Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:31 PM,
#25
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--25

गतान्क से आगे.

विजयंत उसकी गोरी बाँह से होता हुआ उसकी गर्दन तक पहुँचा & 1 बार फिर दाए कंधे के उपर से उसने अपनी बहू के रसीले होंठो को चूमने की ख्वाहिश जताई लेकिन इस बार भी उसने उसे धकेल के खुद से अलग किया & उस से दूर लड़खड़ाते भागी.

विजयंत ने हाथ बढ़ाया & इस बार उसके हाथ मे उसला लहराता आँचल आ गया.रंभा झटके से घूमी & वो नज़ारा देख विजयंत का हलाक सूख गया.आँचल हटने से उसकी तेज़ धड़कनो की कहानी कहता नारंगी ब्लाउस के गले मे से झँकता क्लीवेज & गोल नाभि से सज़ा उसका चिकना पेट.विजयंत उसके हुस्न को आँखो से पीते हुए उसका पल्लू पकड़े उसके गिर्द घूमने लगा.रंभा को उसकी निगाहें भी अपने जिस्म को जलती लग रही थी.वो बस आँखे बंद किए अपनी मुत्ठिया भिंचे चुपचाप खड़ी थी.कोई & मौका होता तो वो अपने आशिक़ के साथ नज़रे मिलाके उसे खुद को निहारते देखती लेकिन आज नही,आज उसे विजयंत को ये सुख नही देना था.

विजयंत घूम रहा था & लिपटी सारी खुल रही थी लेकिन पूरी तरह से नही क्यूकी वो उसकी बहू की कमर मे अटकी जो थी.रंभा ने अपनी पलके आधी खोली,उसे देखने से लग रहा था कि वो नशे मे है.विजयंत उसके करीब आया & फजूल जिसे उसने रंभा की पीठ पे होंठ फिराते वक़्त पॅंट की जेब मे रख लिया था,उसे निकाला.वो उसकी सारी को पकड़े उसे देखे जा रहा था.रंभा ने देखा उन आँखो मे उसके जिस्म की बहुत तारीफ थी.

"आहह..!",रंभा की आह ना चाहते हुए भी निकल गयी.विजयंत ने काम ही ऐसा किया था.गुलाब की लंबी डंठल को उसने उसकी सारी जहा अटकी वाहा उसकी सारी & कमर के बीच मे घुसाया & उसी डंठल से उसकी सारी की अटकी परतों को बाहर निकालने लगा.ऐसा करने से डंठल रंभा के निचले पेट को खरोंच उसके जोश को & बढ़ाने लगा.अब उसकी चूत मे उठ रही कसक बहुत तेज़ हो गयी थी.विजयंत ने फूल को बेड पे फेंका & उसकी सारी को फर्श पे गिराया & झुक के बैठ गया.

उसने बाए हाथ को रंभा की कमर की दाई तरफ जमाया & दाए हाथ की उंगलियो को उसके पेट पे फिराया,रंभा ने अपने बाल पकड़े & बड़ी मुश्किल से अपनी आह को दबाया.विजयंत आगे हुआ & उसके पेट को चूम लिया.उसके चूमने मे मस्ती थी,गर्मी थी जो रंभा की तड़प मे इज़ाफ़ा कर रही थी.वो पेट को चूमता उसकी नाभि की ओर पहुँचा & रंभा का दिल खुशी से उच्छलने लगा कि अब वो उसकी नाभि की गहराई नपेगा लेकिन नही वो नाभि के ठीक नीचे के हिस्से को होंठो मे दबा के काटने जैसी हरकत कर रहा था.रंभा को पता भी ना चला & उसकी कमर हिलने लगी & वो थोड़ा च्चटपटाने लगी.चूत की कसक अब बिल्कुल चरम पे थी.विजयंत वैसे ही उसकिनाभि के नीचे अपने होंठो से चबाए जा रहा था,फ़र्क बस ये था कि अब उसकी ज़ुबान भी उस हिस्से पे घूम रही थी.रंभा अपने बालो मे उंगलिया फिराती,सर झटकती कसमसा रही थी की उसे लगा की उसकी चूत की कसक बिकुल अपनी इंतेहा पे पहुँच गयी है & वो चीखी.उसे लगा कि उसकी टाँगे जवाब दे रही हैं.वो आँहे भरते हुए झाड़ रही थी.

विजयंत ने वैसे ही उसके पेट से खेलते हुए उसकी कमर को थाम उसे गिरने से रोक लिया & घुमा के दीवार के सहारे खड़ा कर दिया.जब वो थोड़ा संभली तो उसकी कमर के बाई तरफ लगे पेटिकोट के हुक & ज़िप को खोल दिया.पेटिकोट फ़ौरन फर्श पे गिरा नज़र आने लगा.विजयंत ने उसकी कमर से हाथ हटाए & उठ खड़ा हुआ.रंभा अभी भी थोड़ा कांप रही थी.उसने उसके दोनो हाथ थामे & उन्हे अपने सीने पे रख दिया.वो उसका इशारा समझ गयी-वो उसे अपनी कमीज़ खोलने को कह रहा था.उसने नज़रे नीची कर ली लेकिन विजयंत ने उसकी ठुड्डी पकड़ चेहरा उठाके फिर से वही इशारा किया.वो 1 बार फिर उसके & दीवार के बीच फँसी थी.उसने नज़रे नीची की & उसके बटन्स खोलने लगी.अंदर काफ़ी बाल नज़र आ रहे थे.विजयंत के इशारे पे उसने शर्ट को उसके कंधो से सरकाया & वो भी फर्श पे उसकी सारी & पेटिकोट के साथ गिरी दिखने लगी.

रंभा की आँखे फैल गयी थी.विजयंत का गोरा सीना बहुत चौड़ा & मज़बूत था & सुनहरे बालो से भरा हुआ था.ऐसे ही सीने तो उसे पसंद थे.उसका पेट ज़रा भी बाहर नही निकला था & बाजुओ का घेरा तो इतना बड़ा था कि शायद उसके दोनो हाथो मे नही समाता.कसरती बदन की 1-1 मांसपेशी जैसे तराशि हुई थी.विजयंत ने उसके हाथ सीने पे रख दिए.उसके दिल ने तो कहा की पूरे सीने को सहलाए,उसे चूमे & अपनी सारी हसरतें पूरी कर ले लेकिन नही उसे ऐसा नही करना था.वो वैसे ही खड़ी रही केवल उसका सीना उपर-नीचे होता रहा.विजयंत मुस्कुराया & उसके हाथो के उपर अपने बड़े-2 हाथ जमाए & उन्हे नीचे फिसलाने लगा.उसने रंभा के हाथ अपने पेट से होते हुए अपनी पॅंट की बेल्ट पे रख दिए.रंभा उसका इशारा समझ गयी & 1 पल के बाद उसकी पॅंट खोल दी.पॅंट सर्की तो विजयंत ने उस से अपनी टाँगे निकाली.अब बस 1 सफेद अंडरवेर उसके बदन मे था.रंभा ने सोचा था कि वो उधर नही देखेगी लेकिन उसकी निगाह पड़ी & अंडरवेर से चिपक गयी.इतना फूला अंडरवेर उसने आज तक नही देखा था.लंड के आकर की कल्पना से ही उसकी चूत मे दोबारा कसक उठने लगी.

विजयंत की जंघे किसी पेड़ की मोटी शाख जैसी थी & वो भी घने बालो से ढँकी थी.रंभा ने नज़रे उपर कर ली लेकिन विजयंत की निगाहो से नही मिलाई.विजयंत झुका & उसके होंठो से अपने होंठ सटा दिए.1 नयी बिजली की लहर रंभा के बदन मे दौड़ गयी & वो थरथरा उठी.पहली बार विजयंत ने उसके होंठ चूमे थे.उसकी किस मे गर्मजोशी थी लेकिन बदहवासी नही.अभी तक जितने मर्द उसके जिस्म का लुत्फ़ उठाने की खुशकिस्मती पाए थे,उनमे से सभी मस्ती मे पागल हो जाते थे & उनकी किस मे बड़ी बेसब्री होती थी.विजयंत की किस बहुत मस्त थी लेकिन रंभा को 1 पल को भी नही लगा कि वो उसके जिस्म को देख अपना काबू खो रहा है.उसे अच्छी लगी ये बात.विजयंत के होंठ उसके लबो को चूम उसकी मस्ती को कम नही होने दे रहे थे.वो थोड़ा लड़खड़ाई & उसके ससुर की मज़बूत बाहो ने उसे अपने आगोश मे भर लिया.उसका सीना विजयंत के चौड़े सीने से पिस गया & उसके हाथ अपने आप उसके कंधे पे लग गये.

विजयंत के होंठ उसके होंठो का रस पिए जा रहे थे & अब उसकी ज़ुबान का स्वाद भी चखना चाहते थे.रंभा ने अपने होंठ अलग करने की कोशिश की,मस्ती की शिद्दत बहुत बढ़ गयी थी & वो सिहर रही थी.विजयंत के सख़्त हाथ उसकी कमर & पीठ पे थे,उसका सीना उसकी चूचियो को दबा रहा था & नीचे चूत से उपर पेट पे उसका सख़्त लंड वो महसूस कर रही थी.उसकी चूत मे मस्ती की लहरे कसका बन के उमड़े जा रही थी.वो अब कमज़ोर पड़ रही थी & इसी बात का फ़ायदा उठाके विजयंत ने अपनी ज़ुबान उसके मुँह मे घुसा दी & रंभा की ज़ुबान जैसे ही उस से टकराई & गुत्थमगुत्था हुई,उसके बदन मे तूफान आ गया जोकि उसकी चूत से उठा था.उसकी आहें ससुर के लबो से सिले होंठो के बावजूद सुनाई दे रही थी & वो 1 बार फिर कमर हिलाते काँपने लगी थी.अभी तक वो पूरी नंगी भी नही हुई थी,उसके किसी नाज़ुक अंग को उसके ससुर ने च्छुआ तक नही था & वो दोबारा झाड़ रही थी.

रंभा के पैरो ने फिर जवाब दिया तो विजयंत ने दाई बाँह जोकि उसकी कमर को कसे थी उसे उसकी गंद के नीचे लगाया & बिना किस तोड़े उसकी जाँघो को पकड़ उसे गोद मे उठा लिया & उसे बिस्तर पे ले गया.रंभा की ज़ुबान को विजयंत अपनी ज़ुबान से छेड़े चले जा रहा था.वो अपनी बाई करवट पे लेता उसे अपने से चिपकाए चूमे चला जा रहा था.उसका दाया हाथ उपर आया & अपनी बहू की पीठ के पार ब्लाउस के स्ट्रॅप के हुक्स को खोल दिया.

रंभा उसकी इस हरकत से चौंक गयी & किस तोड़ दी.विजयंत की बाई बाँह उसके उपरी पीठ के पार थी & उसने उसी मे उसे कसे हुए रंभा के ब्लाउस को दाए हाथ से पकड़ उसकी गर्दन से निकाल दिया & उसके जुड़े को खोल उसके लंबे बालो को आज़ाद किया & फिर नीचे देखा.रंभा ने नारंगी रंग का ही स्ट्रेप्लेस्स ब्रा पहना था & विजयंत के सीने से दबे होने के कारण ऐसा लगता था कि उसकी चूचिया ब्रा के उपर से छलक जाना चाहती हो.उसने गुजरात के बीच पे भी उसे ब्रा & पॅंटी मे देखा था लेकिन आज की बात ही और थी.

आज वो उसकी बाहो मे थी & माहौल बिल्कुल मस्ताना था.उसने रंभा को देखा तो उन आँखो से छलक रही उसके जिस्म की चाह से वो आहत हो गयी & उसकी बाहो से निकल के घूमी & पेट के बल बिस्तर मे मुँह च्छूपा के लेट गयी.अभी का नज़ारा भी कोई कम मस्त नही था.विजयंत ने उसके बाल उसकी पीठ से हटा के उसके दाए कंधे के उपर से बिस्तर पे कर दिए.उसकी पीठ पे बस 1 पतला सा ब्रा का ट्रॅन्स्परेंट स्ट्रॅप नज़र आ रहा था & ऐसा लगता था मानो पीठ पूरी नंगी ही है.नीचे छ्होटी सी पॅंटी मे च्छूपी उसकी मोटी गंद का दिलकश आकार दिख रहा था.विजयंत का लंड कुच्छ & खड़ा हो गया & अब उसका सिरा उसके अंडरवेर के वेस्ट बंद मे दबा नज़र आ रहा था-वो बाहर आने के लिए छॅट्पाटा रहा था.

विजयंत की निगाह बिस्तर के दूसरे कोने पे पड़े रंभा के बगल मे पड़े गुलाब के फूल पे पड़ी.उसने उसे उठाया & फिर उसकी डंठल को रंभा की गर्दन के पीछे से शुरू करते हुए उसकी नर्म पीठ पे चलाते हुए नीचे आने लगा.रंभा ने सर बिस्तर से उठाया & उसके बालो की आब्नूसी चिलमन के पीछे से विजयंत को 1 दबी आह सुनाई दी.

फूल के डंठल की राह मे ब्रा स्ट्रॅप अड़चन बना तो विजयंत ने उसे खोल दिया.अब खुला ब्रा रंभा की चूचियो के नीचे दबा था.डंठल नीचे बढ़ा चला जा रहा था.रंभा ने आज रात जैसी मस्ती पहले कभी महसूस नही की थी.उसकी चूत मे तो जैसे कसक आज शांत ही नही होने वाली थी.उसने जंघे आपस मे भींच उसे समझाने की कोशिश की.

डंठल उसकी कमर के बीचोबीच उसकी पॅंटी के वेस्ट बंद पे रुकी हुई थी.रंभा का दिल ज़ोरो से धड़क उठा.उसकी गंद उसके ससुर के सामने नंगी होने वाली थी.विजयंत ने बिना उसकी कमरको छुए पॅंटी के बीचोबीच वेयैस्टबंड मे उंगली फँसा के उसे नीचे खींचा.उसके पीछे-2 डंठल रंभा की गंद की दरार मे उतार गयी.

"आननह..!",रंभा ने सर उठाके आह भरी.अब वो बहुत मदहोश हो गयी थी.उसकी कमर बहुत हौले-2 उचक रही थी.पॅंटी उसकी गंद से नीचे उसकी टाँगो से होते हुई बाहर निकाल दी गयी.डंठल उसकी दरार मे & नीचे उतरी तो रंभा की जंघे खुद बा खुद थोड़ी फैल गयी & विजयंत को उसकी रस टपकती चूत दिखाई दी.उसके दिल मे खुशी & जोश का तूफान मच गया.चूत उस फूल से,जिसे उसने हाथ मे थामा हुआ था,भी ज़्यादा नाज़ुक & कोमल थी.

उसने डंठल नीचे की,रंभा दम साधे उसके चूत मे उतरने का इंतेज़ार कर रही थी लेकिन उसके ससुर ने डंठल को उसकी गंद के छेद के बगल से होते हुए उसकी बाई फाँक पे घुमाया & फिर नीचे उसकी बाई जाँघ के पिच्छले,मांसल हिस्से पे चलाते हुए नीचे आने लगा.रंभा ने मुँह बिस्तर मे च्छूपा लिया & आहें उसमे दफ़्न करने लगी.

डंठल उसकी पिछली टांग को सहलाते हुए उसके तलवे को गुदगुदा रही थी.रंभा ने बेचैन हो बाई टांग हवा मे उठा दी तो विजयंत ने डंठल से उसके दाए तलवे को गुदगुदाना शुरू कर दिया.वो उस टांग को भी उठाने ही वाली थी कि उसने उसे तलवे से हटा के टांग पे उपर बढ़ा दिया.डंठल उसकी गंद की दाई फाँक पे पे पहुँची & फिर अचानक उसकी चूत मे घुस गयी.

इस अचानक हमले से रंभा चौंक गयी & बहुत ज़ोर से आ भरी.विजयंत उस डंठल को उसकी चूत मे अंदर-बाहर करने लगा.रंभा के लिए ये सब बिल्कुल नया एहसास था & वो कमर उचकाती हुई तीसरी बार झाड़ गयी.विजयंत ने डंठल को चूत से निकाला & उसके काँपते जिस्म को देखता रहा.जब थरथराहट ख़त्म हुई तो उसने रंभा को सीधा कर दिया.

सामने का नज़ारा देख उसकी ज़ुबान फिर सुख गयी.ऐसा लगता था जैसे खुदा ने सारा हुस्न 1 ही जिस्म मे डाल दिया हो.चेहरे पे बिखरे बालो की चिलमन के बावजूद मस्ती की लकीरें सॉफ दिख रही थी & फिर नीचे सख़्त गुलाबी निपल्स से सजी चूचियाँ जोकि बिल्कुल कसी हुई थी.विजयंत ने अपने सीने पे हाथ फेरा,रंभा को पहली बार वो थोड़ा बेचैन नज़र आया.उसके दिल मे खुशी की 1 लहर उठी की उसके हुस्न उसके ससुर जैसे बांके मर्द को भी बेचैन कर ही दिया लेकिन फिर उसकी आन ने उसे इस खुशी के इज़हार से रोका.

विजयनत उसकी कसी,गुलाबी,चिकनी चूत को देख रहा था.औरत के जिस्म के इस अंग की ना जाने कितनी किसमे वो देख चुका था लेकिन ऐसी चूत उसने आज तक नही देखी थी,"तुम सी हसीन मैने आज तक नही देखी!",ससुर के मुँह से हुस्न की तारीफ सुन शर्म से रंभा ने अपनी आँखे बंद कर ली.उसे ताज्जुब हुआ कि उसे आज शर्म क्यू आ रही थी!..विजयंत की बेबाक नज़रे उसे खुद को चूमती हुई सी लग रही थी लेकिन जैसे उन्होने उसे बाँध भी रखा था & वो करवट ले अपने नंगे तन को च्छुपाने की कोशिश भी नही कर पा रही थी.

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क्रमशः.......
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