Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:29 PM,
#13
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--13

गतान्क से आगे.

रंभा अपने मेहंदी से सजे हाथो से कान के झुमके उतारने लगी & उन्हे मेज़ पे रखने के लिए घूमी तो परेश के सामने उसकी चौड़ी गंद आ गयी.अब तो परेश से रहा नही गया & उसने उसे पीछे से अपनी बाहो मे जाकड़ लिया & उसके कंधो को चूमने लगा.

"ऊव्व..क्या करते हो?आराम से करो....हाईईईई..!",परेश अपना लंड उसकी गंद की दरार मे फँसाए उसकी मोटी चूचियो को मसलता हुआ उसके होंठ बहुत ज़ोर से चूम रहा था.रंभा को एहसास हो गया था कि परेश का लंड भी उसके दोस्त जितना ही बड़ा है.वो बाए हाथ से उसके बाल & दाए को पीछे ले जा उसकी दाई जाँघ सहलाने लगी.

थोड़ी देर बाद बेसबरे परेश ने उसे बिस्तर पे पटक दिया & उसके उपर चढ़ उसकी मोटी चूचियो को चूमने लगा.बीच-2 मे वो उसकी चूचियो को हौले-2 काट भी लेता था.उसके दीवानेपन ने रंभा को भी मस्त कर दिया था.परेश उसकी जाँघो के बीच अपना दाया हाथ घुसा के उसकी चूत को रगड़ते हुए उसकी चूचिया चूस रहा था.मस्ती मे डूबती रंभा को खुद पे गुमान हो रहा था,आज उसने 1 और मर्द को अपने जिस्म के जादू से अपनी बात मानने पे मजबूर कर दिया था.

परेश बिल्कुल पागल हो चुका था.रंभा का सीना ,उसका पेट,उसकी मोटी जंघें & उसकी नाज़ुक चूत-हर अंग उसके हाथो & होटो से अछूता नही रहा था.उसकी तेज़ी से घूमती जीभ ने रंभा को 1 बार मस्ती की मंज़िल तक पहुँचा दिया था & अब वो बिस्तर पे जिस्म को ढीला छ्चोड़े ऐसी और मंज़िलो की राह देख रही थी.परेश ने उसकी जंघे फैलाई & अपना लंड उसकी चूत मे घुसा दिया फिर उसके उपर लेटा & आहे भरता उसकी चुदाई करने लगा.

परेश थोडा मोटा था लेकिन ये बात चुदाई के आड़े नही आ रही थी.रंभा को अब बहुत मज़ा आ रहा था & वो उसका नाम ले लेके मस्त बातें करते हुए उसकी पीठ नोच रही थी,"..उउन्न्ञणणन्..परेश जानेमन..क्या मस्त चोद रहे हो तुम..डार्लिंग..ऊव्ववव....& अंदर घुसाओ ना इसे..!"

"किसे मेरी जान?",परेश ने उसके बाए गुलाबी निपल को काट लिया.

"अपने लंड को,डार्लिंग.",परेश ने धक्को की रफ़्तार बढ़ा दी.रंभा बहुत मस्त हो गयी थी & अपनी कमर उचका रही थी.उसने परेश की उपरी बाहें पकड़ी & उसे पलटने लगी.उसका इशारा समझ परेश ने फ़ौरन खुद को नीचे किया & रंभा को अपने उपर ले लिया.रंभा उठ बैठी & उसके लंड पे उच्छलती हुई अपने बालो से मस्ती मे खेलते हुए आँखे बंद कर आहें भरने लगी.उसके पर्स मे उसका मोबाइल बज रहा था मगर उसे इस वक़्त उसकी कोई परवाह नही थी.

"सॉरी,मुझ देर..-",घर का मेन डोर खुला रह गया था & विनोद सीधा कमरे तक आ पहुँचा था.दोनो उसकी आवाज़ से चौंक गये मगर जहा परेश रंभा के नीचे से निकलने की कोशिश करने लगा वही रंभा ने मुस्कुराते हुए दाई बाँह अपने प्रेमी की तरफ बढ़ा दी.

"परेश जी,मुझे घर देने को राज़ी हो गये हैं..",वो मुस्कुराते हुए कमर हिलाने लगी,"..हम अग्रीमेंट पक्का कर रहे थे!",उसने विनोद की कमीज़ पकड़ उसे खींचा & अपनी जीभ उसके मुँह मे घुसाते हुए 1 लंबी,मस्त किस दी.

"तो अग्रीमेंट पे किसी गवाह की भी ज़रूरत होगी,वो मैं बन जाता हू.",& विनोद ने फटाफट अपने कपड़े उतार दिए & बिस्तर के बगल मे खड़ा हो अपने दोस्त के लंड पे कुद्ति अपनी महबूबा को बाहो मे भर चूमने लगा.दोनो बड़ी देर तक 1 दूसरे को चूमते रहे & विनोद उसकी चूचियाँ & गंद को दबाता रहा.रंभा के नीचे पड़ा परेश आश्चर्य से सब देख रहा था लेकिन उसने महसूस किया कि उसकी मस्ती मे कोई कमी नही हुई थी.जब विनोद रंभा की पीठ सहलाते हुए उसे चूम रहा था तब उसने रंभा की मस्त गंद अपने हाथो के क़ब्ज़े मे ले ली & नीचे से कमर उचकाने लगा.

रंभा ने किस तोड़ी & परेश के सीने पे अपनी चूचियाँ दबाते हुए उसके होंठ चूमने लगी.विनोद झुक के उसकी गोरी,चिकनी पीठ से लेके उसकी गंद को चूमने लगा & अपनी जीभ से रंभा के गंद के छेद को छेड़ने लगा.रंभा उसकी इस हरकत से पागल हो गयी & उसके जिस्म मे 1 बिल्कुल नया,अंजना,अनोखा एहसास पैदा हो गया.पहली बार इस खेल मे उसने खुद को काबू मे नही पाया & झाड़ गयी.

विनोद ने फ़ौरन उसका सर परेश के सीने से उठाया & अपना लंड उसके मुँह मे दे दिया.रंभा आँखे बंद किए मस्ती मे उसके आंडो को दबाती लंड को चूसने लगी.जब लंड पूरा गीला हो गया तो विनोद ने लंड बाहर निकाला & इंतेज़ार कर रहे परेश ने रंभा को फिर से अपने उपर खींच लिया & उसके रसीले होटो का रस पीने लगा.

आईईयईीई..नही...विनोद..वाहा नही..!",विनोद कब उसके पीछे उसकी गंद मे अपना लंड घुसाने लगा था,उसे पता ही नही चला था.वो उस से बचने के लिए परेश के उपर से उठने लगी मगर उसने उसकी कमर को अपनी बाहो मे जाकड़ उसे रोक लिया.

"घबराओ मत मेरी जान,मैं तुम्हे ज़्यादा तकलीफ़ नही पहुचाऊँगा.",रंभा चीखने लगी लेकिन विनोद लंड का सूपड़ा गंद के छेद मे घुसाने के बाद ही रुका फिर वो आगे झुका & रंभा के दर्द की लकीरो से भरे चेहरे को चूमने लगा,"..बस थोड़ी देर ये दर्द सहो फिर जन्नत नज़र आएगी तुम्हे.",रंभा ने गुस्से से मुँह फेरा मगर विनोद ने उसके चेहरे को थाम उसे चूमना जारी रखा.नीचे परेश उसकी चूचियाँ पी रहा था.

थोड़ी देर बाद परेश ने फिर से कमर हिलानी शुरू की & उसी के साथ विनोद ने लंड थोड़ा & अंदर डाल उसकी गंद मारना शुरू किया.रंभा को सच मे इस बार बहुत मज़ा आया.वो अब दूसरी ही दुनिया मे पहुँच चुकी थी.दोनो मर्द बारी-2 से उसकी चूचिया दबाते हुए उसके चेहरे & होंठो को चूमते हुए उसके दोनो छेदो को चोद रहे थे.रंभा बहुत जल्दी-2 2 बार झाड़ गयी & इस बार परेश भी खुद पे काबू नही रख पाया & अपना वीर्य उसकी गीली चूत मे छ्चोड़ दिया.

विनोद ने उसकी कमर पकड़ उसे खींचते हुए बाई करवट ली तो रंभा परेश के जिस्म से उतर अपनी बाई करवट पे आ गयी.अब दोनो कोहनियो पे उच्के थे & विनोद दाए हाथ से उसकी चूत के दाने को रगड़ते हुए उसके सर & चेहरे को चूमता हुआ उसकी गंद मार रहा था.रंभा ने दाई टांग हवा मे उठा रखी थी & बस मस्ती की 1 ऊँची लहर से दूसरी ऊँची लहर पे सवार उस समंदर को पार कर रही थी.

परेश उठा & घुटनो पे बैठ अपना सिकुदा,गीला लंड रंभा के मुँह मे भर दिया.रंभा अपने हाथो से अपनी चूचियो को दबाते हुए वो उसके लंड को चूसने लगी,परेश मस्ती मे आहे भरने लगा,"विनोद भाई,तुमने पहले क्यू नही ऐसे मिलवाया था इस से.अब जब मैं जा रहा हू तब ये सब जो रहा है.कितने दिन बर्बाद कर दिए मैने!इस हसीना के कमाल के जिस्म का कम लुत्फ़ उठा पाउन्गा इस बात का अफ़सोस रहेगा मुझे मगर इसे चोदा इस बात की खुशी उस अफ़सोस की तासीर को कम करती रहेगी!"

अपनी तारीफ सुन रंभा खुशी से मुस्कुराइ & कुच्छ ही पलो मे परेश के लंड को फिर से खड़ा कर दिया.रंभा विनोद की उंगली से इस दौरान 1 बार झाड़ चुकी थी.आहत हो उसने उसे धकेल गंद से लंड को निकाला & बिस्तर पे उल्टी लेट गयी.विनोद ने उसे पलट बाहो मे भरा & उसकी छातियो को चूसने लगा.परेश उसके कदमो मे बैठा उसकी टाँगो को चूमता उसकी चूत की ओर बढ़ रहा था.दो मर्दो के साथ इस तरह से पूरे जिस्म को प्यार करवाने मे रंभा को बहुत मज़ा आ रहा था.

दोनो मर्दो ने अपनी ज़ुबान के कमाल से उसकी चूचियो & चूत को छेड़ते हुए उसे फिर से झाड़वा दिया.अब वो थकान महसूस कर रही थी लेकिन उसके उपर च्छाई खुमारी अभी कम नही हुई थी.इस बार विनोद ने उसे सीधा लिटाया & उसके उपर आ अपना लंड उसकी चूत मे घुसा दिया.रंभा ने उसे बाहो मे भर लिया & मस्ती मे मुस्कुराती आहे भरती उसकी चुदाई का मज़ा उठाने लगी.उसने बिस्तर के किनारे से सर पीछे लटका कर आह भारी तो विनोद उसकी गर्दन चूमने लगा.

तभी परेश उसके सर के पीछे आ खड़ा हुआ & अपना लंड उसके मुँह मे घुसा दिया.रंभा ने हाथ पीछे ले जा उसकी गंद को पकड़ लिया तो परेश उसका मुँह चोदने लगा.जब उसे लगा कि वो झाड़ जाएगा उसने लंड बाहर खींचा & विनोद ने रंभा को बाहो मे भर करवट ली & उसे अपने उपर कर लिया.रंभा समझ गयी कि अब उसकी गंद परेश के लंड का स्वाद चखेगी.कहा तो अब तक उसकी गंद कुँवारी थी & जब कुँवारापन टूटा तो 1 ही शाम मे 2-2 लंड उसे मार रहे थे!

"ओईईईईईईईई..!",वो दर्द से कराही मगर फिर वही अनोखा मज़ा उसके दिलोदिमाग पे च्छा गया.विनोद सर उठा उसकी दाई चूची को दबोचे उसके गुलाबी निपल को चूस रहा था & परेश उसकी कमर थामे उसके बालो को चूमता उसकी गंद मार रहा था.तीनो अब मस्ती के सफ़र के आख़िरी दौर मे थे.दोनो मर्द रंभा के जिस्म को पकड़े उसके नाज़ुक अंगो को चखते अब बहुत ज़ोर से धक्के लगा रहे थे.

दर्द,मस्ती & ढेर से मज़े की अनगिनत लहरें बदन मे दौड़ती रंभा का दिल अब पूरी तरह से मदहोश था.उसके दोनो छेदो मे 1 अजीब सी कसक हो रही थी & अगले ही पल उसने गंद मे कुच्छ गरम सा महसूस किया,उसके उपर झुका परेश आहे भरता हुआ झटके कहा रहा था.वो झाड़ गया था & उसके गर्म वीर्य के एहसास ने उसके अंदर मस्ती की 1 नयी शदीद लहर दौड़ा दी & उसने भी बहुत ज़ोर से चीख मारी & उसकी चूत ने विनोद के लंड को अपनी क़ातिल जाकड़ मे कस लिया.1 पल को वो उसे छ्चोड़ती & फिर जाकड़ लेती.ये एहसास विनोद के भी सब्र को तोड़ने को काफ़ी था & वो भी बिस्तर से उठने की कोशिश करता झटके ख़ाता हुआ अपनी महबूबा की चूत मे झाड़ गया.

बिस्तर पे तीन थके मगर सुकून & खुशी से भरे जिस्म 1 दूसरे के आगोश मे पड़े अपनी साँसे संभाल रहे थे.

रंभा पहली बार प्लेन मे बैठी थी.इस नयी नौकरी मे आते ही उसे कयि नये तजुर्बे हुए थे.सबसे पहले तो इस नयी नौकरी के चलते उसकी तनख़ाह बढ़ गयी थी & ज़िंदगी मे पहली बार वो थोड़ा बेफिक्री से पैसे खर्च पा रही थी.दूसरे,विनोद के रूप मे उसे 1 ऐसा शख्स मिल गया था जो ना केवल उसकी जिस्मानी ज़रूरतो को पूरा करता था बल्कि कयि & बातो मे उसकी मदद भी करता था.

गुजरात के प्रॉजेक्ट के ईनेग्रेशन के लिए ट्रस्ट ग्रूप के सभी बड़े अफ़सर वाहा जा रहे थे.विजयंत मेहरा ने उनमे से कुच्छ को अपनी सेक्रेटरीस को ले जाने की भी इजाज़त दी थी.सभी 1 चार्टर्ड प्लेन से पहले प्रॉजेक्ट के नज़दीकी एरपोर्ट पहुँचे & वाहा से सड़क के 2 घंटे के सफ़र के बाद उस जगह पहुँचे.

खुद PM इनएग्रेशन करने वाले थे & इस चलते उनके साथ कयि बड़े मिनिस्टर & अफ़सर भी वाहा आए थे.रंभा ने पहली बार इतनी बड़ी-2 हस्तियो को देखा था & ये सब उसके लिए बड़ा रोमांचकारी था.पूरे जलसे के दौरान सोनम के साथ उसकी & बाकी सेक्रेटरीस की ड्यूटी मेहमानो का ख़याल रखने के लिए लगाई गयी थी.इतने से दिनो मे ही उसकी सोनम से अच्छी छनने लगी थी.

"कहा जा रही है?",जलसा ख़त्म होने के बाद सारे मेहमान & ग्रूप के अफ़सर विजयंत & समीर के साथ 1 बड़े से हॉल मे खाने के लिए चले गये थे.PM की हिफ़ाज़त के नज़रिए से सेक्यूरिटी बड़ी कड़ी थी & बाकी लोग 1 दूसरे हॉल मे खाना खा रहे त.रंभा खाना लेने के बजे हॉल से बाहर जाने लगितो सोनम ने उसे टोका.

"बाथरूम से आती हू,यार.इस सेक्यूरिटी के चक्कर मे जा ही नही पा रही थी."

"अच्छा!की अपने बॉस से मिलने जा रही है?दोनो ने बाथरूम मे मिलने का प्लान बनाया हुआ है क्या?",उसने सहेली को छेड़ा.

"चुप!तू मिलती होगी अपने बॉस से बाथरूम मे!"

"अरे,यार!वो बुलाए तो मैं खुली सड़क पे मिल लू!बुड्ढ़ा इस उम्र मे भी 10 जवानो पे भारी पड़ेगा!"

"तू तो ऐसे कह रही है जैसे उसका वजन संभाल चुकी है!",रंभा ने भी चुहल की & हंसते हुए वाहा से चली गयी.सोनम की बातो से उसे ध्यान आया की पूरे जलसे के दौरान उसने कयि बार समीर को खुद को देखते पाया था.जब उनकी नज़र मिलती तो वो अपनी वही नेक्दिल मुस्कान होंठो पे ले आता & जवाब मे वो भी मुस्कुरा देती....क्या उसका बॉस उसपे फिदा हो गया था?..हुंग! हो भी जाए तो क्या?..कुच्छ दिन खेलेगा & फिर किनारे कर देगा..अगर उसका फ़ायदा हुआ तो सब ठीक वरना वो समीर से कभी नज़दीकी नही बढ़ाएगी.

"हेलो,रंभा!खाना खाया तुमने?",दोनो बाथरूम के बाहर हाथ धोने के लिए 1 कामन वाशवेशन था & समीर वाहा हाथ धो रहा था.

"हेलो,सर.बस जा रही हू?",वो साथ वाले बेसिन पे हाथ धोने लगी.

"ये कोई नया मेकप का तरीका है क्या?"

"जी?!",उसने हैरत से समीर को देखा.

"हां,ये बालो मे क्या लगा रखा है?",रंभा ने शीशे मे देखा तो उसकी हँसी छूट गयी.उसके बालो मे 1 लाल रंग का बड़ा सा धागा लगा हुआ था.वो उसे निकालने लगी मगर ना जाने कैसे वो बालो मे उलझ गया था.

"लाओ,मैं निकाल देता हू."

"नही,सर.हो जाएगा.आप बेकार परेशान हो रहे हैं.",मगर समीर ने उसकी अनसुनी करते हुए धागे को निकालना शुरू कर दिया.रंभा को थोड़ी शर्म आने लगी.उसने आँखो के कोने से शीशे मे देखा,सारी मे सजी-धजी वो & बढ़िया सूट मे तैयार हॅंडसम समीर उसके बाल ठीक करता हुआ,1 पल को उसके दिल ने दोनो को 1 जोड़े की निगाह से देखा मगर अगले ही पल उसके दिमाग़ ने उसे ख्वाब के आसमान से हक़ीक़त की ज़मीन पे ला खड़ा किया.

"वैसे आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो.",धागा बस अब निकलने ही वाला था.

"थॅंक यू,सर.",रंभा के गाल थोड़े & गुलाबी हो गये.

"वैसे मुझे तुमसे 1 बात कहनी थी.",रंभा का दिल धड़क उठा,"..उस सेमेंट प्राइसिंग वाली बात जो तुमने मुझे बताई थी उसके बाद मुझे लगता है कि तुम मेरी मदद कर सकती हो,रंभा."..ओह!इसे तो काम की बात करनी है..रंभा को थोड़ी मायूसी हुई.

"मैं चाहता हू कि तुम मेरी उस नये मानपुर प्रोज़कट की तैयारी करने मे मदद करो.इसके लिए रोज़ 6 बजे के बाद तुम्हे रुकना होगा लेकिन मेरे कहने का मतलब ये नही है कि तुम्हे हां ही करनी है अगर कोई परेशानी हो तो मना कर दो."

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क्रमशः.......
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