RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--16
गतान्क से आगे.
"कब जाना चाहती हो?",अपनी प्यारी बीवी के उपर लेट ब्रिज ने उसके रसीले होंठो को चूमते हुए धक्के लगाना शुरू कर दिया.सोनिया ने अपनी टाँगे उसके घुटनो के पिच्छले हिस्से के उपर फँसाई & उनके सहारे उचकते हुए अपने शदीद जोश की गवाही देने लगी.
"कल..उउन्न्ह..!",उसने ब्रिज की पीठ को खरोंचा & उसके कान पे काटा.
"& लौट के कब आओगी?",ब्रिज ने उसकी छातियो पे सजे कड़े निपल्स को जीभ से छेड़ा तो वो तड़प उठी.
"पता नही..ऊन्नह..उनका रुख़ देखूँगी.....आहह..!",सोनिया झाड़ गयी मगर ब्रिज का काम अभी पूरा नही हुआ था.वो वैसे ही धक्के लगाता रहा.सोनिया मस्ती मे उड़े जा रही थी.उसी वक़्त उसे विजयंत का ख़याल आया.अब इंसान का अपने मन पे तो काबू है नही & उसी वक़्त उसके मन मे भी ख़याल आया कि विजयंत नंगा कैसा दिखता होगा & उसके नीचे दब के उस से चुदवाने मे भी क्या ऐसा ही मज़ा आएगा.सोनिया ने खुद को मन ही मन झिड़का,पति के अलावा वो किसी & मर्द के बारे मे ऐसा सोच भी कैसे सकती थी लेकिन उसके दिल का 1 कोना तो जैसे ऐसी गुस्ताखियों पे आमादा था!
ब्रिज ने अपनी ज़ुबान उसकी ज़ुबान से लड़ाई तो उसने फिर से कल्पना की कि विजयंत की ज़ुबान का स्वाद कैसा होगा!सोनिया ने किस तोड़ी & चेहरा बाई तरफ कर लिया.ब्रिज इसे अपनी बीवी के जोश मे होने की निशानी समझ रहा था & खुशी मे चूर हो उसके गाल पे जीभ फिरा रहा था.जब उसके दिल के उस कोने ये सोचना शुरू किया कि इस वक़्त ब्रिज नही विजयंत उसकी चुदाई कर रहा है तब सोनिया 1 अजीब रोमांच,मज़े के साथ-2 चिढ़ से भर उठी.उसे खुद पे गुस्सा आ रहा था लेकिन इस ख़याल से उसके अंदर 1 नया जोश भर गया था & वो पागलो की तरह कमर उचका रही थी.
ब्रिज उसकी मस्तानी हर्कतो से खुशी से पागल हो गया था & उसका जोश भी दुगुना हो गया था.सोनिया उसकी गंद पे नाख़ून धंसाए मस्ती मे आहे भरती हुई अपना सर पीछे कर अपनी कमर उचकाते हुए बदन को मोड़ रही थी.उसके जिस्म मे चुदाई & विजयंत के ख़याल ने अजीब सा सुरूर पैदा कर दिया था & अब वो बिल्कुल बेक़ाबू हो गयी थी.
विजयंत का 1 धक्का सीधा उसकी कोख पे पड़ा & वो हिल गयी,उसकी चूत ने हथियार डाल दिए & झाड़ते हुए रस बहाने लगी.ब्रिज के लंड ने भी उसी वक़्त अपनी पिचकारी छ्चोड़ी & चूत को अपने गाढ़े वीर्य से भरने लगा.
सोनिया मुँह फेरे आँखे बंद किए पड़ी थी.उसके दिल मे उथल-पुथल मची थी.उसे लग रहा था कि उसने अभी-2 अपने पति से बेवफ़ाई की है लेकिन उसे आज जैसा मज़ा पहले नही आया था & उसके मन का वो कोना हंस रहा था.उसकी बंद पॅल्को के कोने से आँसुओ की 2 बूंदे निकल उसके गुलाबी गालो पे ढालक पड़ी तो ब्रिज ने उन्हे चूम लिया.औरत कभी-2 जब जिस्मानी मस्ती की इंतेहा बर्दाश्त नही कर पाती तो उसकी खुशी कुच्छ इसी तरह उसकी आँखो के रास्ते छलक पड़ती है.ब्रिज ने भी यही समझा.
"आज तो बड़े रंग मे थी तुम!",उसने बीवी का माथा चूमा तो सोनिया ने उसके चेहरे को थाम लिया & उसे पागलो की तरह चूमने लगी.ब्रिज खुश था कि उसकी बीवी उसे इतना चाहती है जबकि सोनिया तो ऐसी हरकत से खुद को ये भरोसा दिला रही थी कि वो केवल ब्रिज से प्यार करती है और किसी से नही.
तभी ब्रिज का मोबाइल बजा.सोनिया ने हाथ बढ़ा के उसे उठाया,सोनम का फोन था,"लो तुम्हारी रानी का फोन है.",उसने उसे फोन दिया & उसे हटा उसकी ओर पीठ कर करवट से लेट गयी.मस्ती का सुरूर उतरने पे उसे खुद पे बहुत गुस्सा आ रहा था..अच्छा था कि कल वो बॅंगलुर चली जाएगी..जगह बदलेगी तो ये परेशानी भी ख़त्म हो जाएगी..तभी ब्रिज ने फोन पे बात करते हुए उसे पीछे से दाई बाँह मे भर लिया.
"मैने तुम्हे अभी फोन करने से मना किया था ना.",ब्रिज सोनिया के पेट को सहला रहा था.
"हां,पता है मगर बात ही कुच्छ ऐसी है.वैसे फोन उठाने मे देर हुई..बीवी की चुदाई कर रहे थे क्या?"
"हां मगर बात क्या है?",ब्रिज अभी मज़ाक के मूड मे नही था.
"मानपुर वाली ज़मीन जिसपे आपकी भी नज़र है,उसके टेंडर के सिलसिले मे मंत्री जी से भी बात हुई है."
"अच्छा."
"मैने बाप-बेटे को लंच मे बात करने सुना था,मुझे बाहर भेज दिया गया था मगर दरवाज़ा बंद करते-2 मैने सुन ही लिया कि मंत्री को टेंडर पास करने के 2 करोड़ मिलेंगे & शायदा उस ज़मीन से होने वाले फ़ायदे का कुच्छ हिस्सा भी."
"हूँ."
"उस ज़मीन पे फिल्म सिटी बनाना चाहते हैं ये लोग."
"ओके.",ब्रिज का हाथ अभी भी सोनिया के पेट पे घूम रहा था.
"बस यही बात थी & अब सबसे ज़रूरी बात."
"वो क्या?"
"अपनी बीवी को तो रोज़ चोद्ते हैनमेरे बारे मे भी कुच्छ सोचा है!जब से यहा आई हू किसी साध्वी का जीवन जी रही हू.पागल हो गयी हू मैं!प्लीज़,1 दिन तो मिल लीजिए & मेरी प्यासी चूत का भी उद्धार कीजिए!",ब्रिज ने प्रेमिका की बात पे ठहाका लगाया.
"तुम्हे तो कहा था कि अपने बॉस से ये काम करवाओ."
"हां,आपने कहा था कि वो ज़रूर मुझपे हाथ डालेगा मगर वो तो मेरी ओर देखता तक नही!"
"तो उसे अपनी ओर देखने पे मजबूर करो.ठीक है?"
"ठीक है.",ब्रिज ने मोबाइल किनारे फेंका & सोनिया का चेहरा अपनी ओर घुमा उसके गुलाबी होंठो से होठ सटा दिए.
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रंभा ने महसूस किया था कि उसका बॉस इधर उसे कुच्छ ज़्यादा ही देखता था.काई बार उसने उसे खुद को देखते हुए पाया था लेकिन जब नज़रे मिलती तो वो सकपका के नज़रे फेरता नही था बस अपनी वही शराफ़त भरी मुस्कान फेंक देता था.उस रोज़ सवेरे दोनो बाप-बेटे उसे लिफ्ट मे मिल गये.विजयंत को देख उसका दिल धड़क उठा क्यूकी उसे बीच वाली बात याद आ गयी थी.
विजयंत ने भी रंभा को देखा तो उसे चोदने के ख़याल से पागल हो उठा.रंभा ने घुटनो से कुच्छ उपर जाँघो का थोडा हिस्सा दिखाती काली स्कर्ट & सफेद शर्ट पे कोट पहना था & पैरो मे हाइ हील वाले जूते थे.विजयंत समीर के साथ लिफ्टे मे उसके पीछे खड़ा था & उसकी निगाह बार-2 उसकी गोरी टाँगो & उभरी गंद पे चली जाती थी.
वो 1 मसरूफ़ इंसान था & इधर जो भी खाली वक़्त मिलता था वो उसे सोनिया को फँसाने मे लगा रहा था.रंभा को अपने बिस्तर तक लाने का वक़्त उसे मिल ही नही रहा था.उसने लिफ्ट से निकलते हुए मन ही मन फ़ैसला किया कि वो जल्द ही इस बारे मे कुच्छ करेगा.
इधर समीर अपने मोबाइल पे बात करते हुए अपने कॅबिन मे घुसा & उसे कुच्छ याद आया तो बिना देखे पीछे मुड़ा & पीछे से आ रही रंभा से टकरा गया.हाइ हील्स की वजह से वो लड़खड़ा गयी & गिरने लगी मगर खाली हाथ आगे बढ़ा समीर ने उसकी कमर थाम ली & उसे खींचा.ऐसा करने से रंभा की मोटी छातिया समीर के सीने से दब गयी.उस लम्हे रंभा ने पहली बार समीर की आँखो मे वही मर्दाना प्यास देखी जोकि किसी लड़की के हुस्न को पाने की ख्वाहिश से पैदा होती है.1 पल बाद ही समीर ने उसकी पतली कमर से अपना हाथ हटा लिया मगर उतनी सी देर मे ही रंभा का हाल बुरा हो गया था.
दोनो 1 दूसरे से नज़रे चुराते काम मे जुट गये मगर लंच तक दोनो पहले की तरह ही बाते करने लगे थे लेकिन लंच के फ़ौरन बाद फिर कुच्छ हुआ जिसने दोनो के जिस्मो को करीब लाया & 1 बार फिर दोनो नज़रे चुराने लगे.समीर के पास 1 फाउंटन पेन था जिसे वो केवल बहुत ज़रूरी काग़ज़ो पे दस्तख़त करने के लिए रखता था.उसकी स्याही ख़त्म हो गयी तो वो खुद ही भरने लगा.तभी रंभा वाहा आई & उसके हाथो से स्याही की बॉटल & पेन ले लिया.
समीर के कॅबिन मे रखे सोफे पे बैठ के उसने स्याही भरने के लिए ज्यो ही बॉटल की कॅप खोली स्याही छलक उसकी जाँघो पे गिर गयी,"अरे ये क्या किया!",समीर फ़ौरन अपना रुमाल लेके उसके पास आया & उसके सामने बैठ उसकी जाँघो से स्याही साफ करने लगा.स्याही बह के उसकी जाँघो के अन्द्रुनि हिस्से को भी गीला कर रही थी & जब समीर का हाथ वाहा गया तो रंभा सिहर उठी.समीर का इरादा शुरू मे तो बस अपनी सेक्रेटरी की मदद करने के था मगर अब उसकी नर्म जाँघो के एहसास से उसके मर्दाना जज़्बात जाग उठे थे.उसने पास रखे ग्लास के पानी मे रुमाल का दूसरा कोना भिगोया & स्याही के दाग को रगड़ा-2 के सॉफ करने लगा.रंभा का अब बुरा हाल था,गाल शर्म से & सुर्ख हो गये थे & जिस्म मे बिजली दौड़ रही थी.समीर ने पोंच्छने के बहाने अपने हाथ को उसकी स्कर्ट के अंदर बस 1 इंच तक घुसाया मगर उसकी ये हरकत दोनो जवान दिलो मे आग भड़काने को काफ़ी थी.दोनो ने उस पल अपने उपर कैसे काबू रखा ये तो वही जानते थे.उसकी जाँघो को साफ करने के बाद समीर उठा & अपने डेस्क पे चला गया.
"थॅंक यू.",रंभा की कोमल आवाज़ उसके कानो मे पड़ी तो उसने बस सर हिला दिया.रंभा बाथरूम मे गयी & जल्दी-2 अपना चेहरा धोने लगी.अपने बॉस की हरकत से वो मस्त हो गयी थी लेकिन बस पानी उसके जिस्म मे लगी आग को थोड़े ही बुझा सकता था.उसने टाय्लेट सीट का कवर गिराया & जल्दी से अपनी स्कर्ट & पॅंटी उतार उसपे बैठ गयी & अपनी उंगली से खुद को शांत करने लगी.उसके दिल मे जज़्बातो का अजब घालमेल चल रहा था.अपनी चूत को उंगली से रगड़ती वो अभी अपनी जाँघो पे हाथ चलाते अपने बॉस का तस्साउर कर रही थी मगर ना जाने कहा से उसके जिस्म से खेलते मर्द की शक्ल बीच-2 मे उसके बॉस के बाप मे तब्दील हो जाती थी.2-3 मिनिट तक लगातार उंगली करने के बाद उसकी चूत शांत हुई तो वो बाहर आई & अपने काम मे लग गयी.उसने तय कर लिया की आज जो भी हो विनोद को रात उसी के साथ गुज़ारनी होगी.इतनी मस्ती केवल उंगली से नही संभाली जा सकती थी.
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"रंभा,मैं चाहता हू कि आज डिन्नर तुम मेरे साथ करो.तुम्हारा कोई पहले से बना प्रोग्राम तो नही?",शाम को अपने लॅपटॉप पे टाइप करते हुए समीर ने रंभा से पुछा.दोनो इस वक़्त हर शाम की तरह मानपुर वाले टेंडर की तैय्यारि मे लगे थे.
"नही,सर लेकिन.."
"लेकिन क्या?"
"सर,ग़लत मत समझिएगा लेकिन अगर ऑफीस मे किसी को पता चला तो सब बेकार मे बातें बनाएँगे &..-"
"-..वो सब छ्चोड़ो.अगर वो बातें ना हो तो तुम्हे मेरे साथ खाना खाने मे कोई ऐतराज़ है?",उसने लॅपटॉप से नज़रे नही हटाई थी.
"नही."
"आज तुम्हारा कोई & प्रोग्राम है?"
"नही."
"तो ठीक है.ये काम ख़त्म कर मेरे साथ चलो."
"ओके.",रंभा दिल ही दिल मे खुश तो बहुत थी कि बॉस उसे डिन्नर पे ले जा रहा है.इतनी जल्दी वो उसकी चहेती बन जाएगी ये उसने सपने मे भी नही सोचा था लेकिन उसे 1 बात का डर भी था.वो इन बातो के चक्कर मे अपना करियर नही बर्बाद कर सकती थी.हां,अगर इस सब से उसकी तरक्की का रास्ता आसान होता था तब ठीक था.उसे कोई फ़िक्र नही थी कि कौन उसके बारे मे क्या बोलता है.वैसे भी इस बात का डर तो तो उसने समीर पे ज़ाहिर किया था ताकि वो ये ना सोचे कि वो असानी से जाल मे फँसने वाली चिड़िया है.
ट्रस्ट ग्रूप ने डेवाले मे 1 नये तरह का शॉपिंग कॉंप्लेक्स बनाया था.ये कॉंप्लेक्स 1 इमारत ना होके 1 खुले इलाक़े मे इस तरह बना था कि लोगो को 1 बाज़ार मे घूमने का आभास होता मगर यहा आम बाज़ार की तरह ट्रॅफिक की चिल-पोन नही थी & ना ही कोई गंदगी.इस कॉंप्लेक्स के 1 किनारे 1 आर्टिफिशियल झील बनी थी.ये झील देखने मे तो बड़ी गहरी थी मगर असल मे उसकी गहराई कुच्छ खास नही थी.उसके फर्श पे ऐसी टाइल्स लगाई गयी थी कि पानी भरने के बाद वो बड़ी गहरी दिखती थी.उस झील की पूरी गोलाई मे रेल्स लगी थी जिनपे नावे चलती थी.
ये नावे आगे,पीछे & दोनो बगलो से बिल्कुल ढँकी हुई थी & बस सामने से खुली थी.विजयंत मेहरा अच्छी तरह से जानता था कि ऐसी जगहो पे सबसे ज़्यादा जवान लोग आते थे.अब जहा जवान होंगे वाहा रोमांस भी होगा & रोमांस होगा तो तन्हाई की हसरत भी होगी.ऐसी नाओ का आइडिया उसी का था.ये नावें 1 कंट्रोल रूम से ऑपरेट होती थी & फिर उन्हे खेने वाले की भी कोई ज़रूरत नही थी.
ये कॉंप्लेक्स बस 2 दिनो बाद खुलने वाला था & यही समीर रंभा को ले आया था.झील के किनारे लगी रेलिंग्स के इस तरफ कॉंप्लेक्स मे उसने खुले आसमान के नीचे 1 मेज़ & 2 कुर्सियाँ लगवाई & उनके बैठते ही 1 वेटर उन्हे खाना परोसने लगा.रंभा समझ गयी थी कि इस खास इंतेज़ाम के पीछे उसके बॉस की उसके करीब आने की हसरत च्छूपी है.खाते हुए समीर ने उस से उसके परिवार के बारे मे & अब तक की ज़िंदगी के बारे मे पुछा,उसने अपने बारे मे भी उसे काफ़ी बताया.
बात-चीत के दौरान उसने घुमा-फिरा के रंभा के किसी बाय्फ्रेंड के होने की बात भी पुछि मगर होशियार रंभा ने ऐसे जताया कि उसे सवाल समझ ही ना आया हो.समीर ने भी सवाल दोहराया नही बस मुस्कुराते हुए खाना ख़ाता रहा.
"थॅंक्स,सर.खाना बहुत अच्छा था."
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क्रमशः.......
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