रीता तुमसे कोई बेरूख़ी दिखाएगी.",विजयंत उसकी गंद मसलते हुए उसे चूमते हुए चुदाई कर रहा था.
"हूँ.....आनह....हाईईईईईईईई.....हे भगवांनणणन्..!",रंभा अब सर पीछे फेंक जिस्म को कमान की तरह मोड़ कमर पागलो की तरह उचका रही थी.उसकी कसी चूत की गिरफ़्त लंड पे & कसी तो विजयंत ने भी मस्ती मे सर पीछे फेंका & आह भरी & ज़ोरदार धक्के लगाए.उसका जिस्म झटके खाने लगा.रंभा के नाख़ून उसकी गंद मे धन्से थे & वो उसके उपर उच्छल रहा था-ससुर & बहू 1 बार फिर 1 साथ झाड़ रहे थे.
रंभा ने विजयंत को नीचे खींचा & सिसकते हुए उसके चेहरे को चूमने लगी.दोनो जानते थे कि आज की रात दोनो ही नही सोने वाले हैं.
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1 बजे वो शख्स समझ गया कि विजयंत आज रात वही रुकने वाला है.उपरी मंज़िल के कमरे की बत्ती अभी भी जल रही थी..या तो घर मे मौजूद दोनो मे से कोई 1 शख्स अपनी परेशानी की वजह से सो नही पा रहा है या फिर किसी 1 को बत्ती जला के सोने की आदत है..उसने सिगरेट का टोटा फेंका & कार वाहा से आगे बढ़ा दी.
अगली सुबह विजयंत मेहरा रंभा के साथ डेवाले पहुँच गया & सीधा ट्रस्ट ग्रूप के दफ़्तर पहुँचा.रंभा को उसने सोनम के साथ अपने कॅबिन मे छ्चोड़ा & खुद उस एमर्जेन्सी मीटिंग को हेड करने चला गया जो उसने बुलाई थी.मीडीया ने बात अब पूरी फैला दी थी & रंभा के घर से निकलते वक़्त,पंचमहल एरपोर्ट,डेवाले एरपोर्ट & फिर अपने दफ़्तर की बिल्डिंग के बाहर-हर जगह उसे प्रेस वालो का सामना करना पड़ा.
"लॅडीस & जेंटल्मेन,आप सभी जानते हैं कि ये मीटिंग क्यू बुलाई गयी है.मिस्टर.समीर मेहरा लापता हैं & अभी तक उनका कोई सुराग नही मिला है.हालाकी वो अब हमारे ग्रूप का हिस्सा नही हैं लेकिन ये हक़ीक़त है कि वो मेरे बेटे हैं & इस वक़्त मेरी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी उसे ढूढ़ना है.मीडीया की निगाह भी इस केस पे पड़ चुकी है & इसीलिए मैं चाहता हू कि इस हॉल मे जो भी बातें हो रही हैं वो यहा से बाहर ना जाएँ.."
"..मैने फ़ैसला लिया है कि जब तक समीर या उसकी सलामती की कोई खबर नही मिल जाती,मैं पंचमहल मे ही रहूँगा..",हॉल मे बैठे सभी लोग फुसफुसाने लगे.
"..लेकिन उस से ग्रूप के काम मे कोई अड़चन नही आएगी.",विजयंत ने हाथ उठा के सब को शांत रहने का इशारा किया,"..मैं अपनी जगह मिस्टर.प्रणव कपूर को तब तक के लिए अपायंट करने जा रहा हू जब तक कि मैं वापस यहा ना लौट आऊँ.क्या आपलोगो को इस बारे मे कुच्छ पुच्छना है?",बारी-2 से सभी अपने शुबहे दूर करने लगे.प्रणव खामोश बैठा था & उसके चेहरे पे कोई भाव नही था लेकिन उसका दिल बल्लियो उच्छल रहा था.
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"रंभा,यार ऐसा कैसा हो सकता है कि कोई इंसान ऐसे गायब हो जाए & उसका कोई अता-पता भी ना चले?..यार,समीर का किसी से कुच्छ झगड़ा-वॉग्डा तो नही हुआ था ना?"
"नही,यार.मेरी तो खुद कुच्छ समझ मे नही आ रहा.",रंभा ने अपनी पेशानी पे हाथ फिराया.रात को विजयंत की बाहो मे वो अपनी सारी परेशानी भूल गयी थी लेकिन सुबह होते ही फिर से उसे तनाव हो गया था.
"तो तुझे ना कुच्छ अंदाज़ा है ना ही किसी पे शक़?"
"नही,सोनम."
"हूँ.",सोनम ने तय कर लिया कि मौका मिलते ही सारी बातें ब्रिज कोठारी को ज़रूर बताएगी.
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जिस रोज़ समीर के गायब होने की खबर सोनम ने उसे दी थी,ब्रिज की तो खुशी का ठिकाना ही नही रहा था.सोनिया को उस रोज़ उसने कुच्छ ज़्यादा ही प्यार किया & उसके नशीले जिस्म को अपने आगोश मे भरे हुए उसे ये बात बताई.
"तुम खुश हो ब्रिज इस खबर से?",दोनो झाड़ चुके थे & ब्रिज उसके उपर लेटा धीरे-2 उसकी बाई चूची चाट रहा था.
"हा,जानेमन!मेरा दुश्मन कमज़ोर हो गया है.अब & क्या चाहिए!",सोनिया को उस पल अपना पति 1 अजनबी लगा.ब्रिज उसके चेहरे के भाव से अनजाना बस उसके निपल पे जीभ फिराए जा रहा था.सोनिया का दिमाग़ तेज़ी से घूम रहा था..कही ब्रिज का ही हाथ तो नही इसके पीछे?..नही..ब्रिज ऐसा नही कर सकता..विजयंत को हराने के लिए वो इस हद्द तक नही गिर सकता!
"डार्लिंग..",उसने पति के बालो मे उंगलिया फिराई,"..1 बात कहु तो ग़लत तो नही समझोगे मुझे?"
"क्या बात है,सोनिया?",ब्रिज ने मुँह उसकी चुचियो से उठाया & उसपे ठुड्डी जमा के उस से दबाया,"..तुम सवाल पुछो फिर बताउन्गा..& अगर बुरा लगा भी तो मुझे मना लेना तुम!",वो मुस्कुरा दिया तो सोनिया भी मुस्कुरा दी..शायद इसी अदा के चलते उसने उस से शादी कर ली थी.
"तुम विजयंत को हमेशा हारा हुआ देखना चाहते हो..हर कीमत पे उसे खुद से नीचे देखना चाहते हो..& मुझे डर लगता है कि कही इस चक्कर मे मैं उस ब्रिज को खो दू जिस से मैने शादी की थी."
"देखो,सोनिया.इस उम्र मे मैने तुमसे शादी की है तो कुच्छ तो खास बात होगी तुम मे जिसने मुझे दीवाना बना दिया.तो फिर तुम ये कैसे सोचती हो की मैं तुमसे दूर हो जाउन्गा?",ब्रिज ने उसका चेहरा हाथो मे ले लिया था & उसकी आँखो मे झाँक रहा था.सोनिया को उन निगाहो मे कही भी झूठ नही दिख रहा था लेकिन उसके दिल मे शक़ तो पैदा हो ही गया था.वो मुस्कुरा दी & उसे अपने सीने से लगा लिया & उसके जिस्म को प्यार से सहलाने लगी.उसने तय कर लिया था कि वो अपने शुबहे को दूर करके रहेगी.
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"डॅड,आपने जो ज़िम्मेदारी मुझे दी है मैं उसे निभाने मे पीछे नही हटूँगा लेकिन मैं यही चाहता हू कि आप जल्द से जल्द वापस आ फिर से काम संभालेंगे.",कान्फरेन्स हॉल की मीटिंग ख़त्म हो चुकी थी & अब बस वाहा ससुर & दामाद बात कर रहे थे.
"तो दुआ करो बेटा की समीर जल्दी मिल जाए."
"हां डॅड,मैं उस बारे मे भी बात करना चाहता था.आपने अभी तक की सारी बात बता दी लेकिन ये नही बताया कि आगे क्या करने वाले हैं."
"प्रणव,मैने कुच्छ सोचा है लेकिन बुरा मत मानना,मैं ये बात अभी किसी को नही बताउन्गा..",विजयंत अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ & पीछे लगे बड़े शीशे का परदा हटा के नीचे शहर को देखने लगा,"..वो नीचे जो लोग खड़े हैं,वो अंजाने मे भी समीर को नुकसान पहुँचा सकते हैं."
"कौन..प्रेस,डॅड?",उसका दामाद उसके साथ आ खड़ा हुआ था.
"हां,देखो प्रणव.1 बहुत बड़ा चान्स है कि समीर अगवा हो गया है.अब ऐसे मे अगर मीडीया को पता चल जाए कि मैं क्या करनेवाला हू तो वो तो उसे ब्रेकिंग न्यूज़ बना देंगे & समीर की सलामती के लिए ये बात ख़तरनाक है."
"आप कोई इनाम का एलान तो नही करनेवाले?"
"नही.उस से कुच्छ हासिल नही होता बस लालचियो की फौज इकट्ठी होती है अपने दरवाज़े पे.",विजयंत ने घूम के प्रणव के कंधे थाम लिए,"..प्रणव,मैं जानता हू कि तुम भी समीर के लिए बहुत चिंतित हो लेकिन मैं अभी तुम्हे ज़्यादा नही बता सकता.तुम बस ट्रस्ट को सांभलो,मैं समीर की तलाश का काम देखता हू."
"ओके,डॅड.",प्रणव वाहा से बाहर चला गया.विजयंत ने 1 नज़र उस स्टेट्मेंट पे डाली जोकि उसने खुद लिखी थी.उस स्टेट्मेंट मे उसने ये कहा था की वो अभी कुच्छ दिन पंचमहल मे ही रहेगा & प्रणव के बागडोर संभालने की बात बताई थी.साथ ही उसने कंपनी के सभी क्लाइंट्स को भरोसा भी दिलाया था कि इस से ट्रस्ट के काम-काज पे कोई भी असर नही पड़ेगा.ऐसी ही 1 दूसरी स्टेट्मेंट उसने अपनी कंपनी मे काम करनेवालो के लिए तैय्यार की थी.
अब वक़्त आ गया था समीर की तलाश के लिए पहला अहम कदम उठाने का.उसने सोनम को इंटरकम से रंभा के साथ ही रहने को कहा & हॉल से निकल गया.लिफ्ट से वो सीधा बेसमेंट पार्किंग मे पहुँचा जहा उसका ड्राइवर 1 काले शीशो वाली सफेद ज़्क्स4 की चाभी लिए कार के साथ खड़ा था.विजयंत ने चाभी ली & कार मे बैठ गया & वाहा से निकल गया.बाहर खड़े रिपोर्टर्स ने उस कार पे कोई ध्यान नही दिया.उन्हे तो बस विजयंत की मर्सिडीस का इंतेज़ार था.
कार डेवाले की 1 रिहैइयाशी कॉलोनी के मार्केट पे पहुँच के रुक गयी & उसका आगे का पॅसेंजर साइड का दरवाज़ा खुला तो वाहा पहले से खड़ा 1 40 बरस का पतली मून्छो वाला चुस्त आदमी अंदर बैठ गया.
"हेलो,बलबीर..",विजयंत ने सफेद कमीज़ के उपर गहरे नीले कोट & स्लेटी रंग की पॅंट पहने उस लंबे कद के शख्स से हाथ मिलाया.ये था बलबीर मोहन-1 माना हुआ जासूस.बलबीर फौज मे था & कयि ख़तरनाक ऑपरेशन्स का हिस्सा रहा था.उसके जिस्म पे आज भी उन मुठभेदो के निशान मौजूद थे.वो कोई भी ख़तरा उठाने से नही हिचकिचाता था & मेज़ पे कागज़ी काम करना उसे बिल्कुल पसनद नही था.जब फौज ने तरक्की के बाद उसे ऐसी ही 1 पोस्टिंग दी तो उसने फौज छ्चोड़ना ही बेहतर समझा & 1 सेक्यूरिटी एजेन्सी खोल ली.
उसकी एजेन्सी लोगो & कंपनी की हिफ़ाज़त के सभी इंतेज़ामो को देखती थी मगर उसके साथ ही वो 1 काम और भी करता था जिसके बारे मे चंद खास लोग ही जानते थे-वो था जासूसी.
"ये अभी तक की सारी डीटेल्स हैं..",विजयंत ने उसे 1 लिफ़ाफ़ा थमाया,"..बलबीर,मुझे लगता है कि समीर की गुमशुदगी मे ब्रिज का हाथ है & मैं चाहता हू कि तुम ज़रा इस बारे मे पता लगाओ.",बलबीर को लगा था कि विजयंत उसे पंचमहल जा समीर को ढूँढने को कहेगा.
"हां मगर आपके बेटे को ढूँढना भी तो है?"
"वो काम मैं खुद करूँगा.तुम बस ये पता लगाओ कि ब्रिज कोठारी का इसमे हाथ है या नही."
"मेहरा साहब,बुरा मत मानीएगा लेकिन आपको नही लगता कि उसे ढूँढने का काम किसी पेशेवर को करना चाहिए?"
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क्रमशः.......
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